मप्र बना भारत का फूड-बास्केट

 फूड-बास्केट
  • मप्र कृषि विकास में रचा नया इतिहास

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की नीति, नियत और योजनाओं के कारण मप्र की उपजाऊ भूमि केवल भरपूर फसल ही नहीं, बल्कि नवाचार, सतत विकास और वैश्विक निवेश के नए द्वार भी खोल रही है। सरकार के रूपांतरणकारी प्रयास में दुनिया भर के निवेशकों को शामिल होने का आमंत्रण दिया जा रहा है। अपनी समृद्ध कृषि परंपरा और उन्नत कृषि तकनीकों के बल पर मप्र देश की फूड बास्केट के रूप में स्थापित हुआ है।

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मप्र कृषि समृद्धि, आत्मनिर्भरता और तेज आर्थिक विकास का नया आयाम स्थापित कर रहा है। कभी बीमारू राज्य और विकास की दौड़ में पिछड़ा माना जाने वाला मप्र आज आत्मनिर्भरता, कृषि समृद्धि और तीव्र आर्थिक विकास का प्रतीक बन चुका है। यह परिवर्तन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के दूरदर्शी नेतृत्व, सरकार की योजनाबद्ध नीतियों और किसानों की अटूट मेहनत का परिणाम है। मप्र अब न केवल विकास दर में अग्रणी है, बल्कि खाद्यान्न उत्पादन में भी देश में नई पहचान बना चुका है। यही कारण है कि भारत का हृदय प्रदेश अब देश का नया फूड-बास्केट कहलाने लगा है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव का कहना है कि मप्र ने कृषि और उससे सम्बद्ध क्षेत्रों में जो आशातीत प्रगति की है, उसमें हमारे अन्नदाताओं की महती भूमिका है। बीते वर्षों में मप्र ने कृषि उत्पादन, सिंचाई विस्तार और किसानों की आय वृद्धि के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल कर देश का नया फूड बास्केट बनने का गौरव प्राप्त किया है। राज्य की विकास दर अब डबल डिजिट में पहुंच चुकी है, जिसमें कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों का सबसे बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने का संकल्प लिया है। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, पर्याप्त बिजली आपूर्ति, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी, भावांतर भुगतान योजना और कृषि यंत्रीकरण ने किसानों से जीवन में खुशहाली आ रही है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने बताया कि आज मप्र गेहूं, चना, मसूर, सोयाबीन और तिलहन उत्पादन में देश में अग्रणी बन चुका है। पंजाब और हरियाणा जैसे परम्परागत कृषि सम्पन्न राज्यों को कई फसलों के उत्पादन में पीछे छोडऩा राज्य के किसानों की मेहनत और सरकार की संवेदनशील नीतियों का ही परिणाम है। हमने कृषि के साथ-साथ डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्रों में भी राज्य ने नई ऊंचाइयां हासिल की हैं। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, एग्रो एंड फूड प्रोसेसिंग इकाइयां और कोल्ड स्टोरेज चेन जैसे अनेक कदम किसानों को उनके उत्पादों का बेहतर मूल्य दिलाने में मददगार सिद्ध हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट है – हर खेत तक पानी, हर किसान तक प्रगति और हर घर तक समृद्धि। मप्र का किसान अब सिर्फ़ अन्नदाता नहीं, बल्कि खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत का निर्माणकर्ता बन चुका है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और राज्य के पूरे कृषि अमले को इस राष्ट्रीय उपलब्धि की ओर बढऩे के लिए बधाई दी है। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में मप्र देश की खाद्य सुरक्षा को सशक्त करेगा, बल्कि वैश्विक कृषि मानचित्र पर भी अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करेगा।
