फिर आपदा में अवसर बनेगा मनरेगा

मनरेगा

-तीसरी लहर की दस्तक के साथ बढ़ी काम की मांग
-मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर हाथ को काम देने का दिया निर्देश
-मनरेगा के क्रियान्वयन में मध्यप्रदेश देश में सबसे अव्वल
-देश में सबसे ज्यादा मप्र में मजदूरों को मिला रोजगार

कोरोना की पहली और दूसरी लहर में प्रवासी के साथ ही नियमित मजदूरों के लिए संजीवनी बना मनरेगा एक बार फिर आपदा में अवसर बनेगा। तीसरी लहर की दस्तक के साथ ही एक बार फिर से मनरेगा में काम की मांग तेजी से बढ़ी है। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि ग्रामीण क्षेत्र के हर जरूरतमंद को काम दिया जाए।

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल।
कोरोना संक्रमण के दौरान जब प्रवासी श्रमिक अपने राज्यों पर बोझ बनने लगे थे, उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने श्रमिकों का हाथ फैलाकर स्वागत किया और उनके गांव में ही उनके रोजगार की व्यवस्था मनरेगा के तहत की। तमाम मजदूरों को गांव में ही रोजगार देने के लिए मनरेगा बड़ा सहारा बनी। इस दौरान बड़ी संख्या में मनरेगा के तहत काम शुरू कराए गए। अब तीसरी लहर की दस्तक के साथ ही मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की तदाद बढऩे लगी है। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी
गौरतलब है कि प्रदेश के 52 जिलों के 22 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतों में एक करोड़ 15 लाख से ज्यादा सक्रिय मजदूर हैं। कारोना काल में ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने में मनरेगा ने बहुत महत्पूर्ण भूमिका निभाई है। कोविड काल में 18 लाख से अधिक नवीन जॉबकार्ड जारी किए गए। कोविड काल में 34 करोड़ से अधिक मानव दिवसों का सृजन हुआ, जो योजना के प्रारंभ से अभी तक का सर्वाधिक है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में माह सितम्बर 2021 तक 76 लाख से अधिक ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराया जाकर 19 करोड़ से अधिक मानव दिवस का सृजन हुआ है। इस अवधि में 2 लाख 24 हजार से अधिक सामुदायिक एवं हितग्राही मूलक कार्य पूर्ण किए गए और 12 लाख 80 हजार से अधिक कार्य अभी प्रगतिरत हैं। मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में प्रदेश के 52 जिलों के 45135 ग्रामों में सघन रूप से कार्य किया जा रहा है। योजना में अब तक 3 लाख 36 हजार 521 समूहों का गठन कर लगभग 38 लाख 31 हजार परिवारों को जोड़ा जा चुका है। अब सरकार इनके माध्यम से एक बार फिर श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराएगी।

