
- डबल इंजन सरकार का नवाचार
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में डबल इंजन सरकार के नवाचार से मप्र में नित नए आयाम गढ़ रहा है। इसी कड़ी में सरकार का फोकस सहकारिता पर है। सहकारिता के क्षेत्र में सरकार के नवाचारों से मप्र सशक्त बन रहा है।
विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। भारत का सहकारिता आंदोलन सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में गहराई से निहित है। यह आंदोलन समावेशी विकास, सामुदायिक सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास के लिए एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में विकसित हुआ है। सहकारिता मंत्रालय की स्थापना और इसकी नवीनतम पहलों के माध्यम से सरकार ने एक सहकारिता-संचालित मॉडल को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है, जो देश के हर कोने तक पहुंचेगा और समाज की मुख्य धारा से अलग पड़े समुदायों के लिए स्थायी आजीविका और वित्तीय समावेशन की सुविधा प्रदान करेगा। इसी कड़ी में मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सहकारिता आंदोलन को नई दिशा देने में लगे हुए हैं। सीएम मोहन यादव सरकार ने फिर सहकारिता को नए सिरे से आंदोलन में तब्दील करने का फैसला किया है। सहकारिता सम्मेलन इसी दिशा में एक कदम है। मप्र सरकार ने सहकारी समितियों को मजबूत बनाने का पूरा प्लान तैयार किया है। इस प्लान के तहत अब सहकारी समितियां एक बिजनेस मॉडल के तहत भी काम कर सकेंगी। इसकी शुरुआत होगी सारी सहकारी समितियों को कंप्यूटराइज्ड करने से। दिसंबर तक ये टारगेट पूरा करने की कोशिश है। एग्री ड्रोन, जन औषधि केंद्र, कॉमन सर्विस सेंटर, जल कर वसूली केंद्र और पीएम किसान समृद्धि केंद्र भी एक्टिव होंगे। सरकार सीपीपीपी यानी कि को ऑपरेटिव पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर भी काम करेगी। ड्रिप इरिगेशन, ग्रेडिंग सॉर्टिंग, पैकेजिंग, जंगल सफारी में ये मॉडल अप्लाई होगा और इनोवेशन्स पर भी बात होगी। प्रदेश सरकार की कोशिश है कि सहकारिता आंदोलन के जरिए अधिक से अधिक किसानों को शामिल किया जाए। प्रदेश के वॉटर सोर्सेस पर भी खास ध्यान दिया जाएगा। क्योंकि ये जल स्त्रोत ही किसानों की असल लाइफ लाइन हैं। इसलिए उन्हें रेज्यूविनेट करने पर भी जोर दिया जाएगा। इसके अलावा सहकारिता के क्षेत्र में क्या बदलाव आएंगे। सहकारिता के दिशा में काम करने की बड़ी लंबी प्लानिंग नजर आ रही है। सुभाष यादव के सहकारिता आंदोलन से लेकर मोहन यादव के सहकारिता आंदोलन में जो सबसे बड़ा बदलाव दिख रहा है वो है तकनीक का बदलाव। बदलते दौर के साथ डिजिटल रेस में शामिल होना जरूरी है। अब सहकारिता आंदोलन के जरिए किसानों को गांववासियों को इस रेस में शामिल करने का जतन किया जा रहा है। देखना ये है कि क्या सहकारी आंदोलन की मशाल उठाकर मोहन यादव भी सुभाष यादव से आगे निकल पाएंगे। दरअसल भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधने की तैयारी की है, भाजपा लगभग अपने हर चुनावी संकल्प पत्र में किसानों की आय दूनी करने की बात कहती रही है। सहकारिता सम्मेलन के जरिए अब भाजपा मप्र में दूध का उत्पादन बढ़ाकर व किसानों को इससे जोडक़र वह अपने वादे को पूरा करने का जतन करेगी। वहीं, दूसरी ओर गांव-गांव में सहकारी समितियों के जरिए पैठ बढ़ाने का जतन भी वह करेगी। इस नाते केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में एनडीडीबी व सांची के बीच