
भाजपा की चुनावी रणनीति तैयार
मप्र में भाजपा इस बार नई रणनीति से चुनाव लड़ेगी। अबकी बार पार्टी किसी के चेहरे पर नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं के भरोसे चुनाव लड़ेगी। पार्टी आलाकमान ने प्रदेश संगठन और सरकार को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि कार्यकर्ताओं को पूरा महत्व दिया जाए। वैसे मप्र संगठन पूरी तरह कार्यकर्ताओं के इर्द-गिर्द ही काम करता है। लेकिन आलाकमान से मिले निर्देश के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने अबकी बार कार्यकर्ताओं पर दांव लगाने का अभियान शुरू कर दिया है।
विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। भाजपा कैडर आधारित पार्टी है। पार्टी में प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री या मंत्री या सांसद-विधायक सभी ही हैसियत एक कार्यकर्ता की होती है। इसलिए भाजपा में कार्यकर्ता ही सबकुछ होता है। इसलिए भाजपा हाईकमान ने इस बार मप्र के चुनाव में कार्यकर्ताओं पर जोर देने का निर्देश दिया है। इसी कड़ी में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गतदिनों इंदौर में विजय संकल्प कार्यकर्ता सम्मेलन में शिरकत के बहाने प्रदेश में चुनाव प्रचार का विधिवत आगाज किया। साथ ही दिग्गज भाजपाइयों की उपस्थिति में अपने भाषण में कार्यकर्ता को सबसे महत्वपूर्ण बताते हुए चेहरे की बजाय कार्यकर्ताओं के भरोसे चुनाव मैदान में उतरने पर पूरा जोर दिया है। दरअसल, इस बार भाजपा मप्र के विधानसभा चुनाव के साथ ही 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी साथ-साथ कर रही है। जुलाई में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मप्र के ताबड़तोड़ प्रवास कर साफ संदेश दे दिया कि आने वाला विधानसभा चुनाव भाजपा मोदी-शिवराज सरकार की उपलब्धियों के आधार पर लड़ेगी और इसमें चेहरा कमल का फूल होगा। शाह ने इंदौर में कार्यकर्ताओं को भी समझा दिया कि चुनाव जिताने की ताकत नेताओं में नहीं बल्कि केवल आप में है। उल्लेखनीय है कि शाह के नियमित प्रवासों से भी स्पष्ट हो गया है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के सारे सूत्र केंद्रीय नेतृत्व के हाथ में ही रहेंगे। कर्नाटक की सत्ता हाथ से फिसलने के बाद से भाजपा मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर बेहद आशंकित है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 जून को भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को नए सिरे से जोश भरने की कोशिश की। इसके बाद से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मप्र के विधानसभा चुनाव की कमान संभाल ली है। शाह निरंतर मप्र में आ रहे हैं और चुनाव के सारे सूत्र अपने हाथ में रखे हैं।
दरअसल, भाजपा को डर है कि वर्ष 2024 से पहले मप्र में पार्टी को नुकसान हुआ तो ठीक नहीं होगा। उनके इंदौर दौरे से यह भी तय हो गया है कि भाजपा लोकसभा चुनाव तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और चेहरे पर लड़ेगी किंतु राज्यों में वह चेहरे के स्थान पर कार्यकर्ताकृत चुनाव लड़ेगी। शाह ने साफ कहा कि, भाजपा को चुनाव बूथ पर बैठा कार्यकर्ता जिता सकता है। प्रदेश में चुनाव जीतने का आधार कार्यकर्ताओं को बताते हुए उन्होंने कहा कि आज यहां से संकल्प लेकर जाना है कि प्रचंड बहुमत के साथ 2023 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाना है तथा 2024 में लोकसभा की सभी 29 सीटें जीतकर मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाना है। आज जिस तरह भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, वैसे ही