जीत का पंजा लगाएंगे शिवराज

शिवराज
  • भाजपा हाईकमान पूरी तरह आश्वस्त

मप्र में भाजपा इतिहास रचेगी। यानी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा मप्र में जीत का पंजा लगाएगी। इसको लेकर भाजपा हाईकमान पूरी तरह आश्वस्त है। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की योजनाएं मप्र के हर व्यक्ति में मन में इस कदर घर कर गई हैं कि भाजपा के इतर वे सोच भी नहीं सकते हैं। इसलिए भाजपा हाईकमान पूरी तरह आश्वस्त है कि मिशन 2023 को पार्टी आसानी से फतह कर लेगी।

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मप्र की जनता के बीच मामा और अब भैय्या उपनाम से लोकप्रिय हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 2005 में राज्य के सीएम बने थे और अब तक उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए 16 साल से अधिक का समय पूरा कर लिया है। इस दौरान शिवराज को विकास के पथ पर इस कदर दौड़ाया है कि आज मप्र अन्य राज्यों के लिए विकास और सुशासन का पैमाना बन गया है। कोरोना महामारी, अंतराष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था में गिरावट, बढ़ती महंगाई के बाद भी मप्र ने तेजी से आर्थिक विकास किया है। तमाम विषम परिस्थियों के बावजुद मप्र का आर्थिक विकास आज देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार ने तमाम संकट के बीच मप्र की विकास दर का किस तरह बढ़ाया है इसका कई राज्य अध्ययन कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने आत्मनिर्भर मप्र का जो अभियान चला रखा है उसने प्रदेश को और सशक्त बनाया है।
गुजरात फिर नार्थ ईस्ट राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपना इकबाल बुलंद करने के बाद भाजपा की निगाह मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर है। भाजपा मप्र में पार्टी की जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त है। लेकिन हाईकमान की कोशिश है कि मप्र में भी गुजरात की तरह ऐतिहासिक जीत दर्ज की जाए। ताकि मप्र को अन्य राज्यों के विधानसभा के साथ ही लोकसभा के चुनाव में मॉडल के रूप में पेश किया जाए। भाजपा को शिवराज के करिश्माई नेतृत्व पर पूरा विश्वास है। दरअसल, भाजपा और संघ को शिवराज का कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है और जीत की ऐतिहासिक इबारत लिखने के लिए एक बार फिर शिवराज को आगे करना पड़ा है। दरअसल, शिवराज सिंह चौहान मप्र के चार बार मुख्यमंत्री बनने वाले पहले नेता हैं। इससे पहले अर्जुन सिंह और श्यामाचरण शुक्ल तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। चौथी बार मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड कायम कर लिया था। पहली बार मुख्यमंत्री बनने से लेकर आज तक शिवराज सरकार ने अनेक योजनाएं शुरू कीं। इन योजनाओं ने राज्य की जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को बरकरार रखा है। मामा राज में अनेक योजनाओं ने जनता का दिल जीता है। अनेक योजनाओं के सफल क्रियान्वयन का श्रेय उन्हें दिया जा सकता है। उनके हर कार्यकाल में विकास के नए-नए आयाम स्थापित हुए।

करिश्माई नेतृत्व और स्थिरता
शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के इकलौते नेता हैं जिनकी लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ रही है। इसे सीएम शिवराज सिंह की काबिलियत कहा जा सकता हैं। जीवन के 64 बसंत पार कर चुके शिवराज का जोश, जुनून और काम करने जज्बा आज भी करिश्माई हैं। हालात चाहे कितने भी विपरीत रहे हो बड़े और कठिन फैसले लेने में वह कभी भी नहीं डगमगाए। उनके अंदर मौजूद राजनीतिक स्थिरता और अनुशासन दूसरों के सामने बड़ी लकीर खींचता रहा। इसकी बदौलत सिलसिलेवार बीते तीन विधानसभा चुनाव में नेतृत्व उन्हीं को सौंपा गया। विधानसभा के अंदर, चाहे कैबिनेट हो या फिर कोई