- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में खुलासा
मप्र में अधिकारी-कर्मचारी किस तरह सरकारी योजनाओं को पलीता लगा रहे हैं इसका खुलासा विधानसभा के बजट सत्र के दौरान पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की 2022 की रिपोर्ट में हुआ है। आलम यह है की गरीबों और आपदा पीडि़तों की राशि भी हड़प ली है।
विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। मप्र विधानसभा के बजट सत्र में पेश कैग की 2022 की रिपोर्ट पेश की गई। कैग रिपोर्ट वह दस्तावेज होता है, जो भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा तैयार किया जाता है। यह रिपोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय प्रबंधन का ऑडिट करती है और अनियमितताओं को उजागर करती है। इस बार मप्र सरकार की कई योजनाओं में गंभीर खामियों का खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में राज्य सरकार की कई प्रमुख योजनाओं में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सामने आए हैं। रिपोर्ट के खुलासे के बाद, विपक्षी दल कांग्रेस ने राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला और मप्र को भ्रष्टाचार का अड्डा करार दिया। रिपोर्ट के अनुसार मप्र में प्राकतिक आपदा में दी जाने वाली राहत राशि में भारी झोल झाल हुआ है। यह झोल झाल किसी और ने नहीं बल्कि संबंधित विभाग के कर्मचारियों ने ही की है। वर्ष 2018 से 2022 तक पांच साल में 13 जिलों में कर्मचारियों उनके रिश्तेदारों समेत अपात्र को 23.81 करोड़ की राहत राशि दी गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से 2022 के बीच मध्य प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को 10,060 करोड़ रुपए की राहत राशि वितरित की गई। हालांकि, इसमें से 13 जिलों में 23.81 करोड़ रुपए की राशि फर्जी बैंक खातों में ट्रांसफर कर दी गई। सरकारी कर्मचारियों ने फर्जी स्वीकृति आदेश तैयार कराए और अपने तथा रिश्तेदारों के खातों में पैसे ट्रांसफर करवा लिए। कैग ने सरकार से सिफारिश की है कि किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से उन सभी जिलों में आपदा राहत राशि वितरण की जांच कराई जाए, जो कैग की जांच में शामिल नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में कर्मकार कल्याण योजना के तहत दी जाने वाली अंत्येष्टि सहायता और अनुग्रह राशि का भुगतान गड़बड़ी से भरा रहा। इसके अलावा, आपदा राहत राशि और सरकारी भूमि आवंटन में भी बड़े पैमाने पर अनियमितताएं पाई गई हैं। प्रदेश के 3 जिले शिवपुरी, विदिशा और देवास में सूखा और अतिवृष्टि राहत का पैसा वितरण में 2.73 करोड़ का फर्जीवाड़ा किया। शिवपुरी में 41 लोगों ेके खातों में 50 लाख। देवास में 17 खातों में 35.46 लाख और विदिशा में 149 लोगों के खातों में 1.55 करोड़ का फर्जी भुगतान किया गया। कैग रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि विदिशा एवं दमोह में प्राकृतिक आपदा के 732 हितग्राहियों को 51.86 लाख का अतिरिक्त (दोगुना) भुगतान किया। शिवपुरी जिले की खनियाधाना और कोलारस तहसील में सूखा राहत का 5.86 करोड़ का भुगतान बिना सक्षम अधिकारी की मंजूरी के वितरित कर दिया। जो कि नियुमों का उल्लंघन है। शिवपुरी में ही वर्ष 2018 से 2020 के बीच 201.91 करोड़ में से 10 करोड़ का उपयोगिता प्रमाण पत्र ही नहीं दिया गया।
अंत्येष्टि और अनुग्रह राशि के भुगतान में गड़बड़ी
