
- नई योजना…नया संकल्प
देश की पवित्र नदियों में शामिल नर्मदा को मप्र की लाइफ लाइन कहा जाता है। इसलिए मप्र सरकार ने नर्मदा को पावन, पवित्र, निर्मल और अविरल बनाने के लिए नए संकल्प के साथ नई योजना लाई है ताकि नर्मदा की पावनता बनी रहे।
विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। मप्र की लाइफ लाइन नर्मदा नदी को स्वच्छ बनाने और उसके आसपास के क्षेत्रों को विकसित करने के लिए मप्र सरकार एक खास योजना बनाने जा रही है। इसके तहत मप्र में नमामि गंगे की तर्ज पर अब निर्मल नर्मदा कार्ययोजना पर काम किया जाएगा। इसके पीछे सरकार का फोकस इस बात पर है कि मप्र की जीवनदायिनी नर्मदा नदी को अविरल और स्वच्छ बनाया जाए। इसके लिए मप्र सरकार नमामि गंगे की तर्ज पर प्रदेश में बनेगी निर्मल नर्मदा कार्ययोजना बनाएगी। जानकारी के अनुसार निर्मल नर्मदा कार्ययोजना के तहत नगरीय विकास एवं आवास, नर्मदा घाटी विकास और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मिलकर नर्मदा की जल धारा को स्वच्छ एवं निर्मल बनाए रखने के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाएंगे। इसके आधार पर योजना में खर्च होने वाली राशि की मांग केंद्र के जल शक्ति मंत्रालय से की जाएगी। कार्ययोजना में नर्मदा किनारे के ग्रामीण क्षेत्रों में सीवेज ट्रीटमेंट लगाए जाएंगे। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने कहा है कि प्रदेश के जिन निकायों के शहरों में अभी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण में विलंब हो रहा है, उनकी प्रगति की साप्ताहिक समीक्षा की जाए और कार्य शीघ्र पूरा किया जाए। प्रदेश में नर्मदा नदी को निर्मल बनाए रखने के लिए राज्य सरकार 2459 करोड़ रुपए खर्च करेगी। इस योजना में केंद्र सरकार से भी मदद ली जाएगी। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि नर्मदा को निर्मल बनाने के लिए अर्बन डेवलपमेंट कंपनी के अधिकारी पहले योजना का भौतिक सर्वेक्षण (फिजिकल सर्वे) कर लें। उन्होंने निर्देश दिए कि औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले दूषित जल को नर्मदा में मिलने से रोकने और पानी के ट्रीटमेंट के उपायों को भी इस परियोजना में शामिल किया जाए। नर्मदा नदी के आसपास कई धार्मिक स्थल स्थित हैं, इसलिए इन क्षेत्रों में भी दूषित जल के उपचार के लिए प्लांट की स्थापना की जाए और इन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना भी तैयार की जाए। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि नर्मदा नदी मप्र की जीवनरेखा है और नर्मदा मां को निर्मल बनाए रखने के लिए सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के तहत केंद्र सरकार से हरसंभव सहायता ली जाएगी। गतदिनों मंत्रालय में निर्मल नर्मदा योजना की समीक्षा बैठक में कहा कि योजना के क्रियान्वयन से पहले कंपनी के अधिकारी भौतिक सर्वेक्षण कर लें। नदी किनारे बसे शहरों में सीवरेज प्लांट के निर्माण का कार्य भी निर्धारित समय-सीमा में पूरा किया जाए। मंत्री विजयवर्गीय ने अधिकारियों से कहा कि ग्रामीण विकास, जल संसाधन, और नर्मदा घाटी विकास विभाग के अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित कर योजना संबंधी वास्तविक जानकारी लेकर परियोजना पर कार्य करें। उन्होंने औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले अपशिष्ट जल को रोकने और उसके उपचार के उपायों को भी प्राथमिकता देने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि नर्मदा परिक्रमा स्थलों के आसपास के क्षेत्रों का भी सर्वेक्षण कराया जाए और वर्तमान में कार्यरत व निर्माणाधीन सीवरेज प्लांट की स्थिति की समीक्षा की जाए। मंत्री ने कहा कि नर्मदा नदी के