सार्वजनिक मंच, वहां टीम भावना कहीं भी विचलित होती नजर नहीं आई। यह एक बड़ी वजह पार्टी के उसूलों से भी मेल खाती हैं। सरल और सौम्य स्वभाव के नेता के रूप में पहचान बनाने वाले बच्चियों के मामा तो बहनों के भाई मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीमारू राज्य मप्र को विकसित राज्य की पहचान दिलाई है। सशक्त और समृद्ध मप्र बनाने के सपने को साकार करने के लिए शिवराज सरकार हर सम्भव प्रयास कर रही है। केंद्र की मोदी सरकार और राज्य सरकारें दोनों ही महिलाओं एवं रोजगार की तलाश कर रहे युवाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाती हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में केन्द्र और राज्य की डबल इंजन सरकार ने मप्र को अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय बना दिया है। इस अरसे में सडक़, बिजली, पानी, कृषि, पर्यटन, जल-संवर्धन, सिंचाई, निवेश, स्व-रोजगार और अधो-संरचना विकास के साथ उन सभी पहलुओं पर सुविचारित एवं सर्वांगीण विकास की नवीन गाथा लिखी गई जो जन-कल्याण के साथ विकास के लिए जरूरी हैं। आज मप्र विकास की नई बुलंदियों को छू रहा हैं। कोई क्षेत्र अब अछूता नहीं। चाहे बेरोजगार युवाओं के सपने हो या फिर मां की कोख से लाड़ली के जन्म से लेकर उसकी शादी और घर बसाने का इंतजाम। सीएम शिवराज सिंह चौहान के राज में इस राज्य ने नए मप्र की शक्ल ले ली हैं। अतिशयोक्ति नहीं, लेकिन यह कहना इसलिए भी लाजमी है। क्योकि करीब डेढ़ दशक पूर्व पढ़े-लिखे नौजवानों को दूसरे राज्यों में नौकरी के भटकना पड़ता था। कोई हुनर रखने वालों अपनी जीविका चलाने अग्नि परीक्षा देना पड़ता था। पर अब तस्वीर बदल गई हैं। जो सरकार के वादों के साथ उभरी हैं। हर कदम पर तमाम प्रतिस्पर्धाओं के बीच मप्र के युवाओं को अपने राज्य में ही नौकरी के अवसर मिल रहे हैं। वो भी सरकारी। जो इससे वंचित हैं, उनकों स्किल के हिसाब से बेहतरीन रोजगार के अवसर शिवराज सरकार मुहैया करा रही हैं। इससे जरुरतमंद हर नौजवान के चेहरों पर मुस्कान बिखर रही हैं।

मुट्ठी में आधी आबादी
शिवराज सिंह चौहान प्रदेश की आधी आबादी यानि बहनों के भाई और भांजियों के मामा बनकर एक ऐसा चेहरा बनकर उभरे हैं, जिसका मौजूदा हालातों में कोई दूसरा विकल्प नहीं। वर्तमान कार्यकाल खत्म होने और चुनाव के पहले लाड़ली बहना योजना के रूप में मास्टर स्ट्रोक भी लगा दिया। बारहवीं फस्र्ट डिवीजन पास होने वाली भांजियों की स्कूटी योजना भी तुरुप के पत्तों में शामिल हैं। चुनावी साल में जनता को जो चाहिए, उसके लिए कई फैसले लेने का माद्दा, पार्टी की रणनीति की भी भरपाई कर रहा हैं। बीते तीन कार्यकाल में भी इसी तरह महिला हित में कई योजनाएं लागू की। मप्र एक ऐसा राज्य है जहां महिलाओं और युवाओं पर देश में सबसे अधिक कार्य किया जा रहा है। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की तमाम योजनाएं हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिनके द्वारा आधी आबादी को वोटतंत्र में पूरी तरह से तब्दील कर दिया गया है। इसकी वजह है उनकी अपनी कार्यशैली। वे इस आबादी के साथ न केवल भावनात्मक रुप से जुड़े हुए हैं, बल्कि सरकारी योजनाओं के माध्यम से भी उन्हें अपने साथ लगातार जोड़े रखते हैं। इसकी वजह है उनके शासन काल में समय-समय पर इनके लिए शुरु होने वाली एक के बाद एक योजना। प्रदेश में कन्या जन्म से लेकर उसकी शादी और फिर उसके बुढ़ापे तक में आर्थिक मदद के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसके अलावा महिलाओं को राजनैतिक व आर्थिक क्षेत्र में संबल प्रदान करने का श्रेय भी शिवराज को ही जाता है। भाजपा की प्रदेश में ताकत भी इसकी वजह से यही आधी आबादी बनी हुई है। चुनावी साल में शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस मामले में एक कदम आगे बढ़ाते हुए लाड़ली