59 फीसदी मजदूरों को रोजगार
कोरोना संक्रमण के दौर में मजदूरों के लिए मनरेगा योजना बेहद लाभकारी साबित हुई है। मप्र में एक करोड़ 14 लाख से ज्यादा सक्रिय मजदूर हैं। प्रदेश में कोरोना काल के दौरान 59 फीसदी मजदूरों को रोजगार दिया गया है। इस मामले में मप्र केन्द्र की रैंकिंग में टॉप पर है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मुताबिक प्रदेश के 22 हजार 162 ग्राम पंचायतों के मजदूरों को जोडऩे के लिए 12 लाख 18 हजार 864 काम शुरू कराए गए। मनरेगा के तहत मजदूरों को काम दिलाने के मामले में दूसरे नंबर पर राजस्थान है। कोरोना संक्रमण काल में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर वापस लौटे। ऐसे तमाम मजदूरों को गांव में ही रोजगार देने के लिए मनरेगा बड़ा सहारा बनी। बड़ी संख्या में मनरेगा के तहत काम शुरू कराए गए। प्रदेश के 52 जिलों के 22 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतों में एक करोड़ 15 लाख से ज्यादा सक्रिय मजदूर हैं। कोरोना के दौरान पिछले साल मई माह में सबसे ज्यादा 21 लाख लोगों को हर दिन मजदूरी उपलब्ध कराई गई, जो 2019 के तुलना में दस लाख ज्यादा थी। प्रवासी मजदूरों को मनरेगा का लाभ देने के लिए व्यापक स्तर पर रोजगार कार्ड वितरण अभियान भी चलाया गया। हालांकि कोरोना का संक्रमण कम होने के साथ ही मनरेगा के कामों में भी कमी आई है। बताया जा रहा है अब करीब 12 लाख मजदूरों को हर दिन रोजगार दिया जा रहा है। ग्रामीण पंचायत विभाग के अधिकारियों के मुताबिक कोरोना काल में मनरेगा के तहत पिछले साल के मुकाबले 850 करोड़ रुपए की राशि ज्यादा बांटी गई है। साल 2019-20 में इसका बजट 2 हजार करोड़ था, इस साल इसे बढ़ाकर 2850 करोड़ किया गया। योजना में निर्धारित लेबर बजट 25 करोड़ मानव दिवस के विरूद्ध 23 करोड़ 95 लाख मानव दिवस सृजित किए गए हैं, जो उपलब्धि का 92 प्रतिशत है। योजना अंतर्गत निर्माण कार्य की संख्या में मप्र पूरे देश में चौथे स्थान पर है। योजना के प्रारंभ होने से अभी तक पूरे देश में 6 करोड़ से अधिक निर्माण कार्य पूर्ण हुए हैं, इनमें से 56 लाख से अधिक निर्माण कार्य मात्र मप्र में हुए हैं।