आस-पास स्थित धार्मिक स्थलों का भी सर्वेक्षण हो और वहां दूषित जल उपचार के लिए प्लांट स्थापित किए जाएं। इन स्थलों को पर्यटन के रूप में कैसे विकसित किया जा सकता है, इस पर भी कार्ययोजना तैयार की जाए। नगरीय विकास आयुक्त संकेत भोंडवे ने बताया कि नेशनल रिवर कंजर्वेशन प्रोजेक्ट के तहत नर्मदा नदी की स्वच्छता के लिए साल 2025 को ध्यान में रखकर योजना तैयार की गई है। उन्होंने कहा कि नदी से लगे शहरों में अधिकतम आवासों को नजदीकी सीवरेज प्लांट से जोडऩे के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। बैठक में यह भी तय किया गया कि नदी के आसपास के क्षेत्रों में नगरीय निकायों के माध्यम से वृहद स्तर पर पौधरोपण किया जाएगा। मप्र सरकार की निर्मल नर्मदा योजना का उद्देश्य है कि नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाना, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के अपशिष्ट जल का उपचार कर उसका पुन: उपयोग सुनिश्चित करना है। उपचारित जल के दोबारा उपयोग को बढ़ावा देना है। प्रदेश में नर्मदा नदी की कुल लंबाई 1077 किलोमीटर है, जिसके अंतर्गत 54 शहरी और 818 ग्रामीण क्षेत्र आते हैं। योजना में 27 जिलों के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
नर्मदा को अविरल बनाने का लक्ष्य
मप्र की लाइफ लाइन नर्मदा नदी को स्वच्छ बनाने और उसके आसपास के क्षेत्रों को विकसित करने के लिए मप्र सरकार एक खास योजना बनाने जा रही है। इसके तहत मप्र में नमामि गंगे की तर्ज पर अब निर्मल नर्मदा कार्ययोजना पर काम किया जाएगा। इसके पीछे सरकार का फोकस इस बात पर है कि मप्र की जीवनदायिनी नर्मदा नदी को अविरल और स्वच्छ बनाया जाए। इसके लिए मप्र सरकार नमामि गंगे की तर्ज पर प्रदेश में बनेगी निर्मल नर्मदा कार्ययोजना बनाएगी। जानकारी के अनुसार निर्मल नर्मदा कार्ययोजना के तहत नगरीय विकास एवं आवास, नर्मदा घाटी विकास और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मिलकर नर्मदा की जल धारा को स्वच्छ एवं निर्मल बनाए रखने के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाएंगे। इसके आधार पर योजना में खर्च होने वाली राशि की मांग केंद्र के जल शक्ति मंत्रालय से की जाएगी। कार्ययोजना में नर्मदा किनारे के ग्रामीण क्षेत्रों में सीवेज ट्रीटमेंट लगाए जाएंगे। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने कहा है कि प्रदेश के जिन निकायों के शहरों में अभी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण में विलंब हो रहा है, उनकी प्रगति की साप्ताहिक समीक्षा की जाए और कार्य शीघ्र पूरा किया जाए।
मप्र सरकार द्वारा जो निर्मल नर्मदा कार्ययोजना बनाई जाएगी उसमें नगरीय विकास एवं आवास, नर्मदा घाटी विकास और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को अलग-अलग जिम्मेदारी दी जाएगी। नगरीय विकास एवं आवास विभाग नदी में नालों का गंदा पानी मिलने से रोकेगा, पंचायत विभाग ग्रामीण क्षेत्रों में पौधारोपण वं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाएगा। एनवीडीए वन विभाग के साथ नर्मदा के कैचमेंट क्षेत्र में पौधारोपण कराएगा। बता दें कि बस्तियों का गंदा पानी सीधे नदी में मिलने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 16 नगरीय निकायों पर 79.44 करोड़ की पेनाल्टी लगा चुका है। गौरतलब है कि अमरकंटक से आरंभ होकर खम्बात की खाड़ी में मिलने वाली 1312 किलोमीटर लंबी नर्मदा नदी की मध्य प्रदेश में लंबाई 1077 किलोमीटर है। नर्मदा किनारे 21 जिले, 68 तहसीलें, 1138 ग्राम और 1126 घाट हैं। नर्मदा. किनारे 430 प्राचीन शिव मंदिर और दो शक्तिपीठ विद्यमान हैं। साथ ही कई स्थान और घाटों के प्रति जनसामान्य में पर्याप्त आस्था और मान्यता है।
