
- बिजली कंपनियां चोरी रोकने की जगह बिजली के दामों में वृद्धिकर ईमानदार उपभोक्ताओं की जेब काटने में लगी रहती हैं…
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश देश का ऐसा राज्य बन चुका है जिसमें देश के कई दूसरे बड़े राज्यों की तुलना में सर्वाधिक बिजली चोरी होती है। हालात यह है कि प्रदेश में एक साल में 336.6 करोड़ यूनिट बिजली चोरी हो गई। यह वो बिजली है जिसे बिजली कंपनियों ने खरीदा, लेकिन इसके एवज में एक फूटी कोड़ी भी नहीं मिल सकी है। इसकी वजह से बिजली कंपनी को हर साल बड़ा घाटा लग रहा है। बिजली कंपनियां भी चोरी रोकने की जगह बिजली के दामों में वृद्धिकर ईमानदार उपभोक्ताओं की जेब काटने में लगी रहती हैं। दरअसल प्रदेश का बिजली महकमा पूरी तरह से बिजली चोरी रोकने में नकारा साबित हो रहा है। इसके बाद भी प्रदेश सरकार उन पर नकेल कसने की हिम्मत नहीं दिखा पा रही है। मप्र में हालात यह है कि देश में सर्वाधिक 26 फीसदी बिजली चोरी हो रही है। यह खुलासा हुआ है बिजली कंपनियों द्वारा मप्र विद्युत नियामक आयोग में लगाई गई सत्यापन याचिका में। बिजली कंपनियों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019-20 में कुल 336.6 करोड़ यूनिट अतिरिक्त बिजली की खरीदी की गई, लेकिन इसका एक रुपया भी नहीं मिला। कंपनी के कहना है कि यह पूरी बिजली चोरी हो गई। खास बात यह है कि इस बिजली चोरी को रोकने का जिम्मा बिजली कंपनियों का है। यह बात अलग है कि प्लांट से उपभोक्ताओं तक बिजली पहुंचने में तकनीकी हानि जरुर होती है, पर यह नियमानुसार 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन मप्र इस मामले में भी फिसड्डी बना हुआ है। हालत यह है कि इस मामले में मप्र से अच्छी स्थिति तो उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान पैसे राज्यों की है।
घाटे की एक बड़ी वजह यह भी
मध्यप्रदेश में पुराने पावर परचेज एग्रीमेंट के अनुसार बिजली की खरीदी हो रही है। यह संचालन लागत की 77 प्रतिशत है। इसकी वजह से ही अभी बिजली कंपनियों पर बिजली उत्पादकों का 1515 करोड़ रुपए बकाया बना हुआ है। इसका नुकसान ईमानदार उपभोक्ता को उठाना पड़ रहा है। अनाप-शनाप बिजली खरीदी और बिजली चोरी से 5341 करोड़ रुपए का घाटा कंपनियों को हुआ है, जिसकी भरपाई ईमानदार उपभोक्ताओं से वसूल कर करने की तैयारी की जा रही है। पॉवर मैनेजमेंट कंपनी और वितरण कंपनियों ने 2019-20 में 5341.13 करोड़ का घाटा बताया है। इसकी भरपाई उपभोक्ताओं से अगले टैरिफ आदेश में वसूलने की एक सत्यापन याचिका मप्र विद्युत नियामक आयोग में पेश की जा चुकी है। इस पर जनसुनवाई 24 अगस्त को होनी है।
कंपनी प्रबंधन पर नहीं होती कार्रवाई
विद्युत मामलों के एक जानकार ने इस सत्यापन याचिका पर आपत्ति दर्ज कराई है। उनका कहना है कि अनाप- शनाप बिजली अनुबंध की समीक्षा और बिजली चोरी रोकने में नाकामयाब बिजली कंपनियों के अफसरों पर कठोर कार्रवाई की मांग की है। जानकारों का कहना है कि दरअसल अफसरों का पूरा प्रयास बिजली खरीदी और अन्य कामों में रहता है जबकि पूरा फोकस बिजली चोरी रोकने और लाइन लॉस को काम करने पर करना चाहिए।
क्या होती है सत्यापन याचिका
बिजली कंपनियों की ओर से हर वित्त वर्ष के लिए पॉवर मैनेजमेंट कंपनी अनुमान आधारित टैरिफ याचिका नियामक आयोग में पेश करती है। इसमें वास्तविक व्यय आंकलित व्यय से अधिक होने पर उसकी भरपाई के लिए कंपनियां सत्यापन याचिका पेश करती हैं। जिसमें यह बताया जाता है कि किस कारण से उनका खर्च आंकलन से अधिक हुआ। यदि आयोग ने उनकी सत्यापन याचिका स्वीकार कर ली तो इसकी वसूली उपभोक्ताओं से अगले टैरिफ याचिका में बिजली की दरें बढ़ाकर की जाती है।
यह बताई गई घाटे की दो प्रमुख वजहें
सत्यापन याचिका में बिजली कंपनियों ने घाटे की जो दो मुख्य वजह बताई है। इनमें पहला प्रदेश में सरप्लस बिजली और दूसरी, बिजली चोरी है। इस घाटे का भार आम उपभोक्ताओं को वहन करने को कहा है। टैरिफ आदेश 2019-20 में कंपनियों ने बिजली खरीदी पर 26003.63 करोड़ रुपए का अनुमान लगाया था। पर कंपनियों ने बिजली खरीदी पर 32231.42 करोड़ रुपए खर्च किए। यह राशि अनुमान से 6227.79 करोड़ रु. अधिक है।