
कांग्रेस का विजय प्लान…
मप्र में सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने 2020 से ही तैयारी शुरू कर दी थी। इसका परिणाम यह हुआ है कि हर बार की अपेक्षा इस बार कांग्रेस बेहतर स्थिति में है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि मप्र में कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं है, जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बराबरी कर सके। वहीं इस बार तो भाजपा के राष्ट्रीय और प्रादेशिक दिग्गज नेताओं ने भी चुनावी मोर्चा संभाल लिया है। ऐसे में इनका मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने भी विजय का प्लान बनाया है और प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खडग़े को चुनावी मैदान में प्रचार के लिए उतारने की रणनीति बनाई है। मप्र की पूरी जिम्मेदारी प्रियंका गांधी पर ही रहेगी।
विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। मप्र में इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच आर-पार की लड़ाई होनी है। इसके लिए दोनों पार्टियों ने अपना पूरा दमखम लगा दिया है। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों की फौज ने प्रदेश की पूरी चुनावी कमान संभाल ली है। इसको देखते हुए कांग्रेस ने भी बड़ा दांव खेला है और हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की तरह मप्र में भी प्रियंका गांधी को चुनावी कमान थमाने की रणनीति बना ली है। प्रियंका के साथ राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खडग़े भी चुनावी कमान संभालेंगे। दरअसल, जिस तरह प्रियंका गांधी ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस को सत्ता दिलाने में भूमिका निभाई थी, उसको देखते हुए मप्र कांग्रेस को भी उम्मीद जगी है कि प्रियंका यहां भी जीत पक्की कर सकती हैं। इसलिए पार्टी ने उन्हें मप्र के चुनाव में तुरूप का इक्का बनाकर उपयोग करने की रणनीति बनाई है। मप्र में प्रियंका गांधी को कांग्रेस बड़ी रणनीति के साथ सक्रिय करने जा रही है। दरअसल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव है, उनमें से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। मध्य प्रदेश में ही भाजपा की सरकार है। इसीलिए प्रियंका राजस्थान और छत्तीसगढ़ की जगह मप्र पर फोकस कर रही हैं। प्रियंका के जरिए कांग्रेस प्रदेश में महिला वोटर्स को साधने की कवायद में भी है। प्रियंका के जरिए कांग्रेस लाडली योजना से बनी सीएम शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता को भी कमजोर करने की कोशिश करेगी।
कांग्रेस अब अपना पूरा फोकस चुनावी राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में करने जा रही है। पार्टी ने इन राज्यों में चुनावी कैंपेन का पूरा खाका तैयार कर लिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तेलगांना समेत तीनों राज्यों का दौरा करेंगे। जबकि पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी मध्यप्रदेश और सांसद राहुल गांधी राजस्थान-छत्तीसगढ़ के कैंपेन का जिम्मा संभालेंगे। प्रियंका गांधी मप्र में चुनावी प्रचार का अभियान संभालेंगी। वह प्रदेश में करीब 40 जनसभाएं और रैलियां करेंगी। एक दिन में उनकी 2 से 3 रैलियां होंगी। चुनाव की घोषणा होने के बाद कांग्रेस महासचिव हर दूसरे दिन प्रदेश में चुनावी दौरे करती नजर आएंगी। प्रियंका के साथ कई बार राहुल गांधी भी आएंगे। लेकिन मध्यप्रदेश में कैंपेन की रणनीति को अंतिम रूप प्रियंका ही देंगी। इसके अलावा वे छत्तीसगढ़ में भी सभाएं करेंगी। कांग्रेस पार्टी के सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पांचों राज्यों में प्रचार करेंगे। सबसे ज्यादा फोकस वे तेलंगाना में करेंगे। राहुल राजस्थान और तेलंगाना के अभियान का नेतृत्व करेंगे। प्रियंका भी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से ब्रेक लेकर कुछ सभाएं राजस्थान व तेलंगाना में करेंगी। राज्यों में चुनाव की घोषणा के साथ ही तीनों नेताओं के दौरे तेजी से शुरू होंगे। इन नेताओं के दौरों को ऐसे प्लान किया जा रहा है कि वे चुनावी राज्यों के ज्यादातर हिस्सों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाएं। पार्टी के रणनीतिकारों ने ऐसी योजना तैयार की है कि हर नेता कमोबेश हर दूसरे या तीसरे दिन राज्यों में प्रचार करेंगे। राहुल छत्तीसगढ़ में कभी एक साथ तीन रैलियां करेंगे, तो प्रियंका एपमी में एक ही दिन में दो रैली करेंगी। सूत्रों का कहना है कि किसी भी राज्य में चुनाव हो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों बराबर दिलचस्पी लेते हैं। प्रियंका हिमाचल और कर्नाटक में भी ज्यादा सक्रिय रही थीं। वे मध्यप्रदेश में दो और छत्तीसगढ़ में एक रैली कर चुकी हैं। जबकि राहुल राजस्थान-छत्तीसगढ़ में एक-एक रैली कर चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे खुद को तेलंगाना में व्यस्त रख रहे हैं। खरगे इससे पहले मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ और राजस्थान में एक एक चुनावी सभाएं कर चुके हैं।
एक दिन में करेंगी 2-2 रैलियां
कांग्रेस की रणनीति के अनुसार मप्र जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इलेक्शन कैंपेन की कमान संभालेंगी। दरअसल कांग्रेस ने प्रियंका के चेहरे को ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच पहुंचाने का प्लान बनाया है। पार्टी की कोशिश है कि विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश के सभी संभागीय मुख्यालयों पर प्रियंका की सभाएं हों। इससे पहले प्रियंका गांधी 2 बार मप्र के दौरे पर आ चुकी हैं। जबलपुर से जहां उन्होंने चुनाव का शंखनाद किया था वहीं ग्वालियर में बड़ी सभा को लीड किया था। प्रियंका गांधी मध्यप्रदेश में लगभग 40 जनसभाएं और रैलियां करेंगी। खास बात यह है कि एक दिन में उनकी 2 से 3 रैलियां रहेंगी। चुनाव का ऐलान होने के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका हर दूसरे और तीसरे दिन मध्य प्रदेश में जनता के बीच जाएंगी। कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर उनमें जोश भरेंगी। माना जा रहा है कि प्रियंका के साथ राहुल गांधी भी मध्य प्रदेश आएंगे। प्रियंका गांधी मध्यप्रदेश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के कैंपेन का भी जिम्मा संभालेंगी। वहीं राहुल गांधी राजस्थान और तेलंगाना का कैंपेन लीड करेंगे। इलेक्शन की तारीखों का ऐलान होते ही प्रियंका और राहुल गांधी के दौरे शुरु हो जाएंगे। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व भी मध्यप्रदेश को लेकर एक्टिव हो गया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका मध्य प्रदेश में इलेक्शन कैंपेन को लीड करेंगी। वह एक दिन में 2-2 सभाओं को संबोधित करेंगी। खास बात यह है कि इस बार प्रियंका का फोकस विंध्य पर ज्यादा होगा। इससे पहले अमित शाह भी विंध्य का दौरा कर चुके हैं। दरअसल में विंध्य में कांग्रेस की हालत बेहद कमजोर है। नतीजा यह है कि कांग्रेस विंध्य में जीत को तरस रही है। कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए हरसंभव कोशिश करेगी। जिन वादों से साथ पिछली बार कांग्रेस ने सरकार बनाया था, उस पर प्रियंका गांधी का पूरा फोकस रहेगा।कर्नाटक के रथों पर सवार होकर निकालेगी जन आक्रोश यात्रा: कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को जिन रथों से जनता का आशीर्वाद मिला अब वे ही रथ मप्र में कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे। कांग्रेस इन रथों को भाग्यशाली मान रही है, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के साथ बैठक में ये फैसला लिया गया है विधानसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस के नेता कर्नाटक के रथों में सवार होकर जन समर्थन हासिल करने के लिए निकलेंगे। कांग्रेस प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से 7 जन आक्रोश यात्राएं निकालेगी।