जीआईएस और ड्रोन से होगा सर्वे
नर्मदा नदी के दोनों ओर के क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए जीआईएस और ड्रोन से सर्वे कराया जाएगा। नर्मदा परिक्रमा को प्रमुख धार्मिक पर्यटन गतिविधि के रूप में विकसित किया जाएगा। नदी में मशीनों से खनन गतिविधियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा। परिक्रमा पथ पर आने वाले स्थानों को चिन्हित कर पंचायतों के जरिए विकास कराया जाएगा। परिक्रमा करने वालों के लिए होम स्टे विकसित किए जाएंगे। नर्मदा नदी के दोनों ओर रहने वाले जनजातीय बहुल क्षेत्र में साल और सागौन का पौधा रोपण कर जड़ी बूटियों की खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा। नदी के दोनों तरफ पांच किलोमीटर तक प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। मोहन सरकार मप्र की जीवनदायनी नर्मदा नदी को निर्मल करने और अविरल बहाव को बनाए रखने के बड़े स्तर पर पौधा रोपण किया जाएगा। इसके लिए 124 करोड़ 46 लाख रुपए की मंजूरी मिली है। इससे नर्मदा नदी के तट के बढ़ते कटाव को रोकने में मदद मिलेगी। इसका अविरल- निर्मल नर्मदा योजना का नाम दिया गया है। इसके तहत नर्मदा नदी के दोनों तटों से 10 किमी दायरे तक वन भूमि पर सघन पौधरोपण होगा। पौध रोपण के लिए वन विभाग के 12 वनमंडलों के 95 वन कक्षों में 5600 हैक्टेयर वन क्षेत्र शामिल किया गया है, जिसमें पौध रोपण होगा। राज्य शासन ने इसकी स्वीकृति दे दी। योजना के तहत यह पौधरोपण सात साल में किया जायेगा। इसके लिये बजट की व्यवस्था वन विभाग के कैम्पा फण्ड से की जायेगी। इसके लिये कुल 124 करोड़ 46 लाख रुपये की मंजूरी वित्त विभाग से मिल गई है। यह राशि क्षेत्र तैयारी, गढ्ढा खुदाई, पौध परिवहन, रोपण, निदाई/गुड़ाई एवं रखरखाव में व्यय की जायेगी। मध्य प्रदेश की जीवन रेखा और करोड़ो लोगों की आस्था का केंद्र नर्मदा नदी के हालात दिन-प्रतिदिन खराब हो रहे हैं। नर्मदा नदी के किनारे घने जंगलों की कटाई होने के कारण जहां जल स्तर घट रहा है। वहीं कटाव बढऩे से नदी का तट सिकुड़ता जा रहा है। इसे रोकने की मंशा से मुख्य मंत्री एवं वन मंत्री मोहन यादव ने नर्मदा नदी के दोनों किनारे के 10 किलोमीटर तक पौधा रोपण करने की योजना को अंतिम रूप दिया है। इससे नर्मदा नदी अविरल बहेगी तथा नदी के तटों का भूमि कटाव रुकेगा। स्थानीय ईको सिस्टम व जैव विविधता में सुधार होगा। पौध रोपण कार्यों में स्थानीय समुदाय की भागीदारी से नदियों का संरक्षण होगा। जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों पर नियंत्रण स्थापित होगा। भू-जल स्तर में वृध्दि होगी। रोजगारमूलक गतिविधियों का क्रियान्वयन कर ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार होगा।
प्रदूषण की आंख-मिचौली
मुड़ती-उमड़ती नर्मदा जैसे-जैसे अमरकंटक से आगे बढ़ती है, इसके दोहन की योजनाएं भी साथ-साथ बनती चलती हैं। मध्य भारत को अन्न-धन से परिपूर्ण बनाने वाली इस सदानीरा पर आबादी का बोझ पिछली एक शताब्दी में काफी बढ़ गया है। नर्मदा बेसिन में सम्मलित जिलों की आबादी सन 1901 में 78 लाख के आसपास थी, जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार, इन जिलों की आबादी साढ़े तीन करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। करीब सौ वर्षों में नर्मदा घाटी पर आबादी का बोझ पांच गुना से अधिक बढ़ गया है। जाहिर है नर्मदा और इसकी सहायक नदियों पर दोहन और प्रदूषण का बोझ भी इतना ही बढ़ गया है। नर्मदा किनारे के छोटे-बड़े 52 शहरों का मलमूत्र नर्मदा में गिरता है। इसका विकराल रूप हमें जबलपुर में देखने को मिला। करीब 11 लाख आबादी वाला जबलपुर नर्मदा किनारे बसा सबसे बड़ा शहर है। यहां घरेलू सीवर की