मप्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में आत्मनिर्भर बन रहा है। प्रदेश की विकास दर में 16.34 प्रतिशत की बढ़त हुई है। वर्ष 2002 में प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद 71594 करोड़ था, जो कि अब बढक़र 13,22,000 करोड़ हो गया है। इतना ही नहीं, साल 2002 में में प्रति व्यक्ति आय 11,718 रुपए थी। जो कि साल 2022-23 में बढक़र 1 लाख 40 हजार 500 रुपए पहुंच गई है। सरकार ने साल 2003 के बाद से अब तक का विकास बताया है। अधिकांश आंकड़ों में 2003 और 2022 की तुलना की गई है। इसके पीछे कारण यह है कि 2003 के पहले प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। वर्ष 2018 में भले ही कांग्रेस सरकार बनी थी, लेकिन वह डेढ़ साल में ही गिर गई थी।
कमल का फूल दिखाकर मांगेंगे वोट
मप्र में तीन-चार महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। कांग्रेस और भाजपा में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। ज्यादातर कांग्रेस नेता तो कमलनाथ को ही मुख्यमंत्री का चेहरा बता रहे हैं, लेकिन भाजपा नेता कमल के फूल के नाम पर वोट मांगने की बात कह रहे हैं। क्या इसका मतलब यह है कि 2018 के नतीजों से सबक लेकर भाजपा ने अपनी स्ट्रैटजी बदली है? क्या इस बार के चुनाव पूरी तरह मोदी के नाम पर लड़े जाएंगे? राजनीतिक परंपरा में चुनावों के बाद सबसे बड़ी पार्टी का विधायक दल अपना नेता चुनता है। उसे ही मुख्यमंत्री बनाया जाता है। 2003 में भाजपा ने तय किया कि मप्र में चुनावों से पहले मुख्यमंत्री के चेहरे को प्रोजेक्ट किया जाए और दिग्विजय सिंह के सामने उमा भारती को उतारा था। सफलता मिली तो यह परिपाठी बन गई। 2008 से लेकर 2018 तक शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व और उनके चेहरे को दिखाकर ही भाजपा ने वोट मांगे। पिछले चुनाव में भाजपा को मिली हार ने स्ट्रैटजी बदलने को मजबूर कर दिया है। यह बात अलग है कि 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कई विधायक भाजपा में आ गए और सरकार फिर भाजपा की बनी। उस समय शिवराज सिंह चौहान को ही मुख्यमंत्री बनाया गया क्योंकि भाजपा के पास उनके जैसे व्यक्तित्व वाला कोई और नेता नहीं है। अब 2023 के चुनावों के लेकर पार्टी के नेता फूल को चेहरा होने की बात कह रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ज्यादा लिया जा रहा है। दरअसल, भाजपा मिशन 2023 के साथ ही 2024 की भी तैयारी में जुटी हुई है। इसलिए पार्टी का चेहरा कमल का फूल होगा।
2018 में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनाव लड़ा था। भाजपा को मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल और महाकौशल में भारी नुकसान हुआ था। भाजपा इन क्षेत्रों में खोया जनाधार बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों को मजबूती देना चाहती है। इसी को ध्यान में रखकर कमल के फूल को चेहरा बनाया गया है। कमल के फूल के पीछे सभी नेता एकजुट हो सकते हैं। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में क्षेत्रीय क्षत्रपों होते थे। अब भाजपा में भी कई क्षेत्रों में समान कद के कई नेता हैं। उनका अपने क्षेत्र और कार्यकर्ताओं पर प्रभाव है। यह एक जमाने में कांग्रेस के साथ था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद यह लाइन और गहरा गई है। ऐसे में एकजुटता के साथ चुनाव लडऩे के लिए भाजपा ने कमल को आगे रखकर चुनाव लडऩे का निर्णय लिया है।
नेताओं की नाराजगी दूर करना