जानकारों का कहना है कि इस समय चुनावों में प्रियंका गांधी की अधिक मोग है। दरअसल कर्नाटक के चिकमंगलूर में प्रियंका ने जिस से तरह से प्रधानमंत्री मोदी पर पलटवार किया था, वो टर्निंग पॉइंट था। प्रियंका ने कहा था कि प्रधानमंत्री जी कर्नाटक आकर आपका दुख सुनने की बजाय अपना दुखड़ा सुनाते हैं। प्रधानमंत्री के पास प्रदेश के किसानों, महिलाओं और युवाओं की समस्या की लिस्ट नहीं है, लेकिन इस बात की लिस्ट जरूर है कि किस-किसने उनको गालियां दीं। प्रियंका का ये भाषण बहुत असरदार था। प्रियंका गांधी ने कर्नाटक में 35 सभाएं- रैलियां व बैठकें की थीं। चुनाव की घोषणा से पहले प्रियंका ने कर्नाटक में 10 रैलियां की थीं, बाकी 35 रैलियां चुनाव की घोषणा के बाद कीं। इसमें 12 स्थानों पर प्रियंका ने रोड-शो भी किए थे। इसके अलावा उन्होंने महिलाओं के साथ लगातार बैठकें की थीं। प्रियंका ने कर्नाटक में भी सरकार बनने पर 5 गारंटी का वादा किया था। इसमें सबसे अहम गारंटी थी हर परिवार की एक महिला को 2 हजार रुपए महीना देने की घोषणा। साथ ही मुफ्त बिजली और महिलाओं को सरकारी बसों में फ्री सफर के वादे भी महिलाओं पर ही फोकस थे। ऐसे ही हिमाचल प्रदेश में भी प्रियंका ने 15 सभाएं की। यहां की वह प्रभारी महासचिव भी थीं। यहां भी हर घर लक्ष्मी योजना के फॉर्म भरवाए गए। इसके तहत महिलाओं को 1500 रुपए महीना देने की गारंटी दी गई। यहां भी प्रियंका की गारंटियों में महिलाओं पर ही सबसे ज्यादा फोकस था। ऐसे में अब प्रियंका गांधी मप्र में भी अपनी छाप छोड़ सकती हैं। इसलिए उनकी मांग सबसे अधिक है।
82 सीटों पर प्रियंका दांव
मप्र में आदिवासी मतदाता चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि जिस पार्टी की ओर आदिवासियों का रुझान हो, मप्र में सत्ता की चाबी उसी के हाथ आती है। चूंकि विधानसभा चुनाव का माहौल है, इसलिए भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने स्तर पर मतदाताओं को रिझाने के प्रयास में जुटे हैं। इसी कड़ी में अब कांग्रेस आदिवासी मतदाताओं का गणित बैठाने की तैयारी में लगी है। इसके लिए कांग्रेस अपनी स्वाभिमान यात्रा के बाद मप्र के गांवों में चौपाल लगाने की तैयारी कर रही है। इन चौपालों में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा आदिवासियों के बीच पहुंचकर कांग्रेस के लिए वोट मांगेंगी। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासियों का झुकाव कांग्रेस की ओर था, जिससे एसटी के लिए सुरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस ने 30 सीटें जीतीं और 15 वर्ष बाद सत्ता में वापसी हुई थी। इसको देखते हुए पार्टी ने इस बार आदिवासी बहुल 82 सीटों पर प्रियंका गांधी वाड्रा के माध्यम से पार्टी आदिवासियों के बीच पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की याद दिलाएगी। इसके लिए आदिवासी बहुल क्षेत्रों में उनके कार्यक्रम प्रस्तावित किए जा रहे हैं। छिंदवाड़ा में उनकी सभा आयोजित की जा सकती है तो राहुल गांधी का कार्यक्रम मालवांचल में बनाया जा रहा है। दरअसल कांग्रेस इस बार कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहती कि उसे सत्ता में वापसी की उम्मीद से निराश हाथ लगे। पार्टी अपने स्तर पर हर संभव प्रयास करने में जुटी है। यही बड़ा कारण भी है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सागर में अपनी पहली चुनावी सभा में भी आदिवासी अत्याचार का मुद्दा उठाया और साफ कर दिया कि यह चुनाव अभियान में कांग्रेस का प्रमुख मुद्दा रहेगा।
