
- सरकारी स्कूलों से दूर भाग रहे बच्चे!
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र के सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है। किस तरीके से स्कूलों के हालात हर दिन खराब होते जा रहे हैं। हालांकि एक हकीकत यह है कि प्रदेश के गरीब परिवारों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते हैं, लेकिन, स्कूलों के आंकड़े कुछ अच्छे नहीं हैं। स्कूल शिक्षा विभाग में एक जानकारी एकत्रित की गई है, जिसमें दिसंबर तक डाटा सामने आया है। इसके अनुसार मप्र में केवल एक साल में सरकारी स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या बीते साल से 7.44 लाख कम रही। इतने बच्चे कहां गए, स्कूल के पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। यदि बीते साल का आंकड़ा भी इसमें जोड़ लें तो यह संख्या करीब 14 लाख पार कर जाएगी।
सत्र 2026-27 से प्रदेश के करीब पांच हजार सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे। इसका कारण यह है कि इन स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या काफी कम है। इन स्कूलों के विद्यार्थियों को एक किलोमीटर के दायरे में नजदीकी स्कूलों में स्थानांतरित किया जाएगा और शिक्षकों को दूरस्थ स्कूलों में भेजा जाएगा। दरअसल प्रदेश के 20 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं। 4,128 स्कूलों में एक शिक्षक ही पदस्थ हैं। वहीं 5,179 स्कूलों में प्रवेशरत विद्यार्थियों की संख्या 10 से कम है। यह आंकड़े यूडाइस की रिपोर्ट में सामने आया है। वहीं प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पिछले साल के मुकाबले इस साल करीब साढ़े तीन लाख विद्यार्थियों की संख्या कम दर्ज हुई है। यही नहीं, हर साल विद्यार्थियों की संख्या कम होती जा रही है।
आदिवासी जिलों की स्थित चिंताजनक
सरकारी स्कूलों में कम प्रवेश लेने के मामले में आदिवासी जिले सबसे आगे हैं। इनमें बड़वानी में करीब 21 हजार, बैतूल में करीब 14 हजार, सिंगरौली में करीब 17 हजार 500, खंडवा में 14740, अलीराजपुर में लगभग 16 हजार, झाबुआ में 24992 और धार में 32348 बच्चों ने स्कूल से दूरी बनाई। यह स्थिति तब है, जबकि सीएम ने प्रवेश बढ़ाने का टारगेट स्कूलों को दिया था। वर्ष 2024-25 के मुकाबले 2025-26 में करीब 3.44 लाख बच्चों के कम प्रवेश हुए हैं। सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने कहा था कि विद्यार्थी विहीन और 10 से कम प्रवेश वाले स्कूलों को बंद किया जाएगा। विभाग ने बच्चों के स्कूल छोडऩे के कारणों की जानकारी जुटाई तो उसमें मॉनीटरिंग करने वाले अफसरों की कमी भी सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार स्कूल शिक्षा विभाग में जिला स्तर पर जिला परियोजना समन्वयक व जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में करीब 35 प्रतिशत पद रिक्त हैं। इसकी वजह से निरीक्षण, मॉनिटरिंग व स्कूलों की वास्तविक रिपोर्ट समय पर नहीं आ पा रही है। भोपाल में भी डीपीसी की जिम्मेदारी राजस्व सेवा के अफसर के पास है और यहां इस साल करीब 51 हजार बच्चों ने सरकारी स्कूलों में कम प्रवेश लिया है।
3500 स्कूलों में एक भी प्रवेश नहीं
हाल यह है कि मप्र के 55 जिलों में इस साल साढ़े तीन हजार सरकारी स्कूलों से अधिक में एक भी बच्चे ने प्रवेश नहीं लिया है। वहीं 6500 से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं, जिनमें बच्चों का एडमिशन दहाई का अंक भी नहीं छू सका है। जब अधिकारी निरीक्षण करने जाते हैं तो उन्हें ही बताया जाता है कि इतने ही बच्चे हैं। अब इसको रोकने के लिए विभाग के अधिकारियों ने हेडमास्टर और शिक्षकों को कहा है कि वे स्कूल छोडऩे वाले बच्चों के नाम की लिस्ट नोटिस बोर्ड पर चस्पा करें। इस मामले में विभागीय मंत्री उदय प्रताप सिंह का कहना है कि ड्रापआउट के कारण जानने के लिए लगातार हम प्रयास कर रहे हैं और सुधार भी हो रहा है।