कभी सीमित सिंचाई साधनों, अस्थिर बिजली आपूर्ति और अपर्याप्त अवसंरचना के कारण मप्र की कृषि अर्थव्यवस्था घाटे में चल रही थी। किसानों की आमदनी सीमित थी और ग्रामीण जीवन में भी कुछ कठिनाइयां थीं। परंतु बीते दो दशकों में परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। सरकार ने कृषि और ग्रामीण विकास को अपनी नीतियों के केंद्र में रखकर जो कार्य किया, उसने राज्य की तस्वीर ही बदल दी। हाल ही में हुए आर्थिक सर्वेक्षण में मप्र ने 24 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की है, जो राष्ट्रीय विकास औसत से कहीं अधिक है। यह प्रगति बताती है कि मप्र अब आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहा है। मप्र में सबसे ज्यादा विकास कृषि क्षेत्र में देखा गया है। बीते वर्षों में राज्य सरकार ने कृषि को सिर्फ़ आजीविका का साधन नहीं, बल्कि समृद्धि का आधार बनाने का संकल्प लिया। किसानों को फसल उत्पादन की लागत में राहत देने, खेती को लाभकारी बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई योजनाएं लागू की गईं। कृषक कल्याण मिशन के जरिए किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सभी जतन किए जा रहे हैं। भावांतर भुगतान योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी और इस खरीदी पर बोनस राशि भी देने जैसे प्रयासों ने किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान की है। इसके अलावा उन्नत कृषि उपकरणों पर सब्सिडी और प्राकृतिक एवं जैविक खेती को बढ़ावा देने की कोशिशों ने भी खेती-किसानी को और अधिक रूचिकर, उत्पादक और टिकाऊ बनाया है। राज्य में सिंचाई सुविधाओं का खेत तक विस्तार भी एक मील का पत्थर साबित हुआ है। नर्मदा घाटी विकास परियोजना, पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदियों को आपस में जोडऩे और केन-बेतवा राष्ट्रीय नदी लिंक जैसी परियोजनाओं से लाखों हेक्टेयर कृषि क्षेत्र को सिंचाई सुविधा के दायरे में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति के सुदृढ़ीकरण से रबी सीजन में फसलों की उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ गई है।

नया मप्र, नया आत्मविश्वास
मप्र आज बड़े आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। अब यह राज्य विकास के नए अध्याय लिख रहा है। गांव से शहर तक, खेत से बाजार तक, फ़ार्म टू लैब हर जगह परिवर्तन की एक नई लहर महसूस की जा रही है। प्रदेश के किसान अब सिर्फ अन्नदाता नहीं रहे, बल्कि राष्ट्र निर्माता और ऊर्जादाता भी बन रहे हैं। किसानों को उनके खेत में सोलर पम्प लगाने के लिये अनुदान योजना प्रारंभ की गई है। किसानों के परिश्रम और सरकार की किसान हितैषी संवेदनशील नीतियों ने मप्र को उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है, जिसकी कल्पना भी कभी दूर की कौड़ी लगती थी। मप्र की तेज कृषि विकास दर देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले वर्षों में मप्र कृषि आधारित उद्योगों और एग्रो प्रोसेसिंग का केंद्र बनने जा रहा है। राज्य में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों, कोल्ड स्टोरेज और लॉजिस्टिक हब के निर्माण से कृषि उत्पादों के निर्यात की संभावना बढ़ेगी। सरकार की वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना भी इस दिशा में मददगार सिद्ध हो रही है। यह किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में तो कारगर है ही, ग्रामीण रोजगार को भी यह योजना स्थायी बना रही है। मप्र उत्पादक गतिविधियों में नवाचार कर रहा है। सरकार किसानों के हर सुख-दुख में उनके साथ खड़ी है। प्रदेश ने कृषि क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। उत्पादन में रिकार्ड दर्ज कर प्रदेश को अनेक अवार्ड हासिल हुए हैं। मप्र दालों के उत्पादन में प्रथम स्थान पर, खाद्यान उत्पादन में द्वितीय स्थान पर और तिलहन उत्पादन में तृतीय स्थान पर है। प्रदेश में त्रि-फसली क्षेत्र में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। प्रदेश में नरवाई जलाने की घटनाओं में कमी (हतोत्साहित) करने के लिए प्रदेश में प्रभावी कार्यवाही की गई है। राज्य सरकार द्वारा रबी 2024-25 में उपार्जित गेहूं पर राशि रूपये 175 प्रति क्विटंल प्रोत्साहन राशि प्रदाय की गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा फरवरी 2025 में लगभग 83.50 लाख से अधिक किसानों को करीब 1770 करोड़ रूपये किसान सम्मान निधि सिंगल क्लिक से अंतरित की गई। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अंतर्गत 81 लाख से अधिक किसानों के खातों में 1624 करोड़ रूपये सिंगल क्लिक के माध्यम से जमा की गई।
