
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य बन चुका है, जिसका ऐसा कोई विभाग नहीं बचा है, जो लंबे समय से कर्मचारियों की कमी से न जूझ रहा हो। इस हालत के बाद भी सरकार भर्ती करने में कोई रुचि नहीं चल रही है। इसमें भी सबसे खराब स्थिति पुलिस महकमे की है, जिसमें 24 हजार कर्मचारियों की कमी बनी हुई है। यह भी वे कर्मचारी हैं जिनकी कानून व्यवस्था में बेहद अहम भूमिका होती है। यह पद आरक्षक के हैं। इनके द्वारा ही मैदानी स्तर पर कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने का काम किया जाता है। अब जाकर सरकार ने केवल 4,000 कांस्टेबलों की भर्ती की अनुमति दी है, लेकिन लंबे समय से इनकी भर्ती का प्रस्ताव फाइलों में ही लटका हुआ है। हालत यह है कि इस विभाग में प्रधान आरक्षक से लेकर डीएसपी तक के अफसरों का टोटा पड़ा हुआ है, जिसकी वजह से निचले स्तर पर कर्मियों की कमी को दूर करने के लिए पुलिस विभाग पहले ही 8,000 से अधिक आरक्षकों को हेड कांस्टेबल का प्रभार और कुल 15,000 अराजपत्रित अधिकारियों को उच्च पदों का प्रभार देकर उनकी कमी दूर करने का प्रयास किया गया है। दरअसल विभाग में प्रधान आरक्षक और एएसआई के पद पदोन्नति द्वारा भरे जाते हैं, जबकि सब-इंस्पेक्टरों के आधे पद पदोन्नति से और आधे पद सीधी भर्ती के माध्यम से भरे जाते हैं। यिह तो एक विभाग का हाल है, तो समझा जा सकता है कि दूसरे विभागों के हाल क्या होंगे। प्रदेश में यह हाल तब है जब सुशासन के लिए लाख दावे किए जा रहे हैं। कर्मचारियों की भारी कमी की वजह से ही प्रदेश की सरकारी मशीनरी का कामकाज बेहद सुस्ती पकड़ता जा रहा है। इसकी वजह से सरकार के सुशासन के दावे और वादे को पलीता लग रहा है। प्रदेश के सरकारी विभागों में काम कर रहे कर्मचारियों की उम्र और उन पर काम के दबाव के चलते सुशासन तो ठीक सामान्य कामकाज भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है। अब नई नियुक्तियां नहीं होने से सुशासन लाने के लिए सिस्टम को दोगुनी गति से काम करने की जरूरत है, लेकिन उसकी गति कम होती जा रही है। हालत यह है कि प्रदेश के तमाम विभागों में एक अनुमान के मुताबिक सवा लाख से ज्यादा पद खाली है। यह स्थिति तब है जबकि इनमें शिक्षा विभाग के पदों को शामिल नहीं किया गया है। अगर स्कूली शिक्षकों के खाली पदों की शामिल कर लिया जाए तो रिक्त पदों की संख्या दो लाख से अधिक हो जाएगी। करीब एक दशक पहले मप्र में नियमित कर्मचारियों की संख्या 5 लाख 13 हजार थी। इसके बाद प्रदेश में कई नए जिलों का गठन किया गया, तहसीलें बनी, नए थाने खुले,नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायतों, जनपद व पंचायत तथा आंगनबाड़ी, स्कूल, कॉलेज, विद्युत उप केन्दों की संख्या बढ़ी, अस्पताल खोले गए, लेकिन नियमित कर्मचारियों की संख्या बढ़ने की बजाय लगातार कम की जाती रही। अब हालात यह है कि प्रदेश में इनकी संख्या 4 लाख 58 हजार रह गई है। इसकी वजह से प्रदेश के लगभग सभी विभाग आउट सोर्स या संविदा कर्मचारियों के भरोसे चलाए जा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों की माने तो प्रदेश में बैकलॉग के ही लगभग 19000 पद खाली पड़े हुए हैं। इसी तरह से शिक्षकों के करीब एक लाख पद रिक्त है। इसी तरह से अन्य विभागों में लगभग एक लाख पद खाली हैं। मौजूदा समय में जो नियमित कर्मचारी हैं उनमें भी करीब एक लाख कर्मचारी अब सेवानिवृत्त होने के करीब हैं। इनमें से करीब 21 हजार कर्मचारी इसी साल सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