अनुबंध तथा सहकारिता सम्मेलन को सहकारिता के क्षेत्र में दुग्ध क्रांति का आंदोलन भी माना जा रहा है। साल 2018 के चुनाव को छोड़ कांग्रेस पिछले चार चुनाव में कांग्रेस भले ही सत्ता में वापसी नहीं कर सकी, लेकिन उसका वोट बैंक 40 फीसदी के आसपास हमेशा रहा। भाजपा तमाम कोशिशों के बावजूद इसमें सेंध नहीं लगा सकी। पिछले यानी साल 2023 के चुनाव में लाड़ली बहना की बदौलत ही वह वापसी कर पाई, लेकिन हर बार यह दांव चले। यह संभव नहीं है। यही वजह है कि बीजेपी अब सहकारिता के क्षेत्र में खुद को मजबूत करना चाहेगी।
सहकारी समितियों को पुनर्जीवित किया जाएगा
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इस वर्ष की थीम है सहकारिता एक बेहतर दुनिया का निर्माण करती है। स्व से सब का भाव हो जाना ही सहकार है। भारतीय संस्कृति स्वयं से ऊपर उठकर हम की भावना रखना सिखाती है और इसी भावना से जन्म हुआ है सहकार का। सनातन संस्कृति में जब हम प्रार्थना करते हैं तो सर्वे भवन्तु सुखिन: की कामना करते हैं। सबके सुख और मंगल की यही कामना सहकारिता का मूल भाव है। हम लाभ से ज्यादा सेवा को महत्व देते हैं। एक से ज्यादा समूह को महत्व देते हैं। प्रतिस्पर्धा से ज्यादा परस्पर सहयोग को महत्व देते हैं और यही सहकारिता है। सहकारी समितियों को पुनर्जीवित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ केन्द्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इस क्षेत्र को मजबूत और आधुनिक बनाने के उद्देश्य से एक व्यापक नीतिगत ढांचा, कानूनी सुधार और रणनीतिक पहल शुरू की। सरकार ने सहकारी समितियों के लिए व्यापार करने में आसानी, डिजिटलीकरण के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करने और वंचित ग्रामीण समुदायों के लिए समावेशिता को बढ़ावा देने की अपनी पहल पर काफी जोर दिया है। केन्द्रीय मंत्री श्री अमित शाह के नेतृत्व में भारत का सहकारिता आंदोलन एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। अपनी दूरदर्शी सोच को आधार बनाकर उन्होंने सहकारिता के लिए नई विचारधारा को जन्म दिया है। उनके नेतृत्व में सहकारिता मंत्रालय ने भारतीय सहकारी आंदोलन में उल्लेखनीय परिवर्तन किए हैं। प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) का विस्तार, पैक्स के लिए बेहतर प्रशासन और व्यापक समावेशिता, पैक्स को कम्प्यूटरीकृत करने एवं पैक्स को नाबार्ड से जोडऩे का काम किया है ।
नई श्वेत क्रांति की ओर अग्रसर मप्र
प्रदेश में सहकार से समृद्धि की पहल के तहत केन्द्रीय मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और स्टेट डेयरी को-ऑपरेटिव फेडरेशन तथा फेडरेशन से संबद्ध दुग्ध संघों के बीच कोलेबोरेशन एग्रीमेंट हुआ। इस कोलेबोरेशन एग्रीमेंट के माध्यम से सहकारी डेयरी नेटवर्क को सशक्त बनाने का लक्ष्य है, जिससे दुग्ध उत्पादकों की आय में वृद्धि हो सके और सांची ब्रांड का उत्थान और विस्तार किया जा सके। यह नई श्वेत क्रांति की ओर प्रदेश का महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। इसका लाभ दुग्ध उत्पादकों और दुग्ध उपभोक्ताओं दोनों को मिलेगा। दुग्ध उत्पादक राज्यों में मप्र टॉप-थ्री में है, हमारे यहां देश का करीब 9 प्रतिशत दुग्ध-उत्पादन होता है। प्रदेश में रोजाना करीब 551 लाख किलोग्राम दूध का उत्पादन होता है, जिसमें से मप्र स्टेट को-आपरेटिव डेयरी फेडरेशन और इससे जुड़े संघ करीब 10 लाख किलोग्राम दूध जमा करते हैं। मप्र देश का फ़ूड बास्केट