
- आदिवासी व ग्रामीण उतरे विरोध में
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में लगातार वन्य जीवों का रहवास कम होता जा रहा है, ऐसे में उनकी जान पर गंभीर खतरा बना हुआ है। इसके बाद भी सरकार बांध के नाम हजारों हेक्टेयर के जंगल को बांध के पानी में डुबोने की तैयारी कर रही है। इसका पता लगते ही आदिवासियों के साथ ही अन्य ग्रामीण विरोध में उतर आए हैं। दरअसल यह पूरा मामला है प्रस्तावित बसनिया-औढ़ारी बांध का। इस बांध के बनने से प्रदेश के 2107 हेक्टेयर वन क्षेत्र पर डूब का खतरा मंडरा रहा है। इस बांध के निर्माण से पहले पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की नदी घाटी विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने इससे पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन करने के लिए टीओआर (टर्म्स ऑफ रेफरेंस) की अनुमति प्रदान की है। इस पर दिल्ली की निजी कंपनी ने मंडला व डिंडोरी में इस पर काम शुरु कर दिया है। इसकी खबर लगने के बाद से ही जिन गांवों के प्रभावित होने का अंदेशा है उनके ग्रामीणों ने फिर से विरोध करना शुरू कर दिया है। भारतीय वन संरक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक सूबे में 94,689 वर्ग किमी में अधिसूचित वन है। इसमें अलग- अलग श्रेणी का वन है। यहां वन्य प्राणी हैं। इनकी आबादी बढ़ रही है, जबकि वन क्षेत्र कम हो रहा है। गौरतलब है कि इसकी प्रशासकीय स्वीकृति 1 अप्रैल 2017 को दी गई थी। यह बांध गांव और ओढ़ारी तहसील घुघरी जिला मंडला में बनाया जाना प्रस्तावित है।
इंसान और पर्यावरण के हित में नहीं बांध
नदी घाटी मामलों के एक विशेषज्ञ के मुताबिक प्रस्तावित बांध में 2443 हेक्टेयर निजी जमीन, 2107 हेक्टेयर वन भूमि, 1793 हेक्टेयर शासकीय भूमि डूब में जानी है। इससे डिंडोरी जिले के 13 और मंडला के 18 गांव प्रभावित होंगे। बदले में 42 गांव की 8780 हेक्टेयर जमीन सिंचित होने और 100 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन का दावा किया जा रहा है। उनका कहना है कि किसी भी बांध परियोजना के निर्माण में डूब में जाने वाली जमीन व प्रभावित आबादी और पर्यावरणीय तंत्र को अनुमान से अधिक नुकसान होता है। डूब क्षेत्र भी बढ़ जाता है लेकिन, लाभ का जो अनुमान लगाया जाता है, उसकी हकीकत में 63 फीसदी तक ही पूर्ति हो पाती है। इसकी वजह से इस बांध से लाभ की अपेक्षा नुकसान अधिक होगा।
संघर्ष समिति का आरोप
बसनिया-औढ़ारी बांध विरोधी संघर्ष समिति के अध्यक्ष बीएल सरवटे व उपाध्यक्ष तितरा मरावी का कहना है कि प्रस्तावित बांध में लगभग 6300 हेक्टेयर जमीन डूब में चली जाएगी। जो जमीन डूब में जाना तय है, उसके एक बड़े भाग में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जबकि अन्य इलाका वन क्षेत्र है। इस बांध के निर्माण से आदिवासी समुदाय के साथ-साथ वन क्षेत्र में रहने वाले वन्यजीवों और पर्यावरणीय तंत्र को बड़ा नुकसान होगा। उनका कहना है कि विरोध के भय से लोगों व पर्यावरण से जुड़ी इतनी बड़ी परियोजना को बनाने की प्रक्रिया को चुपचाप शुरु कर दिया गया है। उनका कहना है कि यही वजह है जुलाई 2023 में जारी टीओआर अनुमति की जानकारी अब जाकर लोगों को पता चल सकी है। समिति के सदस्यों का कहना है कि इस बांध निर्माण का मामला आठ साल पहले मार्च 2016 में विधानसभा में उठ चुका है। उस समय एक सवाल के जवाब में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि बांध निर्माण नहीं किया जाएगा।