
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को भारतीय भाषाओं और मातृभाषाओं के घटते इस्तेमाल पर चिंता जताई। मोहन भागवत ने कहा कि हालात ऐसी स्थिति पर पहुंच गए हैं कि कुछ भारतीय लोग हमारी अपनी भाषाएं नहीं जानते हैं। संत ज्ञानेश्वर की मूल रूप से मराठी में लिखी गई पुस्तक ‘श्री ज्ञानेश्वरी’ के अंग्रेजी संस्करण के विमोचन के अवसर पर नागपुर में बोलते हुए भागवत ने समाज से भाषाई विरासत के धीरे-धीरे कम होने पर आत्मचिंतन करने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘एक समय था जब सारा संचार, लेन-देन, रोजमर्रा के काम संस्कृत में होते थे। अब, कुछ अमेरिकी प्रोफेसर हमें संस्कृत पढ़ाते हैं, जबकि वास्तव में हमें इसे दुनिया को सिखाना चाहिए था। आज बहुत से बच्चे कुछ बुनियादी और सरल शब्द भी नहीं जानते हैं और अक्सर घर पर अपनी मातृभाषा और अंग्रेजी के मिश्रण में बात करते हैं।’
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि कुछ भारतीय लोग हमारी अपनी भारतीय भाषाएं नहीं जानते हैं।’ उन्होंने कहा कि अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा इसके लिए जिम्मेदार नहीं है, बल्कि घर पर भारतीय भाषाएं बोलने की अनिच्छा के कारण स्थिति और बिगड़ रही है। उन्होंने कहा, ‘अगर हम अपने घर में अपनी भाषा ठीक से बोलें, तो चीजें बेहतर होंगी। लेकिन हम ऐसा नहीं करते।’ भागवत ने कहा कि अब संत भी अंग्रेजी में बात करते हैं, जो समझ में आता है, लेकिन यह अभी भी बदलती भाषाई प्राथमिकताओं का संकेत है।
संत ज्ञानेश्वर का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि संत ने समाज की बेहतर समझ के लिए भगवद् गीता के ज्ञान को मराठी में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, ‘अब समस्या यह है कि अंग्रेजी भाषा में पर्याप्त शब्द नहीं हैं जो हमारी भाषाओं में व्यक्त विचारों या अवधारणाओं के सार और गहराई को व्यक्त कर सकें। ज्ञानेश्वर द्वारा प्रयुक्त एक शब्द के लिए अक्सर कई अंग्रेजी शब्दों की आवश्यकता होती है, लेकिन वह पूरी तरह से इच्छित अर्थ नहीं बता पाता।’ एक उदाहरण देते हुए उन्होंने भारतीय परंपरा में बताए गए कल्पवृक्ष का उल्लेख किया। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध अवधारणाओं का विदेशी भाषा में अनुवाद करने की सीमाओं पर जोर देते हुए भागवत ने पूछा, ‘आप कल्पवृक्ष का अंग्रेजी में अनुवाद कैसे करेंगे?’ उन्होंने कहा कि ऐसे उदाहरण इस बात पर जोर देते हैं कि भारतीय भाषाओं को संरक्षित और मजबूत क्यों किया जाना चाहिए।
