
- मंत्री समूह निकालेगा पदोन्नति का रास्ता
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश के करीब 1.50 लाख सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन मिलने की आस एक बार फिर से जगी है। इसके लिए प्रदेश सरकार ने जहां मंत्री समूह का गठन किया है, वहीं प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट 10 अक्टूबर को फैसला सुना सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सहित सभी राज्यों का पक्ष सुनने के बाद कहा कि इस मामले में अब आगे सुनवाई नहीं होगी। सभी राज्य 2 सप्ताह में अपना पक्ष लिखित में पेश करें। शीर्ष अदालत ने कहा कि 5 अक्टूबर से लगातार केंद्र और राज्य सरकार को आधा-आधा घंटा अपना पक्ष रखने के लिए समय दिया जाएगा। गौरतलब है कि प्रमोशन में आरक्षण का विवाद होने के कारण अभी तक करीब 80 हजार कर्मचारी बिना प्रमोशन रिटायर हो गए हैं। लेकिन राज्य कर्मचारियों को चार साल बाद भी प्रमोशन का रास्ता नहीं निकल पाया है। अब सरकार ने एक बार फिर प्रयास शुरू किए हैं। इसके लिए मंत्री समूह का गठन किया गया है। इस मंत्री समूह से कर्मचारियों की उम्मीदें बढ़ी हैं। वहीं नाराजगी यह है कि राज्य कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है जबकि राज्य प्रशासनिक सेवा और अखिल भारतीय सेवा के अफसरों के प्रमोशन में कोई रोक नहीं है। उन्हें समय पर प्रमोशन का लाभ दिया जा रहा है।
समस्या जस की तस
मध्यप्रदेश में सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या 5,54,991 है। इतने बड़े अमले की सबसे बड़ी नाराजगी प्रमोशन न होना है। इस कारण प्रमोशन के अभाव में लगभग 80 हजार कर्मचारी रिटायर हो गए हैं। वहीं लगभग 1.50 लाख कर्मचारी प्रमोशन का इंतजार कर रहे हैं। सरकार ने प्रमोशन के लिए कई कदम उठाए हैं। प्रमोशन नियम निरस्त किए जाने संबंधी हाईकोर्ट के निर्णय को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। कर्मचारियों को सशर्त प्रमोशन की पहल हुई। प्रस्ताव था कि यदि कोर्ट का निर्णय प्रमोशन के खिलाफ आया तो संबंधित कर्मचारी का डिमोशन कर दिया जाएगा। जिला अदालत कर्मचारियों के मामले में ऐसा ही हुआ।
पहले भी हो चुके हैं प्रयास
मप्र में प्रमोशन का विवाद सुलझाने के लिए पहले भी प्रयास हुए थे। कमलनाथ सरकार के समय भी प्रमोशन के लिए मंत्री समूह गठित किया गया था। तत्कालीन सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री डॉ. गोविंद सिंह की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने कर्मचारी संगठनों का भी सुना था। उसी दौरान प्रमोशन के अभाव में उच्च पदनाम का फामूर्ला तय हुआ था। विभागों को निर्देश दिए गए थे कि वे अपने-अपने स्तर पर कार्यवाही कर कर्मचारियों को उच्च पदनाम दें। विभाग इस पर अमल कर पाते इसके पहले ही सत्ता परिवर्तन हो गया और कमलनाथ सरकार का निर्णय फाइलों में दफन हो गया। हालांकि अब पुलिस महकमे में उच्च पदनाम देने का क्रम शुरू हुआ है। अन्य विभागों के कर्मचारी इंतजार कर रहे हैं।
रिटायरमेंट एज बढ़ानेके बाद भी नाराजगी
प्रमोशन में आरक्षण का नियम रद्द होने के बाद कर्मचारियों की नाराजगी को दूर करने के लिए चार साल पहले तत्कालीन शिवराज सरकार ने बीच का रास्ता निकालने के लिए प्रयास किए थे। इसके लिए सरकार ने नए नियम भी तैयार हो गए थे, लेकिन सरकार के यह प्रयास सफल नहीं हो सके। कानूनी राय भी ली गई लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण मामला अटक गया। कर्मचारियों की नाराजगी को देखते हुए वर्ष 2018 में रिटायरमेंट एज 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई। इससे कर्मचारियों का रिटायरमेंट तो रुक गया लेकिन इन दो सालों में भी प्रमोशन का कोई रास्ता नहीं निकाला जा सका।
2016 में हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
प्रदेश में पदोन्नति नियम 2002 के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति होती थी, लेकिन 2016 में उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। दरअसल, अनारक्षित वर्ग की ओर से अनुसूचित जाति-जनजाति को दिए जा रहे आरक्षण की वजह से उनके अधिकार प्रभावित होने को लेकर हाईकोर्ट में 2011 में 24 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें सरकार द्वारा बनाए मप्र पब्लिक सर्विसेज रूल्स 2002 में एससी-एसटी को दिए गए आरक्षण को कटघरे में रखा गया था। हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को राज्य में एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने के नियम को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था।
नए नियम का ड्राफ्ट तैयार
सरकार नए पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार कर चुकी है। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार, अपर मुख्य सचिव गृह डॉ.राजेश राजौरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की समिति बनाई गई थी। समिति ने सभी पहलुओं पर विचार करने और विधि विशेषज्ञों से अभिमत लेने के बाद नए नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है। अब इसे कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है, जिसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रस्ताव भी भेज दिया है।