निकासी के लिए कोई केंद्रीकृत सीवरेज व्यवस्था नहीं है। शहर में ज्यादातर सेप्टिक टैंक वाले शौचालय हैं। साल 2011 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक अध्ययन से पता चला था कि जबलपुर में कुल 1000 किलोमीटर लंबी छोटी नालियां हैं, जिनमें से 52 फीसदी कच्ची हैं। साल 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल (सीपीसीबी) ने जबलपुर से गुजरने वाले नर्मदा के हिस्से को प्रदूषित करार दिया था। शहर का अधिकांश गंदा पानी चार बड़े नालों- ओमती, खंडारी, शाह और मोती के जरिये नर्मदा में पहुंचता है। सीपीसीबी के मुताबिक, साल 2005-06 में जबलपुर शहर से रोजाना 143.3 एमएलडी सीवेज निकलता था, जिसके शोधन की कोई व्यवस्था नहीं थी। हाल के वर्षों में यहां ग्वारीघाट में 150 और 400 केएलडी क्षमता के दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित किये गए हैं, जबकि कठौंदा में 50 एमएलडी क्षमता का एक एसटीपी बनकर तैयार हो गया है। शहर से निकलने वाली सीवर की मात्रा को देखते हुए ये संयंत्र नाकाफी हैं। जबलपुर के आसपास तीन और एसटीपी बनाने की योजना है। लेकिन ये सीवर ट्रीटमेंट प्लांट तब तक पूरी तरह कारगर साबित नहीं हो सकते, जब तक शहर में केंद्रीकृत सीवर नेटवर्क नहीं बन जाता। इस काम में बरसों लग सकते हैं। तब तक सेप्टिक टैंकों से निकला मलमूत्र नदियों तक पहुंचता रहेगा। जबलपुर में नर्मदा को दूषित करने में शहर के आसपास स्थापित डेयरियों का भी बड़ा हाथ है। जबलपुर के आसपास करीब 100-150 डेयरियां है, जहां से निकलने वाला मवेशियों का मलमूत्र नर्मदा की सहायक नदियों – परियट और गौर में गिरता है। इस मामले को लेकर सन 1996 में जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले पीजी नाजपांडे का कहना है कि हाईकोर्ट और एनजीटी के सख्त आदेशों के बावजूद डेयरियों के गंदे पानी को नदियों में गिरने से रोकने के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं। यही कारण है कि परियट और गौर नदियां गोबर के नालों में तब्दील हो चुकी हैं। पीसीबी नोटिस जारी कर डेयरी संचालकों को ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के निर्देश दे चुका है। लेकिन इन निर्देशों का सख्ती से पालन नहीं हो पा पाया। नर्मदा को प्रदूषण से बचाने को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच पीसीबी ने गत दिसंबर में एक रिपोर्ट जारी कर बताया कि विभिन्न मॉनिटरिंग स्टेशनों पर नर्मदा जल की गुणवत्ता संतोषजनक पायी गई है। इस रिपोर्ट के आधार पर नर्मदा के जल को पीने के लिए सुरक्षित बताया जा रहा है। हालांकि, पर्यावरण संरक्षण से जुड़े नाजपांडे जैसे लोग पीसीबी की जांच के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि नदी जल के नमूने किनारों के बजाय नदी की धारा के बीच से लिए गए। इस मामले पर उन्होंने एनजीटी में याचिका भी दायर की है। उधर, पीसीबी के अधिकारियों का कहना है कि पानी के नमूने तय प्रक्रिया के आधार पर ही लिए गए हैं। वैसे देखने से भी नजर आता है कि नर्मदा गंगा, यमुना की तरह अत्यधिक मैली नहीं है। लेकिन इस निर्मलता को बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है।
थर्मल और न्यूक्लियर प्लांट