राज्य में पंजीकृत कर्मकारों की अंत्येष्टि सहायता और अनुग्रह सहायता राशि में भारी गड़बड़ी सामने आई है। कैग रिपोर्ट के अनुसार, 142 प्रकरणों में 52 बैंक खातों में 1.68 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, लेकिन ये खाते कर्मकारों के उत्तराधिकारियों के नहीं थे। गौरतलब है कि कर्मकार कल्याण योजना निधि के तहत, यदि किसी पंजीकृत कर्मकार की मृत्यु हो जाती है, तो उसके उत्तराधिकारी को अंत्येष्टि सहायता और अनुग्रह राशि प्राप्त करने के लिए एक निर्धारित प्रारूप में आवेदन देना होता है। इसके बाद, अधिकारी सत्यापन कर राशि सीधे उत्तराधिकारी के बैंक खाते में जमा कराते हैं। लेकिन कैग रिपोर्ट बताती है कि इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और धनराशि अन्य खातों में भेज दी गई। इस घोटाले के कारण पीडि़त परिवारों को उनका हक नहीं मिल पाया, जिससे वे जरूरी सुविधाओं से वंचित रह गए। दूसरी ओर, अनाधिकृत व्यक्तियों के खाते में सरकारी धन जमा हो गया, जिससे असली लाभार्थियों को आर्थिक नुकसान हुआ। यह मामला सरकारी धन के दुरुपयोग को उजागर करता है, जहां योजनाओं का लाभ सही लोगों तक पहुंचने के बजाय गलत हाथों में चला गया। इससे न केवल आर्थिक अनियमितता सामने आई, बल्कि सरकार की योजनाओं की पारदर्शिता और क्रियान्वयन पर भी सवाल खड़े हो गए।
दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार रजिस्टर्ड श्रमिकों की मृत्यु पर अंतिम संस्कार के लिए सहायता राशि ओर अनुग्रह राशि उसके परिवार को देती है। इसमें रजिस्टर्ड श्रमिकों को उनके विवाह और दो बेटियों के विवाह के तहत भी राशि सरकार की तरफ से दी जाती है। रिपोर्ट में इसमें गड़बड़ी मिली है। जांच में पाया गया कि 142 प्रकरणों में 52 बैंक खातों में अपात्र के खाते में राशि जारी कर दी गई। इसके लिए फर्जी नाम का उपयोग किया गया। इस तरह के मामले भोपाल समेत अन्य नगर निगमों में सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार दो करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि संदिग्ध खातों में ट्रांसफर की गई। यही नहीं दस्तावेजों की जांच में यह भी सामने आया है कि विदिशा, आगर मालवा, सतना, दमोह, रायसेन, मंदसौर, खंडवा, छतरपुर, देवास, शिवपुरी, सीहोर, श्योपुर और सिवनी समेत 13 जिलों में किसानों को प्राकृतिक आपदा से नुकसान की राशि में गड़बड़ी की गई है। इसमें अधिकारियों और कर्मचारियों ने मिलीभगत कर अपने रिश्तेदारों के खातों में राशि ट्रांसफर कर दी। वर्ष 2022 में करीब 23 करोड़ 81 लाख की राशि का भुगतान हुआ है। इस गड़बड़ी के लिए अलग-अलग बैंकों में एक ही व्यक्ति के नाम से कई खातों का उपयोग किया गया। सिवनी में डूबने, सांप काटने और बिजले गिरने के मामलों में 11.14 करोड़ रुपए की राशि की धोखाधड़ी पाई गई है। यही नहीं अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर से स्वीकृति आदेश जारी करने की बात भी रिपोर्ट में लिखी गई है। रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में 40 से ज्यादा सहकारी समितियों के खाते में 8 करोड़ रुपये की राशि जमा करने में अंतर पाया गया है। दरअसल, तहसीलदारों ने समितियों के बैंक खातों में 56.91 करोड़ की राशि जमा की, लेकिन समितियों की तरफ से सिर्फ 48 करोड़ की राशि ही प्रमाणित की गई। अब बाकी राशि का कैग को कोई हसाब नहीं मिला।
आपदा राहत फंड की बंदरबांट
