सोन चिरैया अभयारण्य से मिली 33 गांव को मुक्ति

सोन चिरैया अभयारण्य
  • 28 सालों से बिन सोनचिरैया के परेशान थे इन गावों के लोग

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। शिवपुरी जिले के करैरा स्थित सोन चिरैया अभयारण्य को राज्य सरकार ने 22 जुलाई को गजट नोटिफिकेशन जारी कर समाप्त कर दिया है। इस गजट नोटिफिकेशन के बाद इस अभयारण्य क्षेत्र में आने वाले 33 गांव के लोगों को कई परेशानियों से मुक्ति मिलेगी।  इसके लिए केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी पहल की थी। यहां के लोग अपनी जमीन तक किसी को विक्रय नही कर सकते थे। इसके लिए करैरा व नरवर के कई नेताओं व आम जनता ने आंदोलन व संघर्ष किया था। पिछले 28 सालों से इस अभयारण्य में कोई सोनचिरैया भी नहीं देखी गई थी।
उल्लेखनीय है कि करैरा अभयारण्य की सीमा 202.21 वर्ग किमी  में फैली हुई थी। अभयारण्य में सोन चिरैया पहली बार 1982 व 1993 में आखिरी बार देखी गई थी। खास बात यह थी कि इस अभयारण्य में अधिकांश जमीन राजस्व या वन विभाग की ना होकर किसानों की निजी जमीन थी। अभयारण्य के रहते हुए इस क्षेत्र के किसानों की निजी जमीन की खरीद व बिक्री पर सरकार ने रोक लगाकर रखी थी। लगभग 41 सालों से किसान जरूरत होने पर भी अपनी जमीन को नहीं बेच सकते थे। हालात तो यहां तक खराब हो चुके थे कि इन 33 गांव में रहने वाले युवाओं की शादियां तक एक समय होना रूक गई थी। अभयारण्य क्षेत्र में सोन चिरैया ना होने से किसान इसे समाप्त करने की मांग लंबे समय से करते चले आ रहे थे, लेकिन इस पर कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। किसानों ने आंदोलन की राह भी पकड़ी। नेताओं ने अभयारण्य को समाप्त करने के नाम पर सरकारें भी बनाई और बिगाड़ी। अब गजट नोटिफिकेशन की प्रति आने के बाद से क्षेत्र के किसानों में अभयारण्य समाप्ति के बाद हर्ष की लहर देखने को मिली है, क्योंकि इन 33 गांव के किसानों को 40 साल बाद उनकी जमीन का मालिकाना हक अब सही मायने में मिला है।
सोन चिरैया करीब 25 साल से विलुप्त प्राय
सोन चिरैया के संरक्षण के लिए वर्ष 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी पहल पर 202.12 वर्ग किमी राजस्व क्षेत्र में करैरा अभयारण्य प्रारंभ किया गया था। बताया जाता है कि सोन चिरैया करीब 25 साल से विलुप्त प्राय हो गई। वर्ष 2008 में एक सोन चिरैया घायल अवस्था में पाई गई थी। इसके बाद वर्ष 2011 से एक भी नजर नहीं आई। बार-बार बंद करने की उठ रही मांग पर राज्य शासन ने प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। वर्ष 2008 में राज्य वन्यप्राणी बोर्ड की बैठक में प्रस्ताव भी पारित हुआ। करीब चार साल पहले राज्य मंत्रिपरिषद ने भी डी नोटिफिकेशन के लिए सहमति दे दी। मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया। केंद्र सरकार के वन्य प्राणी बोर्ड ने 12 अप्रैल 2010 को अभयारण्य को डि- नोटिफाई करने की सशर्त अनुमति दे दी। लेकिन बार-बार पेंच आते रहे।
24 सेंचुरी यथावत बनी रहेंगी
 उधर, राज्य शासन ने सिवनी जिले में नई कर्मझिरी के नाम से सेंचुरी प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। प्रदेश में 24 सेंचुरी यथावत बनी रहेंगी। सिवनी के कर्मझिरी गांव के 3 तरफ से पेंच टाइगर रिजर्व का संरक्षित क्षेत्र होने से ग्रामीणों का जीवन कठिन था। केंद्र सरकार ने विस्थापन के प्रस्ताव को अमान्य कर दिया। इसके बाद विभाग ने 14 किमी क्षेत्र में नई सेंचुरी बना दी जाए जिसके बाद गांव को विस्थापित किया जाएगा। राज्य सरकार के इस निर्णय पर अब केंद्र सरकार मना नहीं कर सकेगी। इस तरह 1410.420 हेक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र में नया अभयारण्य प्रारंभ होगा। इसके लिए गजट नोटिफिकेशन कर दिया गया है। पीसीसीएफ वन्य प्राणी जेएस चौहान का कहना है कि करैरा सेंचुरी से अब सोन चिरैया विलुप्तप्राय हो चुकी हैं। 33 गांवों के लोग सालों से संरक्षित क्षेत्र से मुक्त होने की मांग कर थे। अभयारण्य को डिनोटिफाइ कर दिया गया है। सिवनी जिले में कर्मझिरी के नाम से नई सेंचुरी शुरू होगी। दोनों सेंचुरी  के लिए जरूरी कार्रवाई पूरी की गई हैं।
नई सेंचुरी व नेशनल पार्कों को मंजूरी नहीं
प्रदेश में लगातार बाघों की जनसंख्या में व़द्वि हो रही है , जिसकी वजह से उनके लिए जगह कम पड़ने  लगी है। हालात यह हैं कि हर माह में दो बाघों की औसतन मौत हो रही है।  अधिकांश की मौत की वजह उनके बीच अपने क्षेत्र को लेकर होने वाली लड़ाई है। इसके बाद भी सरकार द्वारा बीते तीन साल से 11 सेंचुरी व तीन नेशनल पार्क बनाने के प्रस्ताव की फाइल को मंजूरी नहीं दी जा रही है। इसी वजह से बीते एक दशक पहले प्रदेश में जितने पार्क और सेंचुरी थीं, उतने ही आज भी हैं। वन विभाग द्वारा श्योपुर, बालाघाट, मंडला, छिंदवाड़ा, शहडोल, डिंडौरी, सागर, खंडवा, जबलपुर, इंदौर, सिवनी और नर्मदापुरम में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी बनाने का और रातापानी, ओंकारेश्वर और मांधाता को नेशनल पार्क बनाने प्रस्ताव था। बीते  एक दशक में सरकार ने कूनो पालपुर के रूप में सिर्फ एक नए नेशनल पार्क को बनाया है , लेकिन वह भी पूर्व से सेंचुरी थी। प्रदेश में इस साल होने वाली बाघ गणना में इनकी संख्या सात सौ से अधिक होने की उम्मीद है। दरअसल एक बाघ की टेरेटरी 70-100 वर्ग किमी में रहती है। इसमें एक बाघ के साथ दो बाघिन रह सकती हैं, लेकिन अमूमन इनमें संघर्ष होता है। 2018 के गणना के हिसाब से अभी बांधवगढ़ के 1536.934 वर्ग किमी क्षेत्र में 124 और कान्हा के 2051.791 वर्ग किमी क्षेत्र में 108 बाघ हैं। 124 बाघों के लिए बांधवगढ़ में 6-7 हजार वर्ग किमी, जबकि कान्हा में 5-6 हजार वर्ग किमी क्षेत्र चाहिए।

Related Articles