किस औसत आयु के कितने कर्मचारी
मध्य प्रदेश के सरकारी विभागों में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों का अनुपात देखें तो 18 से 21 साल की उम्र के केवल 3504 कर्मचारी ही हैं। 22 से 25 साल की उम्र के 20054 कर्मचारी, 26 से 30 साल उम्र के 47404, 31 से 35 साल उम्र के 64171, 36 से 40 साल 71667, 41 से 45 साल के 80958, 46 से 50 साल के 82041, 51 से 55 साल के 87056 और 56 से 60 साल के 75592 कर्मचारी हैं। 60 साल से अधिक उम्र के 22544 कर्मचारी है।
दो करोड़ में 17.6 फीसदी युवा सरकारी सिस्टम में कर रहे काम
2011 की जनगणना के मुताबिक मप्र की कुल जनसंख्या 7.2 करोड़ मे से 27.5 फीसदी युवाओं की उम्र 18 वर्ष से 30 वर्ष के बीच है। इनकी संख्या करीब दो करोड़ होती है। खास बात यह है कि इनमें से महज 17.6 फीसदी ही सरकारी कार्यों में अपनी भूमिका निभा पा रहे हैं। डायरेक्टोरेट आॅफ इकॉनोमिक एंड स्टेटिक्स के आंकड़ों की माने तो मप्र में कुल 4 लाख, 57 हजार, 442 कर्मचारी और अधिकारी हैं। इनमें भी युवाओं की भागीदारी महज 17.06 फीसदी है। नई भर्ती न होने की वजह से लगभग सभी विभागों में पद रिक्त होने के बाद भी बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जैसे-तैसे कुछ भर्ती परीक्षाएं होती भी हैं तो वे धांधली और अन्य गड़बडिय़ों की भेंट चढ़ जाती हैं।
चल रहा है अतिरिक्त प्रभार का खेल
मध्यप्रदेश इस समय दूसरे राज्यों की अपेक्षा अलग राज्य है। इसकी वजह है प्रदेश में पहली बार एसीएस वेतनमान के पदों पर प्रमुख सचिव वेतनमान के अफसरों को अतिरिक्त प्रभार देकर उपकृत करने का खेल खेला जा रहा है। माध्यमिक शिक्षा मंडल, प्रशासन अकादमी, व्यावसायिक परीक्षा मंडल,राजस्व मंडल जैसी जगहों पर अध्यक्ष का पद अतिरिक्त प्रभार में चल रहे हैं। यह वे जगह हैं जिनमें अब से पहले तक एसीएस वेतनमान के अधिकारियों की ही पदस्थापना होती रही है, लेकिन अब उनका प्रभार सबसे जूनियर प्रमुख सचिवों के पास प्रभार है। इसी तरह से चंबल कमिश्नर का पद आठ माह से रीवा संभाग में तो हालात बेहद खराब बने हुए हैं। वहां संभागायुक्त कार्यालय में तो अधिकांश महत्वपूर्ण पद प्रभार में चल रहे हैं। खास बात यह है कि इस पर हाईकोर्ट भी कड़ी आपत्ति जताते हुए मुख्यसचिव व प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन तक को तलब कर चुका है , लेकिन फिर भी नई पदस्थापना नहीं की जा रही हैं। इसी तरह के हाल आयुक्त लोक शिक्षण, आयुक्त उच्च शिक्षा, आयुक्त स्वास्थ्य मिशन, आयुक्त मंडी, आयुक्त कृषि सहित कई महत्वपूर्ण पदों र्का भी बना हुआ है। सरकार तीन माह में चंबल रेंज के लिए आईजी नहीं तलाश पाई है, तो वहीं आईजी के पदों पर एडीजी स्तर के अफसरों को पदस्थ करने का खेल किया जा रहा है। इसकी वजह से प्रदेश में निचले स्तर तक की प्रशासनिक व्यवस्थाएं पूरी तरह से ध्वस्त होती जा रही हैं।