
नई दिल्ली/बिच्छू डॉट कॉम। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर बनी फिल्म गदर ने एक समय पूरी दुनिया में गदर मचा दी थी……. पाकिस्तान ने जहां इस फिल्म को बैन कर दिया था वहीं भारत में कुछ जगह दंगे हो गए थे…. अब गदर के निर्माता एक बार फिर इसका सीक्वल तैयार करने की ठान चुके हैं…. कलाकार भी वही होंगे जो पिछली गदर का हिस्सा थे…. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह गदर भी पिछली गदर की तरह गदर कर पाएगी?. बॉलीवुड में नाकाम फिल्मों की फेहरिस्त बहुत लंबी है जिसकी कहानी में भारत-पाकिस्तान होने के बावजूद चीजें बेहतर साबित नहीं हुईं. यहां तक कि जंग पर बनी कई फिल्मों का हाल भी बहुत खराब रहा. इसका एक उदाहरण तो हाल में दिखाई दिया जब भुज द प्राइड ऑफ इंडिया, 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई जंग की एक महत्वपूर्ण कहानी पर बनी फिल्म को दर्शकों ने नकार दिया. फिल्म की खूब चर्चा हुई. हालांकि रिलीज के बाद दर्शकों को प्रभावित करने में नाकाम रही. जबकि भुज के साथ-साथ आई कारगिल जंग पर बनी बायोपिक फिल्म शेरशाह ने जबरदस्त करिश्मा दिखाया. ओटीटी पर इसे खूब पसंद किया गया. गदर 2 के चार बड़े नाम- सनी देओल, अमीषा पटेल, उत्कर्ष शर्मा और उनके पिता अनिल शर्मा लंबे वक्त से कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए हैं. चारों लगातार नाकामयाबी झेल रहे हैं और सुपरफ्लॉप कहे जा सकते हैं. कामयाबी तो दूर की बात है, लंबे समय से सनी देओल किसी ढंग की फिल्म में भी नजर नहीं आए हैं. वे ज्यादातर होम प्रोडक्शन की फिल्मों में दिखे हैं जिनका बॉक्स ऑफिस हश्र बहुत ही निराशाजनक था. तीन साल पहले बतौर हीरो उत्कर्ष शर्मा ने जीनियस से डेब्यू किया, पर असर नहीं छोड़ पाए. जीनियस उनके पिता ने बनाई थी. इसके बाद उत्कर्ष को दूसरी फिल्म नहीं मिली. अब फिर पिता की सक्सेस फ्रेंचाइजी में आ रहे हैं. अमीषा पटेल तो लगभग गायब ही हो चुकी हैं. वो कभी कभार बी ग्रेड फिल्मों में दिखती हैं. गदर के बाद अनिल शर्मा ने करीब दर्जनभर से ज्यादा प्रयास किए पर सफलता ने उनसे मुंह ही मोड़ लिया है. फिलहाल तो गदर सुपरफ्लॉप सितारों का जमावड़ा ही नजर आ रहा है. गदर 2 के निर्माताओं को इसी वजह से ज्यादा परेशान होना चाहिए. गदर अलग जमाने की फिल्म थी. 20 साल पहले माहौल अलग था और दर्शक अलग थे. तब सोशल मीडिया नहीं था. स्मार्ट फोन नहीं आया था. फ़िल्में एक अलग ही आधार पर खड़ी होती थीं. खासकर सनी देओल की फ़िल्में जिनका साउंड बहुत लाउड होता था. बॉर्डर या गदर एक प्रेमकथा इसका तगड़ा उदाहरण हैं. चीखने-चिल्लाने को भी दर्शक पसंद करते थे. स्वाभाविक है कि हैंडपंप उखाड़ना और एक निहत्थे हीरो का पूरी पाकिस्तानी सेना को नाको चने चबवा देना दर्शकों को भा रहा था. 20 साल में सिनेमा यथार्थ के ज्यादा करीब हुआ है और जबरदस्ती का चीखना-चिल्लाना कम हुआ है. डिजिटल युग ने दर्शक और उनकी पसंद में भी बदलाव किया है. अनिल शर्मा के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि वे 20 साल पहले बनी कहानी को 20 साल बाद आगे कैसे बढ़ाएंगे? यह मुश्किल इसलिए भी है कि सनी का अंदाज पुराना ही दिखता है. हालांकि उत्कर्ष शर्मा के जरिए कहानी को नए जमाने में सेट करने के बेहतर मौके होंगे. साफ़ है कि गदर 2 की कहानी बंटवारे और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों की गुत्थमगुत्था को ही दिखाएगी. कैसे यह साफ होना बाकी है. इसमें कोई शक नहीं कि बॉलीवुड की तमाम देशभक्ति फ़िल्में भारत-पाकिस्तान की तनातनी पर ही आधारित हैं. अकेले सनी देओल ने ही कई ऐसी फ़िल्में की हैं जो कामयाब रहीं. इसमें बॉर्डर और गदर सबसे अहम है. मगर फिल्म की कहानी में भारत पाकिस्तान का होना तभी काम करेगा जब उसे प्रभावी तरीके से दिखाया जाएगा. अनिल शर्मा के पास सिर्फ एक रास्ता है कि वे गदर 2 को गदर 1 से ज्यादा प्रभावी बनाएं. क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है. गदर 2 से जुड़े ज्यादातर लोग साख गंवा चुके हैं. एक अच्छी फिल्म ही साख बचा सकती है. मौजूदा सियासी माहौल को गदर 2 के लिए एकदम सटीक माना जा सकता है. भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी पहले की तरह ही है. अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बाद कश्मीर में आतंकी फिर मुंह उठाते दिख रहे हैं और देश के अंदर राष्ट्रवादी भावनाएं उफान पर हैं. ये चीजें फिल्म को फायदा पहुंचाने वाली मानी जा सकती हैं।