28 पर प्रत्याशी… एक चौथाई पर फोकस

  • कांग्रेस की चुनावी रणनीति
  • विनोद उपाध्याय
प्रत्याशी

मप्र में लोकसभा की 29 सीटें हैं। कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। माथापच्ची के बाद कांग्रेस ने सभी 28 सीटों पर उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। लेकिन पार्टी का विशेष फोकस एक चौथाई यानी की 7 सीटों पर है। ये वे सीटें हैं ,जहां कांग्रेस अपने आप को मजबूत स्थिति में पा रही है। गौरतलब है कि पार्टी ने कुछ विधायकों के साथ-साथ विधानसभा चुनाव हारे उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है। कांग्रेस ने राजगढ़ लोकसभा सीट से पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार बनाया है। इसके साथ ही छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से नकुल नाथ चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, कुछ अहम सीटों पर कांग्रेस ने नए चेहरों पर दांव लगाया है।
गौरतलब है कि प्रदेश में चुनाव 4 चरणों में होना है। पहले चरण की 6 सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होगा। इनमें से ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी उतनी मजबूती से चुनाव लड़ते नहीं दिख रहे हैं। जितनी ताकत के साथ भाजपा चुनाव लड़ रही है। पहले चरण की छिंदवाड़ा और मंडला सीट पर कांग्रेस चुनाव में दिखाई दे रही है। जबकि प्रदेश की 29 में से सिर्फ 7 सीटों पर ही काग्रेस चुनाव लडऩे का मन बना पाई है। शेष 75 फीसदी लोकसभा सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लडऩे की खानापूर्ति करते दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, मप्र में कांग्रेस इस बार उतनी ताकत से चुनाव नहीं लड़ पा रही है, जितनी ताकत से पिछला चुनाव लड़ा था। इसकी प्रमुख वजह पार्टी नेता चुनाव फंड बताते हैं। वहीं पार्टी आंतरिक कमजोर स्थिति भी प्रमुख वजह है। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश भर में कांग्रेस के नेता एवं कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ी है। यही वजह है कि कांग्रेस पहली बार चुनाव प्रचार में कमजोर दिख रही है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व सभी 29 सीटों की बजाए चुनिंदा सीटों पर ही ताकत लगा रही है। हालांकि दूसरी सीटों पर पार्टी प्रत्याशी प्रचार कर रहे हैं। नेताओं की सभाएं भी हो रही हैं।
सीटों की संख्या 1 से बढ़ाकर 4 या 5 करने का टारगेट
उल्लेखनीय है कि मौजूदा स्थिति में मप्र में कांग्रेस के पास सिर्फ एक 1 लोकसभा सीट छिंदवाड़ा है। 2019 के चुनाव में भाजपा ने 28 सीटें जीती थीं। इस बार भाजपा 29 सीटों पर जीतने का दावा कर रही है। यही वजह है कि छिंदवाड़ा में भाजपा पूरी ताकत लगा रही है। जबकि अपना गढ़ बचाने के लिए कमलनाथ जमकर मेहनत कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस 1 से बढक़र 4 या 5 तक पहुंचने की उम्मीद लगाए बैठी है। यही वजह है कि कांग्रेस नेतृत्व 29 सीटों पर पसीना बहाने की अपेक्षा करीब आधा दर्जन सीटों पर ही जोर लगा रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अभी तक शहडोल और मंडला में प्रचार के लिए आए हैं। इनमें से कांग्रेस नेतृत्व को मंडला सीट पर जीत की उम्मीद है। इसी तरह दूसरी चरण की सतना, तीसरे चरण की मुरैना और राजगढ़ और चौथे चरण की रतलाम और धार लोकसभा सीट को लेकर कांग्रेस ने विशेष चुनावी रणनीति बनाई है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की ज्यादातर चुनावी सभाएं एवं रोड शो इन्हीं लोकसभा क्षेत्रों में होंगे।
कई सीटों पर कड़ी टक्कर
प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच 28 सीटों पर सीधा मुकाबला है। कई सीटें ऐसी हैं, जहां दोनों के बीच कड़ी टक्कर है। छिंदवाड़ा में भी इस बार कड़ी टक्कर है। करीबियों के साथ छोडऩे से कमलनाथ कमजोर हुए हैं। हालांकि वे टक्कर दे रहे हैं। बेटे नकुलनाथ से ज्यादा कमलनाथ सक्रिय हैं। भाजपा ने इस बार छिंदवाड़ा में चुनाव की दिशा ही बदल दी है। मंडला लोकसभा की 4 विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं। भाजपा के मौजूदा प्रत्याशी फग्गन सिंह कुलस्ते विधानसभा चुनाव हार गए थे। कांग्रेस ने विधायक ओंकार सिंह मरकाम को मैदान में उतारा है। मंडला चुनावी टक्कर की स्थिति है। सतना में भी भाजपा ने मंडला की तरह विधानसभा चुनाव हार चुके मौजूदा सांसद गणेश सिंह को उतारा है। जबकि भाजपा ने विधायक सिद्धार्थ कुशवाह को मैदान में उतारा है। यहां जातिगत समीकरण की जीत-हार तय करेंगे। दोनों प्रत्याशी ओबीसी हैं। यहां ओबीसी, ब्राह्मण और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। मुरैना में भी चुनावी मुद्दों से ज्यादा जातिगत समीकरण से जीत-हार तय होगी। यहां भाजपा ने शिवमंगल सिंह तोमर, तो कांग्रेस ने सत्यपाल सिकरवार को चुनाव मैदान उतारा है। सतना की तरह यहां ब्राह्मण एवं ओबीसी मतदाता निर्णायक भूमिका में है। राजगढ़ में भाजपा के रोडमल नागर के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उताकर चुनाव को संघर्षपूर्ण स्थिति में ला दिया है। रतलाम और धार में लोकसभा में आने वाली ज्यादातर आरक्षित विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं। कांग्रेस यहां प्रत्याशियों की छबि के आधार पर चुनाव लडऩा चाहती है। जबकि भाजपा प्रधानमंत्री मोदी की छवि पर चुनाव लड़ रही है। इन दोनों सीटों पर अनुसूचित जनजाति मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। फिलहाल प्रदेश की 7 लोकसभा सीटों पर ही चुनावी संघर्ष की स्थिति बनती दिखाई दे रही है।

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