- सुशील शर्मा
पांचवें माले का सन्नाटा
मंत्रालय का पांचवां माला वैसे तो वीआईपी जोन है, लेकिन इसकी रौनक के बस दो ही स्तंभ हैं। प्रदेश के मुखिया या उनके दफ्तर के मुखिया। इन दोनों में से कोई भी न दिखे तो पांचवें माले का हाल सूना सूना और बेजान हो जाता है। नए प्रशासनिक मुखिया के समय में यह स्थिति बार-बार बन रही है, क्योंकि नए-नवेले मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रशासनिक मुखिया का ज्यादातर वक्त इन दिनों ऊर्जा विभाग में बीतता है, सो पांचवें माले पर उनकी झलक दोपहर बाद ही बहुत कम ही मिलती है। अगर मुख्यमंत्री भी दौरे पर हों, तो बाकी कक्षों से भी दरबारी फाइलें समेटकर खिसक लेते हैं। वैसे प्रशासनिक मुखिया ने आगमन के समय ही कक्ष का वास्तुदोष दूर करा लिया था, लेकिन लगता है कक्ष में कुछ दोष अभी बाकी है… शायद सही समय का इंतजार हो !
भोज में परोसी गई दूरी
विधानसभा सत्र के बीच पूर्व मुख्यमंत्री ने विधायकों के लिए खास भोज का आयोजन किया, लेकिन मेन्यू से एक मुख्य व्यंजन गायब थे-कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष। संयोग कहें या सियासी साजिश, जिस दिन भोज था, उसी दिन माननीय अध्यक्ष निजी विदेश दौरे पर थे। पार्टी गलियारों में कानाफूसी है कि भोज दो दिन बाद भी रखा जा सकता था, ताकि अध्यक्ष की प्लेट भी सज जाती। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री के सिपहसलारों को शायद ये स्वाद पसंद नहीं था। चर्चा है कि उन्होंने दूरी की डिश को ऐसे पकाया कि अध्यक्ष के लौटने से पहले ही विधायकों की मेज सज गई। अब सवाल ये है क्या ये सिर्फ कैलेंडर की गड़बड़ी थी या पार्टी में किसी ने अलग-थलग पॉलिसी की नई रेसिपी ट्राई की है? अध्यक्ष साहब को अब ये सोचने का वक्त है कि प्लेट खाली रहना महज इत्तेफाक था… या योजना !
पदस्थापना विभाग में पदस्थापना का संकट
मध्यप्रदेश में पदस्थापना करने वाला विभाग इन दिनों खुद पदस्थापना के भूचाल से गुजर रहा है। हालात ये हैं कि विभाग में सबसे नीचे के बाबू से लेकर सबसे ऊपर एसीएस तो मौजूद हैं, लेकिन बीच का पूरा पुल अनुभाग अधिकारी, अवर सचिव, अपर सचिव और सचिव, सब खाली! अब सवाल ये है कि जहां खुद पदस्थापना के लाले पड़े हों, वो बाकी अफसरों की पदस्थापना कैसे करेगा? यह वैसा ही है जैसे डॉक्टर खुद आईसीयू में हो और मरीजों को ऑपरेशन की तारीख दे रहा हो, हालांकि गलियारों में चर्चा है कि बड़े संभाग के एक आयुक्त जल्द ही यहां सचिव बनकर तैनात हो सकते हैं। तब तक बाबू द्वारा लिखी गई नोट सीधे एसीएस के पास जा रही है मतलब सीधा बाबू टू बॉस स्पीड! है न कमाल? विभाग की कुर्सियां खाली, फाइलें दौड़ रही हैं… और पदस्थापना का जिम्मा उसी के पास है जो खुद आधे पद खो बैठा है।
बुंदेलखंड में राजकुमार पर महासंग्राम
बुंदेलखंड के नेताओं को भिडऩे के लिए बस एक बहाना चाहिए… और अगर बहाना किसी अफसर के रूप में मिल जाए, तो फिर सियासी रंगमंच सजने में देर नहीं लगती। इन दिनों संभागीय मुख्यालय में तैनात एक राजकुमार इस महासंग्राम के चहेते अस्त्र बन गए हैं। कहानी शुरू हुई जब बुंदेलखंड के दो प्रभावशाली, लेकिन पूर्व मंत्री, इस राजकुमार को नगरीय निकाय दफ्तर से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा बैठे। नतीजा राजकुमार की रवानगी भोपाल के लिए तय हो गई। लेकिन जैसे ही ये खबर बुंदेलखंड के एक मौजूदा मंत्री तक पहुंची, उन्होंने भोपाल में सियासी मोर्चा खोल दिया। ऐसा ताना-बाना बुना कि नगरीय निकाय मंत्री भी उनके साथ हो लिए और ट्रांसफर रोकने के लिए बाकायदा नोट-चिट थमा दी। अब सारा मामला राजकुमार के भविष्य का है क्या वे भोपाल की ओर कूच करेंगे या फिर बुंदेलखंड की सियासी शतरंज में अगले कुछ दिन और राज करेंगे? फैसला बस 1-2 दिन में हो जाएगा… और तब तक यहां अफसरों से ज्यादा नेता बेचैन हैं।
नाम में ही सब रखा है
मध्यप्रदेश के मुखिया को उस दिन जरा असमंजस में आना पड़ा, जब उनके राजस्व मंत्री ने मंच से ही औद्योगिक क्षेत्र का नाम बदलने की फरमाइश कर दी। मंत्री जी का सुझाव था कि बढिय़ाखेड़ी की जगह इसे जहांगीरपुरा औद्योगिक क्षेत्र कहा जाए, क्योंकि इलाका उनके विधानसभा क्षेत्र में आता है। अब इन बुजुर्गवार मंत्री को कौन समझाए कि जहांगीरपुरा नाम रखना, वो भी ऐसे माननीय के राज में, जिनका पहला काम कुर्सी संभालते ही लाउडस्पीकर बंद कराना और आक्रांताओं के नाम वाले गांवों के नाम हटाना रहा हो। सो, मुख्यमंत्री ने भी तुरंत मंच से ही नुस्खा दे दिया बढिय़ाखेड़ी ही ठीक है। संदेश साफ था मंत्री जी, नाम में ही सब रखा है… और नाम बदलने में सब बिगड़ भी सकता है!