फिर बढऩे लगी काम की मांग
पिछले साल नवंबर से मनरेगा में काम मांगने वालों की तादाद में उछाल आया है। गौरतलब है कि कोरोना वायरस के चलते उपजी बीमारी कोविड-19 के बाद स्थितियों में सुधार के चलते पिछले साल सितंबर और अक्टूबर में इसमें काम मांगने वालों की तादाद अपने न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई थी। पिछले कुछ महीने में कोविड-19 के चलते आर्थिक गतिविधियों में पाबंदियां कम होती गई हैं। इसके बावजूद मांग का बढऩा गांवों में लोगों के आर्थिक संकट की ओर इशारा करता है। मनरेगा पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल नवंबर में 2.11 करोड़ और दिसंबर में 2.47 करोड़ परिवारों ने इस रोजगारी गारंटी योजना में काम की मांग की। यह अक्टूबर में 2.07 करोड़ परिवारों की मांग में वृद्धि को दर्शाता है। गौरतलब है कि यह मई 2020 के बाद सबसे कम मांग वाले महीनों में से एक था, जब पूरे देश में महामारी के चलते लॉकडाउन लगा हुआ था। सितंबर 2021 के बाद इस योजना में काम की मांग सबसे ज्यादा दिसंबर 2021 में दर्ज की गई। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार, इस ट्रेंड की मासिक बेरोजगारी दर से भी पुष्टि होती है, जो दिसंबर में 7.91 फीसदी थी। यानी सितंबर के बाद सबसे अधिक, जब यह 6.86 फीसदी थी। मांग बढऩे का यह आंकड़ा उस समय का है, जब कोरोना वायरस के नए वेरिएंट, ओमिक्रॉन के चलते मरीजों की तादाद में बहुत ज्यादा वृद्धि नहीं आई थी। जनवरी में अब तक (7 जनवरी 2022 तक) 68 लाख परिवार मनरेगा में काम की मांग कर चुके हैं। बीते साल के सारे महीनों में मनरेगा में काम मांगने वालों की तादाद दो करोड़ से ऊपर बनी रही। यह इस बात का संकेत है कि लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियों में सुधार के बावजूद हालात अभी महामारी से पहले के स्तर पर जैसे नहीं हो सके हैं। बड़ी तादाद में काम करने वाले मजदूर, जो 2020 में अपने काम करने की जगहों से गांव लौटे थे, अभी तक शहर वापस नहीं गए हैं और मनरेगा में काम मांग रहे हैं। आमतौर पर योजना में काम मांगने वालों की तादाद केवल फरवरी से लेकर जून के बीच दो करोड़ से ऊपर जाती है और यह मई और जून में सबसे ज्यादा होती है। ऐसा 2018-19 और 2019-20 दोनों वित्त-वर्षों में पाया गया।
वित्त-वर्ष 2021, जिसके पूरे होने में अभी दो महीने बाकी हैं, मनरेगा में काम की औसत मांग 2.37 करोड़ परिवार रही है। जबकि 2019-20 में औसतन 1.88 करोड़ परिवारों ने योजना में काम मांगा था। हालांकि गुजरते वित्त-वर्ष की यह मांग, 2020-21 की मांग से कम है, जिसमें इस योजना में काम मांगने वाले परिवारों की तादाद 2.55 करोड़ थी। मांग की तादाद के अनुपात में जहां तक काम पाने वालों का सवाल है, तो पिछले साल के अंतिम दो महीनों में काम मांगने वाले कुल 4.58 करोड़ परिवारों में से 3.53 करोड़ परिवारों को ही काम मिला। इनमें से 1.75 करोड़ परिवारों को बीते नवंबर में और 1.78 करोड़ परिवारों को दिसंबर में काम दिया गया। मनरेगा के तहत मांग में लगातर वृद्धि, इस योजना के तहत अधिक धन के आवंटन का सवाल भी उठाती है। इस साल के बजट में इसके लिए वित्तीय आवंटन को 61,500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 73,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था। लेकिन इस योजना में अब तक के वास्तविक खर्च 99,770 करोड़ रुपये को देखते हुए यह राशि मोटे तौर पर काफी नहीं है। इस राशि में मजदूरी और अन्य दूसरे घटकों के रूप में किए जाने वाले लंबित भुगतान भी शामिल हैं। 11,569 करोड़ बकाया भुगतान में से 1,552 करोड़ रुपये मजदूरों की मजदूरी के हैं। जो राज्य यह मानते हैं कि यह योजना, रोजगार पैदा करने के लिए है, उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा में हर साल सृजित रोजगार दिवसों की सीमा को पहले ही पार कर लिया है, जबकि इस वित्त- वर्ष के पूरा होने में अभी ढाई महीने से ज्यादा का वक्त बाकी है। केंद्र के नियम के मुताबिक, मनरेगा में काम मांगने वाले को साल में कम से कम सौ दिन काम दिया जाना जरूरी है। नवंबर में 80 सामाजिक-कार्यकर्ताओं के एक समूह ने महामारी के बाद मनरेगा में मांग में वृद्धि के बावजूद योजना में धन की भारी कमी को लेकर आवाज उठाई थी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर उनसे योजना के लिए वांछित फंड को जारी कराने की मांग की थी। पत्र में उन्होंने लिखा था, ‘धन की कमी के चलते काम की मांग को दबाया जाता है और इससे मजदूरों को उनकी मजदूरी के भुगतान में देरी होती है। ये इस अधिनियम का उल्लंघन हैं और इससे आर्थिक सुधारों में भी बाधा पड़ती है।’

मनरेगा के लिए धन की कमी
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एक मांग आधारित मजदूरी रोजगार कार्यक्रम है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को श्रम बजट के लिए सहमत हुए और वित्तीय वर्ष के दौरान राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन के आधार पर धन जारी किया जाता है। चालू वित्त वर्ष 2021-22 में पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 से बजट अनुमान (बीई) के स्तर पर 18 फीसदी से अधिक धन आवंटन में वृद्धि हुई है। जोकि 61,500 करोड़ से 73,000 करोड़ रुपये है। अंतरिम उपाय के रूप में महात्मा गांधी नरेगा के लिए हाल ही में अतिरिक्त कोष के रूप में 10,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इस बात की जानकारी ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने राज्यसभा को दी है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निधि जारी करना एक सतत प्रक्रिया है और केंद्र सरकार जमीनी स्तर पर काम की मांग को ध्यान में रखते हुए धन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा उपलब्ध धन वर्तमान वेतन देयता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।

