अहं को अहम तरीके से काबू करते शिवराज

शिवराज

अवधेश बजाज कहिन

किसी भी सत्ता तथा उसके शीर्ष के बारे में लिखने का मैंने कभी कोई अवसर नहीं गंवाया है। हां, प्राय: ऐसे अवसर वह होते हैं, जिनमें व्यवस्था में व्याप्त अव्यवस्थाओं को लेकर कलम के चाबुक से चोट करने का प्रयोजन शामिल हो। हुकूमत के हुकुम और उसके हर मत से सहमत होने जैसा भाव कभी भी मेरी फितरत में आ ही नहीं सका है।
हालांकि आज ऐसा कोई अवसर, प्रसंग  या प्रहसन नहीं है। बात केवल यह कि आज शिवराज सिंह चौहान का जन्मदिन है। चेहरे पर ओढ़ी गयी मुस्कराहट और हाथ में थामे गए फूलों के गुच्छे के माध्यम से किसी को शुभकामना देने वाला मिजाज तो मेरा कभी भी नहीं रहा है। फिर जब बात सत्ता के शिखर के अभिषेक जैसी हो, तो इस कर्मकांड में मेरी रुचि न कभी थी और न होगी। अलबत्ता आज शिवराज को उनके जीवन के इस मोड़ पर विविध कोण से देखने की इच्छा कलम के जरिये बलवती हुई है।
प्रदेश के किसी भी अन्य पूर्व मुख्यमंत्री की ही तरह शिवराज के मामले में भी मुझे उनका विरोधी कहे जाने का सौभाग्य हासिल हुआ है। हां, उनका दुर्भाग्य उन्हें मुबारक जिन्होंने सत्ताधीशों के गलत के विरुद्ध आग उगलती मेरी कलम के लिए अग्निशामक बनने के अनंत प्रयास किये। जिन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कई बार समझाया, ‘अवधेश भाई! इतना तीखापन भी ठीक नहीं है।’ ऐसे हाथ मैंने हर बार झटक दिए। फिर कलम की सियाही से अपने कंधे का शुद्धिकरण किया और जुटा रहा अपने इस कर्म में। इस कर्म का एक मर्म आज साझा कर रहा हूं। शिवराज की एक खूबी देखी है। मेरे द्वारा किये गए अपने विरोध की बहुतायत के बावजूद चौहान कभी भी प्रतिक्रियावादी नहीं हुए। यह भी खास बात कि मेरे मिजाज के अनुरूप ही उन्होंने कभी भी मुझ
जैसे निंदक को ‘आंगन कुटी छवाय’ की कोशिश तक नहीं की।
चौथी पारी में शिवराज बहुत अलग दिखाई देने लगे हैं। संभवत: यह प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच लगातार सफलता हासिल करने के अनुभव तथा माद्दे से उपजी परिपक्वता का असर है। हालांकि वह अब भी आम लोगों के बीच आम आदमी की ही तरह से नजर आते हैं, किन्तु एक खास भाव उनके भीतर परिलक्षित होने लगा है। वह है, स्वयं से साक्षात्कार और उस आधार पर बाकी सारे सरोकार का विशिष्ट तरीके से सत्कार। मुझे यह नजर आता है कि चौहान ने अपने भीतर की खूबियों (जिनमें तकदीर सहित तदबीर भी शामिल है) के आलोचन की प्रक्रिया को पूर्ण गति प्रदान कर दी है। इस मथने की प्रक्रिया से उपजे विचारों को चौहान जिस तरह ठोस निर्णयों एवं कार्यक्रमों के रूप में क्रियान्वित कर रहे हैं, वह उन्हें अपने पूर्ववर्तियों के मुकाबले एक खास पहचान प्रदान कर रहा है। अब अफसरों को उन अवसरों के लिए तरस कर रह जाना पड़ रहा है, जिनमें पहले वह अपना उल्लू बड़ी आसानी से सीधा कर लिया करते थे। सरकार और भाजपा से जुड़े रसूखदार चेहरे भी शिवराज के चलते उन सुराखदार रास्तों से वंचित हो गए हैं, जिनमें सफर कर वे अपने शुभ-लाभ का पुख्ता प्रबंध कर लेते थे। यह इसलिए हुआ कि शिवराज ने अपने भीतर के आम इंसान के दृष्टिकोण से मुख्यमंत्री के प्रति अपेक्षाओं को स्पष्ट दृष्टिकोण प्रदान कर दिया है। वही आम आदमी इस खास पद के लिए अपनी प्राथमिकताएं तय कर चुका है और शिवराज उसके अनुरूप ही आगे बढ़ रहे हैं। यह संतुलन कठिन है। इसमें पद के अहं को अहम तरीके से काबू में करते हुए चलना है। यह राह कहीं रपटीली तो कहीं पथरीली है। इस पर शिवराज कितना और कैसे चल सकेंगे, यह समय ही बताएगा। वर्तमान तो केवल यह बता रहा है कि अब तक का यह सफर चौहान के लिए निरापद ही रहा है। जन्मदिन पर मेरी शुभकामना है कि यह यात्रा अपनी शेष अवधि में भी यूं ही सफलतापूर्वक चलती रहे।

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