30 करोड़ खर्च, फिर भी नतीजा रहा सिफर…

शीर्ष प्रशासनिक पद

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार की मंशा है कि देश के शीर्ष प्रशासनिक पद के लिए होने वाली यूपीएससी की परीक्षा में भी अनुसूचित जन जाति वर्ग का प्रतिनिधित्व हो , लेकिन उसकी यह मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है।   खास बात यह है कि इसके लिए सरकार हर साल तीन करोड़ रुपए भी खर्च कर रही है। यह राशि इस वर्ग के अभ्यार्थीयों की कोचिंग पर खर्च की जा रही है।  इसके लिए हर साल एक सैकड़ा स्नातक आदिवासी छात्रों का चयन किया जाता है। इस पूरी कवायद के बाद भी बीते दस सालों में मप्र का एक भी अजाज वर्ग का अभ्यार्थी यूपीएएससी की परीक्षा पास नहीं कर सका है। अब एक बार फिर से सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष में आयोजित होने वाली सिविल सेवा की परीक्षा के लिए जनजातीय वर्ग के छात्रों से आवेदन बुलाए हैं। यह आवेदन 18 अक्टूबर तक स्वीकार किए जाएंगे। इनमें से चयन कराने के बाद उन्हें संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षाओं की कोचिंग कराई जाएगी। सरकार एक छात्र पर कोचिंग के लिए 2 लाख रुपए के अलावा परिवहन सुविधा, भोजन के लिए 12,500 रुपए प्रति माह तथा पुस्तकों के लिए एक बार में 15 हजार रुपए की सहायता देती है। पीएससी परीक्षा में उत्तीर्ण छात्र का चयन प्राथमिकता के साथ किया जाता है, लेकिन एक दशक बाद भी एक भी आदिवासी छात्र सरकारी मदद से आईएएस नहीं बन सका है। यूपीएएसी की 18 महीने के लिए कोचिंग करने वाले 100 छात्र पर हर साल सरकार द्वारा करीब 2 करोड़ रुपए और भोजन, पुस्तक, परिवहन व्यय आदि पर एक करोड़ की राशि खर्च की जाती है। बीते दस सालों में एक हजार छात्र-छात्राओं पर करीब 30 करोड़ की राशि खर्च की गई है।
कोचिंग के लिए यह हैं शर्त
 अभ्यर्थी की आयु यूपीएससी द्वारा वर्ष 2023 की सिविल सेवा (प्री.) परीक्षा अनुसार होनी चाहिए , साथ ही अभ्यर्थी को योजना का लाभ एक बार ही मिलेगा, पूर्व वर्षों के लाभ प्राप्त अभ्यर्थी अपात्र माने जाएंगे। माता-पिता, अभिभावक, स्वयं की समस्त स्रोतों से वार्षिक आय 6 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए और 5 प्रतिशत सीटें गरीबी रेखा के नीचे के जरूरतमंद होनहार विद्यार्थियों के लिए आरक्षित होगी ।

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