तो है ही, हममें डेयरी कैपिटल बनने की क्षमता भी है। देश का डेयरी कैपिटल बनने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं। प्रदेश में सहकारी डेयरी नेटवर्क को हाइटेक बनाने के लिए एक डेयरी डेवलपमेंट प्लान तैयार करने की योजना है, जिसमें लगभग 1450 करोड़ रुपए का निवेश होगा। प्रदेश में औसत दुग्ध संकलन को दोगुना किया जाएगा, दुग्ध संकलन को 10 लाख किलो से बढ़ाकर 20 लाख किलो प्रतिदिन करने का प्रयास शुरू कर दिया गया है। प्रदेश में दुग्ध सहकारी समितियों की संख्या 6 हजार से बढ़ाकर 9 हजार की जाएगी। प्रदेश भर के 18 हजार गांवों के दुग्ध-उत्पादन से जुड़े किसान भाइयों को सहकारी डेयरी नेटवर्क से जोड़ेंगे। ग्राम स्तर पर दुग्ध शीतलीकरण की क्षमता विकसित करेंगे, औसत पैकेट दुग्ध विक्रय 7 लाख लीटर प्रतिदिन से बढ़ाकर 15 लाख लीटर प्रतिदिन करेंगे। मिल्क प्रोसेसिंग क्षमता बढ़ाने के लिए नए हाइटेक संयंत्र स्थापित किए जाएंगे, जिससे दुग्ध संकलन और दुग्ध विक्रय में वृद्धि हो सके। सभी दुग्ध संघों का व्यवसाय 1944 करोड़ से बढ़ाकर 3500 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष किया जाएगा। एनडीडीबी द्वारा एमपीसीडीएफ एवं दुग्ध संघों के प्रबंधन, संचालन, तकनीकी सहयोग, नवीन प्रसंस्कररण एवं अन्य अधोसंरचनाएं विकसित करेंगे। एनडीडीबी द्वारा दुग्ध सहकारी समितियों के सभी सदस्यों, सचिवों, प्रबंधन समिति के सदस्यों और दुग्ध संघों के कर्मचारियों को स्वच्छ और गुणवत्तायुक्त दुग्ध उत्पादन के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा।
सहकारिता से सरल हुई सशक्तिकरण की राह
प्रदेश में डेयरी गतिविधियों के लिए त्रि-स्तरीय सहकारी संस्थाओं का गठन कर, ग्रामीण दुग्ध सहकारी समितियां, सहकारी दुग्ध संघ और राज्य स्तर पर एमपीसीडीएफ (मप्र स्टेट कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन लिमिटेड) की स्थापना की गई। ये दुग्ध सहकारी समितियां किसानों से दूध संग्रह, गोवंश के कृत्रिम गर्भाधान, संतुलित पशु आहार, तकनीकी पशु प्रबंधन, उन्नत चारा बीज, पशु उपचार और टीकाकरण जैसी सुविधाएं देने की जिम्मेदारी निभा रही हैं। डेयरी क्षेत्र विकसित करने के संकल्पों की सिद्धि के लिए प्रदेश में श्वेतक्रांति मिशन के अंतर्गत 2500 करोड़ रुपए के निवेश का लक्ष्य है। प्रदेश में निराश्रित गौवंश की समस्या के निराकरण के लिए स्वावलंबी गौशालाओं की स्थापना की नीति : 2025 की स्वीकृति दी है। गौ-शालाओं को पशु चारे और आहार के लिए दी जाने वाली अनुदान राशि को भी 20 रुपये प्रति गौवंश प्रति दिवस से बढ़ाकर 40 रूपये प्रति गौवंश प्रति दिवस करने का निर्णय लिया गया है। मुख्यमंत्री पशुपालन विकास योजना अब डॉ. भीमराव अम्बेडकर कामधेनु योजना के नाम से जानी जाएगी। डॉ. भीमराव अम्बेडकर कामधेनु योजना अंतर्गत 25 दुधारू गाय अथवा भैंस की इकाई स्थापित करने का प्रावधान किया गया। प्रदेश की गौ शालाओं को हाइटेक बनाया जा रहा है। ग्वालियर स्थित आदर्श गौ-शाला में देश के पहले 100 टन क्षमता वाले सीएनजी प्लांट की स्थापना की गई है। भोपाल के बरखेड़ी-डोब में 10 हजार गौ-वंश क्षमता वाली हाइटेक गौ-शाला बनाई जा रही है। प्रदेश के सवा 2 लाख किसानों एवं दुग्ध उत्पादकों को सहकारिता के माध्यम से जोड़ा गया है। सरकार द्वारा दुग्ध सहकारी संघों के डेयरी प्रोडक्ट्स को मार्केट लिंकेज दिलाकर वैश्विक सप्लाई चेन से कनेक्ट करने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए नई योजना के तहत 25 या 25 से ज्यादा गायों का पालन करने वाले पशुपालकों को पशुपालन पर अनुदान दिया जाएगा।
