बजट के अभाव में शुरू नहीं हो पाईं 10 नर्मदा परियोजनाएं

नर्मदा परियोजनाएं
  • परियोजनाओं का काम पूरा न होने से कमजोर पड़ सकती है मप्र की पानी की दावेदारी

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    नर्मदा नदी मप्र की जीवन रेखा है। नर्मदा का पानी सिंचाई, बिजली उत्पादन और पेयजल के रूप में इस्तेमाल होता है। लेकिन गुजरात के साथ नर्मदा नदी से पानी के बंटवारे में प्रदेश की दावेदारी कमजोर पड़ती जा रही है। राज्य सरकार अपने हिस्से के 18.25 एमएएफ (मिलियन एकड़ फिट) पानी का उपयोग अब तक नहीं कर पाई है। इसकी वजह है नर्मदा नदी पर बनने वाली परियोजनाओं के निर्माण में लेतलाली। कुछ परियोजनाएं आधी-अधूरी हैं तो बजट के अभाव में 10 परियोजनाएं शुरू ही नहीं हो पाई हैं।
    आधी-अधूरी परियोजनाओं के कारण मध्य प्रदेश नर्मदा नदी से वर्ष 2024 तक अपने हिस्से का 18.24 एमएएफ पानी नहीं ले पाएगा। दरअसल, दो एमएएफ पानी लेने के प्रोजेक्ट के टेंडर ही नहीं हो पाए हैं।  करीब एक दर्जन प्रोजेक्ट का काम लगभग 70 फीसदी अधूरा है। भुगतान के अभाव में ठेकेदारों ने प्रोजेक्ट की गति धीमी कर दी है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने पैसों के अभाव में आठ बड़े प्रोजेक्ट के लिए टेंडर रोक रखा है। इन प्रोजेक्ट की लागत करीब 27 हजार करोड़ के आसपास आएगी।  टेंडर जारी होने पर 150 करोड़ रुपए तत्काल लगेंगे। इन प्रोजेक्ट को पूरा होने में चार से पांच साल लग सकते हैं, क्योंकि वन पर्यावरण सहित तमाम तरह की अनुमतियां लेनी होंगी। इन प्रोजेक्ट के पूरे होने पर प्रदेश में करीब पांच लाख हेक्टेयर में सिंचाई होगी। भुगतान नहीं होने से ठेकेदारों ने काम की गति धीमी कर दी है। ठेकेदारों को हर माह  300 करोड़ का भुगतान हो रहा है, जबकि 800 करोड़ का भुगतान चाहिए। नर्मदाघाटी विकास विभाग का बजट ही 3500 करोड़ है।
    21 सिंचाई परियोजनाओं में से एक भी पूरी नहीं
    दरअसल, इसके लिए प्रस्तावित 21 सिंचाई परियोजनाओं में से एक भी पूरी नहीं हुई है। इनमें से 10 परियोजनाओं को पिछले साल (वर्ष 2020) में मंजूरी दी गई थी, पर अब तक इनके टेंडर तक जारी नहीं हुए हैं। जबकि पहले से निर्माणाधीन 11 परियोजनाओं का निर्माण कार्य सरकार की माली हालत खराब होने के कारण अटका हुआ है। इन परियोजनाओं के ठेकेदारों को समय से भुगतान नहीं हो पा रहा है। ज्ञात हो कि पानी बंटवारे की तय समय सीमा के मुताबिक नर्मदा जल बंटवारा न्यायाधिकरण (नर्मदा वॉटर डिस्यूट ट्रिब्यूनल) वर्ष 2024 में अपने 41 साल पुराने फैसले पर पुनर्विचार करेगा। तब तक अपने हिस्से का 18.25 एमएएफ पानी का उपयोग मध्य प्रदेश नहीं कर पाया, तो करीब 3.7 एमएएफ पानी गुजरात के खाते में चला जाएगा। नर्मदा जल बंटवारा न्यायाधिकरण ने वर्ष 1979 में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच नर्मदा के पानी का बंटवारा किया था। 10 साल के अध्ययन और दोनों राज्यों की सुनवाई के बाद न्यायाधिकरण ने मध्य प्रदेश को 18.25 एमएएफ पानी का उपयोग करने की अनुमति दी थी, पर 41 सालों में राज्य बंटवारे का पानी खर्च नहीं कर पाया। अब वर्ष 2024 में न्यायाधिकरण अपने फैसले पर पुनर्विचार करने वाला है। इसे देखते हुए राज्य सरकार अपने हिस्से के पानी का उपयोग करना चाहती है। इसके लिए पिछले पांच साल में 21 परियोजनाओं की घोषणा की गई। जिनमें से एक भी चालू नहीं हो पाई है। सूत्र बताते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर हो चुकी सरकार इन परियोजनाओं के लिए बजट नहीं दे पा रही है।
