चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने दिया इस्तीफा

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव को लेकर बढ़ी सरगर्मियों के बीच चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनका इस्तीफा मंजूर भी कर लिया है। गोयल के इस्तीफे के बाद तीन सदस्यीय चुनाव आयोग में अब दो पद रिक्त हो गए हैं। अब सारी जिम्मेदारी मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के कंधों पर आ गई है। गोयल की नियुक्ति पर सवाल उठे थे और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी। विधि मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति ने गोयल का इस्तीफा मंजूर कर लिया है, जो शनिवार से प्रभावी हो गया। गोयल का इस्तीफा ऐसे समय में आया है, जब देश में जल्द ही लोकसभा चुनावों की तिथियों की घोषणा होने वाली है। हालांकि, इस्तीफे से चुनाव की तिथियों की घोषणा पर असर पड़ने की आशंका नहीं है। इससे पहले, चुनाव आयुक्त अनूप कुमार पांडे फरवरी में सेवानिवृत्त हो गए थे। माना जा रहा है कि सरकार जल्द ही रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू करेगी।

सूत्रों के मुताबिक, गोयल ने निजी कारणों से इस्तीफा देने की बात कही है। सरकार की तरफ से उन्हें इस्तीफा नहीं देने के लिए मनाने की भी कोशिश हुई, लेकिन वह नहीं माने। सूत्रों का दावा है कि पांच मार्च को गोयल सेहत का हवाला देते हुए कोलकाता दौरा बीच में छोड़ आए थे। आठ मार्च को उन्होंने केंद्रीय गृह सचिव के साथ चुनाव में केंद्रीय बलों की तैनाती के संबंध में बैठक में हिस्सा लिया था। इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार भी थे।

1985 बैच के पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी रहे अरुण गोयल ने 18 नवंबर, 2022 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। उसके अगले दिन ही उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया था। उनका कार्यकाल दिसंबर, 2027 तक था। वह अगले साल मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के सेवानिवृत्त होने के बाद उनकी जगह लेने वाले थे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में गोयल की नियुक्त को चुनौती दी थी। याचिका में नियुक्ति को मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 के साथ चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1991 के खिलाफ बताया गया था। शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने पिछले साल याचिका खारिज कर दी थी। कहा, संविधान पीठ ने मामले की समीक्षा की और गोयल की नियुक्ति को रद्द करने से इन्कार कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई के दौरान सरकार से पूछा था, आखिरकार किस बात की इतनी जल्दबाजी थी, जो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के अगले ही दिन अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बना दिया गया। शीर्ष कोर्ट ने कहा था, कानून मंत्री ने चयनित नामों की सूची में से चार नाम चुने। फाइल 18 नवंबर को विचार के लिए रखी गई और उसी दिन आगे बढ़ा दी गई। यहां तक कि पीए ने भी उसी दिन नाम की सिफारिश कर दी। यह सब कुछ बहुत जल्दबाजी में किया गया।

शीर्ष कोर्ट ने पिछले साल फैसले में कहा था कि सीईसी व ईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति की ओर से एक समिति की सलाह पर की जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) होंगे। पर सरकार ने मानसून सत्र में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पेश किया। इसके मुताबिक, नियुक्ति के लिए पीएम की अध्यक्षता में समिति गठित होगी। इसमें लोकसभा में नेता विपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री होंगे, जिसे पीएम नामित करेंगे। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद विधेयक अब कानून बन गया है।

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