नर्मदा की राह में अड़चनों की कमी नहीं है। एक संकट खत्म नहीं होता कि कोई दूसरी चुनौती सामने आ जाती है। बांधों के जाल में बुरी तरह फंस चुकी नर्मदा की गोद में थर्मल और न्यूक्लियर प्लांट भी पैर पसार रहे हैं। नर्मदा के आसपास के इलाकों में एक-दो नहीं बल्कि 18 थर्मल पावर प्लांट लगाने की तैयारी है। इनमें से पांच तो सिर्फ जबलपुर से होशंगाबाद के बीच बनने हैं। ये संयंत्र न सिर्फ भारी मात्रा में पानी का दोहन करेंगे बल्कि नर्मदा को दूषित भी कर देंगे। बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के संयोजक राज कुमार सिन्हा बताते हैं कि नर्मदा नदी के आसपास पांच थर्मल पावर प्लांट चल रहे हैं, जबकि बरगी बांध से मुश्किल से एक किलोमीटर की दूरी पर एक परमाणु संयंत्र लगाने की योजना है। हालांकि, इसके लिए अभी पर्यावरण मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन भूमि अधिग्रहण का काम चल रहा है। सिन्हा का दावा है कि करीब 40 फीसदी लोगों ने मुआवजा लेने से इंकार कर दिया है। सिन्हा 1400 मेगावाट बिजली के लिए 25,000 करोड़ की चुटका परमाणु परियोजना के औचित्य पर भी सवाल उठाते हैं। सत्तर के दशक में बने बरगी बांध के लिए 162 गांवों को विस्थापित किया गया था। इन गांवों के कई परिवार आज तक पुनर्वास के लिए भटक रहे हें। इन विस्थापितों पर अब दोबारा विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। दो हजार हैक्टेयर में बनने वाले चुटका परमाणु पावर प्लांट की जद में 36 गांव आएंगे। सबसे पहले चुटका, कुंडा, भालीबाड़ा, पाठा और टाडीघाट गांव को हटाने की तैयारी है। परमाणु बिजलीघरों में बड़े पैमाने पर पानी की जरूरत और परमाणु कचरे के जोखिमों को देखते हुए चुटका परियोजना के खिलाफ लंबे समय से विरोध किया जा रहा है। नर्मदा घाटी में बॉक्साइट जैसे खनिजों की मौजूदगी भी पर्यावरण से जुड़े कई संकटों की वजह बनी है। नर्मदा के उद्गम वाले क्षेत्रों में 1975 में बॉक्साइट का खनन शुरू हुआ था, जिसके कारण वनों की अंधाधुंध कटाई हुई। हालांकि, बाद में वहां बॉक्साइट के खनन पर काफी हद तक अंकुश लगा। लेकिन तब तक पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच चुकी थी। अब ऐसा ही खतरा डिंडोरी जिले में सामने आया है। गत दिसंबर माह में डिंडोरी जिले में बॉक्साइट के बड़े भंडार का पता चला है। इसकी भनक लगते ही भौमिकी एवं खनकर्म विभाग ने जिले की दो तहसीलों में बॉक्साइट की खोज का अभियान शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि अपर नर्मदा बेसिन के डिंडोरी और मंडला जिलों में वनस्पति और जानवरों के जीवाश्म बहुतायत में पाये जाते हैं। जबलपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एनडी शर्मा का कहना है कि ये दोनों जिले अंतरराष्ट्रीय महत्व के स्थल हैं। यहां जीवाश्म संबंधी कई महत्वपूर्ण खोज हुई हैं और बहुत-सा शोध कार्य अभी होना बाकी है। इसके अलावा ये जिले कान्हा नेशनल पार्क और अचानकमार-अमरकंटक बायोस्फियर रिजर्व को जोड़ते हैं। इसलिए यहां खनन संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देना कतई उचित नहीं है। बॉक्साइट खनन जैसे भावी खतरों के अलावा रेत खनन जैसे मौजूदा हमले नर्मदा बेसिन को खोखला बना रहे हैं। नर्मदा किनारे के जिलों की टोह लेते हुए जब हम होशंगाबाद पहुंचे तो शहर से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर दिन में ही नदी से रेत निकालते ट्रैक्टर-ट्रॉली दिखाई पड़ गए। नर्मदा बचाओ अभियान से जुड़े राहुल यादव बताते हैं कि पर्यावरण से जुड़े नियम-कायदों को ताक पर रखते हुए नर्मदा में रेत खनन जारी है। जबलपुर, नरसिंहपुर होशंगाबाद, हरदा, सीहोर आदि जिलों में नावों के जरिए रेत निकाली जा रही है। रेत खनन का यह खेल नर्मदा के साथ-साथ बेसिन के तकरीबन सभी जिलों में बेरोकटोक जारी है। नर्मदा को रेत माफियाओं के चंगुल से बचाने के लिए हाईकोर्ट और एनजीटी में कई याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। नर्मदा समर्थ सत्याग्रह, नर्मदा बचाओ आंदोलन, नर्मदा मिशन,नर्मदा संरक्षण पहल, क्लीन नर्मदा, नर्मदा समग्र तथा अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अवैध खनन के मुद्दे पर हाई कोर्ट और एनजीटी का दरवाजा खटखटाया है। मिली जानकारी के अनुसार, नर्मदा बेसिन में अवैध खनन व प्रदूषण से संबंधित दर्जनों जनहित याचिकाएं विभिन न्यायलाओं में लंबित हैं।
