संसद व कैबिनेट की राजनीतिक इच्छाशक्ति का आईना होना चाहिए मसौदा: गृह मंत्री अमित शाह

अमित शाह

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कानून संबंधी कोई भी विधायी मसौदा इतना स्पष्ट, सरल, तार्किक और सटीक संदेश वाला होना चाहिए कि अदालत को हस्तक्षेप करने की जरूरत न पड़े। गृह मंत्री ने सोमवार को विधायी मसौदा संबंधी प्रशिक्षण कार्यक्रम में कहा, अपने मकसद में कमजोर विधायी प्रारूप की वजह से ही उसमें दखल का मौका मिलता है। कोई भी विधायी मसौदा संसद और कैबिनेट की राजनीतिक इच्छाशक्ति का आईना होना चाहिए। गृह मंत्री शाह ने कहा, बहुत कठिन शब्दों में तैयार कानून का प्रारूप हमेशा विवाद खड़ा करता है। कानून जितना सरल और स्पष्ट शब्दों में होता है, उतना ही अविवादित होता है। उन्होंने कहा, हमारा लक्ष्य सरल और स्पष्ट भाषा में कानून का मसौदा तैयार करने का होना चाहिए। शाह ने कहा कि समाज और राज्य के उत्थान के लिए लागू योजना, नियम व कानून में विधायी मसौदे का काफी महत्व होता है। लिहाजा यह जरूरी है कि इन्हें और धारदार बनाने के लिए प्रशिक्षण का स्वरूप भी ठोस हो।

कानून के नजरिये पर सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच कई मौकों पर विवाद के बीच शाह ने कहा, विधायी मसौदा गतिमान प्रक्रिया है। लिहाजा इसे तैयार करने के कौशल में वृद्धि होती रहनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो कानून की महत्ता कमजोर होती जाएगी। उन्होंने कहा, बदलते दौर में कानून व उसकेे मसौदे में बदलाव समय की मांग है। भारत जैसे लोकतांत्रिक परंपरा वाले देश में इस पर ध्यान देना जरूरी है। विधायी मसौदा कोई विज्ञान या कला नहीं है, बल्कि एक कौशल है, जिसे भावना के साथ जोड़कर लागू करना है। उन्होंने कहा, ग्रे एरिया (अपरिभाषित) को कम करने पर हमेशा ध्यान देना चाहिए और कानून सुस्पष्ट होना चाहिए। शाह ने कहा, बीते 9 सालों में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कानून के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है। मोदी सरकार ने देशहित में कई समयानुकूल कानून बनाने का काम भी किया है। करीब 2,000 अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त कर, समाज व अदालतों को कानूनी जाल से मुक्त किया है।  

गृह मंत्री ने कहा कि सरकार का सबसे शक्तिशाली अंग संसद है और इसकी ताकत कानून है, विधायी मसौदा किसी भी देश को अच्छी तरह से चलाने की सबसे महत्वपूर्ण विधा है। गृह मंत्री ने कहा, जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला और अब निरस्त किया जा चुका अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रावधान था। संविधान निर्माताओं ने इसे समझदारी से वहां रखा था। केंद्र की भाजपा सरकार की ओर से 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का जिक्र करते हुए गृह मंत्री ने कहा, पूरा देश चाहता था कि संविधान का यह प्रावधान अस्तित्व में नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा, जब इस अनुच्छेद को तैयार किया गया था, तो अनुक्रमणिका में इसका ‘अनुच्छेद 370 का अस्थायी प्रावधान’ के रूप में उल्लेख था। यहां तक कि संविधान सभा के रिकॉर्ड से भी अनुच्छेद पर बहस गायब थी और वे मुद्रित नहीं थे। शाह ने कहा, जिसने भी मसौदा बनाया था, उन्होंने कितनी समझदारी से इसे रखा और कैसे बहुत सोचने के बाद ‘अस्थायी’ शब्द डाला होगा। उन्होंने पूछा, ऐसा नहीं लिखा होता तो क्या होता?

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