मध्यप्रदेश तंत्र पर मीडिया मंत्र

राकेश अग्निहोत्री, वरिष्ठ पत्रकार
भाजपा में मंथरा और शल्य कौन.. और सबसे बड़ा सवाल यदि यह चिंता जायज है तो ये चुनावी साल में भाजपा के लिए कितना और क्यों हानिकारक? सियासत में आखिर ये किरदार उनकी कार्यशैली किसी राजनीतिक दल के लिए क्या मायने रखते .. क्या मोदी – शाह की बदलती भाजपा में ऐसे लोगों का कोई रोल बचता है.. फिर भी यह सिर्फ चुनाव की चुनौती से जुड़ी चिंता या फिर अनुभवों के आधार पर शिवराज की जुबान पर अनुभवों दिल की बात आ ही गई.. बात निकली है तो क्या दूर तलक जाएगी.. जो बिना समय गवाएं रुके हुए फैसलों को अंजाम तक पहुंचाने को मजबूर करती है.. सक्षम स्वीकार्य, नेतृत्व या चुनाव जीतने के लिए जरूरी लटके सियासी फार्मूले की अनिश्चितता का क्या इसे नतीजा माना जाय,.. ऐसे में गुटबाजी ,वर्चस्व की आंतरिक लड़ाई के बीच अनेकता में एकता भाजपा के लिए जरूरी या फिर इसे हौसले पस्त करने वालों से सावधान रहते हुए दृढ़ इच्छाशक्ति और सख्त फैसले की आवश्यकता से जोड़ कर देखा जाए .. क्या चुनाव मिशन 2023 को देखते हुए सत्ता और संगठन में फैसले मंथर गति से होने का इसे परिणाम माना जाए.. तो क्या शल्य चिकित्सा यानी किसी बड़ी सियासी सर्जरी की आवश्यकता महसूस हो रही है.. सर्जरी और समन्वय की इस नई बहस से क्या पुरानी और नई भाजपा के बीच टकराहट खत्म हो जाएगी.. वह भी तब जब नेता पुत्रों की टिकट की दावेदारी पर खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सवाल खड़ा कर चुके हैं । .. यही नहीं एक जेब मे ब्राह्मण और दूसरे में बनिया वोट बैंक रखने का दावा करने के साथ सिंधिया समर्थक मंत्री और विधायकों को विभीषण बता चुके प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव जो 3/4 चुनाव जीत चुके विधायकों को टिकट नहीं देने की लाइन आगे बढ़ा रहे.. जब हर प्रदेश का अपना सियासी मिजाज तब मध्यप्रदेश में गुजरात मॉडल यानी सारे घर के बदल डालो का जुमला वक्त का तकाजा तो यह मध्यप्रदेश में कैसे संभव.. तो फिर भाजपा की जीत के लिए दूसरा विकल्प आखिर वह नया फार्मूला क्या होगा.. मोदी और शाह ने अपने गुजरात में जिस तरह कोई रिस्क ना लेते हुए चुनाव की पूरी कमान अपने पास रखी क्या ऐसा ही शिवराज के लिए बहुत जरूरी हो जाता है..। 2018 विधानसभा चुनाव में सत्ता में रहते मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के बीच अनबन का नतीजा भाजपा चुनाव में भुगत चुकी है.. गुजरात की जीत के साथ हिमाचल की हार भी सामने है.. । राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते जेपी नड्डा के हाथ से उनका गृह प्रदेश हिमाचल निकल गया.. । ऐसे में सवाल क्या भाजपा में संगठन सरकार उसके नेतृत्व का मनोबल गिराने और इधर की उधर करने वाले बड़ी समस्या बन चुके हैं.. । आखिर मुख्यमंत्री रहते शिवराज को मंथरा और शल्य से सावधान रहने की चेतावनी संगठन के मंच से देना पड़ी ..। अनुभवी शिवराज ने बहुत सोच समझकर यह बात कही या फिर अचानक बन पड़ी बदलती स्थिति के कारण उनकी यह सलाह सामने आई.. ।भाजपा में लगातार बैठकों का दौर खासतौर से कोर कमेटी की नियमित लेकिन बेनतीजा साबित होती रही बैठकों से इसे जोड़ कर देखा जाएगा.. । चीफ सेक्रेटरी इकबाल सिंह बैंस की नई पारी की हरी झंडी मिलने के बाद हाईकमान के शिवराज पर भरोसे और वरदहस्त को संगठन समझ नहीं पा रहा.. तो क्या प्रस्तावित बहु प्रशिक्षित मंत्रिमंडल पुनर्गठन, या विस्तार पर सहमति का अभाव नई समस्या बनकर सामने है…। सरसंघचालक मोहन भागवत के कुछ महीने पहले मध्य प्रदेश दौरे के बाद शिवराज की चिंता उस वक्त सामने आई जब कुछ दिन पहले संघ के नंबर दो दत्तात्रेय होंसबोले कई दिनों तक भोपाल में डेरा डाले रहे..। जिनसे भाजपा नेतृत्व और नीति निर्धारकों की मुलाकात से भी इनकार नहीं किया जा सकता.. । इसी समय भाजपा के थिंक टैंक मुख्य जिम्मेदार पदाधिकारी जिसमें शीर्ष नेतृत्व के प्रतिनिधि भी शामिल 2 दिन लगातार भोपाल में चिंतन मंथन करते… फिर भी फैसले सामने नहीं आए.. । सवाल आखिर कौन क्यों किसकी किस मकशद से घेराबंदी कर रहा ..