
प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट में हुआ खुलासा…
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में शिक्षा के उत्थान के लिए सरकार ने कई स्तरों पर काम किया है। लेकिन उसके बाद भी स्थिति यह है कि प्रदेश में 17 फीसदी लड़कियां स्कूल नहीं पहुंच पाती है। इसका खुलासा शिक्षा की वार्षिक स्थिति पर जारी रिपोर्ट एएसईआर 2022 में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्कूल न जाने वाली लड़कियों का अनुपात 2022 में अब तक के सबसे निचले स्तर दो प्रतिशत पर आ गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समग्र गिरावट के बावजूद, तीन राज्य – मप्र, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ 10 फीसदी से अधिक लड़कियों के स्कूल से बाहर होने के कारण चिंता का विषय थे।
स्कूल न जाने वाली लड़कियों का कुल अनुपात 2018 में 4.1 फीसदी और 2006 में 10.3 फीसदी था। यह और भी गंभीर है क्योंकि ,राष्ट्रीय स्तर पर अब 15 से 16 आयु वर्ग की बड़ी लड़कियों की संख्या कम है जो स्कूल से बाहर हैं। हालांकि, चिंता का कारण तीन राज्य हैं, मप्र, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़, जिसमें यह आंकड़ा अभी भी अधिक हैं। यहां इस आयु वर्ग की अधिक लड़कियां स्कूलों से बाहर हैं। कोविड काल में बच्चों की पढ़ने की क्षमता पर बुरा असर पड़ा है। मध्यप्रदेश में कक्षा 3 के बच्चों से जब कक्षा 2 का पाठ पढ़वाया गया तो सिर्फ 12.1 फीसदी विद्यार्थी ही पाठ पढ़ सके। वर्ष 2018 में यह आंकड़ा 17.6 प्रतिशत था।
आरटीआई के बाद भी मप्र पिछड़ा
एएसईआर के मुताबिक, देशभर में छह से 14 वर्ष तक के करीब 98.4 प्रतिशत छात्रों ने स्कूलों में दाखिला लिया है। 2018 में सरकारी स्कूलों में 65.6 प्रतिशत छात्रों ने दाखिला लिया था। राष्ट्रीय स्तर पर 2008 में 15 से 16 वर्ष आयु वर्ग की 20 फीसदी से अधिक लड़कियों ने स्कूल में दाखिल नहीं लिया था। 10 साल बाद 2018 में स्कूल में दाखिला नहीं लेने वाली इस उम्र की लड़कियों की तादाद घटकर 13.5 फीसदी जबकि 2022 में 7.9 फीसदी रह गई है। देश में केवल तीन राज्य ऐसे हैं, जहां 10 फीसदी से अधिक लड़कियां अब भी स्कूल नहीं जा रही हैं। इनमें मध्यप्रदेश सबसे शीर्ष पर है, जहां 17 फीसदी लड़कियां स्कूल नहीं जा रही हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में स्कूल में दाखिला नहीं लेने वाली लड़कियों की तादाद 15 फीसदी, जबकि छत्तीसगढ़ में 11.2 फीसदी है। इससे पहले 2018 में ऐसा सर्वेक्षण किया गया था। वर्ष 2006 से 2014 तक सरकारी स्कूलों में नामांकित 6-14 साल तक के बच्चों के अनुपात लगातार गिरावट देखी गई। वर्ष 2014 में यह आंकड़ा 74.9 प्रतिशत था। अब ताजा रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों का अनुपात वर्ष 2018 में 68.6 से बढक़र 2022 में 70 प्रतिशत हो गया है।
उपस्थिति में भी मप की स्थिति चिंताजनक
देशभर के 616 जिलों के सरकारी स्कूलों में किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि उपस्थिति के मामले में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और त्रिपुरा के विद्यार्थी सबसे पीछे हैं। वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु ऐसे राज्य हैं, जहां सबसे अधिक उपस्थिति दर्ज की गई है। राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण से यह भी खुलासा हुआ है कि 72.7 फीसदी विद्यार्थी सरकारी स्कूल जाते हैं। सर्वेक्षण से यह भी खुलासा हुआ है कि 11 से 14 वर्ष की लड़कियां जो स्कूल नहीं जाती हैं, उनमें कमी आई है। 2018 में स्कूल नहीं जाने वाली चार फीसदी लड़कियों की तुलना में 2022 में आंकड़ा दो फीसदी कम हुआ है। इसी प्रकार 15 से 16 वर्ष आयु वर्ग की लड़कियों के स्कूल दाखिला नहीं लेने की तादाद भी घटी है।
मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव
प्रदेश के स्कूलों में पहले की अपेक्षा मूलभूत सुविधाओं जैसे टॉयलेट, पेयजल आदि की स्थिति भी बिगड़ी है। निजी ट्यूशन का चलन लगातार बढ़ रहा है। रिपोर्ट के लिए मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में 50 जिलों के 1499 गांवों में 29,829 घरों और 3 से 16 आयु वर्ग के 59 हजार 939 बच्चों का सर्वेक्षण किया गया। कोविड के चलते यह रिपोर्ट चार साल बाद जारी हुई है।