मध्य प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित नागरिकों के लिए आपदा राहत कोष से सहायता राशि दी जाती है। 2018-19 से 2021-22 के बीच प्रदेश में 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की आपदा राहत राशि वितरित की गई। कैग ने 13 जिलों में इस राशि के वितरण की जाँच की, जिसमें 23.81 करोड़ रुपये अनाधिकृत रूप से वितरित पाए गए। आपदा राहत राशि के वितरण में बड़े स्तर पर गड़बड़ी सामने आई है। कर्मचारियों, उनके रिश्तेदारों और अनाधिकृत व्यक्तियों को अवैध रूप से राहत राशि दी गई। इसके लिए जाली दस्तावेज तैयार किए गए, जिससे सहायता राशि का ग़लत वितरण हुआ। इस भ्रष्टाचार का फायदा उन लोगों ने उठाया, जो वास्तव में आपदा से प्रभावित नहीं थे, जबकि वास्तविक पीडि़त सहायता से वंचित रह गए। इस घोटाले ने प्रशासनिक लापरवाही और अनियमितताओं को उजागर किया है, जिससे प्रभावित लोगों में आक्रोश व्याप्त है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार मप्र में वर्ष 2018 से 2022 के बीच प्राकृतिक आपदाओं के नाम पर प्रदेश सरकार ने राज्य के लिए 10060 करोड़ रुपए की राशि जारी की। इस राशि में से 23.81 करोड़ रुपए 13 जिलों में अधिकारी-कर्मचारियों ने चहेतों के खातों में डलवा दी। किसानों को राहत राशि वितरण में सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा शिवपुरी जिले में सामने आया है। कैग ने राज्य शासन से संबंधितों से राशि वसूलने को कहा है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार 8 जिले आगर-मालवा, दमोह, देवास, रायसेन, सतना,सीहोर, शिवपुरी और विदिशा में सूखा एवं कीट प्रकोप प्रभावित 6.91 लाख किसानों को 563.72 करोड़ की राहत 6 से 28 महीने देरी से वितरित की गई। कैग ने पाया कि जिन जिलों में राहत राशि में फर्जीवाड़ा सामने आया है, वहां राहत वितरण में निगरानी तंत्र ही नहीं है। यही वजह कि राहत राशि वितरण में देरी एवं अनाधिकृत लोगों को लाभ दिया गया। कैग ने वित्त विभाग के ग्लोबल बजट प्रणाली एवं आईएफएमआईएस में खामी बताते हुए शासकीय धन में गबन रोकने में असक्षम बताया।
सिवनी जिले की केवलारी तहसील में 11.64 करोड़ रुपए डूबने, बिजली गिरने, सर्पदंश जैसे प्रकरणों में अनाधिकृत रूप से बांट दी गई। अधिकारियों ने स्वीकृत आदेशों पर पूर्ण हस्ताक्षरों की जगह संक्षिप्त हस्ताक्षर किए। श्योपुर में 30 जुलाई 2021 से 3 अगस्त 2021 के बीच बाढ़ प्रभावितों को राहत देने में ई-भुगतान प्रणाली से 216 अवैध व्यक्तियों के खातों में 3.36 करोड़ का भुगतान किया। ज्यादातर अपात्र हितग्राही अधिकारी एवं कर्मचारियों के नाते-रिश्तेदार थे। आरोपियों पर एफआईआर, फिर भी नौकरी कर रहे। सीहोर जिले की सीहोर, इछावर, रेहटी और आष्टा तहसील में कर्मचारियों ने 1.17 करोड़ का भुगतान 45 अपात्र खातों में किया गया। एफआईआर कराई, लेकिन फिर भी नौकरी कर रहे। शिवपुरी में सूखा राहत का 2.77 करोड़ रुपए पटवारी समेत अन्य कर्मचारियों ने 164 अपात्र लोगों के खातों में डाला। जिसमें ज्यादा अपात्र हितग्राही कर्मचारियों के रिश्तेदार निकले। देवास में 61 अपात्र लोगों के खातों में कीट प्रकोप,ओला एवं अतिवृष्टि की 1.26 करोड़ की राहत राशि भेजी गई। छतरपुर में 20 अपात्र लोगों के खातों में 42 लाख का भुगतान किया गया। जिसमें से 34 लाख वसूल किए जा चुके हैं। खंडवा में खालवा तहसील में 4 खातों में 11.62 लाख का फर्जी भुगतान किया। फर्जीवाड़ा करने वाले कर्मचारी नौकरी में हैं, लेकिन विभागीय जांच जारी है। मंदसौर में मल्हारगढ़ एवं सीतामऊ तहसील के 30 अनाधिकृत लोगों के खातों में 69.49 लाख रुपए का फर्जी भुगतान किया गया। रायसेन में बेगमगंज, गैरतगंज, सुल्तानपुर एवं उदयपुरा तहसील में अतिबारिश, ओला राहत के 84 लाख रुपए 40 फर्जी खातों में डाले गए। दमोह में सूखा, कीट प्रकोप प्रभावित किसानों को मिलने वाली 31 लाख की राहत राशि 27 फर्जी लोगों के खातों में डाली गई। सतना में प्राकृतिक आपदा सूखा राहत के 13 लाख रुपए सरकारी कर्मचारियों ने अपने रिश्तेदारों के 13 बैंक खातों में ट्रांसफर करवाए। आगर-मालवा में 17 अपात्र लोगों के खातों में 25.30 लाख रुपए का भुगतान किराया गया। विदिशा में विदिशा, गुलाबगंज, कुरवाई तहसील में 47 लाख रुपए की सूखा राहत की राशि 41 फर्जी लोगों के खातों में पहुंचाई गई थी।