तो गुजरात ,हिमाचल चुनाव से बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच क्या मध्यप्रदेश भाजपा में आॅल इज वेल नहीं तो फिर क्यों.. सत्ता और संगठन में बेहतर समन्वय का दावा यदि खोखला.. तो इसकी वजह क्या… , जो जहां वह वहां संतुष्ट नहीं.. या फिर वो सभी को संतुष्ट नहीं कर पा रहा.. । क्या केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की खरी खरी उस बात से भाजपा के नीति निर्धारक इत्तेफाक रखते हैं कि कार्यकर्ता को टिकट की दरकार..तो विधायक को मंत्री और मंत्री जो अपने विभाग से संतुष्ट नहीं वह भी खुद को सीएम इन वेटिंग मान बैठा है.. या फिर भाजपा की सबसे बड़ी समस्या मंथरा और शल्य का किरदार निभाने वालों से सावधान रहना बहुत जरूरी हो गया है.. । करीब 5 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाभारत के किरदार शल्य का जिक्र कर अपनों को हतोत्साहित कर नकारात्मक खबर फैलाने वालों से सावधान रहने की बात कही थी..। कुछ ऐसी बात का जिक्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कटनी प्रदेश कार्य समिति की नई क्राइटेरिया के साथ बुलाई जाने लगी बैठक में किया.. । भाजपा संगठन के फोरम पर चर्चा सिर्फ महाभारत के प्रसंग की नहीं बल्कि भगवा धारियों सियासत के केंद्र बिंदु मयार्दा पुरुषोत्तम राम की रामायण के और दूसरे चर्चित किरदार मन्थरा का जिक्र भी सामने आया ..जो कैकई के कान भरती थी.. । शिवराज ने ऐसे लोगों से सावधान रहने का मशवरा देते हुए दो टूक नसीहत मंच साझा कर रहे अपने सहयोगी जिम्मेदार नेताओं को दे दी.. । सामने बैठे कार्यकर्ताओं के मुताबिक चेहरे पर चिंता.. बढ़ती अपेक्षाएं के साथ लहजा सख्त और कुछ ज्यादा ही गंभीर नजर आ रहे शिवराज की इस बेबाकी और दो टूक से नए सवाल खड़े हो गए.., क्योंकि मंच संगठन का और एक बड़ा फोरम जिसमें कार्य समिति के सदस्य ,विशेष आमंत्रित सदस्यों को छोड़कर लगभग सभी दूसरे पदाधिकारी और जिम्मेदार नेता मौजूद थे..। ये भी वे लोग थे जो जिला, प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के अंदर बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.. । ऐसे में बड़ा सवाल कांग्रेस से 2018 विधानसभा चुनाव में मात खा चुकी भाजपा के अंदर कानाफूसी से लेकर कान भरने और बात इधर- उधर की करने वालों के साथ यदि सामने कुछ और पीठ पीछे कुछ कहने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है ..। क्या ऐसे लोग प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक मौजूद है …. तो क्या माना जाए मंत्री विधायक सांसद पदाधिकारी आपस में गुटबाजी को बढ़ावा दे रहे.. । तो आखिर यह स्थिति क्यों निर्मित हुई क्या इसे संकट भरोसे का माना जाए और यह स्थिति संवाद हीनता के कारण निर्मित हुई है.. तो क्या सत्ता और संगठन आमने-सामने है..। या फिर व्यक्ति विशेष के बीच दुराग्रह की स्थिति निर्मित हो चुकी है ..। आखिर वो कौन लोग हैं और वो कौन सी बातें जो अब शिवराज को बिल्कुल गवारा नहीं .. । सख्त हिदायत के साथ क्या शिवराज का धर्म संयम जवाब दे रहा है जो उन्होंने ठान ली है