मुलायम सिंह के मायने…

मुलायम सिंह
  • प्रभात झा

निर्माण और निर्माता की भूमिका अलग रहती है’ भारत ने सदैव उसे सम्मान दिया है जिसने किसी भी कार्य के निर्माण में अपना देह गलाया है’ डॉ. राम मनोहर लोहिया और नेताजी राजनारायण के बाद समाजवादियों में यदि किसी को नेताजी कहा गया है तो उनका नाम मुलायम सिंह यादव है’ लोकतंत्र में भाग्य, भविष्य और भगवान जिसके साथ होता है उसे कर्म की प्रेरणा और मेहनत करने की शक्ति स्वत: मिल जाती है’ मुलायम सिंह यादव भले ही डॉ. लोहिया द्वारा निर्मित किये गए हों, लेकिन उत्तर प्रदेश का जर्रा-जर्रा गवाह है कि मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में ही नहीं, भारतीय राजनीति में भी अपना एक अलग स्थान बनाया है’ उन्होंने अपनी पहचान मिटने नहीं दी’ समाजवाद की चादर को छोड़ा नहीं’ कांग्रेस को उत्तर प्रदेश से मुक्त करने की शुरूआत जिन्होंने की उस सख्सियत का नाम है मुलायम सिंह यादव’ वे अखंड प्रवासी थे’ जब तक उनका स्वास्थ्य खराब नहीं हुआ वे सहज, सरल, सुलभ रहे’ वे कार्यकर्ताओं के कार्यकर्ता थे।’
जब लोग आज की राजनीति में ‘मसल्स, मनी और मैन पावर’ की हो गई है, ऐसे में उन्होंने साइकिल से घूम-घूम कर, पहलवानी कर शिक्षा ग्रहण की’ गरीबी की यह हालत थी की जब उन्हें नदी पार करके स्कूल जाना पड़ता था तो वे एक प्लास्टिक के थैले में धोती-कुर्ता रखकर तैरकर नदी के उस पार जाते थे और कपड़ा पहनते थे’ आज यह बात सत्य है की गरीबों के लिए राजनीति में काम करना कठिन है, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने अपने समय में सिद्ध किया की गरीबी अभिशाप नहीं वरदान भी होती है’ वे जुनूनी थे’ जिस काम को ठानते थे पूरा करते थे’ उनके व्यक्तित्व का प्रभाव इसी से आंका जा सकता है की बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन और अमीरों में अमीर अनिल अंबानी भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर समाजवादी पार्टी के नजदीक आए।’ मैं ‘स्वदेश’ समाचार में था’ उस समय राम जन्मभूमि आंदोलन की रिपोर्टिंग करने अक्सर अयोध्या जाया करता था’ जब उन्होंने बयान दिया था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता और वहां कार सेवकों की ह्त्या भी हुई थी और लोग ढांचे पर चढ़ गए थे’ तब ग्वालियर लौटते समय लखनऊ में उनका साक्षात्कार किया था और मैंने उनसे यही सवाल किया था ‘आपने कहा था परिंदा पर नहीं मार सकता, फिर यह सब क्या हुआ’’ उन्होंने तपाक से उत्तर दिया कि ‘मुख्यमंत्री रहते मेरा यही कहना जायज था’’ एक दूसरी घटना है’ मैं जब राज्य सभा में था तो प्रखर समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्रा भी राज्य सभा में थे’ वे एक ग्रामीण परिवेश की हिंदी और प्रांजलि हिंदी में बहुत अच्छा बोलते थे’ मुझे भी इसीलिए मानते थे कि मैं छोटी उम्र में राज्य सभा में पहुंचा था और जब मैं सदन में विषयों पर बोलता था तो वे मुझे शाबाशी देते थे’ अचानक जनेश्वर मिश्रा का निधन हुआ’ दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई’ उस समय भारतीय जनता पार्टी की महामंत्री जो राज्य सभा में हमारी नेता भी थीं, उनको श्रद्धांजलि सभा में जाना था’ लेकिन सुषमा जी ने पार्टी का राष्ट्रीय सचिव होने के नाते मुझे कहा कि