मनरेगा भुगतान में बड़ा घोटाला
मध्य प्रदेश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत 87.65 लाख रुपये की मजदूरी का भुगतान को लेकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में 85.67 लाख रुपये का मनरेगा भुगतान ऐसे लोगों के बैंक खातों में किया गया, जो न तो जॉब कार्डधारकों के थे और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य के थे। मनरेगा के तहत हुए बड़े घोटाले का खुलासा मनरेगा और केंद्रीय वित्त आयोग के तहत पंचायती राज संस्थाओं में परिसंपत्तियों के निर्माण पर हुई ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है। सोमवार को विधानसभा में पेश रिपोर्ट में 1 अप्रैल, 2019 से मार्च 31, 2022 तक की अवधि शामिल है। ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार 7 ग्राम पंचायतों की मजदूरी भुगतान सूची और 476 जॉब कार्डों के बैंक खातों की जांच में सामने आया कि जिन खातों में 87.65 लाख रुपये मजदूरी के रूप में जमा किए गए, वे संबंधित जॉब कार्डधारकों के नहीं थे। साथ ही, यह राशि जिनके खातों में जमा हुई, वे भी संबंधित मजदूरों/जॉब कार्डधारकों के परिवार के सदस्य नहीं थे।
कैग के इस खुलासे पर राज्य सरकार ने जवाब देते हुए कहा कि छतरपुर जिले की बमनीघाट और इमलाहा ग्राम पंचायतों के जॉब कार्डधारकों द्वारा बैंक खाता न होने की स्थिति में, उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए अन्य खातों में मजदूरी का भुगतान किया गया। इसके लिए संबंधित जॉब कार्डधारकों से बैंक खाता न होने का शपथ पत्र भी लिया गया। हालांकि सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार के जवाब को अस्वीकार्य बताया है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ मजदूरी के 87.65 लाख रुपये ही गलत खातों में जमा नहीं हुए, बल्कि ऑडिट के दौरान करोड़ों रुपये की और भी अनियमितताएं सामने आईं। यह ऑडिट नवंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच किया गया था। कैग रिपोर्ट के अनुसार, जिन छह जॉब कार्डधारकों के शपथ पत्र ऑडिट को सौंपे गए, उनमें से दो के पास डाकघर में खाता था, जबकि एक के पास बैंक खाता मौजूद था। वहीं, अन्य ग्राम पंचायतों के मामलों में राज्य सरकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। रिपोर्ट में बताया गया कि 64 चयनित ग्राम पंचायतों ने तय सीमा से अधिक 5.07 करोड़ रुपये की सामग्री पर खर्च किया, जिससे 2019 से 2022 के बीच 2.72 लाख मानव दिवसों का सृजन नहीं हो सका। साथ ही, 2013-19 के बीच स्वीकृत सामुदायिक परिसंपत्तियों के 15 कार्यों की अनुमानित लागत का पुनरीक्षण नहीं करने से 1.38 करोड़ रुपये की बर्बादी हुई और वो अधूरे ढांचे पर खर्च हो गए। कैग रिपोर्ट के मुताबिक 230 निर्माण कार्यों के लिए तकनीकी स्वीकृति ठेकेदार के 10 प्रतिशत लाभ सहित पूरी लागत पर दी गई, जिससे 1.96 करोड़ की लागत अधिक आंकी गई। 58 खेत तालाबों के निर्माण में डीपीआर में काली मिट्टी भरने का प्रावधान नहीं होने से 1.23 करोड़ का खर्च बेकार हुए। काम और गुणवत्ता प्रबंधन के लिए राज्य और चयनित जिलों में कोई गुणवत्ता निगरानी प्रकोष्ठ नहीं बनाया गया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि चयनित 7 से 52 ग्राम पंचायतों में सामुदायिक आधारभूत संरचनाओं के निर्माण की कोई योजना नहीं बनाई गई और अन्य योजनाओं के साथ एकीकरण का प्रयास नहीं हुआ। मजदूरी के 87.65 लाख रुपये ही गलत खातों में जमा नहीं हुए, बल्कि ऑडिट के दौरान करोड़ों रुपये की और भी अनियमितताएं सामने आईं। यह ऑडिट नवंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच किया गया था।