मनरेगा में दिखा प्रवासी मजदूरों का हुनर
कोरोना काल में मप्र में मनरेगा योजना मजदूरों के लिए वरदान साबित हो रही है। सरकार के मुताबिक प्रदेश में जहां लाखों श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराए गए है। वहीं पूरे प्रदेश में एक दिन में अधिकतम 25 लाख 30 हजार श्रमिकों का काम देकर एक रिकार्ड बनाया गया है। रिकॉर्ड संख्या में रोजगार देने वाली योजना में मनरेगा मजदूरों का हुनर भी देखने को मिल रहा है। मनरेगा में फॉसिल पार्क, सैकड़ों साल पुरानी बावडिय़ों का जीर्णोद्धार और नक्षत्र वाटिका का निर्माण किया गया है। श्योपुर के रायपुरा में गौड़ राजवंश की 900 साल पुरानी बावड़ी का जीर्णोद्धार किया गया है। श्योपुर जिले में इस प्रकार की 9 बावडिय़ों के जीर्णोद्धार एवं सौन्दर्यीकरण का कार्य कराया जा रहा है। मनरेगा योजना के तहत धार के सुलीबर्डी फॉसिल पार्क बनाया गया है। जिले के आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में फॉसिल (जीवाश्म) उपलब्ध हैं, जिन्हें इस पार्क में संग्रहित किया गया है। यहां डायनासोर के अंडों सहित अन्य दुर्लभ जीवाश्म (फॉसिल) हैं। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फॉसिल पार्क बनाए जाने की तारीफ करते हुए कहा कि यह अद्भुत कार्य है। मैं इसे देखने जरूर आऊंगा। बैतूल जिले के ग्राम कान्हाबाड़ी मनरेगा से नक्षत्र वाटिका तैयार की गई है जिसमें 27 नक्षत्र, 12 राशि एवं 9 गृहों के पौधे लगाए गए हैं। वाटिका में एक्यूप्रेशर ट्रेक एवं पाथ-वे भी बनाया गया है। इसमें गांव की महिलाओं ने मिस्त्री का काम किया है।
कोरोनाकाल में मजदूरों के लिए रोजगार का साधन बनी मनरेगा योजना में गौ-शाला का निर्माण बने पैमाने पर हुआ है। ग्वालियर के ग्राम बन्हेरी में मनरेगा के तहत 15 सौ गौवंश को रखने के लिए गौशाला का निर्माण किया जा रहा है। यहां गो-शाला के साथ ही मंदिर सरोवर का निर्माण भी किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गौशाला निर्माण की तारीफ करते हुए कहा कि वह खुद गौशाला का शुभारंभ करने के लिए बन्हेरी आएंगे। लॉकडाउन के चलते प्रदेश में लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा एक वरदान साबित हुई। लॉकडाउन के दौरान कसाराघाट कल्याण महाराष्ट्र से वापस लौटे प्रवासी मजदूर रामचरण के मुताबिक वे लॉकडाउन के दौरान अपने गांव रोशिया जिला खंडवा लौट आए थे। गांव लौटकर आने पर मनरेगा योजना के तहत उन्हें काम मिला और खंती खुदाई (कंटूर ट्रेंचिंग) का काम कर रहे हैं। रमचरण कहते हैं कि वह अबग आगे भी अपने गांव में रहकर ही काम करना चाहते हैं और पैसों के लिए वारस परदेश नहीं जाना चाहते है।