गौरतलब है कि प्रदेश में पहली बार भारत सरकार की प्राईस सर्पोट स्कीम अंतर्गत सोयाबीन का उपार्जन किया गया, जिसमें 2,12,568 कृषकों से कुल 6.22 लाख मीट्रिक टन मात्रा का उपार्जन किया गया है, जिसके न्यूनतम समर्थन मूल्य की राशि 3043.04 करोड़ है। श्रीअन्न के उत्पादन को बढावा देने के लिए रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना लागू की है, जिसके तहत किसानों को 3900 रूपये प्रति हैक्टेयर डीबीटी के माध्यम से प्रदान किया जायेगा। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ फसल बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, स्वाईल हेल्थ कार्ड और सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि का लाभ भी मिल रहा है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत फसल के नुकसान का समय पर आकलन एवं राहत राशि का वितरण किसानों को मिल रहा है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में नामांकन एवं दावा प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने, एनसीआईपी पोर्टल के साथ भूमि रिकॉर्ड को सफलता पूर्वक एकीकृत करने और पोर्टल को किसान अनुकूल बनाने के लिए मप्र को ‘उत्कृष्टता प्रमाण पत्र’ प्रदान किया गया है। नमो ड्रोन दीदी योजनांतर्गत मप्र में 89 दीदियों को स्वाबलंबी बनाया गया है। नमो ड्रोन से 4200 हेक्टेयर क्षेत्र में तरल उरर्वरक का छिडक़ाव कर दीदियों ने 21.22 लाख रूपये की शुद्ध आय प्राप्त की है। वर्ष 2025-26 में 1066 दीदिओं को योजनांर्तगत लाभान्वित किया जा रहा है। कृषकों द्वारा फसल अवशेष (पराली) जलाने से रोकने के लिये शासन द्वारा कई कदम उठाये गये है, जिसमें प्रदेश स्तर पर 46,800 से अधिक नरवाई प्रबंधन से संबंधित कृषि यंत्र अनुदान पर वितरित करते हुए 412 करोड़ रूपये की अनुदान राशि जारी की गई है। कौशल विकास केन्द्रों के माध्यम से किसान ड्रोन पायलट प्रशिक्षण एवं ड्रोन तकनीशियन का प्रशिक्षण प्रदान कराया जा रहा है। प्रशिक्षण में 50 प्रतिशत शुल्क का भुगतान मप्र शासन द्वारा वहन किया जा रहा है। अब तक 412 युवाओं को ड्रोन पायलट का प्रशिक्षण तथा 33 प्रशिक्षणार्थियों को ड्रोन तकनीशियन का प्रशिक्षण प्रदान किया गया।

मांग के अनुसार उगाई जा रही फसलें
मप्र के किसान अब पारम्परिक खेती तक सीमित नहीं हैं। वे नई तकनीकों और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाकर उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में सुधार ला रहे हैं। ड्रिप इरिगेशन, ऑर्गेनिक फार्मिंग, मल्टीक्रॉपिंग और फसल विविधीकरण जैसे नवाचारों ने कृषि को एक व्यावसायिक रूप दिया है। प्रदेश में कृषि विश्वविद्यालयों, अनुसंधान केंद्रों और कृषि विज्ञान केंद्रों की सक्रिय भूमिका ने किसानों को नवीनतम जानकारी सहित प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया है। अब किसान बाजार की मांग के अनुसार फसलें पैदा कर रहे हैं और निर्यात की दिशा में भी कदम बढ़ा रहे हैं। आज मप्र गेहूं, धान, चना, मसूर, सरसों और सोयाबीन जैसी फसलों के उत्पादन में अग्रणी राज्यों में शामिल है। राज्य के कृषि विभाग के अनुमान के अनुसार, बीते वर्षों में प्रदेश का अनाज उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है। गेहूं उत्पादन में मप्र अब देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य बन चुका है। उत्पादन और गुणवत्ता दोनों ही स्तरों पर राज्य ने पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि संपन्न राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। दलहन और तिलहन उत्पादन जैसे चना, मसूर और सोयाबीन की पैदावार ने किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि की है। मप्र अब देश के कुल चना उत्पादन में लगभग 30 प्रतिशत योगदान देता है। धान की फसल उत्पादन मामले में भी राज्य ने उल्लेखनीय प्रगति की है। बालाघाट, बैतूल, मंडला, सिवनी और डिंडोरी जैसे जिले अब धान की नई मंडियां बन गए हैं। यहीं से देश के विभिन्न हिस्सों में खाद्यान्नों की आपूर्ति होती है। कृषि एवं इससे सम्बद्ध क्षेत्रों में आमूलचूल प्रगति ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक दी है। गांवों में रोजगार के नए अवसर बढ़े हैं, कृषि-आधारित उद्योगों का विकास हुआ है और युवाओं में खेती को लेकर नया उत्साह पैदा हुआ है। जहां पहले खेती घाटे का सौदा मानी जाती थी, वहीं आज यह आत्मनिर्भरता और समृद्धि का प्रतीक बन चुकी है। कृषि उपज मंडियों का डिजिटलीकरण, द्ग-हृ्ररू पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन बिक्री की सुविधा और मूल्य पारदर्शिता ने किसानों को बाजार की बेहतर समझ विकसित कर समुचित कीमत दिलाने में अहम भूमिका निभाई है।
कृषकों को सस्ते दर पर यंत्र उपलब्ध कराने एवं ग्रामीण युवाओं को स्वावलंबी बनाये जाने के लिये सरकार के संकल्प के अनुसार हर वर्ष 1000 कस्टम हायरिंग केन्द्र स्थापित किये जा रहे है। अब तक 4730 कस्टम हायरिंग केन्द्र प्रदेश स्तर पर स्थापित है जिससे कृषकों को लाभ मिल रहा है। कस्टम हायरिंग के 25 लाख रूपये तक के प्रोजेक्ट पर 40 प्रतिशत अधिकतम 10 लाख रूपये का अनुदान दिया जाता है। प्रदेश में अपेडा अन्तर्गत 11.48 लाख हेक्टयर फसल उत्पादन क्षेत्र एवं वनोपज संग्रहण क्षेत्र सहित कुल 20.55 लाख हेक्टयर जैविक क्षेत्र पंजीकृत है। एक जिला एक उत्पाद अंतर्गत कृषि संबंधी 6 उत्पाद कोदो-कुटकी-अनूपपुर, डिंडौरी, मंडला, सिंगरौली, तुअर दाल- नरसिंहपुर, चना-दमोह, बासमति चावल-रायसेन, चिन्नोर चावल-बालाघाट, सरसों-भिण्ड एवं मुरैना जिले शामिल किये गये है। फार्म गेट एप के तहत किसान अपनी उपज का विवरण, फोटो मोबाइल एप्लिकेशन पर डाल कर मंडी मे पंजीकृत व्यापारियों के साथ मोल भाव कर सकता है। सौदा तय होने पर किसान की सहमति प्राप्त कर व्यापारी सीधे किसान के गाँव / खेत से उपज उठा लेता है। इससे भौतिक रूप से माल के परिवहन की आवश्यकता नहीं रहती और माल न बिकने की अनिश्चितता को समाप्त करता है। मंडी के माध्यम से किसान को मंडी अनुबंधित व्यापारी का चयन कर खेत/गोदाम पर ही फसल बेचने की सुविधा है। रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना में किसानों को एक हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से अधिकतम 3 हजार 900 रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता दी जा रही है। शून्य प्रतिशत ब्याज पर अल्पकालीन फसल ऋण के लिए इस वर्ष 600 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया है। विगत वर्ष किसानों को समर्थन मूल्य पर उपार्जित गेहूँ पर प्रति क्विंटल 125 रुपये का बोनस प्रदाय किया गया।

मोहन ‘राज’ में कृषि का नया युग
दिसंबर 2023 में मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव के कार्यभार संभालने के बाद से कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति देखी है। उनकी सरकार ने कृषि को न केवल आर्थिक विकास का आधार बनाया, बल्कि इसे उद्योग के साथ जोडक़र किसानों की आय बढ़ाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। मप्र कृषि के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार ने किसानों के हित में कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की हैं, जिससे उनकी आय बढ़ सके और कृषि क्षेत्र में विकास हो सके। प्रदेश ने कृषि के क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। साथ ही फसलों के उत्पादन में रिकॉर्ड बनाया। प्रदेश दालों के उत्पादन में प्रथम स्थान पर, खाद्यान्न उत्पादन में दूसरे स्थान पर एवं तिलहन उत्पादन में तृतीय स्थान पर है। मप्र में अब तीसरी फसली क्षेत्र में भी तेजी से वृद्धि हो रही है, जो