निकायों से लेकर पंचायतों तक घोटाला
प्रदेश में अफसरों से लेकर सरकारी कर्मचारियों तक को जहां भी मौका मिल रहा है, भ्रष्टाचार और गड़बड़ी करने में पीछे नही रह रहे हैं। ऐसे मामलों में उन्हें जनप्रतिनिधियों का भी साथ मिलता है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि हाल ही में सदन में पेश की गई सीएजी के रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। यह खुलासा नगरीय निकायों और पंचायतों को लेकर किया गया है। इसमें बताया गया है कि निकाय और ग्राम पंचायतों में संपत्ति कर, शिक्षा और विकास उपकर आदि की वसूली में भी गंभीर लापरवाही और पब्लिक के साथ भ्रष्टाचार का खेल किया गया है। कर्मचारियों को अस्थायी अग्रिम के नाम पर बांटी गई 7 करोड़ रुपए की राशि वापस नहीं ली गई। वहीं, 35 निकायों में शहरी विकास उपकर की वसूली गई 20.43 करोड़ की राशि सरकारी खातों में जमा नहीं की गई। सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि पंचायती राज संस्थाओं को राज्य वित्त आयोग के अनुदान के रूप में 1364 करोड़ रुपए की राशि वित्त विभाग ने हस्तांतरित नहीं की। चयनित जनपद पंचायतों में मजदूरी और सामग्री के लिए 30.24 करोड़ का भुगतान नहीं किया गया। 10 ग्राम पंचायतों में 1.51 करोड़ की लागत के 62 व्यक्तिगत कुएं (कपिल धारा कूप) फर्जी ढंग से मंजूर किए गए, जिसके कारण 62 में से 46 अधूरे रह गए। 15वें वित्त अनुदान से स्वीकृत कुल 19.16 करोड़ के काम, जिनका मूल्य 15 लाख से कम था, जिला पंचायत और जनपद पंचायत विकास योजना में शामिल नहीं किए गए। 4 जिला पंचायतों और 6 जनपद पंचायतों ने 3 करोड़ की 52 सीमेंट कांक्रीट सडक़ों को मंजूरी दी, वहीं 9 चयनित जिला पंचायतों ने 15.55 करोड़ के निर्माण के लिए मंजूरी की स्वीकृति नहीं दी। 64 ग्राम पंचायतों ने सामग्री मद में 5.07 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन 2.72 लाख मानव दिवस का सृजन नहीं हुआ। इसके अलावा 66 स्टॉप डैम में से 10 स्टॉप डैमों में घटिया गुणवत्ता की सामग्री का उपयोग किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार 46 नगरीय निकायों ने संपत्ति कर, शिक्षा और विकास उपकर की 427 करोड़ की राशि के बदले 178 करोड़ की वसूल किए जा सके। जल शुल्क, लाइसेंस शुल्क, भूमि और भवन किराया आदि का 303 करोड़ के बदले केवल 88 करोड़ की वसूली की गई। 12 नगरीय निकायों ने कर्मचारियों को अस्थायी अग्रिम के नाम पर 7 करोड़ रुपए दिए, लेकिन उसकी वसूली नहीं की। 35 नगरीय निकायों में शहरी विकास उपकर के रूप में 51 करोड़ वसूले, लेकिन यह राशि सरकारी खाते में जमा नहीं की, वहीं 33 निकायों ने 94.84 करोड़ का शिक्षा उपकर वसूला और 69.79 करोड़ का उपयोग किया, लेकिन 25 करोड़ की राशि बैंकों में जमा पड़ी रही। राज्य सरकार ने कोविड महामारी के दौरान नगरीय निकायों को 85 करोड़ रुपए कम जारी किए। उधर, पानी की मांग के मुकाबले 9 नगरीय निकायों में भंडारण क्षमता थी। नगरीय निकायों में हर घर में पाइप से पानी की आपूर्ति में भी निकाय विफल रहे हैं। 2 लाख 54 हजार घरों की अपेक्षा एक लाख 67 हजार में ही अधिकृत जल कनेक्शन पाए गए। 