
- इन सीटों को जीतने रणनीति बना रही भाजपा और कांग्रेस
भोपा/बिच्छू डॉट कॉम। 230 विधानसभा सीटों वाले मप्र में बहुमत के लिए 116 का आंकड़ा छूना जरूरी है। इस आंकड़े को पार करने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने अपना पूरा दमखम लगा दिया है। लेकिन प्रदेश में 31 विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं, जो भाजपा और कांग्रेस के लिए जी का जंजाल बनी हुई हैं। इन सीटों पर बसपा-गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जीत का गणित बिगाड़ रही है।
इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया है और दोनों दल मिलकर सभी 230 (178 बसपा, 52 जीजीपी) सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। इनमें से 31 सीटें ऐसी हैं, जहां गठबंधन के उम्मीदवार भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों के लिए चुनौती है। इनमें से कुछ सीटों पर कांग्रेस-भाजपा के बड़े नेता मैदान में है। मप्र में अगली सरकार चुनने के लिए 17 नवंबर को मतदान होना है। इसलिए प्रचार ने तेजी पकड़ ली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह से लेकर कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खडग़े, राहुल-प्रियंका गांधी सहित दूसरे दलों के बड़े नेताओं की सूबे में सक्रियता बढ़ी है, तो भाजपा कांग्रेस ने एक-एक सीट के हिसाब से रणनीति बनानी शुरू कर दी है। भाजपा और कांग्रेस के लिए 31 सीटें सिरदर्द बन रही है। इन सीटों पर बसपा-गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जीत का गणित बिगाड़ रही है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां इन सीटों को जीतने के लिए रणनीति बनाने में जुट गई हैं। मुरैना की सुमावली, मुरैना, राजनगर, भिंड, अटेर, कोलारस, टीकमगढ़, सिरमौर, सेमरिया, नागौद, बिजावर सहित 31 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां त्रिकोणीय मुकाबला है और वहां कांग्रेस भाजपा के प्रत्याशियों की जीत का गणित बसपा या गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की वजह से बिगड़ सकते हैं।
बसपा-गोंगपा ने डराया
प्रदेश में बसपा और गोंगपा दोनों मिलकर भले ही सभी 230 पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन वे 31 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस की हार जीत का गणित बिगाड़ सकते हैं। इनमें से कुछ सीटों पर कांग्रेस-भाजपा के बड़े नेता मैदान में है। वर्ष 2018 में कांग्रेस ने भले ही सरकार बना ली हो, लेकिन उसके हाथ से कई सीटें इसलिए चली गई थी, क्योंकि उन सीटों पर बसपा ने कांग्रेस के वोट बैंक को हथिया लिया था। हालांकि भाजपा को भी तब नुकसान हुआ था, लेकिन उनके परंपरागत वोट तब भटके नहीं थे। एक सप्ताह के चुनावी फीडबैक के बाद भाजपा ने जहां एक-एक सीट को लेकर रणनीति बनाने का काम शुरू कर दिया है। इन सीटों पर जहां पार्टी के दिग्गज नेताओं को मैदान संभालने के लिए उतार दिया गया है, तो ऐसी ही चिन्हित सीटों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केन्द्रीय मंत्री अमित शाह के अलावा दूसरे केन्द्रीय मंत्रियों की सभाएं की जा रही है। कांग्रेस भी वहां नए सिरे से जमावट कर रही है, जहां पिछला चुनाव 4 से 8 हजार मतों से हारी थी। जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश की तकरीबन 68 सीटें ऐसी थीं, जहां पर बहुजन समाज पार्टी 2018 के चुनाव में दूसरे या तीसरे नंबर पर रही थी। इनमें कई सीटें तो ऐसी थीं, जो की बहुजन समाज पार्टी के चलते ही कांग्रेस के हाथ से खुले तौर पर फिसल गई। इन सीटों में कोलारस, अटेर टीकमगढ़, बीना , टिमरनी, विजयपुर जैसी ऐसी सीटे है, जहां कांग्रेस इसलिए नहीं जीत पाई थी, कि वहां बसपा या गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत का समीकरण बिगाड़ दिया था। कोलारस में तो कांग्रेस जीतते-जीतते मात्र 720 मतों के अंतर से हार गई थी। इससे भी कम मत 632 के अंतर से बीना में कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी थी। टीकमगढ़ में कांग्रेस 4175 वोटो से हारी थी। टिमरनी विधानसभा में भी कांग्रेस को 2213 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। गौरतलब है कि प्रदेश में अनुसूचित जाति का वोट 16 प्रतिशत से ज्यादा रहा है। इस वर्ग के लिए सूबे में 35 सीटें आरक्षित है।
बसपा के प्रदर्शन पर कांग्रेस का भविष्य
मप्र में अगर चुनावों का आंकलन किया जाए तो हम पाते हैं कि, बसपा के प्रदर्शन पर कांग्रेस का भविष्य टिका हुआ है। अगर पिछले तीन चुनाव में बसपा के प्रदर्शन पर नजर डालें, तो 2008 में जहां 8.9 फीसदी वोट के साथ बसपा के सात विधायक विधानसभा पहुंचे थे। 2013 में बसपा का वोट प्रतिशत खिसककर 6.29 हो गया और सीटें 7 से 4 रह गई थीं। जबकि पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट प्रतिशत 2013 की तुलना में खिसक कर 5.01 रह गया और सीटें भी खिसक कर चार से दो पर आ गईं। यानी कि जब-जब बसपा का वोट प्रतिशत घटता है, तब-तब कांग्रेस को इसका फायदा मिलता है। ऐसे में कांग्रेस भाजपा से ज्यादा सजग है कि इस चुनाव में बसपा को वोट बैंक ज्यादा नहीं बढ़ पाएं। इस चुनाव में बसपा से मिलकर चुनाव लड़ रही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी 2018 के चुनाव में 1.78 फीसदी वोट प्राप्त किए थे। हालांकि उसे एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो सकी थी और आदिवासी बाहुल्य सीटों पर कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा जीत हासिल हुई थी। ऐसे में कांग्रेस इन सीटों पर अपनी पकड़ बरकरार रखने की कोशिश में लगी हुई है।