श्रीमंत के 10 समर्थक पूर्व विधायकों को मिलेगी सत्ता में भागीदारी

श्रीमंत

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। बीते साल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में अपने समर्थक नेताओं के साथ आने वाले श्रीमंत भले ही मध्यप्रदेश की सत्ता से दूर हों, लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से उनका सत्ता में दबदवा बढ़ता ही जा रहा है। फिलहाल सरकार में अभी उनके समर्थक मंत्रियों की संख्या एक दर्जन है , लेकिन जल्द ही उनके दस और समर्थकों को सत्ता व संगठन में भागीदारी मिलना तय मानी जा रही है। दरअसल बीते दिन राजधानी से दूर एकांतवास में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, संगठन महामंत्री सुहाष भगत और सह संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा के बीच हुई बैठक में तय किया गया है कि श्रीमंत के आधा दर्जन समर्थकों को विभिन्न निगम मंडलों में और शेष को संगठन में पदाधिकारी जल्द ही बनाकर जिम्मेदारी दी जाए।  जिन श्रीमंत समर्थकों को निगम मंडलों की कमान दी जानी है उनमें लगभग सभी पूर्व विधायक हैं और दलबदल के बाद हुए उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। गौरतलब है कि प्रदेश में अधिकांश निगम मंडल भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही रिक्त बने हुए हैं, जबकि भाजपा प्रदेश संगठन में भी मीडिया की टीम का गठन अटका हुआ है। फिलहाल अपवाद स्वरूप वेयरहाउसिंग कारपोरेशन ही ऐसा संस्थान है, जिसमें अब तक राजनैतिक नियुक्ति की गई है। यह नियुक्ति भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए पूर्व विधायक राहुल लोधी की उस समय की गई थी जब वे दलबदल कर आए थे और उनकी इस नियुक्ति के लिए सीएम पर प्रहलाद पटेल से लेकर उमाभारती  तक का दवाब बना हुआ था। हालांकि राहुल बाद में विधानसभा का चुनाव हार गए। बैठक की खास बात यह है कि इसमें सबसे पहले श्रीमंत समर्थकों की नियुक्ति करने पर सहमति बनी है। इससे यह तय हो गया है कि श्रीमंत समर्थकों को निगम मंडल में कमान देने के बाद जब अन्य निगम मंडल रिक्त रहेंगे तभी भाजपा के मूल नेताओं को मौका मिल सकेगा। इन नियुक्तियों का दौर अगले सप्ताह से शुरू हो जाएगा।  खास बात यह है कि इनकी नियुक्तियों की सूची एक साथ जारी करने की जगह अलग-अलग करने पर सहमति बनी है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री को हाल ही में तीन दिनों के अंदर दो बार दिल्ली जाना पड़ा , जिसमें उनके द्वारा पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह के अलावा अन्य केन्द्रीय मंत्रियों से मुलाकात की गई है। इसके पहले मुख्यमंत्री ने 23 जुलाई को भाजपा दफ्तर पहुंचकर पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री शिव प्रकाश से भी इसी संदर्भ में मुलाकात की थी। यह बैठक करीब आधे घंटे तक चली थी।
संगठन के रिक्त पदों पर भी होगी ताजपोशी
बैठक में निगम मंडलों में नियुक्ति के अलावा अब संगठन में रिक्त चल रहे पदों पर भी नियुक्ति करने पर सहमति बन गई है। फिलहाल प्रदेश संगठन की मीडिया की टीम का गठन किया जाना है। इसमें प्रवक्ताओं के साथ ही मीडिया पैनलिस्टों के नाम भी शामिल हैं। सूत्रों की माने तो मीडिया टीम में श्रीमंत के करीब चार समर्थकों को भागीदारी देने का निर्णय कर लिया गया है। इनमें दो पद प्रवक्ताओं के और दो नाम मीडिया पैनलिस्ट की सूची में शामिल किए जाएंगे।
मूल भाजपा नेताओं के लिए यह फॉर्मूला तय
निगम मंडलों की कमान देने के लिए तय किए गए फार्मूला के तहत यह तय किया गया है कि मूल भाजपा के उन नेताओं को ही निगम मंडलों के अलावा विकास प्राधिकारणों में ही मौका दिया जाएगा जिन्हें संगठन में पद नहीं दिए गए हैं। इसके अलावा उन नेताओं को भी सत्ता में भागीदारी नहीं देने का फैसला किया गया है, जिन्हें प्रदेश कार्यसमिति, जिला और संभाग प्रभारी एवं केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं से संबंधित प्रमुख योजनाओं, प्रकोष्ठ और मोर्चों में शामिल किया जा चुका है। अब सिर्फ उन भाजपा नेताओं को ही मौका दिया जाएगा जिन्हें योग्यता होने के बावजूद किन्हीं कारणों से विधानसभा का टिकट नहीं मिल पाया था। इसके बाद अब शेष बचे दावेदारों और वरिष्ठ नेताओं के समर्थकों के नामों पर मंथन कर उन्हें निगम मंडल में पद दिए जाने का फैसला किया गया है।
इन समर्थकों को मिलेगी कमान
बताया जा रहा है कि जिन श्रीमंत समर्थकों को निगम मंडलों की कमान देने का तय किया गया हैं उनमें इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया, मुन्ना लाल गोयल, जसवंत जाटव छितरी, रक्षा सिरोनिया, मनोज चौधरी, एंदल सिंह कंसाना, रघुराज सिंह कंसाना,रणवीर जाटव के अलावा जसपाल सिंह उर्फ जज्जी का भी नाम बताया जा रहा है। इसके अलावा भी एकाध निर्दलीय को भी मौका दिया जा सकता है। इन पूर्व विधायकों को लघु उद्योग निगम, पर्यटन निगम, डीडीए, हाउसिंग बोर्ड, ऊर्जा विकास निगम, पाठ्य पुस्तक निगम और एमपी एग्रो की कमान दी जाएगी। इसके अलावा संगठन में मोर्चा की टीम प्रवक्ता पैनलिस्ट प्रकोष्ठ के रिक्त पदों पर अगले सप्ताह से नियुक्तियों का सिलसिला शुरू हो सकता है।
श्रीमंत समर्थकों के पक्ष में लगातार बना रहे थे दबाव
बताया जाता है कि प्रदेश में हुए 28 सीटों के उपचुनाव के परिणाम आने के बाद से ही श्रीमंत प्रदेश सरकार पर अपने हार चुके पूर्व विधायकों को सत्ता में भागीदारी दिलाने के  लिए उन्हें निगम मंडलों की कमान दिलाने के लिए दबाव बनाए हुए थे। यही वजह है कि वे जब भी प्रदेश में खासतौर पर भोपाल दौरे पर आते थे, इस पर चर्चा जरुर संगठन और सरकार के मुखिया से मुलाकात में करना नहीं भूलते थे। दरअसल यह हारे हुए श्रीमंत समर्थक विधायकों की वजह से ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरी थी और भाजपा को सत्ता में आने का मौका मिला है।

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