13 नगरीय निकायों ने 4, 341 भवन निर्माण की अनुमति दी और संबंधित आवेदकों से छत जल संचयन के लिए एक करोड़ 35 लाख रुपए की सुरक्षा राशि जमा कराई गई, जबकि इन निकायों ने न तो आवेदकों द्वारा किए गए छत जल संचयन के काम का सत्यापन किया और न हीं आवेदकों की और से छत जल संचयन संरचनाएं बनाने का प्रयास किया गया। 14 नगरीय निकायों में ओएंडएम व्यय 207 करोड़ था, जिसके विरुद्ध निकायों ने प्रति कनेक्शन प्रति वर्ष 480 से 2,400 रुपए के बीच विभिन्न दरों पर उपभोक्ताओं से 75.95 करोड़ की मांग की गई। 13 निकायों में वास्तविक लागत की तुलना में मांगे गए उपयोगकर्ता शुल्क में घाटा 30 से 93 प्रतिशत तक था। साथ ही 14 नगरीय निकायों ने जल शुल्क के कारण वसूली के लिए बकाया राशि 62.79 करोड़ थी।
संबल योजना में अफसरों का घोटाला
कैग की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि संबल योजना में मजदूरों के हक की राशि 2.47 करोड़ रुपये हड़प ली गई। बड़वानी जिले के राजपुर और सेंधवा जनपद पंचायतों में सीईओ और लेखपाल ने मिलकर यह राशि अपने और अपने करीबी लोगों के खातों में ट्रांसफर कर ली। इसके अलावा, एक मृत मजदूर के नाम पर 89.21 लाख रुपये निकाले गए जो नियमों का उल्लंघन था। साथ ही, जिन मजदूरों को पहले ही संबल योजना का लाभ मिल चुका था, उन्हें बिना किसी ठोस कारण के 72.60 लाख रुपये अतिरिक्त दे दिए गए। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि श्रम विभाग ने 2.18 करोड़ मजदूरों का पंजीयन किया था, लेकिन बाद में 67.48 लाख मजदूरों को अपात्र घोषित कर दिया। संबल योजना में सरकार ने कई श्रमिकों के लिए योजनाएं बनाई थीं, लेकिन इनमें से कई योजनाओं के लिए बजट का प्रावधान ही नहीं किया गया। उदाहरण के लिए उपकरण अनुदान योजना और नि:शुल्क कोचिंग योजना बनाई गईं, लेकिन इन योजनाओं के लिए बजट नहीं रखा गया, जिसके कारण ये योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह गईं और जरूरतमंद मजदूरों को इनका कोई लाभ नहीं मिला।
संबल योजना के तहत असंगठित श्रमिकों को दी जाने वाली अनुग्रह सहायता राशि की स्वीकृति और भुगतान में भी बड़े पैमाने पर देरी सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, हजारों मामलों में सहायता राशि 1,272 दिनों तक विलंब से स्वीकृत की गई, जबकि योजना दिशानिर्देशों के अनुसार, इसे 15 दिनों के भीतर निपटाया जाना चाहिए। एन.आई.सी. डेटा और संबल योजना के बैंक खाते की जांच में पाया गया कि 1,68,342 आवेदनों में से 1,07,076 (64 प्रतिशत) मामलों में स्वीकृति में 1 से 1,272 दिनों तक की देरी हुई। रिपोर्ट के अनुसार 1,349.92 करोड़ की राशि वाले 60,674 मामलों में भुगतान 2 से 1,013 दिनों तक विलंब से किया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि एक मृत मजदूर के नाम पर संबल योजना और भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल योजना से कुल 89.21 लाख रुपए निकाले गए। इसके अलावा, जो मजदूर पहले ही संबल योजना का लाभ ले चुके थे, उन्हें नियमों का उल्लंघन करके 72.60 लाख रुपए की अतिरिक्त राशि दे दी गई। कैग ने पाया कि श्रम विभाग ने 2.18 करोड़ मजदूरों का पंजीयन किया था, लेकिन बाद में इनमें से 67.48 लाख मजदूरों को अपात्र घोषित कर दिया गया। इन लोगों को अपात्र ठहराने के पीछे कोई ठोस कारण नहीं बताया गया। अकेले बड़वानी जिले में ही 1320 लोगों ने जब अपात्र घोषित किए जाने पर शिकायत की तो बिना किसी जांच के 1085 लोगों को दोबारा पात्र मान लिया गया।
सरकारी भूमि के आवंटन में अनियमितता
