
भोपाल/वीरेंद्र नानावटी/बिच्छू डॉट कॉम। मां, माटी और मनुष्यता का उद्घोष है!
“यत्र नारीस्तु पूज्यंते, तत्र रमन्ते देवता”
की महान सांस्कृतिक विरासत ही हमारी पहचान है!
सदियों से, शास्त्रार्थ हो या शस्त्र!
बौद्धिक चेतना का मंच हो,या दरिंदों से युद्ध का अलाव!!
भारतीय नारियां राष्ट्र की अस्मिता- आबरू की अक्षुण्णता के लिए प्राणोत्सर्ग का अनुष्ठान करती रही …समग्र इतिहास में!!!
जो सदियों से संस्कृति और सभ्यता की थाती रही हैं, उन्हें दिवसों में कैसे मापा जा सकता है….?
महिलाएं देवी दुर्गा हैं, तो लाड़ली सिद्ध लक्ष्मी भी ! वे ज्ञान की अधिष्ठात्री सरस्वती की वीणा हैं तो असुरों के नरमुंडों और रक्त के खप्परों से न्याय का जयघोष करने वाली रणचंडी कालिका/चामुंडा की खड्ग भी !
महिलाएं सेवा की प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा है तो ममत्व की मिसाल आनंदमयी मां भी हैं!
वे जहां जाती हैं.. जिनसे बावस्ता होती हैं… वहाँ जिंदगी का नूर और रंग बिखेर देती है ! उनके बगैर लाजवंती सुबह के फूल नहीं खिलते और शामें गुलजार नहीं होती!
मां है तो संसार है, ईश्वर का आकार है!
पत्नियों के पात्र (किरदार) में, वे जीवन का छलकता पात्र (जीवन-कलश) हैं!
बेटियाँ हैं तो रौनक है /सखी हैं तो वे वक्त की धड़कनें हैं/पुरुष नारी के बिना अधूरा है! बात हमारी सांस्कृतिक धरोहर की हो या इतिहास के पन्नों पर दर्ज ईश्वरीय अवतारों की… पार्वती के बगैर शिव का,राधा के बगैर कृष्ण का और लक्ष्मी के बिना विष्णु का वजूद इतना तार्किक कहां लगता है?
नारी जीवन का /
सृष्टि के सृजन का संगीत है
खुशनुमा लम्हों का गीत है…
नारियां उम्मीदों का बसंत है/ सखा भाव में समर्पित हर वेदना का अंत है?
महिलाओं के बिना घर सिर्फ मकान लगते हैं… सूने-सूने और वीरान!!
इन धरोहरों को अपनी धड़कनों में रखिए… क्योंकि महिलाएं ही तो कुदरत और कायनात का शबाब है..?
ऐसी लाजवाब नारी शक्ति का वंदन-अभिनंदन!
नवरात्रि के शक्ति पर्व पर!