संघ के सूत्रों का कहना है कि भाजपा अब भविष्य को देखते हुए नेताओं की जगह कार्यकर्ताओं को महत्व देना चाहती है। इसके लिए पार्टी ने जहां कार्यकर्ताओं को महत्व देने का निर्देश जारी किया है, वहीं पार्टी के वरिष्ठ और असंतुष्ट नेताओं को भी महत्व देने को कहा है। गौरतलब है कि मप्र भाजपा में पुराने नेताओं में नाराजगी और असंतोष है। कार्यकर्ताओं की नाराजगी ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें मनाने के लिए पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी दी है। नेता कार्यकर्ताओं को कमल चेहरा होने की बात कर समझाने की कोशिश कर रहे है कि कमल मतलब कार्यकर्ता। ताकि उनकी नाराजगी दूर कर उन्हें चुनावी तैयारी में लगाया जा सके। एक निश्चित समय तक रहने के बाद जनता सत्ताधारी दल से असंतुष्ट हो जाती है। बदलाव चाहती है। भाजपा 2018 के डेढ़ साल छोड़ दें तो 2003 से सत्ता में है। शिवराज सिंह चौहान 2005 से मुख्यमंत्री है। कांग्रेस लगातार शिवराज सरकार पर हमला बोल रही है। उनके कार्यकाल के भ्रष्टाचार, घोटाले गिना रही है। इसके प्रभाव को कम करने के लिए भाजपा अब कमल के फूल को चेहरा बता रही है। भाजपा के सूत्रों के अनुसार गत दिनों हुई बैठक में अमित शाह ने बीजेपी की मप्र इकाई से दो टूक कहा है कि हर हाल में पार्टी के नाराज नेताओं को मनाना होगा। उनकी नाराजगी दूर करने के साथ यह सन्देश हर कार्यकर्ता और नेता तक पहुंचना है कि एकजुट होकर लडऩे पर ही जीत मिलेगी। सरकार बनी तो सबका ध्यान भी रखा जाएगा।
इसी वजह से भाजपा मप्र में पूरी ताकत झोंक रही है। शाह के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे भी प्रदेश में बढ़ाए जा रहे हैं। बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद में शाह ने उन्हें भी समझा दिया कि अब वाद-विवाद का समय नहीं बचा है। सरकार रहेगी तो ही आपकी पूछ-परख होगी। अन्यथा फिर आपको भी कोई पूछने वाला नहीं है। शाह की सक्रियता से साफ है कि भाजपा कांग्रेस की ताकत बढऩे नहीं देना चाहती है, इसलिए मप्र में उसे रोकने के सारे प्रयास किए जा रहे हैं। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा का कहना है कि शाह जी का पाथेय कार्यकर्ताओं को मिला है। उन्होंने विजय संकल्प के साथ चुनाव का आगाज कर दिया है। परिवारवाद और भ्रष्टाचार कांग्रेस के अस्त्र हैं, भाजपा इन पर किसी तरह का समझौता नहीं कर सकती। उन्होंने कार्यकर्ताओं को हर बूथ पर 51 प्रतिशत मत लाने का संकल्प दिलाया है। इसी विजय संकल्प के साथ एक-एक कार्यकर्ता जनता के बीच जाएगा।
शिवराज-वीडी का नेतृत्व
इस बार मप्र में भाजपा हाईकमान ने भले ही चेहरे को महत्व नहीं दिया है लेकिन यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रदेश में चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह विधानसभा चुनाव 2023 के तहत मप्र पर विशेष नजर बनाए हुए हैं। शाह जहां प्रादेशिक नेताओं में समन्वय बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, वहीं क्षेत्रीय नेताओं से उनके क्षेत्र की विधानसभा सीटों का फीडबैक भी लेना शुरू कर दिया है। मालवा और निमाड़ की सीटों पर कैलाश विजयवर्गीय से बात की है तो वहीं ग्वालियर-चंबल की सीटों पर नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया से बात की। विंध्य और बुंदेलखंड के साथ-साथ महाकौशल की सीटों पर प्रह्लाद पटेल से बात हुई। यही नहीं वे दावेदारों की कुंडली और वहां के समीकरण साथ ले गए हैं। यह भी लिस्ट ले गए हैं कि कब कौन हारा और कब जीता। लोकल कारण क्या रहे, इस पर समीक्षा भी की जा रही है। वे यहां के संगठन के नेताओं का स्पष्ट संदेश देकर गए हैं कि चुनाव में किसी भी हाल में 2018 जैसी स्थिति नहीं बनना चाहिए। प्रदेश की 230 में से अधिकतर सीटें भाजपा को जीतना है। एक बार फिर भाजपा को कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल बताकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बड़े नेताओं को आईना दिखा दिया। इस बार जो सर्वे हुआ है, उसमें भी कार्यकर्ताओं की नाराजगी सामने आई थी और उसी के कारण कई सीटों पर फिर भाजपा का गणित गड़बड़ा सकता था।