सहकार को बढ़ावा देने के लिए इस वर्ष हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में पहली बार सहकारिता क्षेत्र को जोड़ा गया है। समिट में सहकारिता क्षेत्र में 2305 करोड़ से अधिक के 19 एमओयू साइन हुए हैं। को-ऑपरेटिव पब्लिक प्राइवेट-पार्टनरशिप (सीपीपीपी) मॉडल पर भी काम किया गया। सीपीपीपी मॉडल देश की सहकारिता को बदलने का काम करेगा। सहकारिता विभाग में निवेश विंग की स्थापना करने का निर्णय लिया है। निवेश विंग डे-टू-डे काम करेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और केन्द्रीय सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में देश की सभी सहकारी समितियों के सुदृढ़ीकरण के लिए अनेक कदम उठाए हैं। सरकार द्वारा प्राथमिक कृषि साख समितियों (पैक्स) के कंप्यूटरीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिससे पारदर्शिता और दक्षता में वृद्धि हो रही है। पैक्स के डिजिटलीकरण से किसानों को त्वरित ऋण सुविधा, ऑनलाइन लेन-देन और रिकॉर्ड प्रबंधन में मदद मिल रही है। ‘सहकारिता में सहयोग’ यानी को-ऑपरेशन एमॉन्ग को-ऑपरेटिवस् को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे छोटे और बड़े सहकारी संस्थान एक-दूसरे की मदद कर सकें। सहकारी समितियां अब केवल कृषि तक सीमित नहीं हैं, बल्कि डेयरी, क्रेडिट, विपणन, बीज वितरण, जैविक खेती को बढ़ावा देना, महिला स्व-सहायता समूहों को समर्थन और उपभोक्ता सेवाओं तक अपना दायरा बढ़ा रही हैं। डिजिटलीकरण के साथ-साथ सहकारिता के क्षेत्र में नवाचार और प्रशिक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इन प्रयासों से मप्र की सहकारी समितियाँ किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुकी हैं। ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाकर, डिजिटल एकीकरण और सहकारी उद्यमिता को बढ़ावा देकर सरकार सहकारी नेतृत्व पर आधारित आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत और टिकाऊ मॉडल तैयार कर रही है। उम्मीद है कि राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और स्टेट डेयरी को-ऑपरेटिव फेडरेशन तथा फेडरेशन से संबद्ध दुग्ध संघों के बीच कोलैबोरेशन एग्रीमेंट डेयरी व्यवसाय के क्षेत्र में मिसाल कायम करेगा।
सहकारी समितियां करेंगी बिजनेस भी
मप्र में सहकारी समितियों को आधुनिक बनाने और उनकी गतिविधियों का दायरा बढ़ाने की दिशा में नए कदम उठाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि सहकारी समितियों की साख और विश्वास बनाए रखने के लिए कार्यप्रणाली में पारदर्शिता जरूरी है। उन्होंने जून 2025 तक सभी समितियों का ऑडिट पूरा करने और दिसंबर 2025 तक शत-प्रतिशत कम्प्यूटरीकरण सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। यह बातें उन्होंने सहकारिता विभाग की समीक्षा बैठक में कहीं। मुख्यमंत्री ने समितियों को पारंपरिक कार्यों से आगे बढक़र एग्री-ड्रोन, जन औषधि केंद्र, कॉमन सर्विस सेंटर, जल कर वसूली केंद्र और प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र जैसी गतिविधियां शुरू करने की सलाह दी। साथ ही ड्रिप एरिगेशन, ग्रेडिंग-सॉर्टिंग, पैकेजिंग, जंगल सफारी, गेस्ट हाउस और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहित करने पर बल दिया। उन्होंने को-ऑपरेटिव पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (सीपीपीपी) मॉडल