25 करोड़ खर्च होंगे मोदी के गौरव महा सम्मेलन में

 नरेन्द्र मोदी

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सरकार द्वारा बिरसा मुंडा की जंयती पर 15 नवंबर को आयोजित किए गए जनजातीय गौरव महासम्मेलन पर 25 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शामिल हो रहे हैं। यह राशि  प्रदेशभर से आने वाले दो लाख से अधिक अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों के इंतजाम और आवभगत पर खर्च की जाएगी।  इतनी बड़ी रकम प्रदेश सरकार तब खर्च करने जा रही है जबकि प्रदेश सरकार का खजाना खाली है और सरकार को लगातार कर्ज लेकर काम चलाना पड़ रहा है। खास बात यह है कि इसके लिए सरकार ने 12 करोड़ 92 लाख 85 हजार रुपये का बजट भी जारी कर दिया है।
इस आवंटित राशि को सभी कलेक्टर जनजातीय वर्ग के लोगों को भोपाल तक पहुंचाने के लिए परिवहन, उनके चाय-नाश्ते का इंतजाम करने के अलावा मास्क और सेनिटाइजर की भी व्यवस्था खर्च करेंगे। जनजातीय कार्य विकास विभाग द्वारा यह राशि जारी की गई है। इसके अलावा इस पूरे आयोजन में डोम, पंडाल, स्टेज, साज-सज्जा, ब्रांडिंग तथा ईवेंट मैनेजमेंट आदि पर अलग से राशि खर्च की जा रही है। इस वजह से माना जा रहा है कि इस पूरे आयोजन पर 25 करोड़ रुपए से अधिक का खर्च होना तय है। इस राशि का इंतजाम अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां तथा अन्य पिछड़े वर्गों की कल्याण, अनुसूचित जनजातियों का कल्याण, अनुसूचित जनजाति उपयोजना, आदिवासी संस्कृति का परिक्षण विकास एवं देवठान और सेमीनार – कार्यशाला सम्मेलन जैसे शीर्षों से किया गया है। इस आयोजन के लिए कलेक्टरों को बसों की सुविधा, आदिवासियों के खाने, नाश्ता और रात्रि विश्राम की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दी गई है। बिरसा मुंडा ने लगान (कर) माफ कराने के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया था। इस दिन को राज्य सरकार जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मना रही है।  
सर्वाधिक राशि भोपाल जिले को
जारी की गई राशि में सबसे अधिक एक करोड़ 16 हजार रुपये भोपाल जिले को आवंटित की गई है। इसके बाद बड़वानी जिले को 77 लाख 80 हजार, खरगोन को 72 लाख 40 हजार, सीहोर को 71 लाख 95 हजार, धार को 62 लाख 50 हजार, होशंगाबाद को 61 लाख 68 हजार सहित अन्य जिलों को राशि आवंटित गई है।
ट्राइबल थीम पर सजाया जा रहा है भोपाल: इस आयोजन के लिए भोपाल की सजावट ट्राइबल थीम पर की जा रही है। भोपाल के करीबी जिलों में विधानसभा स्तर पर 5 हजार और दूरस्थ जिलों से सुविधानुसार ग्रामीण- आदिवासियों को भेजने के टारगेट दिए गए हैं। राजधानी से पांच घंटे तक की दूरी वाले जिलों से सर्वाधिक लोगों को लाया जाएगा। आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान दर्शाने  वाले कार्यक्रमों की झलक भी कार्यक्रम स्थल पर दिखाई जाएगी। संगठन की ओर से भी जिलों में पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी और अनुसूचित जनजाति मोर्चा के कार्यकर्ताओं  को भी भीड़ जुटाने का लक्ष्य दिया गया है। इसमें भोपाल और नर्मदापुरम संभाग के जिलों से सर्वाधिक भीड़ जुटाने की तैयारी की गई है। इसकी वजह है इन जिलों के ग्रामीण 4-5 घंटे में सीधे कार्यक्रम स्थल पर पहुंच जाएंगे।  इसके उलट दूरस्थ जिलों में शामिल शहडोल, अनूपपुर, मंडला, डिंडोरी, सिंगरोली, उमरिया, झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन, रतलाम और बड़वानी शामिल हैं, वहां से आदिवासियों को 14 नवंबर की रात को लोकर भोपाल के समीपस्थ क्षेत्रों में ठहराने की व्यवस्था की जा रही है। दूरस्थ जिलों से प्रशासन को भी न्यूनतम एक हजार ग्रामीणों को लाने का लक्ष्य तय किया गया है। इसके अलावा संगठन की ओर से संबंधित जिले के पार्टी अध्यक्ष, मंत्री-विधायकों सहित अन्य पदाधिकारियों को हर विधानसभा से अधिकतम आदिवासी-ग्रामीणों को लाने को कहा गया है।
यह है राजनीतिक गणित
दरअसल प्रदेश में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों की आबादी 21.10 प्रतिशत है। राज्य में आदिवासियों के लिए कुल 47 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं, लेकिन आदिवासी वोटर लगभग नब्बे सीटों पर निर्णायक माने जाते हैं। राज्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता है। इस बीच आदिवासियों के नाम पर दो राजनैतिक दलों का भी उदय हो चुका है इनमें गोंडवाना गणतंत्र पार्टी व जयस शामिल हैं।  इनकी काट के लिए ही भाजपा का पूरा फोकस इस वर्ग पर बना हुआ है। 2003 के पहले यह पार्टी अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस नेताओं के इशारे पर चलती रही। 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इसके नेताओं का उपयोग कांग्रेस के आदिवासी वोट काटने के लिए करना शुरू कर दिया। नतीजा कांग्रेस पंद्रह साल तक सरकार में वापस नहीं आ सकी। वर्तमान में भाजपा की चिंता निमाड़-मालवा के आदिवासी वोटरों को लेकर है। इस अंचल में जयस नाम से एक नए आदिवासी संगठन का उदय हुआ है। यह युवाओं का आदिवासी संगठन है। विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने इस संगठन के मुखिया डॉ. हीरालाल अलावा को टिकट देकर अपने पक्ष में कर लिया था। वर्तमान में वे कांग्रेस के विधायक भी हैं। आदिवासी वोटों को लेकर भाजपा की चिंता बढ़ने की वजह खंडवा लोकसभा की सीट है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भाजपा ने यह सीट लगभग पौने तीन लाख वोटों से जीती थी। उप चुनाव में हार-जीत का अंतर घटकर सत्तर हजार रह गया है, जबकि उप चुनाव के प्रचार के बीच ही कांग्रेस विधायक सचिन बिड़ला भाजपा में शामिल हुए और कांग्रेस में गुटबाजी भी थी।

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