तोमर बनाम श्रीमंत की राजनीति पर लगीं सभी की निगाहें

राजनीति
  • दोनों नेताओं के समर्थक अपने-अपने नेता को सर्वशक्तिमान बताने और साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं…

    भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम।
    मप्र के इतिहास में शायद यह पहला मौका है जब एक ही शहर का प्रतिनिधित्व करने दो नेताओं को एक साथ केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। दरअसल इन दोनों ही मंत्रियों के निवास स्थल ग्वालियर शहर में ही हैं। यह दोनों ऐसे नेता माने जाते हैं जिनकी राजनीति की शैली भी अलग है।  एक साथ एक ही अंचल से आने वाले इन दोनों नेताओं को केन्द्र सरकार में मंत्री बनाए जाने से अंचल के विकास के नए रास्ते खुल सकते हैं। बशर्ते दोनों नेताओं के बीच पटरी पूरी तरह से बैठी रहे। यही वजह है कि अब प्रदेश के साथ ही ग्वालियर-चंबल अंचल की जनता की निगाहें तोमर व श्रीमंत की राजनीति पर लगी हुई हैं। गौरतलब है कि नरेन्द्र सिंह तोमर पहले से ही केन्द्र सरकार में मंत्री हैं, जबकि हाल ही में श्रीमंत को भी मंत्री बनाया गया है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पहले से ही मोदी का करीबी माना जाता है, जबकि मोदी की ही पसंद के चलते अब श्रीमंत को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इन दोनों ही नेताओं की ग्वालियर-चंबल अंचल में मजबूत पकड़ मानी जाती है। इसी वजह से माना जा रहा है कि अब अंचल में श्रीमंत व तोमर के बीच वर्चस्व की लड़ाई देखने को मिल सकती है। दरअसल यह दोनों ही नेता अंचल में अपने को सुपर पावर बनने के लिए पहले से ही पूरी ताकत लगाए हुए हैं। श्रीमंत के भाजपा में आने से पहले से ही तोमर को अंचल में पार्टी का सबसे बड़ा कद्दावर नेता माना जाता रहा है, जबकि कांग्रेस में रहते श्रीमंत भी पार्टी के सबसे बड़े न केवल कद्दावर नेता माने जाते रहे हैं, बल्कि प्रभाव भी दिखाते रहे हैं। अंतर इतना है कि श्रीमंत अपनी महल की राजनीति के लिए कोई समझौता नहीं करते हैं जबकि तोमर को गुपचुप रहकर काम करने के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि अब सभी की नजर इस पर है कि इन दोनों नेताओं में कौन किस पर भारी पड़ता है। ऐसे में श्रीमंत बनाम सिंधिया वाली तस्वीरें सामने आ सकती हैं।  राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकती हैं।  मतलब पहले से ही बीजेपी के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर नरेंद्र मोदी के खासमखास हैं, अब उनकी बराबरी में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के आ जाने से माना जा रहा है कि भले ही उनके बीच की लड़ाई सामने नहीं आएगी, पर अंदरूनी तरीके से अपना वर्चस्व कायम करने में कोई पीछे भी नहीं रहेगा। उल्लेखनीय है कि भाजपा में आने के बाद से ही श्रीमंत ने अचंल में इतने दौरे किए हैं कि यह उनके राजनैतिक जीवनकाल का रिकार्ड माना जा रहा है। खास बात यह है कि अब श्रीमंत और तोमर के बीच हालात यह बन चुके हैं कि जब इन दोनों नेताओं में से किसी एक का अंचल में दौरा होता है तो पीछे से दूसरा नेता अंचल के दौरे पर आने के लिए अपना प्रोग्राम बना लेता है। इससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस समय बाहर नहीं, बल्कि अंदरूनी तरीके से तोमर और सिंधिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी हुई है। बस अंतर ये है कि यह खुलकर बाहर नहीं आ पा रही है। दोनों दिग्गजों के समर्थक भी आमने-सामने हैं, वह लगातार अपने-अपने नेता को सर्वशक्तिमान बताने और साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।तोमर बनाम श्रीमंत की राजनीति पर लगीं सभी की निगाहें

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