के जरिए समितियों को नए व्यवसाय के अवसर देने की बात भी कही। इसके लिए अल्पसेवित पंचायतों में नई समितियों के गठन को प्राथमिकता देने का निर्देश दिया गया। बैठक में बताया गया कि वर्ष 2024-25 में 35 लाख 3 हजार किसानों को 21,232 करोड़ रुपये का फसल ऋण वितरित किया गया, जो पिछले साल की तुलना में 1286 करोड़ रुपये अधिक है। आठ आकांक्षी जिलों—खंडवा, बड़वानी, गुना, राजगढ़, विदिशा, दमोह, छतरपुर और सिंगरौली—में अगले पांच साल में 6710 करोड़ रुपये के ऋण वितरण का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा, 13 आकांक्षी विकास खंडों में 26 नई सहकारी समितियां बनाई गई हैं।
सहकारी समितियों को मजबूत करने के लिए तकनीकी और प्रशासनिक स्तर पर भी कदम उठाए जा रहे हैं। सभी समितियों के लेन-देन की जानकारी किसानों को एसएमएस के जरिए दी जाएगी। जिला बैंकों और प्राथमिक कृषि साख समितियों में 36 अधिकारियों और 1358 समिति प्रबंधकों की नियुक्ति पूरी हो चुकी है, जबकि अन्य पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है। ये कदम सहकारी समितियों को आधुनिक और बहुआयामी बनाने की कोशिश का हिस्सा हैं। एग्री-ड्रोन और खाद्य प्रसंस्करण जैसे नए क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं, बशर्ते इन्हें जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। हालांकि, पारदर्शिता और कम्प्यूटरीकरण के लक्ष्य को समय पर पूरा करना एक बड़ी चुनौती होगी। किसानों को मिला फसल ऋण खेती में सहारा दे सकता है, लेकिन इसका लाभ तभी होगा जब इसका सही उपयोग सुनिश्चित हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। प्रदेश में सहकारिता की पहुंच बढ़ाने और सतत विकास में सहकारिता के योगदान के लिए ग्राम और वार्ड स्तर पर गतिविधियों का संचालन किया जाए। सहकारी सोसायटियों के सुदृढ़ीकरण के लिए नवाचार और सूचना प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देते हुए सहकारिता के सेट-अप में कार्पोरेट संस्कृति को विकसित करने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ज्ञान पर ध्यान के मंत्र को साकार करने और विकसित भारत के लिए भावी पीढ़ी की सहकारिता का आधार तैयार करने के उद्देश्य से गतिविधियां संचालित की जाएं। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा से छूटे किसानों को चिन्हित कर उन्हें सुविधा उपलब्ध कराने के लिए राजस्व, किसान कल्याण तथा एवं विकास, पशुपालन एवं डेयरी और मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास विभाग समन्वित रूप से गतिविधियां संचालित करें। पैक्स के सशक्तिकरण और उन्हें अधिक समर्थ और सक्षम बनाने के लिए अन्तर्विभागीय समन्वय से कार्य किया जाए। शासकीय योजनाओं के कन्वर्जेंस में पैक्स के सदस्यों को प्राथमिकता दी जाए। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भारत सरकार की पहल पर वर्ष-2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया गया है। सहकारिताएं एक बेहतर दुनिया का निर्माण करती हैं इसकी थीम है, जो वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सहकारी मॉडल की प्रभावशीलता को दर्शाती है। साथ ही यह वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को लागू करने के प्रयासों में सहकारिता के योगदान पर भी प्रकाश डालती है।
नए सिरे से तैयार किया लक्ष्य