कांग्रेस ने आदिवासी बहुल जिलों में प्रियंका गांधी वाड्रा के कार्यक्रम और सभा आयोजित करने की तैयारी कर ली है। माना जा रहा है कि पार्टी प्रियंका के माध्यम से पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की आदिवासी हितैषी छवि को भुनाना चाहती हैं। इसीलिए प्रियंका जल्द ही छिंदवाड़ा आ सकती हैं। यहां से सिवनी, बालाघाट, बैतूल और नरसिंहपुर जिले लगे हुए हैं। यहां आदिवासी मतदाता प्रभावी भूमिका में है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया था। बैतूल और सिवनी जिले में एसटी के लिए सुरक्षित चारों सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। यही कारण है कि बैतूल से लोकसभा चुनाव लडऩे वाले रामू टेकाम को आदिवासी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है। वहीं, मालवा और निमाड़ क्षेत्र में भी कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। यहां युवाओं के बीच काम करने वाले जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) ने कांग्रेस का साथ दिया, जिसका लाभ भी मिला और एसटी के लिए लिए आरक्षित अधिकांश सीटें कांग्रेस ने जीतीं। पार्टी इसी प्रदर्शन को दोहराने के लिए प्रयासरत है। राहुल गांधी की सभा मालवा अंचल में प्रस्तावित की गई है। वे विंध्य में भी कार्यक्रम करेंगे। यहां भी कोल आदिवासी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। पिछले चुनाव में विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान हुआ था। यहां केवल सात सीटें ही पार्टी जीत सकी थी। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र कुमार सिंह तक चुनाव हार गए थे। कांग्रेस इस बार ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहती है, जिससे उसकी सत्ता में वापसी की संभावना प्रभावित हो। यही कारण है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सागर में अपनी पहली चुनावी सभा में भी आदिवासी अत्याचार का मुद्दा उठाकर साफ कर दिया कि यह चुनाव अभियान में प्रमुख मुद्दा रहेगा। प्रदेश में एसटी के लिए सुरक्षित 47 सीटें सहित 82 सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इसीलिए आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पार्टी अपनी कार्ययोजना बनाकर उन्हें साधने की तैयारी कर रही है। आपको बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासियों का झुकाव कांग्रेस की ओर था। यही कारण था कि कांग्रेस ने एसटी के लिए सुरक्षित 47 सीटों में से 30 सीटें जीतीं और 15 वर्ष बाद सत्ता में वापसी की थी। ऐसे में कांग्रेस इस बार भी अपना वही प्रदर्शन दोहराने के प्रयास में लगी है। बताया जा रहा है कि पार्टी की ओर से प्रियंका गांधी आदिवासियों के बीच पहुंचेंगी और उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की याद दिलाएंगी। वहीं राहुल गांधी के लिए मालवांचल में कार्यक्रम की प्लानिंग की जा रही है।
कांग्रेस ग्राउंट लेवल पर मजबूत
देश के सबसे अनुभवी और रणनीतिकार नेताओं में शुमार कमलनाथ चुनावी मैदान में भाजपा को मुकाबला उसी की शैली से करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि लोहे को लोहे से ही काटा जा सकता है। इसलिए उन्होंने भाजपा के मजबूत संगठन का मुकाबला करने के लिए प्रदेश कांग्रेस संगठन को मजबूत करने पर फोकस किया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि पिछले दो दशक में पहली बार मप्र में कांग्रेस ग्राउंड लेवल पर मजबूत नजर आ रही है। दरअसल कांग्रेस आलाकमान ने मिशन 2023 के लिए कमलनाथ का मप्र में पूरी तरह फ्री हैंड कर दिया है। इसलिए वे अपने तरीके से चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं। दरअसल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भली-भांति जानते हैं कि उनका मुकाबला कैडर बेस पार्टी भाजपा और उसके पीछे मजबूती से खड़े आरएसएस से है। यही कारण है कि कमलनाथ ने भाजपा से उसी के अंदाज में मुकाबला करने के लिए जमीनी स्तर पर मेहनती और विरोधी दल से लडऩे वाले कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करने पर सबसे अधिक जोर दिया। इस काम में उनका साथ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बखूबी दिया। सिंह ने बीएलए से लेकर मंडलम सेक्टर तक को मजबूत बनाने के लिए जिलों का दौरा किया। इसका फायदा भी हुआ और पहली बार प्रदेश में कांग्रेस जमीनी स्तर पर मजबूती से खड़ी हो गई।
