
- चौथी बार प्रयास शुरु, इस बार सफलता मिलने की उम्मीद
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में एक नए टाइगर रिजर्व अभ्यारण को बनाने में प्रदेश के साथ ही वन महकमे को लगातार प्रयासों के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है। इसकी बड़ी वजह है, इसके मातहत आने वाले करीब तीन दर्जन गांव। इसके अलावा प्रस्ताव में कई तरह की खामियां भी रहना है।
अब तक प्रदेश सरकार द्वारा तीन बार प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेज चुका है, लेकिन हर बार उसमें कोई न कोई खामी सामने आ जाती है। अब चौथी बार फिर से प्रयास शुरु कर पूर्व के प्रस्तावों में रह गई खामियों को दूर करने के प्रयास शुरु कर दिए गए हैं। दरअसल रातापानी अभयारण्य में भोपाल, रायसेन, सीहोर जिलों का वन क्षेत्र आता है। इस इलाके में अभी 90 से अधिक टाइगरों की मौजूदगी बनी हुई है। इसको देखते हुए इसे टाइगर रिजर्व बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसकी वजह से कई बार टाइगर शहर की लगी सीमा तक को पार कर जाते हैं। टाइगर रिजर्व बनने से न केवन उनकी सुरक्षा हो सकेगी , बल्कि पर्यटकों के लिए भी आसानी से टाइगर दिख सकेंगे। इसके अलावा जंगल अतिक्रमण और अवैध कटाई से भी बच सकेगा। फिलहाल हाल ही में वन विभाग द्वारा टाइगर रिजर्व बनाए जाने के लिए जो प्रेजेंटेशन दिया गया है उसमें इस बार कोर एरिया को कम कर दिया गया है। इसकी वजह से अब कोर एरिया में महज 3 वन ग्राम, 12 राजस्व ग्राम आ रहे हैं और बफर जोन में 20 गांव आ रहे हैं। इन गांवों को पहले खाली कराने के बाद उनका व्यवस्थापन करना होगा, जिसके बाद ही रातापानी को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिल सकेगा।
रातापानी में सर्वाधिक बाघ
प्रदेश के रातापानी अभयारण्य में प्रदेश के पन्ना, संजय दुबरी और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से भी ज्यादा बाघ इस समय मौजूद हैं। यहां हर साल बाघों की संख्या में वृद्धि हो रही है। मौजूदा समय में रातापानी अभयारण्य में 90 से ज्यादा बाघ हो चुकी हैं। प्रदेश सरकार अगर रातापानी अभ्यारण को टाइगर रिजर्व बनाने के लिए आदेश जारी करती है, तो यह अभ्यारण्य प्रदेश का आठवां टाइगर रिजर्व होगा। गौरतलब है कि रातापानी अभ्यारण्य टाइगर रिजर्व बनने की सभी शर्तों को पूरा करने में सक्षम है। क्योंकि यहां बाघों के अलावा भारी संख्या में यहां तेंदुआ, रीछ, बारहसिंगा, सोनकुत्ता, धारीधार लकड़बग्घा सहित अन्य जंगली जानवरों की संख्या पर्याप्त मात्रा में है।
डेढ़ दशक से किए जा रहे हैं प्रयास
रातापानी अभयारण्य को टाइगर रिजर्व बनाए जाने के प्रयास डेढ़ दशक पहले से किए जा रहे हैं। इसके लिए पहली बार वर्ष 2008 में प्रयास शुरु किए गए थे। पहली बार 2008 में रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाए जाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया था। उस समय एनटीसीए से सैद्धांतिक सहमति भी मिल गई थी। राज्य सरकार को सिर्फ नोटिफिकेशन ही करना था, लेकिन खनन लॉबी के दबाव में टाइगर रिजर्व बनाए जाने का मामला ऐसा अटका कि अब तक वह बन ही नहीं सका है। दूसरी बार करीब आठ साल बाद 2016 में भी रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाए जाने का प्रस्ताव बना , लेकिन मामला फिर अटक गया। तीसरी बार प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद 2018 में रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाए जाने की प्रक्रिया फिर से शुरु हुई थी, लेकिन सरकार गिरने के गाद मामला फिर अटक गया। अब एक बार फिर रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद विभाग को उम्मीद है कि अगर सब कुछ सही ढंग से चलता रहा तो आने वाले समय में सरकार रिजर्व टाइगर बनाने के लिए नोटिफिकेशन जारी कर सकती है।
तीन जिलों में फैला हुआ है
जंगली जानवरों की उपस्थिति के अलावा रातापानी अभ्यारण्य क्षेत्रफल के लिहाज से भी टाइगर रिजर्व बनने की शर्तों को पूरा करता है। यह अभ्यारण्य भोपाल, सीहोर सहित रायसेन जिले में फैला हुआ है। इस अभ्यारण्य की एरिया 823 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें कोर एरिया 763.812 वर्ग किलोमीटर है। बफर एरिया 59.253 वर्ग किलोमीटर है। अगर सरकार टाइगर रिजर्व बनाने के लिए नोटिफिकेशन जारी करती है तो विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती गांवों के विस्थापन को लेकर होगी। क्योंकि अभी नौरादेही टाइगर रिजर्व क्षेत्र से विभाग को विस्थापन कराने में पसीना आ रहा है।