कैग रिपोर्ट में सरकारी भूमि के गलत आवंटन का भी खुलासा हुआ है। इंदौर के ग्राम बांगड़दा में एक चैरिटेबल ट्रस्ट को मात्र 1 रुपये वार्षिक पट्टे पर सरकारी जमीन आवंटित की गई। इस मामले में सरकार को कुल 4.19 करोड़ रुपये के प्रीमियम की हानि हुई है। इसके अलावा, हर साल 4.18 लाख रुपये के वार्षिक पट्टा किराए की भी क्षति हो रही है। यह निर्णय सरकारी नियमों के विपरीत लिया गया, जिससे एक निजी संस्था को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। भोपाल के वल्लभ भवन और कलेक्ट्रेट के पास 37.69 हेक्टेयर सरकारी जमीन पर झुग्गी और अवैध निर्माण से सरकार को 322.71 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रशासन की लापरवाही के कारण इन अतिक्रमणों को समय रहते हटाया नहीं गया, जिससे राजस्व हानि हुई। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि प्रशासनिक स्तर पर इस अतिक्रमण को रोकने के लिए पटवारी और राजस्व निरीक्षक ने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए। न तो इसे अतिक्रमण पंजी में दर्ज किया गया और न ही संबंधित विभागों को रिपोर्ट भेजी गई। कैग ने अपनी जांच में पाया कि यदि समय रहते यह अतिक्रमण चिह्नित कर लिया जाता, तो इसे हटाने की कार्रवाई हो सकती थी। इधर, भोपाल में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को यूनिवर्सिटी बनाने के लिए 20.23 हेक्टेयर सरकारी जमीन दी गई। कैग रिपोर्ट के अनुसार, जमीन की कीमत 218 करोड़ रुपए थी, पर इसे मात्र 38.85 करोड़ रुपए में सौंप दिया गया। कलेक्टर ने इस जमीन का बाजार मूल्य 109 करोड़ रुपए तय किया था, लेकिन पट्टा विलेख 38.85 करोड़ रुपए में किया गया और सिर्फ 9.71 करोड़ (कीमत का 25त्न) ही प्रीमियम लिया गया। कैग के अनुसार, सही मूल्य नहीं दिखाने से सरकार को 65.05 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
कैग रिपोर्ट में सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी के खुलासे के बाद ग्वालियर पूर्व से कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है और सरकार की योजनाओं में घोटाले उजागर हो रहे हैं। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में बसों के बजाय स्कूटरों और मोटरसाइकिलों के बिलों का भुगतान करना सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है। इसके अलावा, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना और संबल योजना में भी भ्रष्टाचार सामने आया है। सिकरवार ने कहा कि प्रदेश अब भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। कैग रिपोर्ट को लेकर पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने सफाई दी है। उन्होंने कहा कि हर रिपोर्ट की तरह यह भी लोक लेखा समिति में जाएगी, जहां इसका परीक्षण किया जाएगा। भार्गव ने कहा कि प्रक्रिया के तहत रिपोर्ट की जांच होगी और उसके बाद ही इस पर कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में नल जल योजना के तहत लगाए गए नलों से पानी नहीं आने की शिकायतें मिली हैं, और इस योजना में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। विधानसभा में पेश कैग 2022 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 14 नगरीय निकाय में 34.07 प्रतिशत घर में अभी भी नल कनेक्शन नहीं है। पानी की गुणवत्ता की नियमित जांच नहीं की गई। उपभोक्ताओं के परिसर में पानी के मीटर नहीं लगाए। ग्वालियर ग्रामीण से कांग्रेस विधायक साहब सिंह गुर्जर ने कैग रिपोर्ट में योजनाओं में गड़बड़ी के खुलासे पर कहा कि कैग की रिपोर्ट सही है। नल जल योजना में भ्रष्टाचार हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में नलों में पानी नहीं आ रहा है। सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर है।