गौरतलब है कि विधानसभा से सत्ता वापसी की राह देख रही कांग्रेस इस बार भाजपा के अंदाज में ही चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं। यही कारण है कि कांग्रेस ने संगठन को ग्राउंट लेवल पर मजबूत करने पर सबसे अधिक जोर दिया है। पहली बार पार्टी ने लगभग 63 हजार बूथ लेवल एजेंट नियुक्त किए हैं। इसके साथ ही 4500 मंडल और 13400 सेक्टरों में कार्यकर्ताओं की फौज तैयार की है। प्रदेश में पहली बार ऐसा होगा जब बीएलए से लेकर मंडल, सेक्टर तक में कांग्रेस के कार्यकर्ता तैनात होंगे। इनकी मॉनिटरिंग के लिए जिले में संगठन मंत्री की नियुक्ति भी की गई है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी पुरानी है। दोनों को लेकर बातें भले ही कुछ भी की जाती हों, लेकिन वे न केवल एक-दूसरे को समझते हैं, बल्कि मिलकर भाजपा से मुकाबला भी कर रहे हैं। कमलनाथ जहां चुनाव की रणनीति, प्रबंधन सहित अन्य कार्य संभाल रहे हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मैदानी मोर्चा संभाल रखा है। लगातार हार वाली 66 सीटों का विश्लेषण और रिपोर्ट कमलनाथ को सौंपने के बाद अब दिग्विजय सिंह अनुसूचित जाति की के लिए सुरक्षित 35 सीटों पर फोकस कर रहे हैं। यही नहीं दोनों नेता मंडलम- सेक्टर की बैठक भी लगातार ले रहे हैं। कमलनाथ भी अब यह बाता जोर देकर कहते हैं कि आज मप्र का कांग्रेस संगठन सबसे मजबूत है। वह कहते हैं कि कांग्रेस यदि मप्र में जीवित है तो कमलनाथ के कारण नहीं जो कार्यकर्ता सामने बैठे हैं, उनके कारण जीवित है। बहुत से प्रदेश मैंने देखे, पर ऐसा संगठन पूरे देश में नहीं है। मप्र कांग्रेस का संगठन सबसे मजबूत संगठन है और कांग्रेस की नींव ब्लाक कांग्रेस, मण्डलम, सेक्टर के सदस्य हैं और ब्लाक मण्डल सेक्टर के कार्यकर्ता ही संगठन की असली ताकत है। दरअसल, सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में बूथ, सेक्टर और मंडलम की कार्यप्रणाली और उनका सत्यापन का काम जिले में तैनात संगठन मंत्री करते हैं। इनकी रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस और कमलनाथ के कार्यालय को भेजी जाती है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही मंडलम और ब्लॉक स्तर के पदाधिकारियों की विदाई और तैनाती तय होती है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने संगठन मंत्रियों से कहा है कि जो भी पदाधिकारी जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रहे हैं या फिर नाम के लिए बने हुए हैं, उन्हें हटाकर उनके स्थान पर काम करने वाले नेताओं की नियुक्तियां की जाए। इसके साथ ही बड़े नेताओं के जिले में जाने पर इसकी सूचना मंडलम, सेक्टर और बीएलए को दी जाती है। इससे सक्रिय और निष्क्रिय कार्यकर्ताओं की सूची भी संगठन को मिल जाती है।
आप बढ़ाएगी कांग्रेस की परेशानी
केंद्र में विपक्षी दलों का गणबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्ल्युसिव एलायंस ‘इंडिया’ बनने के बाद आम आदमी पार्टी ने मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से प्रदेश की 230 सीटों में अपना हिस्सा मांगा है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी का कहना है कि गठबंधन बन गया है तो केंद्र ही नहीं राज्यों के चुनाव में भी कांग्रेस गठबंधन धर्म निभाए। आप मध्यप्रदेश की करीब 50 सीटों पर खुद को मजबूत मानकर चल रही है और वह इतनी ही सीटें कांग्रेस से मांग रही है। आप के इस दावे ने टिकट समीकरण बिगाड़ दिया है बताया जाता है कि इंडिया गठबंधन की जो केंद्रीय बैठक गत दिनों हुई थी, उसमें भी आम आदमी पार्टी की ओर से मध्यप्रदेश सहित जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, वहां सीटों के बंटवारे का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया था। इस मुद्दे के उठने के बाद टिकट वितरण को लेकर कांग्रेस को बैकफुट पर आना पड़ा है। हिंदीभाषी जिन तीन बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नवंबर माह में विधानसभा चुनाव संभावित हैं, उनमें से दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में है और