बहना योजना लॉन्च कर दी गई है। यानि की चुनावी साल में यह शिवराज सिंह चौहान का मास्टर स्ट्रोक है, जिसकी काट किसी अन्य दल के पास नही है। इस योजना के सहारे ही अब प्रदेश में भाजपा ने चुनावी जीत की रणनीति तैयार की है। यही वजह है कि लाड़ली बहना योजना को बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी कर ली गई है। चुनाव में सियासी फायदे के लिए इस योजना का भरपूर उपयोग करने के लिए ही प्रदेश में 1700 सभाएं की जाएंगी। इस योजना के तहत प्रत्येक पात्र महिला को एक हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाएंगे। यानी एक साल में 12 हजार रुपए उनके पास आएंगे। महिलाओं के लिए अब तक की यह सबसे बड़ी योजना है। हालांकि मुख्यमंत्री ने इसे बढ़ाकर हर महीने 3 हजार रुपए करने की घोषणा भी की है।
मप्र में महिलाएं बड़ा वोटबैंक हैं। सूबे में मतदाताओं की संख्या 5 करोड़ 39 लाख 85 हजार 876 है। इनमें महिला वोटर ज्यादा हैं। इनकी संख्या 2 करोड़ 60 लाख 23 हजार 733 है, जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ 79 लाख 62 हजार 711 है। शेष अन्य मतदाता हैं। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं को साधने की कोई कोरकसर नहीं छोड़ी। प्रदेश में आधी आबाधी यानि की महिलाओं के लिए कई तरह की योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, इनमें लाड़ली लक्ष्मी योजना , कन्या विवाह योजना से लेकर उनको आर्थिक रुप से सक्षम बनाने की कई योजनाएं हैं। यही नहीं छात्राओं के लिए भी कई तरह की योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। हाल ही में सरकार ने छात्राओं को स्कूटी देने का भी एलान किया है। प्रदेश में जब से लाड़ली बहना योजना लॉच हुई है बहनों की आंखों में आत्म विश्वास भरी मुस्कान दिखने लगी है। प्रदेश में हर महीने पात्र महिलाओं को एक हजार रुपये प्रतिमाह पोषण भत्ता देने वाली लाड़ली बहना योजना इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर साबित हो सकती है। बता दें, प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या 2.60 करोड़ से ज्यादा है। महिला सशक्तीकरण को लेकर भाजपा ने अन्य राजनीतिक दलों के मुकाबले अपनी लकीर हमेशा बड़ी रखी है। महिला सशक्तीकरण के लिए उनके द्वारा चलाई योजनाएं देश के लिए उदाहरण बनी हैं। चुनाव बाद होने वाले सर्वे बताते हैं कि महिलाओं का वोट भाजपा को मिल रहा है। केंद्र व प्रदेश की भाजपा सरकार उनके भरोसे को बनाए रखने के लिए जुटी हुई है। लाड़ली बहना योजना परिवारों की मजबूती और सामाजिक आर्थिक बदलाव का बड़ा कारण सिद्ध होगी।

युवाओं पर फोकस
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के युवाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कई योजनाएं क्रियान्वित कर रखी हैं। युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना शुरू कर है। इसका उद्देश्य प्रदेश में युवाओं को रोजगार हासिल करने के काबिल बनाना है। योजना के जरिये युवाओं को स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग दी जाएगी। ट्रेनिंग के दैरान स्टायपेंड भी मिलेगा। इसके लिए बाकायदा पोर्टल बनाया गया है। कौशल प्रशिक्षण के लिए कम्पनियों और सर्विस सेक्टर को जोड़ा गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि बेरोजगारी भत्ता बेमानी है। नई योजना, युवाओं में क्षमता संवर्धन कर उन्हें पंख देने की योजना है जिससे वे खुले आसमान में ऊंची उड़ान भर सकें और उन्हें रोजगार, प्रगति और विकास के नित नए अवसर मिलें। यह क्रांतिकारी योजना युवाओं का बैसाखी पर चलना नहीं, अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएगी। कार्य सीखने की अवधि में युवाओं को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। दरअसल , प्रदेश में युवाओं का बड़ा वोट बैंक है। प्रदेश में कुल 5.40 करोड़ से अधिक वोटर्स में से दो करोड़ 85 लाख यानी 52 प्रतिशत मतदाता 18 से 40 साल के बीच के हैं। 