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की सलाह के बाद मप्र सहकारिता विभाग ने अपने लक्ष्यों की समीक्षा की है। इसके बाद नए सिरे से योजना बनाई गई है। इस संबंध में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। इसके बाद प्रदेश में 635 नई प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां (पैक्स) और लगभग 16,000 प्राथमिक सहकारी दुग्ध संकलन समितियां गठित करने का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में मप्र में पैक्स की संख्या 4,457 है। नई पैक्स के गठन के बाद इनकी संख्या 5,000 के पार हो जाएगी। वहीं, दुग्ध संकलन समितियों की संख्या करीब 10,000 है। अब इन्हें बढ़ाकर 26,000 तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। गौरतलब है कि अमित शाह ने पैक्स को 30 प्रकार के नए काम सौंपने का भी ऐलान किया था। इनमें पेट्रोल पंप, गैस एजेंसी, और नल जल योजना का संचालन शामिल हैं। सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग ने सहकारिता विभाग के कामकाज के विस्तार के लिए एक कमेटी गठित की है। उन्होंने मौजूदा एक्ट और गाइडलाइन का अध्ययन कराने को कहा है। यह कमेटी अपनी अनुशंसाएं सरकार को देगी। इसके आधार पर सहकारिता विभाग के कामकाज में विस्तार किया जाएगा। इस समिति में आयुक्त सहकारिता एवं पंजीयक मनोज पुष्प, अपेक्स बैंक एमडी मनोज गुप्ता, अपेक्स बैंक ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य पीएस तिवारी, संयुक्त आयुक्त केके द्विवेदी और एचएस बघेला को शामिल किया गया है। आगामी 20 जून को को-ऑपरेटिव पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (सीपीपीपी) मॉडल पर विभाग की ओर से एक वर्कशॉप आयोजित की जाएगी। ताकि इस मॉडल को जमीनी स्तर पर समझाया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 की तैयारियां शुरू, ग्राम स्तर पर होंगी गतिविधियां – मप्र में वर्ष 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। मंगलवार को मंत्रालय में हुई राज्य स्तरीय शीर्ष समिति की बैठक में इस दिशा में कई निर्देश दिए गए। मुख्यमंत्री ने कहा, सहकारिता की पहुंच बढ़ाने और सतत विकास में इसके योगदान के लिए ग्राम और वार्ड स्तर पर गतिविधियां चलाई जाएं। मुख्यमंत्री ने सहकारी समितियों को मजबूत करने के लिए नवाचार और सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर जोर दिया। उन्होंने कहा, सहकारिता के सेट-अप में कॉरपोरेट संस्कृति विकसित करने की जरूरत है। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (पैक्स) को और सक्षम बनाने के लिए अंतर-विभागीय समन्वय पर जोर दिया गया। शासकीय योजनाओं में पैक्स के सदस्यों को प्राथमिकता देने की बात भी कही गई। संयुक्त राष्ट्र ने भारत सरकार की पहल पर 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया है, जिसकी थीम है- सहकारिताएं एक बेहतर दुनिया का निर्माण करती हैं। यह थीम वैश्विक चुनौतियों से निपटने में सहकारी मॉडल की भूमिका और 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों में इसके योगदान को रेखांकित करती है।
सहकारिता क्षेत्र में अपार संभावनाएं
