
नई दिल्ली। दुनिया के बड़े शहरों में वायु प्रदूषण के संकट पर निगरानी रखने वाले अंतरराष्ट्रीय शोध नेटवर्क ने अपनी नवीनतम संयुक्त रिपोर्ट में कहा है, दिल्ली-एनसीआर और सिंधु-गंगा का मैदान पृथ्वी के सबसे खतरनाक वायु प्रदूषण क्षेत्र में बदल रहा है। यदि अभी निर्णायक हस्तक्षेप न हुआ तो आने वाले 10 वर्षों में यह क्षेत्र स्थायी रूप से प्रदूषित हवा का केंद्र बन जाएगा। रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी), हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) और कैलिफोर्निया एयर रिसोर्स बोर्ड के आंकड़ों के समन्वय पर आधारित है। इसमें कहा गया है, उत्तर भारत का सर्दियों में पीएम2.5 स्तर कई बार सुरक्षित सीमा से 15 से 25 गुना तक पार कर जाता है। यह पैटर्न वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चेतावनी है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, उत्तर भारत का घनघोर वायु प्रदूषण संकट दुनिया में अनोखा लेकिन रोकने योग्य है। रिपोर्ट के अनुसासर, दिल्ली-एनसीआर और सिंधु-गंगा के मैदान की भू-आकृतिक स्थिति, अत्यधिक जनसंख्या घनत्व, तेज कृषि-उद्योग विस्तार और बढ़ते परिवहन दबाव के साथ मिलकर एक तरह से कई तरह की प्रदूषित हवा को रोक रही है। यह संरचना उन शहरों से भी अधिक जटिल है, जिन्होंने लंबे संघर्ष के बाद प्रदूषण पर नियंत्रण पाया। जैसे लंदन (1952-1970), बीजिंग (2013-2023) और लॉस-एंजिलिस (1960-2000)।
अध्ययन में उल्लेख है कि लंदन में कोयले पर प्रतिबंध निर्णायक मोड़ था, बीजिंग में टारगेटेड इंडस्ट्रियल शिफ्टिंग और ई-पब्लिक ट्रांसपोर्ट ने हवा को बदल दिया और लॉस-एंजिलिस में व्हीकल उत्सर्जन पर ऐतिहासिक सख्ती से क्रांति आई। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है, उत्तर भारत भी राहत प्राप्त कर सकता है, पर यह संयुक्त कार्रवाई से संभव है।