गांव के विकास को दिया नया आयाम
कोरोना संक्रमण को करीब-करीब 22 होने को हैं। इस दौरान इस देश ने क्या-क्या नहीं देखा। गत वर्ष मार्च-अप्रैल से लेकर मई-जून तक का जो माहौल रहा उसमें जाने कितनों की उम्मीदें टूट गईं। कितनों की सांसें थम गईं। सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर जैसे-तैसे गांव-घर पहुंचे। बड़े शहरों के बड़े लोगों की सोच ने उन्हें इस कदर अंदर तक हिला दिया की उन्होंने मन बना लिया कि अब अपने गांव में ही काम करेंगे। लेकिन एक साथ इतने सारे लोगों के लिए काम मुहैया करा पाना बड़ी चुनौती रही। ऐसे में याद आई मनरेगा की। केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक ने मनरेगा को बढ़ावा दिया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम मिल सके वो भी उनके घर में। उनके अपने गांव में। इस कड़ी में बहुतेरे गांवों ने ऐसा काम कर दिखाया जो मिसाल बन गया। ऐसा ही के गांव है एमपी के सीधी जिले के मझौली विकासखंड की ग्राम पंचायत चंदोही डोल। इस ग्राम पंचायत ने इस आपदा को अवसर के रूप में देखा। ग्राम पंचायत के उपसरपंच रोहिणी रमण मिश्रा बताते हैं कि कठिन समय में ग्राम पंचायत ने श्रम आधारित कार्यों को प्रारंभ करने का निर्णय किया ताकि गांव के गरीब श्रमिकों को गांव में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सके। वह बताते हैं कि इसके तहत गांव में अधोसंरचना के कार्यों को प्राथमिकता दी गई। तालाबों का निर्माण किया गया जिससे कृषि में मदद मिलेगी साथ ही भविष्य में मछली पालन को भी बढ़ावा मिलेगा। गांव के दुर्गम इलाकों को सुदूर सडक़ों व पुल-पुलिया के माध्यम से मुख्य मार्गों से जोड़ा गया। इस कार्य से वहां के निवासियों को खुशी मिली।
कोरोना काल में ग्राम पंचायत चंदोही डोल में विकास कार्यों में मिसाल कायम कीग्राम चंदोही डोल में 20 जनवरी से 23 मार्च 2021 तक अमरहिया तालाब में बंड विस्तार पिचिंग का कार्य किया गया। इसमें 3 हजार 63 रोजगार दिवसों का सृजन हुआ। इसी प्रकार 3 जून से 13 जुलाई 2021 के बीच हरीलाल जायसवाल के घर के पास तालाब में बंड विस्तार व वेस्ट बियर का निर्माण किया गया। इस कार्य में 3 हजार 10 मानव दिवसों का सृजन हुआ। परौहान टोला अमहिरा डोल से प्राथमिक शाला व आंगनवाड़ी पहुंच मार्ग निर्माण में एक अप्रैल से 28 अप्रैल 2021 के मध्य एक हजार 63 मानव दिवसों का सृजन हुआ है। परौहान टोला में एप्रोच रोड निर्माण से वहां निवास कर रहे 25 परिवारों ने राहत की सांस ली है। उन्होने बताया कि बारिस के दिनों में आवागमन में बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। यदि किसी की तबियत खराब हो या गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए ले जाने में समस्याएं होती थी। अब पूरे वर्ष भर वाहन घर तक आ सकेंगें। बच्चे भी विद्यालय तक आसानी से पहुंच सकेंगें। चंदोही डोल ग्राम पंचायत ने चुनौती को स्वीकार कर ग्राम के विकास की राह को चुना। इससे न केवल लोगों को ग्राम में ही रोजगार के अवसर मिले बल्कि अधोसंरचनाओं का विकास संभव हो सका।