शाह ने चुनाव जीतने के दो मंत्र दिए। पहला- वोटिंग होने तक बूथ का कार्यकर्ता लगातार बूथ पर ही सक्रिय रहना चाहिए। दूसरा- हितग्राही से लगातार संपर्क में रहें। उन्होंने कहा कि जिन्हें केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं को फायदा मिला, वे हमारी योजनाओं की प्रामाणिक ताकत हैं। 15 सूत्रीय कार्यक्रमों पर तेजी से काम करना है। शाह ने दो-तीन पदाधिकारियों से सुझाव भी लिए। जीत के लिए टिप्स भी दिए। उन्होंने कहा, मध्यप्रदेश हमारे लिए राजनैतिक दृष्टि से बहुत अहम है। हमारे संगठन का स्ट्रक्चर ही कुछ ऐसा है कि सिर्फ मन से जुटने की देर है। हमें केंद्र और राज्य की बड़ी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाना है। सक्रियता में कमी नहीं आना चाहिए। आज से ही यह अभियान शुरू हो गया है। अब चुनाव तक न खुद चैन से बैठना है, न कार्यकर्ताओं का उत्साह कम होने देना है। मैं मध्यप्रदेश आता रहूंगा। आकर देखूंगा तो उत्साह दोगुना नजर आना चाहिए। सूत्रों ने बताया कि बैठक में शाह ने 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के कारणों पर बातचीत की। पिछली बार हारी सीटों को दोबारा कैसे जीता जाए, इसके लिए रोड मैप पर चर्चा की गई। शाह ने बताया कि कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनावों में कैसे आदिवासी क्षेत्रों की कुल 47 सीटों में से 31 पर जीत हासिल की थी। शाह ने कहा, जैसा कह रहा हूं, वैसा हो जाना चाहिए। 2018 में हमसे चूक हो गई थी। इस बार वह गलती नहीं दोहराना है। इस बार चूक हुई तो सरकार चली जाएगी। यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि मध्यप्रदेश की जीत बहुत जरूरी है। अगर हम एमपी जीत गए तो समझो कि अगले 50 साल केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार रहेगी। भाजपा संगठन की ओर से बनाई गई न्यू जॉइनिंग टोली यह तय करेगी कि जो नेता और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल होने वाले हैं उनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि तो नहीं है। महिला उत्पीडऩ, छेड़छाड़, यौन अपराधों जैसे संगीन मामलों में आरोपी तो नहीं है। पार्टी में एंट्री के पहले छवि का भी ध्यान रखा जाएगा। यह भी देखा जाएगा कि भाजपा में शामिल होने के इच्छुक नेता ने पीएम नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, सीएम शिवराज सहित पार्टी के किसी सीनियर नेता के खिलाफ बयानबाजी तो नहीं की। इसके साथ ही पार्टी की टीम उस नेता का सोशल मीडिया अकाउंट भी देखेगी। चुनाव के पहले भाजपा ने मप्र के अलग-अलग इलाकों की जाति, वर्गों को साधने के लिए सामाजिक टोली बनाई है। इस टोली में क्षेत्रवार नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है। ये नेता अपने इलाकों की जातियों और सामाजिक संगठनों से चर्चा करके उनकी समस्याएं और नाराजगी को समझेंगे।
मप्र पर शाह का कंट्रोल
