सेवाओं को कौन नियंत्रित करेगा, यह तय करना होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली/बिच्छू डॉट कॉम । सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र-दिल्ली सरकार के विवाद पर सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि उसे एक संतुलन बनाना होगा और फैसला करना होगा कि दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण केंद्र या दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए अथवा बीच का रास्ता तलाशना होगा। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई फिर से शुरू की। कोर्ट ने कानूनी स्थिति के बारे में भी जानना चाहा और पूछा कि किसी अधिकारी को अगर केंद्रशासित प्रदेश कैडर आवंटित किया जाता है तो क्या आम आदमी पार्टी नीत सरकार के पास पदस्थापना का अधिकार होगा? पीठ में न्यायमूर्ति एमआर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल थे।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें दी कीं कि वह उस धारणा को दूर करने की कोशिश करेंगे, जिसे बनाने की कोशिश की गई है कि उपराज्यपाल सब कुछ कर रहे हैं, अधिकारियों की निष्ठा कहीं ओर है और दिल्ली सरकार सिर्फ प्रतीकात्मक है। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने पीठ से कहा कि 1992 से अब तक उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच मतभेद का हवाला देते हुए केवल सात मामलों को राष्ट्रपति के पास भेजा गया है और कानून के अनुसार कुल 18,000 फाइल उपराज्यपाल के पास आईं और सभी फाइल को मंजूरी दे दी गई। मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार (केंद्र द्वारा) को आवंटित अधिकारियों की एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) लिखते हैं। इन अधिकारियों को मुख्यमंत्री की तरफ से 10 के पैमाने पर 9 से 9.5 की प्रभावशाली रेटिंग मिल रही है।

पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 239एए सामूहिक उत्तरदायित्व, सहायता और सलाह को सुरक्षित रखता है- ये लोकतंत्र के आधार हैं। राष्ट्रहित में तीन विषयों (लोक व्यवस्था, पुलिस एवं भूमि) को निकाला गया है। इसलिए आपको दोनों में संतुलन बनाने की जरूरत है। हमें जिस प्रश्न का उत्तर देना है वह सार्वजनिक सेवाओं पर नियंत्रण है। क्या सार्वजनिक सेवाओं पर नियंत्रण विशेष रूप से एक या दूसरे के पास होना चाहिए, या बीच का रास्ता होना चाहिए। मामले में सुनवाई गुरुवार को जारी रहेगी।

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