    परियोजनाओं के निर्माण की गति बेहद धीमी
    नर्मदा नदी पर प्रस्तावित प्ररियोजनाएं या तो आधी-अधूरी हैं या शुरू ही नहीं हो पाई हैं।  जिन परियोजनाओं का काम चल रहा है उनकी गति काफी धीमी है। बरगी व्यपवर्तन परियोजना का काम चल रहा है। इससे जबलपुर, कटनी, रीवा, सतना जिले में 2.45 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होगी। आईएसपी कालीसिंध परियोजना के चरण एक का काम चल रहा है। इससे देवास, सीहोर शाजापुर जिले में एक लाख हेक्टेयर में सिंचाई  होगी।  इसके चरण दो से राजगढ़ और शाजापुर जिले में एक लाख हेक्टेयर में सिंचाई का लक्ष्य है। नर्मदा पार्वती चरण एक-दो में शाजापुर, सीहोर जिले में एक लाख हेक्टेयर में सिंचाई होगी। वहीं चरण तीन और चार में सीहोर, शाजापुर में एक लाख हेक्टेयर में सिंचाई का लक्ष्य रखा गया है। छीपानेर माइक्रो परियोजना से सीहोर, देवास जिले की 53 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित होना है। नागरवाड़ी एमआईपी से बड़वानी और खरगोन जिले में 47 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होना है। नर्मदा-क्षिप्रा बहुउद्देश्यीय परियोजना से उज्जैन जिले में 30 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होगी। नर्मदा-झाबुआ-पेटलावद से थांदला-सरदारपुर माइक्रो परियोजना से धार और झाबुआ जिले में 58 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होना है। छैगांवमाखन माइक्रो परियोजना से खंडवा जिले में 35 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होना है। मोरण्ड गंजाल परियोजना से खंडवा, होशंगाबाद, हरदा, जिले में 50 हजार हेक्टेयर सिंचित होना है। बरगी का पानी सतना लाने 12 किमी लंबी स्लीमनाबाद टनल का निर्माण 11 साल से चल रहा है, लेकिन 6.6 किमी सुरंग बन पाई है। मार्च में सीएम ने 2023 तक निर्माण पूरा करने हर माह 275 मीटर सुरंग बनाने का लक्ष्य दिया था। अभी भी प्रतिमाह 200 मीटर की औसत से निर्माण हो रहा है।
    लक्ष्य बड़ा…कई परियोजनाएं शुरू नहीं
    सभी परियोजनाओं से नर्मदा नदी से लगभग 25 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित होना है। इसमें 13 लाख हेक्टेयर सिंचाई के लिए जल संसाधन विभाग के जरिए विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है। जल संसाधन विभाग के भी कई निर्माण कार्य काफी पीछे चल रहे हैं। वहीं कई परियोजनाएं शुरू नहीं हो पाई हैं। इनमें चिकी वोरास बैराज नरसिंहपुर, शंकर पेंच जिक नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, दूधी परियोजना नरसिंहपुर, अपर नर्मदा परियोजना डिंडौरी, हाडिया बैराज हरदा, राघवपुर बहुउद्देश्यीय डिंडौरी, बसानिया मंडला, होशंगाबाद बैराज होशंगाबाद, कुक्षी परियोजना धार और सांवेर उद्वाहन इंदौर। मप्र 2024 तक 18.25 एमएएफ पानी नहीं ले पाता है तो बाकी पानी गुजरात के कोटे में चला जाएगा। इसके बाद मप्र नर्मदा से कोई भी परियोजना लॉन्च कर पानी नहीं ले सकेगा। नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने पानी का बंटवारा कर मध्य प्रदेश के अलावा गुजरात को 9 एमएएफ, महाराष्ट्र को 0.50 एमएएफ और राजस्थान को 0.25 एमएएफ पानी देने का निर्णय किया है।

Related Articles