
अपने दु:ख को खुद ही ढ़ोना पड़ता है।
मन ही मन में सबको रोना पड़ता है।
आज मिला जो उसको पाने की खातिर
किससे बोलें क्या क्या खोना पड़ता है ।
रात की इज्जत रखने को बंद आँखों से
नींद किसे आती है? सोना पड़ता है।
एक का होना दुनिया में नामुमकिन है
इसका उसका सबका होना पड़ता है।
तन्हा सफर में हम सामां हैं और कुली,
गठरी करम की खुद को ढ़ोना पड़ता है।
गुल की छुअन से तो बेहोशी बढ़ती है ,
होश की खातिर खार चुभोना पड़ता है।
– मुकेश आर पांडे