
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। सरकारी आंकड़ों में प्रदेश के सभी जिलों में तालाब, चेकडेम और स्टाप डेम का जाल बिछा हुआ है। इसके बावजूद प्रदेश में सिंचाई और पेयजल की समस्या बनी रहती है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश की अधिकांश जल संरचनाएं बिना प्लान के बनी हुई है। यही नहीं इन जल संरचनाओं के मेंटेनेंस के नाम पर हर साल 200 करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं। इसका खुलासा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव के एक पत्र से हुआ है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव ने 11 अगस्त को जारी पत्र में कहा है कि जल संग्रहण संरचना की मूल डिजाइन और मूल परिणामों का ठीक से विश्लेषण नहीं किया गया। तालाब स्टॉप डेम और चेक डैम के जीर्णोद्धार नवीनीकरण के मामले में ना प्लानिंग दिख रही है और ना ही तकनीकी इनपुट है। मॉनिटरिंग सिस्टम भी कमजोर रहा। इससे जल संरचनाओं में अनियमितताएं होना दिख रही है। उन्होंने सभी जिलों के कलेक्टर और सीईओ जिला पंचायत से कहा है कि पूर्व में स्थित तालाबों और विभिन्न योजनाओं में दशकों पहले बनाए गए तालाब स्टॉप डेम और चेक डैम बिना प्लान के हैं, इसलिए यह रचनाएं परिणाम मूलक नहीं बनी। उल्लेखनीय है कि जल सरंचनाओं के नाम पर प्रदेश भर में हर साल औसतन 200 करोड़ों रुपए खर्च होते हैं।
जल संरचनाओं से आय बढ़ाने के प्रयास होंगे
उमराव ने पत्र में विभाग की भर्राशाही के साथ ही जल संरचनाओं के उद्देश्य पर सवाल उठाया है। पत्र में कहा गया है कि जीर्णोद्धार अथवा नवीनीकरण के बाद भी मत्स्य, सिंघाड़ा उत्पादन और सिंचाई क्षमता से ग्रामीण समुदाय और ग्राम पंचायतों की आय बढ़ाने के ठोस प्रयास नहीं हुए। इस रणनीति के तहत कार्य करने पर दशकों बाद विभाग में एक बार फिर प्रभावी रणनीति बनाने की जरूरत समझी गई है।
वित्तीय प्रबंधन प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 15वें वित्त आयोग कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी सांसद विधायक निधि आदि से करना होगा। ग्रामीणों की जन भागीदारी अनिवार्य रहेगी। पहले चरण में बड़े जीर्णोद्धार में 1 साल से अधिक समय लगाने वाले कार्य नहीं लिए जाएं।
जल संचय में पिछड़ा मध्यप्रदेश
जानकारी के अनुसार बारिश के पानी को स्टॉप डेम, तालाब जैसी संरचनाएं बनाकर सहेजने के मामले में मध्यप्रदेश पिछले एक दशक में फिसड्डी साबित हुआ है। 2009 से 2015 के बीच वाटरशेड की 517 परियोजनाएं केंद्र ने मध्यप्रदेश के लिए मंजूर की। इन योजनाओं को 2017 तक पूरा हो जाना चाहिए था, लेकिन अभी तक इनमें से सिर्फ 204 ही पूरी हो पाई हैं। बाकी योजनाएं या तो फंड के अभाव में अधूरी पड़ी हैं, या फिर उनकी शुरूआत ही नहीं हो पाई है। जबकि केंद्र सरकार इनके लिए अभी तक 1479 करोड़ रुपए बहा चुकी है। इसका खुलासा केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की रिपोर्ट में हुआ है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना वाटरशेड विकास के तहत बारिश के पानी को रोकने का प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। 2017 से इसे मनरेगा में शामिल कर लिया गया। केंद्र सरकार द्वारा भरपूर राशि जारी किए जाने के बाद भी मध्यप्रदेश में पिछले एक दशक में बहुत काम नहीं किया गया।
केंद्र-राज्य का हिस्सा बदलने से पिछड़ा काम
सूत्रों के अनुसार वाटरशेड योजनाओं में पहले केंद्र द्वारा 90 फीसदी और राज्यों द्वारा 10 फीसदी राशि मिलाई जाती थी। लेकिन 2016 में केंद्र सरकार ने इसे बदलकर 60-40 का अनुपात कर दिया। केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार इसके बाद राज्यों ने वाटरशेड योजनाओं पर काम करने में तेजी नहीं दिखाई और काम पिछड़ता चला गया। मनरेगा के तहत वर्षा जल संचय के लिए तालाब, स्टॉप डेम बनाने के मामले में भी मध्यप्रदेश का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं है। 2018-19 में देश में कुल 302478 निमार्ण कार्य पूरे किए गए, जिसमें से सिर्फ 6 फीसदी यानी 18823 ही मध्यप्रदेश में बने। यही हाल 2017-18 में रहा, तब देश में कुल 370357 जल संरचनाएं बनी जिसमें से मध्यप्रदेश में 19644 ही बन पाई जो कि देश की 5.30 प्रतिशत ही थीं। जबकि मध्यप्रदेश की तुलना में राजस्थान, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने बेहतर काम किया।
दुधारू गाय बनी जल संरचनाएं
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में अधिकांश जल संरचनाएं ऐसी हैं जिन पर हर साल जीर्णोद्धार के नाम पर करोड़ों रूपए खर्च किए जा रहे हैं,जबकि उनका कोई उपयोग नहीं है। दरअसल, कागजी जीर्णोद्धार कर सरकार को चपत लगाई जा रही है। जीर्णोद्धार अथवा नवीनीकरण कार्य मनरेगा जैसी योजना में शामिल किया है, फिर भी आवश्यक लेबर उपलब्ध नहीं हुई और ना ही तालाबों के जीर्णोद्धार के लिए ठोस प्लान बनाया गया। ग्रामीण समुदाय का कोई योगदान नहीं रहा।