
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। बिजली कंपनियों की मांग भले ही मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने पूरी तरह से नहीं मानी है, लेकिन आय बढ़ाने के लिए आंकड़ों का ऐसा खेल खेला गया है कि आम आदमी उसमें उलझकर रहने वाला है। उसे भले ही अभी यह लग रहा है कि बिजली के बिलों में मामूली बदलाव किया गया है , लेकिन तीन माह बाद जब मौजूदा तिमाही के आधार पर बिल आएंगे तो उसकी जेब पर खर्च गुपचुप तरीके से बढ़ जाएगा। बिजली कंपनियों की आय भी बढ़ जाए और लोगों को इसका अहसास भी न हो इसके लिए आयोग ने कंपनियों द्वारा दिए गए प्रस्ताव में फेरबदल करते हुए उपभोक्ताओं को राहत का दिखावा करने के लिए फ्यूल एडजस्टमेंट चार्ज यानि एफसीए में 20 पैसे प्रति यूनिट की कटौती कर दी, लेकिन इसके उलट कंपनियों की आय वृद्धि के लिए बिजली टैरिफ में 2 से 8 रुपए तक फिक्स चार्ज बढ़ा दिया गया है।
इससे ही बिजली कंपनियों की आय में 264 करोड़ रुपए की वृद्धि हो जाएगी। खास बात यह है कि इस मामले में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर यह कहकर अपनी पीठ खुद थपथपा रहे हैं कि इस फैसले की वजह से उपभोक्ताओं को बिलों में हर माह 10 से 120 तक की राहत मिलेगी। इस मामले में बिजली मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि मंत्री का बिजली बिल कम आने का दावा गलत है, क्योंकि इस परिवर्तन की वजह से महज तीन माह ही उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। इसके बाद अक्टूबर से बढ़े हुए बिलों का भुगतान उपभोक्ताओं को करना होगा। इसकी वजह हर तीन माह में एफसीए में बदलाव होना है। इस कारण से पहली तिमाही में तय एफसीए का असर तीसरी तिमाही के बिलों पर पड़ता है। इसी तरह से बिजली कंपनी के एक पूर्व आला अफसर का कहना है कि एफसीए का टैरिफ से कोई लेनादेना नहीं होता है। यह महज इत्तेफाक है कि इस बार टैरिफ जारी होने के दिन ही एफसीए में भी परिवर्तन किया गया है। उनका कहना है कि जनवरी से मार्च तक कोयला,पेट्रोल और डीजल के दामों में अधिक वृद्धि नहीं हुई जिसकी वजह से एफसीए में कमी रही है इसकी वजह से अगले तीन माह तक जुलाई से सितंबर तक के बिलों में राहत रहेगी , लेकिन उसके बाद अप्रैल से जून तक की अवधि में कोयला, पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि का असर दिखना शुरू होगा। उनका कहना है कि अप्रैल से जून तक की तिमाही का एफसीए जुलाई से सितंबर तक की तिमाही में एडजस्ट होता है जिसकी वजह से अक्टूबर के बिल में इसका असर दिखना शुरू हो जाएगा। दरअसल कोयला के अलावा पेट्रोल-डीजल की दरों में वृद्धि होती रहती है, जिसकी वजह से कोयले के साथ ही उसकी परिवहन लागत भी बढ़ जाती है। इसके आधार पर ही एफसीए की दर का निर्धारण किया जाता है।
इस तरह से बढ़ेगी कंपनियों की आय
आयोग द्वारा फिक्स चार्ज में 1 से 8 प्रतिशत तक की वृद्धि किए जाने से बिजली कंपनियों को अतिरिक्त रुप से 264 करोड़ रुपए का अधिक राजस्व मिलेगा। यह बात अलग है कि बिजली कंपनियों ने 2629 करोड़ का घाटा बताते हुए उसकी पूर्ति के लिए बिजली दरों में 6.23 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव दिया था, लेकिन आयोग ने उसे नकारते हुए 10 गुना कम दाम यानी 0.64 फीसदी की ही वृद्धि करने की अनुमति दी है। आयोग को भेजे गए प्रस्ताव में मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट सहित दूसरी विद्युत वितरण कंपनियों ने 44403 करोड़ का सकल राजस्व बताया था, लेकिन आयोग ने उसे न मानते हुए 42402 करोड़ को ही माना है।
हर यूनिट पर वसूला जाता है 3 रुपए का फ्यूल चार्ज
बिजली कंपनियों द्वारा हर एक यूनिट पर लगभग 3 रुपए की वसूली फ्यूल चार्ज के रुप में की जाती है। यह चार्ज हर माह बिलों में जुड़कर आता है। अधिकांश उपभोक्ता इस चार्ज को समझ ही नहीं पाते हैं। इसमें होने वाले बदलाव को इतने गुपचुप तरीके से किया जाता है कि उसका सामान्य तौर पर पता ही नहीं चलता है।आंकड़ों के खेल में बिजली उपभोक्ताओं को उलझाया 264 करोड़ की बढ़ेगी आय