पार्टी की ओर से तुम चले जाओ’ मैं गया और जब श्रद्धांजलि सभा में दस मिनट जनेश्वर जी के बारे में श्रद्धांजलि दी तो मुलायम सिंह जी ने कुर्सी के पीछे मुझे बुलाया और पूछा की ‘तुम बिहार के हो’ तो मैंने कहा कि ‘बिहार का हूं लेकिन वर्षों से मध्य प्रदेश में रहता हूं’’ उन्होंने कहा ‘तुमने बहुत अच्छी श्रद्धांजलि दी है’ तुम मेरे घर आकर मिलो’’ मैं अचंभित था’ इतने बड़े नेता का आग्रह मैं टाल नहीं सकता था’ मैं समय लेकर मिला’ उन्होंने देखते कहा ‘आओ प्रभात बैठो’’ फिर उन्होंने मेरे जीवन के बारे में पूछा -जन्म, पढ़ाई, मध्य प्रदेश’ मैंने सारी  जानकारी दी’ इसके बाद उन्होंने जो कहा मुझे चौंका दिया’ उन्होंने कहा कि ‘समाजवादी विचारधारा का अध्ययन किया है’’ तो मैंने उनसे कहा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया की आत्मकथा पढ़ी है’ उनकी दो किताबें पढ़ी है’ इस पर उन्होंने कहा कि ‘तुम समाजवाद से प्रभावित नहीं हुए’’ इस पर मैंने उनसे कहा  कि ‘मैं संघ का बाल स्वयंसेवक हूं’ विचारधारा धर्म की तरह धारण किया जाता है, कपड़े की तरह बदले नहीं जाते’’ उन्होंने पीठ ठोका और कहा ‘जहां भी रहो, मेहनत से काम करो’ मेहनत सबसे बड़ी पूंजी है’’ दूसरी लाइन उनकी थी ‘अमीरों से दूर रहना, गरीबों के करीब रहना’’ उनके इस वाक्य में मेरी मूल धारणा को और मजबूती प्रदान की’
मुलायम सिंह जी कार्यकर्ताओं से घिरे थे, एक-एक को नाम लेकर पुकारते थे’ कौन किस जनपद से आया है यहां तक जानते थे’ वे तीन बार मुख्यमंत्री रहे और एक बार देश के रक्षा मंत्री रहे, उसके बाद भी उनकी सारी योजनाएं गरीबों के लिए बनती रही’ उनके संबंध किसी से खराब नहीं थे’ वे सच में यानी सभी समाज के थे’ लखनऊ से जब अटल जी सांसद थे, तो मुलायम सिंह जी उनसे मिलने लखनऊ सर्किट हाउस आते थे’ वे सभी को सम्मान देते थे’ उनकी मित्रता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की विचारधारा से उनके घोर विरोधी रहे कल्याण सिंह जी भी एक समाजवादी पार्टी में उनके सहयोगी हो गए थे’ एक बार संसद के सेंट्रल हॉल में उनके पास बैठा उनसे चर्चा कर रहा था’ वहां रामगोपाल यादव सहित अनेक नेता बैठे थे’ मैंने कहा मैं अब पत्रकार नहीं फिर भी मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है, उन्होंने कहा ‘पूछो, पूछो’ मैंने पूछा ‘भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी तक सबसे अच्छे नेता कौन लगे’” उन्होंने सबके सामने कहा ‘नानाजी देशमुख’’ उसके आगे उन्होंने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश में सरस्वती शिशु मंदिर और बाद में जनसंघ का अगर किसी ने अखंड प्रवास से प्रज्ज्वलित किया तो वे नानाजी देशमुख थे’’
ये रोचक घटनाएं इसलिए लिख रहा हूं कि इन घटनाओं से मुलायम सिंह जी की राजनीतिक और सामाजिक उदारता के साथ-साथ सभी दलों में उनके कितने अच्छे संबंध थे यह उजागर करता है’ उनकी बेबाकी, स्पष्टता और दूरदर्शिता का अनुपम उदाहरण संसद में उस समय मिला जब वे यह बात कहने में नहीं चूके कि 2019 में फिर से मोदी आएंगे’ अपने विरोधी होने के बावजूद उनमें यह कहने का अदम्य साहस था।’
( पूर्व सांसद एवं पूर्व भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष)

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