30 लाख वोटर्स ऐसे हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे। यही हार-जीत की दिशा तय करेंगे। ऐसे में माना जा रहा है की सीखो और कमाओ योजना भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि प्रदेश में आरंभ की गई मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना स्किल डिमांड और स्किल सप्लाय के बीच के गैप को मिटाकर भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस योजना से उद्योगों, सर्विस सेक्टर और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की जरूरत के अनुसार युवाओं को काम सीखने का मौका मिलेगा और व्यावसायिक संस्थानों को काम के लिए रेडी वर्कफोर्स उपलब्ध होगा। यह योजना युवाओं और व्यावसायिक संस्थानों दोनों के लिए ही समान रूप से उपयोगी और लाभकारी है। मुख्यमंत्री का कहना है कि युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देना, उनके साथ न्याय नहीं है। प्रदेश के युवाओं में प्रतिभा और क्षमता है, हम उनका उद्योगों की आवश्यकता के अनुसार कौशल उन्नयन कर युवाओं को प्रदेश के विकास में सहभागी बनाना चाहते हैं। कौशल सीखने के दौरान युवाओं को आर्थिक अभाव न रहे, इस उद्देश्य से स्टायपेंड की व्यवस्था भी की गई है। यह युवाओं को पंख देने की योजना है ताकि वे अपने सपने पूरे करने के लिए ऊंची उड़ान भरने में सक्षम और आत्मनिर्भर बनें।
शिवराज के चौथे कार्यकाल की लाड़ली बहना और मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना चुनाव में गेम चेंजर साबित होंगी। पहले कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने सडक़ निर्माण को प्राथमिकता दी। वहीं दूसरे कार्यकाल में सिंचाई बढ़ाने का कार्य प्रमुखता से किया गया और तीसरे कार्यकाल में विद्युत उत्पादन बढ़ाने और उसके सुचारू प्रदाय पर ध्यान दिया गया। चौथे कार्यकाल में उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल की सुविधाएं बढ़ाने का काम किया। इसके अलावा उन्होंने बेटियों, महिलाओं, मजदूरों समेत समाज के सभी वर्गों के लिए कल्याणकारी नीतियां चलाईं। यही कारण रहा कि उन्होंने अपने हर कार्यकाल में अमिट छाप छोड़ी। अभावग्रस्त परिवारों की सहायता, गरीब परिवार की कन्याओं का विवाह, बच्चों की शिक्षा का प्रबंध, बुजुर्गों की देखभाल और उन्हें तीर्थयात्राएं कराने जैसे कार्यक्रमों ने मुख्यमंत्री का समाज के सभी वर्गों से सीधा संबंध बना दिया।?उद्योगों के लिए उन्होंने कई योजनाएं शुरू कीं। मामा एक ऐसा चेहरा बनकर उभरे जिसका मौजूदा हालात में कोई दूसरा विकल्प सामने दिखाई नहीं दे रहा। यही कारण है कि भाजपा एक बार फिर शिवराज चौहान के करिश्माई नेतृत्व पर दांव लगाने जा रही है। बेटियां और महिलाएं उनकी मुरीद हैं ही, ओबीसी वर्ग भी उनसे बहुत खुश है। आदिवासी वर्ग भी शिवराज शासन से काफी संतुष्ट है। शिवराज चौहान की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उनकी छवि अब तक बेदाग रही है। भाजपा ने राज्य में उनके चेहरे पर ही हिन्दुत्व का अलग लोक स्थापित किया। मुख्यमंत्री ने विकास यात्रा करके गांव-गांव तक अपनी पहुंच बनाई है। जीत का पंजा लगाने के लिए भाजपा को शिवराज ही जरूरी लग रहे हैं।

ओबीसी कार्ड, एससी-एसटी कार्ड