मप्र में सत्ता और संगठन में बदलाव के तमाम कयासों पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने विराम लगा दिया है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि प्रदेश में कोई भी बदलाव नहीं होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। हालांकि शाह ने यह संकेत भी दे दिया है कि मप्र में विधानसभा चुनाव का कंट्रोल उन्हीं के हाथ में रहेगा। विधानसभा चुनाव को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भोपाल और इंदौर में भाजपा के नेताओं के साथ बैठक की। अमित शाह ने चुनावी जंग फतह करने की रूपरेखा बनाई। बैठक के पहले, बैठक के दौरान और बैठक के बाद जो संदेश निकला उससे साफ हो गया है कि मप्र में चुनाव का पूरा कंट्रोल अमित शाह के पास रहेगा। गौरतलब है कि मप्र की चुनावी कमान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संभाल ली है। इसके साथ ही संदेश दे दिया गया है कि प्रभारी भूपेंद्र चौधरी और सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव ही विधानसभा चुनाव के पावर सेंटर होंगे। अमित शाह ने राज्य की सभी 230 विधानसभा सीटों की तैयारियों का जायजा लिया। राज्य की 150 सीटों पर खास फोकस करने की रणनीति बनाई है। इन सीटों पर पार्टी ने अभी तक क्या काम किया है और विपक्ष ने क्या तैयारी की है, इस पर मंथन किया है। विधानसभा चुनाव को लेकर पूरी तरह से फीडबैक लेकर अमित शाह मप्र के दौरे पर आए थे। इसलिए उन्होंने हर एक पहलू पर बात की। राज्य की सभी सीटों पर मंथन किया। इस दौरान राज्य की कमजोर और मजबूत सीटों को लेकर अमित शाह ने अलग-अलग रणनीति बनाने की बात कही है। बैठक के दौरान भाजपा नेताओं के बीच बेहतर तालमेल बैठाने की भी बात अमित शाह ने कही है। जमीनी स्तर पर मजबूती और आक्रामकता के साथ कांग्रेस की रणनीति को काउंटर करने के दिशा निर्देश भी दिए। इसके अलावा राष्ट्रीय मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया, जिसमें समान नागरिक संहिता से जुड़े मुद्दे पर बात हुई।
नवंबर और दिसंबर में चुनाव हो जाएंगे और प्रदेश में नई सरकार 6 जनवरी के पहले शपथ ले लेगी, क्योंकि इसी दिन पुरानी सरकार का कार्यकाल खत्म होने वाला है। शाह न केवल अटकलों पर विराम लगाकर गए, बल्कि नेताओं को भी चेतावनी दे गए हैं कि अब किसी प्रकार की भ्रमपूर्ण स्थिति निर्मित नहीं करें और पार्टी की मजबूती पर ध्यान दें। जिन नेताओं में आपस में मतभेद हैं वे इसे भुलाकर चुनाव की तैयारियों में लग जाएं और सरकार की योजनाओं का लाभ जिन लोगों को दिलाया है, उनको भी साथ लेकर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाएं। अमित शाह ने बैठक में साफ संदेश दिया कि मप्र में 2023 के विधानसभा चुनाव तक प्रदेश चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव और सह प्रभारी अश्विनी वैष्णव ही पॉवर सेंटर होंगे। मप्र की चुनावी तैयारी, अभियान, प्रबंधन के साथ अन्य मामलों में यादव और वैष्णव ही समन्वय करेंगे और दिल्ली से संपर्क में रहेंगे।
विकास होगा मुद्दा
पिछले चुनावों की तरह इस बार के चुनाव में भी भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। दरअसल, भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि मप्र में डबल इंजन की सरकार के कारण ऐतिहासिक विकास हुआ है। इसलिए प्रदेश की जनता भी इस बात को जानती है कि भाजपा ही विकास करा सकती है। मप्र में प्रदेश सरकार द्वारा योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के कारण समेकित विकास दिख रहा है। मप्र में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, प्रदेश में बेहतर वित्तीय प्रबंधन, वित्तीय समावेशन जैसे अर्थ-व्यवस्था के मूलभूत आधारों का परिणाम है। साथ ही प्रदेश में सरकारी बैकिंग व्यवसाय में निरंतर वृद्धि, प्राथमिकता क्षेत्र के समय पर समुचित ऋण, जन-धन खातों में आमजन की बढ़-चढकर भागीदारी और बचत, प्रदेश में जन-आंदोलन का स्वरूप ले चुके स्व-सहायता समूहों द्वारा ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था में सतत योगदान भी इसके प्रमुख