
कोलंबो। ऐतिहासिक आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका धीरे-धीरे उभरने का प्रयास कर रहा है। इस बीच राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने शुक्रवार को छोटे राजनीतिक दलों पर आरोप लगाया है कि वह अदालती आदेशों के जरिए इस संकट से निपटने के प्रयासों को पटरी से उतारने का प्रयास कर रहे हैं। इसको लेकर द्वीप राष्ट्र के प्रमुख ने उनकी आलोचना की।
सरकार को अब तक के आर्थिक संकट से निपटने के प्रयासों के तहत जून के अंत में घरेलू ऋण पुनर्गठन (डीडीआर) के लिए संसदीय मंजूरी मिली थी। विक्रमसिंघे ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, हमें स्थानीय ऋण पुनर्गठन के लिए संसदीय मंजूरी मिल चुकी है। कुच विपक्षी समूहों ने इसका विरोध किया। कुछ लोग संसद में मतदान करने नहीं आए।
राष्ट्रपति ने ऋण पुनर्गठन कार्यक्रम के महत्व का जिक्र करते हुए कहा कि अब कुच संगठन अदालत का इस्तेमाल करके इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर यह कार्यक्रम रुक जाता है तो विदेशी सरकारें हमारे साथ काम करना बंद कर देंगी। उन्होंने कहा, देश में फिर ईंधन के लिए कतारें लग जाएंगी और किसानों को उर्रवक के बिना छोड़ दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि सरकार केवल संसद द्वारा निर्धारित की जाएगी। विक्रमसिंघे ने कहा कि सभी राजकोषीय मामलों को संसद द्वारा संभाला जाता है, केवल संसद ही इन मुद्दों पर निर्णय ले सकती है। उनकी टिप्पणी विपक्षी जेवीपी (जनता विमुक्ति पेरामुना या पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट) की ओर इशारा कर रही थी, जिसने जून के अंत में सुप्रीम कोर्ट में मौलिक अधिकार याचिका दायर कर पेंशन फंड पर लागू होने वाले डीडीआर उपायों को रोकने के लिए आदेश देने की मांग की थी।
जेवीपी ने 46 उत्तरदाताओं का हवाला देते हुए एक आदेश की मांग की जो डीडीआर के तहत कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) और कर्मचारी ट्रस्ट फंड (ईटीएफ) से सरकार द्वारा प्राप्त ऋण में कटौती को रोकेगा। जेवीपी ने दावा किया कि ईपीएफ और ईटीएफ फंड को डीडीआर से झटका लगेगा, जिससे कर्मचारियों की बचत प्रभावित होगी।
श्रीलंका को सितंबर तक अपने बाह्य और घरेलू ऋण पुनर्गठन को अंतिम रूप देना है, जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) इस साल मार्च में दिए गए 2.9 अरब डॉलर के बेलआउट की पहली समीक्षा करेगा। श्रीलंका इतिहास में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से प्रभावित हुआ था जब देश का विदेशी मुद्रा भंडार एक महत्वपूर्ण निचले स्तर पर गिर गया था और जनता ईंधन, उर्वरकों के साथ-साथ आवश्यक वस्तुओं की कमी के विरोध में सड़कों पर उतर आई थी।