बांधों में बंधी नर्मदा
नर्मदा को रेवा भी कहते हैं। यानी उछल-कूद कर आगे बढऩे वाली नदी। लेकिन आजादी के बाद से ही नर्मदा घाटी में उपलब्ध जल दोहन के प्रयास तेज हो गए थे। नतीजन नर्मदा और इसकी सहायक नदियों पर बांध बनाकर सिंचाई व जल विद्युत परियोजनाओं के अंधाधुंध निर्माण का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक जारी है। सन 1979 में नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने नर्मदा में उपयोग योग्य जल की मात्रा 34.54 अरब घन मीटर मानते हुए मध्य प्रदेश को 65.16 फीसदी, गुजरात को 32.14 फीसदी, राजस्थान को 1.78 फीसदी और महाराष्ट्र को 0.89 फीसदी पानी के इस्तेमाल का हक दिया था। तभी से राज्यों में नर्मदा जल के दोहन की होड़ मची है। आज नर्मदा किन बांधाओं से गुजर रही है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नर्मदा की मुख्य धारा पर 5 बड़े बांधों का निर्माण हो चुका है और 5 बड़े बांध प्रस्तावित हैं। इसी तरह नर्मदा की सहायक नदियों पर 20 बड़े बांध बनने हैं, जिनमें से 8 बांध बन चुके हैं। नर्मदा मास्टर प्लान के अनुसार, नर्मदा बेसिन में 30 बड़े, 135 मध्यम और 3,000 छोटे बांधों का निर्माण होना है। जिनसे इनसे 46.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई और 3 हजार मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। फिलहाल नर्मदा घाटी में 21 बड़ी और 23 मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के लिए छोटे-बड़े कुल 277 बांधों का निर्माण हो चुका है। इनमें सबसे लंबा बरगी बांध पांच किलोमीटर से भी अधिक लंबा है।सिंचाई के अलाा उद्योगों और शहरों की प्यास बुझाने के लिए भी बड़े पैमाने पर नर्मदा जल का उपयोग किया जा रहा है। सत्तर के दशक से नर्मदा घाटी में विकास का जो खाका खींचा गया, उसके तहत बरगी (जबलपुर), इंदिरा सागर (पूर्वी निमाड़), ओंकारेश्वर (खंडवा), महेश्वर (जबलपुर), तवा (होशंगाबाद) और सरदार सरोवर (नर्मदा-गुजरात) जैसे विशाल बांधों का निर्माण हो चुका है। इन बांधों के जरिए समूचे नर्मदा कछार में नहरों का जाल बिछ चुका है। नर्मदा बेसिन का करीब 30 फीसदी क्षेत्र विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं की कुल 6,638 किलोमीटर लंबी नहरों के दायरे में आता है। बांधों और नहरों के इस जाल ने नर्मदा घाटी का स्वरूप बदल डाला है। कुल 1312 किलोमीटर की लंबाई में से करीब 446 किलोमीटर यानी करीब एक तिहाई हिस्से में नर्मदा का प्रवाह बड़े-बड़े जलाशयों की वजह से थमा हुआ है। नर्मदा बेसिन में उपयोग योग्य कुल 34.5 अरब घन मीटर सतही जल होने का अनुमान है, जिसमें से कुल 24.92 अरब घन मीटर जल संग्रह क्षमता यानी जलाशयों के निर्माण की योजना है। इनमें से 17.62 अरब घन मीटर क्षमता के जलाशयों का निर्माण हो चुका है। बाकी निर्माणाधीन अथवा प्रस्तावित हैं। तीन दशक पहले खींचे गए विकास के इस खाके के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय नफे-नुकसान का आकलन करना जरूरी है। भोपाल में विकास संवाद के सचिन कुमार जैन कहते हैं कि भले ही देश की बाकी नदियों के मुकाबले नर्मदा साफ-सुथरी दिखाई देती हैं, लेकिन जिस तरह यहां अंधाधुंध बांधों का निर्माण हुआ और अब अवैध खनन व जल दोहन जारी है, वह नदी बेसिन के समूचे पारिस्थतिकी तंत्र के लिए खतरा है। बांधों के निर्माण में हरसूद जैसे शहर के शहर डूब गए, लाखों लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा, आदिवासी समाज-संस्कृतियां अपना परिवेश गवां बैठीं, लेकिन फिर भी विकास के इस मॉडल का त्याग नहीं किया गया।