कारकों में हैं। इसके अलावा कृषि प्रधान प्रदेश में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि, छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ औद्योगीकरण के चौतरफा प्रयासों से बढ़ते निवेश की भी प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बिजली क्षेत्र में सरप्लस स्टेट होना, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सडक़ों के नेटवर्क का अभूतपूर्व विस्तार तथा स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में प्रदेश सरकार द्वारा किये गये सुविचारित प्रयास भी प्रदेश की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के पीछे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार इस दिशा में तेजी से कार्य कर रहे हैं कि राज्य की अर्थव्यवस्था के प्रमुख घटकों को कैसे बेहतर बनाया जाए। वर्ष 2022-23 के अग्रिम अनुमानों के अनुसार राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2021-22 (स्वरित) की तुलना में प्रचलित भावो पर 16.43 प्रतिशत तथा स्थिर भावों पर 7.06 प्रतिशत की वृद्धि रही है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में स्थिर भावो पर वर्ष 2022-23 अग्रिम के दौरान पिछले वर्ष से प्राथमिक क्षेत्र में 5.24 प्रतिशत द्वितीयक एवं तृतीय क्षेत्र में क्रमश: 5.42 प्रतिशत एवं 9.99 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि रही है। वहीं कृषि प्रधान प्रदेश में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि व औद्योगीकरण के चौतरफा प्रयासों से बढ़ते निवेश को भी प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बिजली क्षेत्र में सरप्लस स्टेट होना, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सडक़ों के नेटवर्क का विस्तार तथा स्वास्थ्य, पोषण और समाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में प्रदेश सरकार की ओर से किए गए प्रयास भी प्रदेश की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के पीछे है।
मप्र ने पिछले सालों में विकास के जो अध्याय लिखे हैं उससे कई राज्य सीख ले रहे हैं। सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह है कि प्रदेश की विकास दर वर्तमान मूल्यों पर 19.7 प्रतिशत तक पहुंच गई जो देश में सर्वाधिक है। सकल घरेलू उत्पाद 10 लाख करोड़ है। पूजीगत व्यय भी 48 हजार करोड़ हो गया है। प्रदेश सरकार ने स्थायी विकास और आत्मनिर्भर मप्र की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। करीब 20 साल में प्रति व्यक्ति आय 13 हजार से बढक़र अब एक लाख 23 हजार रुयये हो गई है। औद्योगिक निवेश, मध्यम, सूक्ष्म और लघु उद्योगों को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। इसका उद्देश्य स्वरोजगार को बढ़ाना है। रोजगार मेलों का जरिए अभी तक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 10 लाख से ज्यादा युवाओं को रोजगार दिलाया गया है। साल 2013-14 में गेंहू का उत्पादन 174.8 लाख टन था, जो अब 2022-23 में बढक़र 352.7 लाख टन पहुंचने का अनुमान है। वहीं, साल 2013-14 में धान 53.2 लाख टन का उत्पादन था, जो अब बढक़र 131.8 लाख टन हो गया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत वर्ष 2021-22 में 90 लाख से अधिक किसानों को फसल बीमा का लाभ दिया गया गया है। सिंचाई क्षमता में 585 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, साल 2003 में 7 लाख 68 हजार हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित था, जो कि साल 2022 में बढक़र 45 लाख हेक्टेयर हो गया है। वहीं, 2025 तक का लक्ष्य 65 लाख हेक्टेयर करने का है।