मध्यप्रदेश में फिलहाल मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। कांग्रेस को ये विश्वास है कि वो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दोबारा सरकार बनाएगी, वहीं मध्यप्रदेश में भी 2018 की तरह सत्ता में वापसी करेगी। इसलिए इन तीनों राज्यों की लगभग सभी सीटों पर वह अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही थी, लेकिन आम आदमी पार्टी सहित इंडिया गठबंधन में जुड़े कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों की ओर से सीटों के बंटवारे की मांग उठने के बाद कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष मुश्किल खड़ी हो गई है। आम आदमी पार्टी के मध्यप्रदेश के नेताओं और रणनीतिकारों का कहना है कि पार्टी का नगर निगम चुनाव में प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है। पार्टी ने इन चुनावों में मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र रीवा संभाग और ग्वालियर-चंबल संभाग में अच्छा प्रदर्शन किया था। एक नगर निगम पर कब्जा भी जमाया था। इसलिए पार्टी को इन दोनों संभागों में कांग्रेस पर सीटों के बंटवारे के लिए दबाव बना रही है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी को यह भी भरोसा है कि इंदौर, भोपाल, जबलपुर जैसे बड़े शहरों में भी मतदाताओं का खासा समर्थन मिल सकता है। इसलिए मालवा-निमाड़, महाकौशल और मध्यभारत में भी वह कांग्रेस से सीटें मांगेंगी।
मध्यप्रदेश में अगर कांग्रेस सीटों के बंटवारे को तैयार नहीं होती है तो आम आदमी पार्टी इस बात की भी तैयारी कर रही है कि वो प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। आप नेताओं का दावा है कि कांग्रेस अगर सीटों के बंटवारे पर राजी नहीं होती है तो ना केवल पूरे प्रदेश में आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ेगी, बल्कि ग्वालियर-चंबल और रीवा संभाग में 15 से ज्यादा सीटों पर जीत भी दर्ज करेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच 2018 की ही तरह 2023 में कांटे का मुकाबला होने जा रहा है। ऐसे में सीटों के बंटवारे को लेकर आप और कांग्रेस में सहमति नहीं बनती है और दोनों दल सभी 230 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारते हैं तो इसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है, क्योंकि पिछली बार भी कई सीटोंपर जीत-हार का अंतर कुछ सौ वोट ही रहा है। उधर पंजाब जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है, वहां की पर्यटन मंत्री अनमोल गगन मान ने ऐसा कहकर गठबंधन का सिरदर्द बढ़ा दिया है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी किसी के साथ सीटों का बंटवारा नहीं करेगी। पार्टी मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में सभी सीटों पर अकेली ही चुनाव लड़ेगी। इंडिया गठबंधन बनने के कुछ ही दिनों बाद विधानसभा चुनावों में सीटों को लेकर इस गठबंधन में शामिल दलों के बीच खींचतान सामने आ गई है। सूत्रों का तो यह भी दावा है कि मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी द्वारा करीब 50 सीटों पर अपना दावा ठोंक दिए जाने के बाद कांग्रेस के लिए टिकट वितरण का काम पेचीदा हो चला है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी जहां कई दिन पहले 39 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी कर चुकी है और दूसरी सूची जारी करने की तैयारी कर रही है, वहीं कांग्रेस अब तक अपने उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी नहीं कर पाई है। इसकी एक वजह आम आदमी पार्टी का आंखें दिखाना भी है। हालांकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों के पदाधिकारी इस मामले में कुछ भी खुलकर बोलने से बच रहे हैं। जब टिकट बंटवारे की बात आती है तो कहा जाता है कि हमारा लक्ष्य एक ही है मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता में आने से रोकना, बाकी हम आपसी मुद्दों को वक्त आने पर मिल बैठकर हल कर लेंगे।