प्रदेश की कृषि प्रगति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। खरीफ विपणन वर्ष 2025-26 में केंद्र सरकार द्वारा समय – समय पर घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर औसत अच्छी गुणवत्ता की धान, ज्वार एवं बाजरा का उपार्जन किसानों से किया जाएगा। राज्य शासन ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान, ज्वार एवं बाजरा की उपार्जन नीति घोषित कर दी है। समर्थन मूल्य पर ज्वार एवं बाजरा की 24 नवम्बर से 24 दिसम्बर तक और धान की खरीदी एक दिसम्बर से 20 जनवरी, 2026 तक की जायेगी। खरीदी सोमवार से शुक्रवार तक की जायेगी। खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने बताया कि प्रदेश के समस्त कलेक्टर्स, नागरिक आपूर्ति निगम तथा वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन के अफसरों को निर्देश दिए गए हैं कि उपार्जन नीति का अक्षरश: पालन सुनिश्चित कराएं, जिससे किसानों को लाभ पहुंचाने की सरकार की मंशा पूरी हो सके। इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही मिलने पर उपार्जन कार्य से जुड़े अधिकारी-कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाएगी। खाद्य मंत्री ने बताया कि निर्धारित अवधि में उपार्जन किया जाएगा। समर्थन मूल्य पर धान, ज्वार एवं बाजरा के उपार्जन के लिए मध्यप्रदेश स्टेट सिविल सप्लाईज़ कार्पोरेशन नोडल एजेंसी होगी। इसके अलावा विभाग द्वारा केन्द्र एवं राज्य सरकार की अन्य एजेन्सी अथवा उनके द्वारा अधिकृत संस्था को भी उपार्जन एजेन्सी घोषित किया जा सकेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य धान कॉमन का 2369 रूपये, धान ग्रेड-ए का 2389, ज्वार मालदण्डी का 3749 हजार, ज्वार हाइब्रिड का 3699 और बाजरा का 2775 रूपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है।
मंत्री राजपूत ने बताया कि उपार्जन केन्द्र के स्थान का निर्धारण किसानों की सुविधा अनुसार किया जाएगा। उपार्जन केन्द्र प्राथमिकता से गोदाम/केप परिसर में स्थापित किए जाएंगे। गोदाम/केप उपलब्ध न होने पर समिति एवं अन्य स्तर पर उपार्जन केन्द्र स्थापित किए जा सकेंगे। जिले में उपार्जन केन्द्रों की संख्या का निर्धारण किसान पंजीयन, पंजीयन में दर्ज बोया गया रकबा एवं विगत वर्ष निर्धारित उपार्जन केन्द्रों के आधार पर राज्य उपार्जन समिति द्वारा किया जाएगा। समर्थन मूल्य पर धान उपार्जन के लिये 46 प्रतिशत पुराने और 54 प्रतिशत नवीन जूट बारदाने उपयोग किये जायेंगे। बारदानों की व्यवस्था उपार्जन एजेंसी द्वारा की जायेगी। ज्वार एवं बाजरे का उपार्जन नवीन जूट बारदानों में किया जायेगा। केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा धान, ज्वार एवं बाजरा के समर्थन मूल्य पर उपार्जन के लिये निर्धारित यूनिफार्म स्पेसिफिकेशन्स के अनुसार एवं समय-समय पर इसमें दी गई शिथिलता के अनुसार उपार्जन किया जायेगा। गुणवत्ता परीक्षण का दायित्व उपार्जन केन्द्र में उपार्जन करने वाली संस्था और भण्डारण स्थल पर उपार्जन एजेंसी का होगा। कृषि उपज मण्डियों में एफएक्यू मानक की धान, ज्वार एवं बाजरा की खरीदी समर्थन मूल्य से कम पर क्रय नहीं किया जायेगा। नॉन एफएक्यू उपज का सैम्पल कृषि उपज मण्डी द्वारा संधारित किया जायेगा। किसान पंजीयन में दर्ज फसल के रकबे एवं राजस्व विभाग द्वारा तहसीलवार निर्धारित उत्पादकता के आधार पर कृषक द्वारा खाद्यान्न की विक्रय योग्य अधिकतम मात्रा का निर्धारण किया जायेगा। कृषक द्वारा उपज बेचने के लिये उपार्जन केन्द्र एवं विक्रय दिनांक के चयन के लिये स्लॉट बुकिंग करानी होगी। उपार्जित खाद्यान्न का उपार्जन केन्द्र से गोदाम तक परिवहन का दायित्व उपार्जन एजेंसी का और धान को उपार्जन केन्द्र/गोदाम से सीधे मिलर्स तक परिवहन का दायित्व मिलर्स का होगा।

किसानों के हित में अनेक योजनाएं