फिर दिखेगा जन-भागीदारी का दम
कोरोना की पहली और दूसरी लहर को जन भागीदारी से परास्त कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने देश के सामने एक आदर्श पेश किया है। अब तीसरी लहर की दस्तक के साथ ही जन भागीदारी की एक बार फिर से जरूरत आन पड़ी है। लोकतंत्र में जनता ही सरकार की सबसे बड़ी ताकत है। जनता का सहयोग सरकार के संकल्प को सिद्धि में बदल देता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने देश के समक्ष जन-भागीदारी से जन-कल्याण का अनूठा मॉडल प्रस्तुत किया है। प्रदेश में नीति निर्माण से लेकर, निर्णय लेने, योजनाओं के क्रियान्वयन तथा उनकी मॉनीटरिंग तक में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। कोविड संकट काल में मध्यप्रदेश में जन-भागीदारी से कोविड पर प्रभावी नियंत्रण की पूरे देश में सराहना हुई है। मध्यप्रदेश में नीति निर्माण एवं जन-कल्याण की विभिन्न योजनाएँ बनाये जाने में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा विभिन्न वर्गों की महापंचायतों का आयोजन किया गया तथा उनमें प्राप्त सुझावों के आधार पर योजनाएँ बनाई गईं। प्रदेश में किसान, गरीब, मजदूर, स्व-सहायता समूह, महिला, आदिवासी, शिल्पी, अनुसूचित जाति, कोटवार, घरेलू कामकाजी महिला, हाथ-ठेला एवं रिक्शा-चालक, केश-शिल्पी, वकील, खिलाड़ी, कारीगर, मछुआ, विद्यार्थी, वृद्धजन आदि विभिन्न पंचायतों का सफलता से आयोजन किया गया। लाड़ली लक्ष्मी, संबल, मेधावी विद्यार्थी, मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन जैसी योजनाएं इन्हीं पंचायतों की देन हैं।
प्रदेश में जन-कल्याण के विभिन्न निर्णय लेने एवं उनके क्रियान्वयन में जनता की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गई है। कोविड प्रबंधन, कोविड वैक्सीनेशन, अंकुर जैसे कार्यक्रमों में जन-भागीदारी देश में मिसाल बनी है। प्रदेश में कोरोना संक्रमण रोकने एवं उपचार के लिये जिला, विकासखण्ड, ग्राम पंचायत एवं वार्ड स्तर पर 30 हजार 600 क्राइसिस मैनेजमेंट समूहों का गठन कर उनके माध्यम से प्रभावी कार्य किया गया। इन समूहों में प्रशासन के अधिकारी एवं जन-प्रतिनिधियों के साथ धर्मगुरु, गणमान्य नागरिक, स्वयंसेवक, विशेषज्ञ चिकित्सक आदि शामिल हुए। मैं कोरोना वॉलेंटियर अभियान में कोविड जागरूकता के लिए लगभग एक लाख 43 हजार व्यक्तियों ने सक्रिय भूमिका निभाई। च्च्योग से निरोगज्ज् कार्यक्रम के द्वारा होम आइसोलेशन में रह रहे लगभग 2 लाख कोविड मरीजों को 3 हजार योग प्रशिक्षकों द्वारा प्रतिदिन योग-अभ्यास ऑनलाइन करवाया गया। युवा शक्ति – कोरोना मुक्ति अभियान में 10 लाख से अधिक विद्यार्थियों को कोविड टीकाकरण एवं कोविड अनुकूल व्यवहार का प्रशिक्षण दिया गया। कोविड टीकाकरण में प्रदेश में जन-भागीदारी का अद्भुत उदाहरण देखा गया। प्रदेश में जहां शुरू के 4 महीनों में कोविड वैक्सीन के एक करोड़ डोज लगे, बाद में जन-भागीदारी के कारण प्रत्येक माह एक करोड़ से अधिक डोज लगे। यह जन-भागीदारी का ही नतीजा है कि प्रदेश में कोविड वैक्सीनेशन के कुल 10 करोड़ 24 लाख डोज लगाये जा चुके हैं। प्रदेश की 5 करोड़ 21 लाख 668 जनसंख्या को कोविड वैक्सीन के दोनों डोज लगाये जा चुके हैं। कोविड प्रबंधन में भी जनता की सक्रिय भागीदारी रही। कोरोना कफ्र्यू लगाने अथवा हटाने के निर्णय से लेकर कांटेक्ट ट्रेसिंग, सेम्पलिंग, टेस्टिंग में सहयोग, होम आइसोलेशन के प्रकरणों की निगरानी, कोरोना मेडिकल किट वितरण, कोरोना केयर सेंटर्स की व्यवस्थाएँ, कोविड अनुकूल व्यवहार के लिये जन-सामान्य को जागरूक करना, टीकाकरण के प्रति भय और भ्रम को मिटाना एवं टीकाकरण केन्द्रों की व्यवस्थाओं तक में जनता ने उत्साह के साथ सफलता से कार्य किया। अब तीसरी लहर में भी जन भागीदारी से आपदा पर अंकुश लगाया जाएगा।

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