मुख्यमंत्री शिवराज की नेतृत्व क्षमता आंकने वाली भाजपा के सामने मप्र का ओबीसी वर्ग का बड़ा जनाधार भी है। खुद शिवराज इसी वर्ग से आते है। बूथ लेबल से लेकर निगम मंडल और मंत्रीमंडल तक इस कैटेगिरी को यह अहसास कभी नहीं होने दिया कि उनका कोई नहीं। हिस्सेदारी तय करते हुए इस वर्ग को खुश रखने गांव-गांव पहुंचे। भाजपा जानती है कि प्रदेश में 40 से 45 फीसदी इस वर्ग का वोटर जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाएगा। आदिवासी वर्ग को इसी सरकार ने पेसा कानून का चाबुक भी थमाया है। इस वर्ग के बिफरे नेताओं को संतुष्ट करने के पीछे भी शिवराज का ही चेहरा रहा है। लिहाजा भाजपा रिस्क लेना नहीं चाहती कि वर्ग विशेष का चहेते चेहरे की जगह कोई और दूसरा चेहरा सामने आए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मप्र के इकलौते ऐसे नेता हैं जिनकी हर वर्ग, हर जाति, हर धर्म के लोगों में मजबूत पकड़ है। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य में बड़ा वोट बैंक रखने वाले लिंगायत समुदाय के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर एसआर बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया था। कर्नाटक विधानसभ चुनाव के नतीजें बताते है चुनाव में लिंगायत का बड़ा वोट बैंक भाजपा से खिसक गया, जिसके चलते चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। वहीं अगर मप्र की राजनीति की बात की जाए तो मप्र में कुल वोटर्स में ओबीसी वोटर्स की संख्या 48 फीसदी है और शिवराज सिंह चौहान राज्य में ओबीसी के सबसे बड़े चेहरे है। पिछले साल हुए पंचायत और निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस अंदाज में सरकार की ओबीसी हितैषी छवि को जनता के सामने रखा उससे ठीक चुनाव से पहले वह सरकार की ओबीसी हितैषी छवि का एक बड़ा संदेश देने में कामयाब हो गए है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सबसे बड़ी खासियत यह है की वे हर वर्ग के मर्म को जानते हैं। इसीलिए उन्होंने अपने कार्यकाल में हर वर्ग के लिए योजनाएं क्रियान्वित कर रखी है।
गौरतलब है कि साल 2018 में 230 विधानसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में भाजपा के खाते में 109 सीटें आई थीं। जबकि, 114 सीटों पर जीत के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। बीते चुनाव में आरक्षित 82 सीटों पर भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ था और पार्टी केवल 34 सीटें ही की थी। इनमें 18 एससी और 16 एसटी शामिल थी। 2013 में यह संख्या 59 सीटों पर थी। उस दौरान भाजपा ने 31 एसटी और 28 एससी सीटें अपने नाम की थीं। ऐसे में भाजपा की कोशिश है इस बार के चुनाव में इन वर्गों की अधिक से अधिक सीटों को जीता जाए।

बेदाग छवि, विरोधियों के भी चहेते
शिवराज की सबसे बड़ी खूबी उनकी बेदाग छवि हैं। 16 साल के कार्यकाल में व्यक्तिगत तौर पर घोटाले-घपले का ऐसा आरोप कभी नहीं लगा, जिससे पार्टी को नीचा देखना पड़ा हो। राजनीतिक रूप में जो मुद्दे छाए भी रहे तो उनका डटकर मुकाबला करते हुए यह सिद्ध भी किया कि प्रदेश में भाजपा करप्शन फ्री पार्टी हैं। इसी वजह से उन्होंने कई विरोधियों के दिल में भी वह जगह बनाई हुई है। व्यापम, किसान गोली कांड का मुद्दा हो या फिर धार्मिक दंगों के मुद्दे, उसकी असल वजह सदन से लेकर सडक़ तक साबित की। नतीजतन भाजपा का शिवराज सिंह को ही बिग फेस बताकर मिशन 2023 में नजर आ रही हैं। कमलनाथ अक्सर अपने भाषणों में सीएम शिवराज सिंह चौहान को घोषणावीर बताते हैं। वे उनकी घोषणाओं को चुनावी जुमला बताकर खारिज करते हैं, लेकिन यह भी सच्चाई है कि शिवराज की लोकप्रियता का यह एक बड़ा कारण है। वे लोकलुभावन घोषणाएं करने में माहिर हैं और कमलनाथ को इसकी काट ढूंढनी होगी। समस्या यह है कि सरकार के मुखिया के रूप में शिवराज अपनी घोषणाओं को तत्काल लागू कर सकते हैं, लेकिन कमलनाथ केवल वादा कर सकते हैं। उन्हें आम जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि सरकार बनने पर उनकी घोषणाओं पर अमल किया जाएगा। शिवराज सिंह चौहान सबसे लंबे समय तक मप्र के मुख्यमंत्री बने रहे, इसका सबसे बड़ा कारण उनका ओबीसी होना है। राज्य में करीब 50 फीसदी आबादी ओबीसी की है। शिवराज के चेहरे के सहारे उनके अधिकांश वोट भाजपा के खाते में आते हैं। दूसरी ओर, कमलनाथ सवर्ण वर्ग से हैं। कांग्रेस के पास जो ओबीसी नेता हैं, उनका प्रभाव खास नहीं है। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री रहते ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देकर उन्हें कांग्रेस से जोडऩे की कोशिश की थी, लेकिन यह मुद्दा अब भी कानूनी दांवपेंचों में उलझा हुआ है। चुनाव के दौरान वे इसकी क्या काट ढूंढते हैं, यह कांग्रेस का भविष्य तय करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों जिस आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई दे रहे है, वह इस बात का साफ संकेत है कि अब पार्टी उनके ही नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरने जा रही है। यानी कर्नाटक में भाजपा की हार के बाद मप्र में शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनावी मैदान में उतरना भाजपा की जरूरी मजबूरी बन गया है। संघ और भाजपा आलाकमान को पूरा विश्वास है कि शिवराज ही मप्र में इस बार रिकॉर्ड जीत दिलाएंगे। विधानसभा चुनाव में भाजपा डबल इंजन की सरकार के नारे के साथ चुनावी मैदान में है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार अपने लोकलुभावन फैसले जैसे मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना, मुख्यमंत्री युवा कौशल कमाई योजना के साथ मजबूत सरकार की छवि गढऩे का पूरा प्रयास कर रहे है। सौम्य और उदारवादी छवि वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव से पहले ठीक पहले भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों मे फैसला ऑन द स्पॉट कर रहे है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मप्र के इकलौते ऐसे नेता हैं जिनकी हर वर्ग, हर जाति, हर धर्म के लोगों में मजबूत पकड़ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सबसे बड़ी खासियत यह है की वे हर वर्ग के मर्म को जानते हैं। इसीलिए उन्होंने अपने कार्यकाल में हर वर्ग के लिए योजनाएं क्रियान्वित कर रखी है। इसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि प्रदेश में जातिगत आधारित क्षेत्रीय दल अस्तित्व के लिए करीब आने में संकोच कर रहे हैं और यही भाजपा के लिए शुभ संकेत दे रहा है। यानी वोटों में बिखराव की दशा में भाजपा के सामने सीधे मुकाबले की चुनौती कमजोर पड़ेगी और जीत की राह आसान होगी। दरअसल, मप्र में भीम आर्मी और जयस (जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन) जैसे संगठन चुनावों में ताल ठोंकने की तैयारी में हैं। हालांकि, सियासी हालात कुछ और ही संकेत कर रहे हैं, जिसके मुताबिक इन क्षेत्रीय दलों की सक्रियता और अलग-अलग चुनाव लडऩे से भाजपा को विधानसभा चुनाव में बड़ा लाभ होने की संभावना है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में जयस की कांग्रेस से नजदीकी के कारण मालवांचल में एसटी वर्ग के वोट का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के खाते में चला गया था। वहीं, ग्वालियर- चंबल में एससी वर्ग का वोट एट्रोसिटी आंदोलन की नाराजगी के चलते भाजपा से दूर हटकर कांग्रेस के पास चला गया था। सीधे मुकाबले में वोट के एकतरफा मुड़ जाने का सीधा नुकसान भाजपा को हुआ और उसे सत्ता गंवानी पड़ी थी, लेकिन अब जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है, वह भाजपा को राहत देने वाली है। क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस से दूरी बना ली है और कांग्रेस ने भी अपने स्तर पर बिना किसी दल से हाथ मिलाए चुनाव में उतरने का मन बना लिया है। ऐसे में कई सीटों पर सीधे मुकाबले के बजाय बहुकोणीय टकराव की तस्वीर उभरेगी। विश्लेषक मानते हैं कि जिन वोटों के घुमाव ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया था, वही जब कांग्रेस के खिलाफ होंगे तो उसे नुकसान और भाजपा को फायदा होगा।

Related Articles