राज्य सरकार ने किसानों को आर्थिक सहायता देने के लिए कई योजनाएँ चलायी हैं। मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत अप्रैल 2025 में राज्य सरकार ने 85 लाख से अधिक किसानों के खाते में रू. 1704 करोड़ की पहली किस्त जारी की (प्रति किसान रु. 2000)। इसी प्रकार, मप्र में ग्रामीण कृषकों को स्थायी बिजली कनेक्शन मात्र रु. 5 में उपलब्ध कराने की पहल की गई है, जिससे अब तक 16,545 किसानों को सिंचाई पंप के लिए और करीब 4,000 ग्रामीण परिवारों को घरेलू कनेक्शन मिल चुके हैं। साथ ही, कृषि यंत्रों और ऊर्जा क्षेत्र में भी सहायताएँ हैं: राज्य ने पीएम-कुसुम योजना के तहत अगली 3 वर्षों में 32 लाख सोलर पंप वितरित करने का लक्ष्य रखा है और किसानों को इन पर 90 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान की जाएगी, जिससे किसानों को महंगी बिजली-डीजल से छुटकारा मिलेगा।किसान ऐप हाल में हुए कृषि उद्योग मेलों में मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि कृषि आधारित उद्योग स्थापित करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाएगी। इस पहल का उद्देश्य किसानों को अपने उत्पादों को मूल्यवर्धित करने और नए रोजगार के अवसर सृजित करने में मदद करना है। सरकार की सपोर्ट प्राइस स्कीम के तहत सोयाबीन का उपार्जन किया गया, जिसमें 2 लाख 12 हजार से अधिक किसानों से 6 लाख मीट्रिक टन से अधिक सोयाबीन का उपार्जन हुआ। इस उपार्जन का मूल्य लगभग 3043 करोड़ रुपये है, जो प्रदेश के किसानों के लिए एक बड़ी राहत है। श्रीअन्न (मोटे अनाज) के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक नई योजना लेकर आई है – रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना। इस योजना के तहत, किसानों को 3900 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से डीबीटी के माध्यम से उनके बैंक खाते में राशि जमा की जाएगी।
राज्य में सिंचाई सुविधा के विस्तार पर विशेष जोर दिया गया है। वर्ष 2003 में मप्र का कुल सिंचित क्षेत्र केवल 3 लाख हेक्टेयर था, जो अब लगभग 50 लाख हेक्टेयर तक बढ़ चुका है। चल रही बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के पूरा होने पर 2025-26 तक यह क्षेत्र करीब 65 लाख हेक्टेयर होने का अनुमान है। प्रदेश सरकार ने 2028-29 तक सिंचाई क्षमता को 1 करोड़ हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है तथा वर्ष 2024-25 के बजट में इसके लिए 13,596 करोड़ आवंटित किये हैं। बेहतर सिंचाई सुविधाओं के कारण कई क्षेत्रों में किसान अब साल में दो की जगह तीन फसल ले पा रहे हैं। राज्य में ‘हर खेत जल’ अभियान के तहत नए बांध, नहर, और माइक्रो-सिंचाई प्रणाली (जैसे बूंद-बूंद से अधिक उपज) पर काम जारी है, जिसका लक्ष्य सूखे क्षेत्रों में कृषि को पानी उपलब्ध कराना है। नदी-जोड़ो अभियान के तहत केन-बेतवा लिंक परियोजना प्रदेश की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में है। इसके पूरा होने पर मध्य प्रदेश के 10 जिलों (छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी, दमोह, शिवपुरी, दतिया, रायसेन, विदिशा, सागर) में लगभग 8.11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सम्भव होगी और करीब 44 लाख किसान परिवार लाभान्वित होंगे। इस परियोजना में भूमिगत दबावयुक्त पाइप सिंचाई प्रणाली अपनाई जा रही है, जिससे बिजली की आवश्यकता के बिना पानी हर खेत तक पहुंचेगा। साथ ही इससे हरित ऊर्जा का योगदान भी होगा (103 मेगावाट जलविद्युत एवं 27 मेगावाट सौर ऊर्जा)। दूसरी बड़ी परियोजना पार्वती-कालिसिंध-चंबल लिंक है, जिसके लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और केंद्र सरकार ने त्रिपक्षीय समझौता किया है। यह प्रोजेक्ट प्रदेश के 10 जिलों में पानी की उपलब्धता बढ़ायेगा। इन दोनों परियोजनाओं में कुल मिलाकर लगभग रू. 75,000 करोड़ निवेश होगा, जिसमें 90 प्रतिशत पूंजी केंद्र सरकार द्वारा दी जायेगी। इन पहलों से बुंदेलखंड एवं अन्य पानी-हीन क्षेत्रों में खेती के साथ उद्योग और पेयजल आपूर्ति भी सुचारु होगी।

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