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह गतदिनों जब भोपाल आए थे तो उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं सहकारिता आंदोलन में बड़ा बदलाव किया है। मप्र में खेती, किसानी और सहकारिता क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। शाह ने कहा कि आज देशभर के राज्यों ने मॉडल बायलॉज को अपनाया है। मैं राज्य सरकारों को धन्यवाद देता हूं। उन्होंने मॉडल बायलॉज को स्वीकार कर देश के सहकारिता क्षेत्र को नई जान दी है। अमित शाह ने कहा कि मप्र में कृषि, पशुपालन और सहकारिता तीनों ही क्षेत्रों में कई संभावनाएं पड़ी हुई है। इसके लिए हम सभी को बहुत काम करने की जरूरत है। धीरे-धीरे राज्यों में यह विलुप्त होती जा रही थी। कुछ राज्यों में इसने ग्रामीण और आर्थिक विकास के सभी मापदंडों पर काम किया। कुछ जगहों पर इसका सरकारीकरण कर दिया गया। कई जगहों पर देशभर में सहकारी आंदोलन बंटा हुआ था। इसका मुख्य कारण यह था कि समय के साथ इसके कानूनों में जो बदलाव होने चाहिए थे, वे नहीं हुए थे। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में बहुराज्यीय को छोडक़र सभी सहकारिताएं राज्यों का विषय हैं। जिस तरह से देश में हालात बदले, उसके हिसाब से कदम नहीं उठाए गए। और सोच भी कैसे सकते थे, केंद्रीय स्तर पर कोई सहकारिता मंत्रालय ही नहीं था। आजादी के बाद पहली बार मोदी सरकार ने इस मंत्रालय का गठन किया। मेरा सौभाग्य है कि पहला मंत्रालय मुझे सौंपा गया। आज भी सहकारिता राज्य की जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार कोई बदलाव नहीं कर सकती।
अमित शाह ने इस दौरान कहा कि सहकारिता मंत्रालय का पहला काम प्राथमिक स्तर पर मॉडल बायलॉज बनाना था। इसे सभी राज्य सरकारों को भेजा गया। कई लोगों ने कहा कि यह राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा। कई राज्यों में एनडीए सत्ता में नहीं है। लेकिन आज सभी राज्यों में इसे अपनाया गया है। जब आपकी नीयत सही हो, मेहनत करने की इच्छा हो तो सब कुछ सही होता है। उन्होंने कहा कि जब तक मछुआरा समाज, डेयरी या पैक्स मजबूत नहीं होंगे, तब तक तीनों क्षेत्रों में विकास नहीं हो सकता। आज पैक्स काउंटर पर 300 से ज्यादा सुविधाएं हैं। ट्रेन टिकट हो या लाइसेंस, अब लोगों को गांव से बाहर जाने की जरूरत नहीं है। अब गैस सिलेंडर, पेट्रोल पंप से लेकर अन्य सभी काम पैक्स से पास ही होने वाला है। उन्होंने कहा कि पैक्स के कम्प्यूटरीकरण में मप्र पहला राज्य है। इससे पारदर्शिता आई है, ये सभी पैक्स किसान की भाषा में दिखाई देंगे। हर भाषा में केंद्र सरकार ने ऐसी सुविधा बनाई है। शाह ने कहा कि इन तीनों सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को अधिक लाभ मिलेगा। किसान वैश्विक बाजार तक पहुंचेंगे। जब किसान अपना दूध बाजार में बेचने जाता है तो उसे परेशानी होती है। लेकिन हमें सहकारी समितियों के माध्यम से इसका सही उपयोग कर किसानों की आय बढ़ानी है। प्रदेश में 350 करोड़ लीटर दूध में से केवल 2।5 प्रतिशत ही डेयरी में आता है। हमें इसे बढ़ाना है ताकि किसानों की आय भी बढ़े। उन्होंने राज्य सरकार और एनडीबीडी के बीच हुए अनुबंध पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि एनडीडीबी के साथ मप्र सरकार द्वारा किए गए अनुबंध से सहकारी समितियों के 83 प्रतिशत गांवों तक पहुंचने की गुंजाइश खुल गई है। 83 प्रतिशत गांवों तक डेयरी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। पहले 5 साल में 50 प्रतिशत गांवों तक डेयरी पहुंच जाए और किसानों को इसका लाभ मिले। अगर इसके लिए वित्त की जरूरत होगी तो भारत सरकार की एमसीडी मदद करेगी। लेकिन किसान को उसके दूध उत्पादन का 100 प्रतिशत लाभ मिलना चाहिए, तभी ज्यादा उत्पादन होगा। उन्होंने कहा कि 20 साल बाद यह अमूल और अन्य संगठनों से भी बड़ा बनने जा रहा है।