मध्यप्रदेश तंत्र पर मीडिया मंत्र

- राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के साथ दिल्ली नगर निगम चुनाव के बाद भाजपा में नेतृत्व बदलाव की आहट तेज हो गई है। गुजरात में 156 विधायकों के साथ जबरदस्त जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह गदगद है। मोदी ने पार्टी नेताओं की एक अहम बैठक में मुक्त कंठ से गुजरात भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल की प्रशंसा की। उन्होंने संकेत दिए हैं कि राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर पाटिल की तरह लो प्रोफाइल लीडर और साइलेंट वर्कर की जरूरत है। गुजरात की प्रचंड सफलता के बाद पाटिल रातों-रात पार्टी के आइकॉन बन गए हैं। ऐसा तमगा कभी मध्यप्रदेश के कार्यकर्ताओं को देवदुर्लभ कार्यकर्ता के रूप में हासिल था। इसका श्रेय प्रदेश में पार्टी के पितृ पुरुष कहे जाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे के साथ प्यारेलाल खंडेलवाल, नारायण प्रसाद गुप्ता राजमाता विजयराजे सिंधिया, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, लखीराम अग्रवाल जैसे पेताओं को जाता है।
बहरहाल संगठन की उजागर हुई बदहाली के चलते राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा से लेकर मप्र समेत जिन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां बदलाव के बड़े फैसले कभी भी हो सकते हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर गुजरात के श्री पाटिल की ताजपोशी की प्रबलतम सम्भावना है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नड्डा के गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में भाजपा के सत्ता से बाहर होने और संगठन की गलाकाट गुटबाजी को लेकर जो हालात बने हैं उसने तो पार्टी की ही एक तरह से जान ले ली। टिकट वितरण के बाद बगावत से हालात टीम नड्डा के काबू से बाहर हुए तो पीएम मोदी को खुद मोर्चे पर आना पड़ा था। लेकिन कामयाबी नही मिली। इससे शीर्ष नेताओं के दिमाग झनझना उठे। हिमाचल के नतीजों ने बता दिया कि मोदी के नाम पर सवार होकर कितने अकर्मण्य और अयोग्य नेता हां में हां मिलाकर खुद मलाई काट पार्टी का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। संगठन का सिस्टम निष्क्रिय पड़ा है। वह तो केवल काम कर रहा है ऐसा करता हुआ नजर आ रहा है। ग्राउंड जीरो पर हालात चिंताजनक है। मोदी के नाम पर लोकसभा में भरपूर बहुमत लेकिन विधानसभा और नगर निगमों में हार मिल रही है। इसका मतलब सूबों में संगठन की कमान अयोग्य, अपरिपक्व, अकर्मण्य, ऐशोआराम करने वाले नेताओं के हाथों में चली गई है। वे काम के नाम पर कागजों का पेट भरने में लगे हैं। उन्हें पता है मोदी हैं तो जीत तो जाएंगे ही। लेकिन नगर निगम और विधानसभा के चुनावों में उनके फैलाए रायते को मोदी शाह कैसे समटेंगे..? दिल्ली के साथ हिमाचल के चुनावों ने मोटा भाई और छोटा भाई चौकन्ना कर दिया है। अध्यक्षों के साथ संगठन मंत्री और केंद्र के प्रभारियों की भी कलई खुल गई है। मप्र समेत अन्य राज्यो में जिला अध्यक्षों को मनमाने तरीके से कभी नियुक्त करते हैं तो कभी मनमर्जी से हटा देते हैं। प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक ही नहीं होती है। पदाधिकारियों की विस्तारित बैठक को कार्यकारिणी बता दिया जाता है। ऐसे में नेता और कार्यकतार्ओं को अपनी बात कहने, संगठन – सरकार की कमी के मुद्दे कहां उठाएं। बाहर बोलें तो अनुशासनहीनता सच्चाई न बताएं तो दमघुटता है। ऐसे में चुनाव ही एक मंच है जहां कार्यकर्ता अपनी अनदेखी और पार्टी के साथ हो रहे अन्याय का हिसाब करता है। जैसा दिल्ली और हिमाचल और बहुत हद तक मप्र के नगर निगम चुनाव के नतीजों से पता चलता है। दिल्ली नगर निगम में हार के बाद वहां के प्रदेश अध्यक्ष ने तो पद त्याग कर दिया लेकिन पार्टी ने हिमाचल की हार के जिम्मेदारों पर कार्रवाई लगता है अगले महीने जनवरी में करने का मानस बनाया है। सूत्र बताते हैं कि संघ परिवार ने भी परिवर्तन के लिए सहमति दे दी है।
मप्र में पूर्व मंत्री दीपक जोशी भी भड़के
मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के चिरंजीव और पूर्व मंत्री दीपक जोशी अपने विधानसभा क्षेत्र में भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों की हालत में घुटन महसूस कर रहे हैं, उन्होंने एक वीडियो जारी कर अपनी पीड़ा को व्यक्त किया है। श्री जोशी ने अपने स्वर्गीय पिता कैलाश जोशी का जिक्र करते हुए कहा कि वे विपक्ष में रहकर भी 8 बार विधायक बने थे और उन्हें राजनीति में ईमानदारी और सच बोलने के कारण संत कहा जाता था लेकिन, अब उनके क्षेत्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला है । उन्होंने कहा है यदि नए कलेक्टर ने भ्रष्टाचार को नहीं रोका तो अगले महीने वह सड़क पर भी उतर सकते हैं। इसे हांडी के चावल की तरह माना जाना चाहिए। ऐसी व्यथा और पीड़ा भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं की होगी जिन्हें बोलने के लिए ना तो कोई मंच है और ना सुनने के लिए कुछ संगठन और सरकार है। ऐसे नेता- कार्यकर्ता कुकर की तरह कहीं भी और कभी भी फट सकते हैं। चुनाव इसके लिए सबसे मुफीद समय होता है। यदि नही सम्हाला गया तो हिमाचल की तरह नतीजों के लिए तैयार रहना चाहिए।
पुराने भाजपाई किनारा कर रहे हैं…
मध्य प्रदेश सरकार की वरिष्ठ नेता और शिवराज सरकार के मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया जब ग्वालियर पहुंचती है तो विमानतल पर उनके स्वागत के लिए जो कार्यकर्ता पहुंचे उनमें पुराने भाजपाई नदारद थे। इसका उन्होंने वहां जिक्र भी किया और पूछा पुराने भाजपा नेता कहां है..? भाजपा में बगावत की परंपरा नहीं है, इसलिए दुखी और उपेक्षित कार्यकर्ता अक्सर घर बैठ जाते हैं और बस इतने में नतीजे बदल जाते हैं । इस संकेत को समझने की जरूरत है। क्योंकि हिमाचल में बागियों से पीएम मोदी की अपील भी प्रभावकारी साबित नहीं हुई थी। ग्वालियर संभाग में कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को दर्जा मिलने के कारण पुराने भाजपाई हाशिए पर चले गए हैं। नगर निगम में भाजपा की हार ने इसके संकेत पहले ही दे दिए हैं।