सियासतनामा/दौड़ से बाहर हो गए प्रदेश अध्यक्ष पद के ये दावेदार

  • दिनेश निगम त्यागी

दौड़ से बाहर हो गए प्रदेश अध्यक्ष पद के ये दावेदार
राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। ऐसा ही कुछ हुआ कांग्रेस द्वारा घोषित जिलाध्यक्षों की सूची में। इसमें उन वरिष्ठ नेताओं को भी जिलाध्यक्ष की जवाबदारी सौंप दी गई जो पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के प्रबल दावेदार हैं। इनमें एक है दिग्विजय सिंह के बेटे पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह और दूसरे युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे पूर्व मंत्री ओमकार सिंह मरकाम। दिग्विजय की कोशिश जयवर्धन को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की है, लेकिन गुना के जिलाध्यक्ष पद की जवाबदारी दे दी गई। ओमकार सिंह कांग्रेस का आदिवासी चेहरा हैं। उनका नाम दोनों पदों मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के लिए चल चुका है। वे युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं लेकिन उन्हें भी डिंडोरी जिले का अध्यक्ष बना दिया गया। हालांकि, पीसीसी चीफ का पद जल्दी खाली होने की संभावना नहीं है क्योंकि जीतू पटवारी राहुल गांधी कैंप के हैं।

ये ‘सृजन’ की बजाए कांग्रेस के ‘विसर्जन’ पर आमादा
राहुल गांधी की सोच के मुताबिक कांग्रेस ने संगठन को मजबूत करने के उद्देश्य से सृजन अभियान चलाया था। कहा जा रहा है कि इस अभियान के तहत ही कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने जिलाध्यक्ष पद के लिए 71 हीरे खोज कर निकाले हैं। पर नामों की घोषणा होते ही बवाल मच ठगया। प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के खास देवास जिले के गौतम बंटू गुर्जर ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए पार्टी के प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी पर आरोप लगाया कि वे पंजाब में कांग्रेस का विसर्जन करके आए हैं, अब मप्र में भी यही करने वाले हैं। बंटू देवास जिलाध्यक्ष पद के दावेदार थे। पूर्व विधायक विपिन वानखेड़े आगर मालवा में सक्रिय हैं। यहां से ही विधायक रहे हैं लेकिन इन्हें इंदौर ग्रामीण का जिलाध्यक्ष बना दिया गया। इन्होंने दावेदारी भी प्रस्तुत नहीं की थी। विधायकों को जिलाध्यक्ष बनाने का खास विरोध है। सतना में सिद्धार्थ कुशवाहा और उज्जैन में महेश परमार के खिलाफ बगावत जैसे हालात है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये विधानसभा का टिकट लेकर विधायक बनेंगे और संगठन में भी इनका ही कब्जा रहेगा तो अन्य नेता क्या करेंगे?

जिला अध्यक्ष पद को ‘पावरफुल’ बनाने की कोशिश
राहुल गांधी कई अवसरों पर कह चुके हैं कि वे कांग्रेस में जिलाध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष के पद को सबसे पॉवरफुल बनाना चाहते हैं। संगठन में उनकी सहमति और मर्जी के बिना कोई निर्णय नहीं होगा। इसके लिए उन्होंने संगठन सृजन अभियान शुरू किया और इसकी शुरुआत गुजरात से की। इसके बाद इसे प्रदेश में लागू किया गया। घोषित सूची को देख कर लगता है कि वरिष्ठ नेताओं को जिलाध्यक्ष पद की जवाबदारी देकर इसे / पावरफुल बनाने की कोशिश की गई। एक दर्जन से ज्यादा विधायक और पूर्व विधायकों के नाम सूची में हैं। जबकि अब तक विधायक अपनी मर्जी का जिलाध्यक्ष बनाने की कोशिश करते थे।

सम्मान लेने की बजाए आइना दिखा गए ये मीसाबंदी
दमोह में आयोजित स्वतंत्रता दिवस के मुख्य समारोह में तब असहज स्थिति बन गई जब एक मीसाबंदी संतोश भारती ने प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार के हाथों सम्मान लेने से इंकार कर दिया और समारोह छोडक़र चले गए। भारती ने कहा कि मैंने 40 साल पहले हाउसिंग बोर्ड से जमीन खरीदी थी। रजिस्ट्री कराने गया तो अफसर ने 5 हजार की रिश्वत मांगी। रिश्वत नहीं दी तो रजिस्ट्री नहीं हुई। मैंने हाईकोर्ट से केस जीता। इसके बाद भी रजिस्ट्री नहीं हो रही। पहले कांग्रेस का शासन था तो लोग कहते थे कि भाजपा शासन में रजिस्ट्री हो जाएगी। अब 25 साल से भाजपा की सरकार है। लेकिन आज भी न्याय नहीं मिल रहा है। भारती ने दावा किया कि मैं देश का इकलौता ऐसा व्यक्ति हूं जो तीन बार मीसाबंदी में जेल गया। हमारे आंचल में रोजगार, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्थाएं होनी चाहिए, वर्ना यह सम्मान पाखंड है।

बदजुबानी-हरकतों से बाज नहीं आ रहे ये माननीय
भाजपा-कांग्रेस दोनों दलों में कुछ विधायकों की न जुबान पर लगाम हैं और न ही आचरण सुधर रहा है। इनमें एक हैं रीवा जिले के सेमरिया सीट से कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा। उन्होंने रीवा के एसपी को अद्र्धनारीश्वर कह दिया। इसके अलावा भी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। भाजपा के रतलाम से विधायक मथुरालाल डामर का आचरण देखिए। उन्होंने अपनी विधायक निधि से महाविद्यालय को 10 लाख का फर्नीचर दिलाया तो इसमें अपने फोटो और नाम लिखवा दिए। भाजपा के एक माननीय ने आजादी को ही कटी-फटी कह दिया।

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