कि अब बहुत हो चुका.. तो क्या इस चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ी लड़ाई अपने कार्यकर्ता से लड़नी होगी.. । मंथरा की कानाफूसी और कैकई के कारण राम को बनवास जाना पड़ा था .. तो महाभारत का किरदार ‘शल्य’ जिन अपनों के साथ रहता उन कौरवों को विरोधी पांडवों की ताकत बढ़ चढ़कर बता उन्हें नुकसान पहुँचाया.. । मंथरा और शल्य की भूमिका से जुड़ी भूमिका के साथ नया सवाल खड़ा हो जाता है कि भाजपा को खतरा कांग्रेस से ज्यादा क्या अपनों से महसूस होने लगा है.. यदि इस बात में दम है तो सवाल राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश से लेकर प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव जो लगातार हर महीने भाजपा दफ्तर से लेकर मुख्यमंत्री निवास पर चिंतन मंथन करते हैं। क्या वह इस समस्या से अनजान हैं.. या फिर वह खुद खेमेबाजी को बढ़ावा दे पसंद नापसंद के कारण पार्टी बन चुके हैं.. । सवाल क्या भाजपा 2018 की स्थिति में खड़ी हो चुकी है..। मंथरा के रोल में आखिर वह कौन नेता और कार्यकर्ता है जो सीधे सपाट शब्दों में चुगलखोरी कर चुनावी साल में पार्टी माहौल बिगाड़ रहे.. । यह स्थिति सिर्फ प्रदेश स्तर पर है या फिर संभागीय और जिला स्तर पर भी नेताओं के बीच मनमुटाव लगातार बढ़ता जा रहा है..। इसका कारण सत्ता और संगठन के बीच बढ़ती गलतफहमी को माना जाए या फिर कड़वा सच यही है .. । शिवराज ने यह संदेश किसे दिया.. इस कड़वी हकीकत से क्या इनकार नहीं किया जा सकता ..तो क्या नेतृत्व एक दूसरे की राह में रोड़ा बन रहा है.. । वो कौन चेहरे हैं जो बात को बढ़ा चढ़ा कर इधर की उधर करते हैं..।क्या इसे भाजपा के उस सर्वे से जोड़ कर देखा जाए जिसमें सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया.. मन भेद, मत भेद की इस समस्या से सरकार की योजनाओं को वोट बैंक में तब्दील करने की मनसा आखिर कैसे पूरी हो इस पर सवाल खड़े हो चुके हैं..।
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश भाजपा का सबसे अनुभवी चेहरा जो कांग्रेस के घोषित सीएम इन वेटिंग कमलनाथ के सामने जोड़ तोड़ दांव पेंच के इस खेल का सबसे बड़ा महारथी.. जो प्रदेश के दूरदराज क्षेत्रों की समस्याओं से वाकिफ जो नाराज और रूठे को मना सकता भाजपा की बड़ी जरूरत.. । सिंधिया इफेक्ट से अस्तित्व में आई इस भाजपा सरकार को स्थिरता देकर शिवराज ने अपनी उपयोगिता साबित की है.. । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मध्यप्रदेश में पहली पसंद जिनके सामने लो प्रोफाइल शिवराज ने खुद को भरोसेमंद साबित किया.. । 17 साल के मुख्यमंत्री शिवराज भाजपा की ताकत तो विरोधी कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के ही दूसरे महत्वाकांक्षी नेताओं की आंख की किरकिरी और सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के कारण चुनाव में कमजोरी साबित हो सकती..। मोदी के विकल्प के तौर पर चर्चित चेहरे अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, नितिन गडकरी जैसे नेताओं के बढ़ते कदम के बीच भविष्य की राजनीति में शिवराज को भी जो संघ बड़ा और स्वीकार्य चेहरा बना रहा..। उसी संघ की विशेष दिलचस्पी और हस्तक्षेप ने मध्यप्रदेश में प्रदेश महामंत्री रहते विष्णु दत्त को पार्टी की कमान दिलवाने में बड़ी भूमिका निभाई..। विचारधारा के प्रति पूरी तरह समर्पित विष्णु के नेतृत्व में संगठन में उम्र के मापदंड पर बड़ा बदलाव सामने लाया चुका है..। प्रदेश अध्यक्ष रहते जिनके सामने बड़ी चुनौती 2023 विधानसभा में नए युवा चेहरों को सदन में पहुंचाना.. । बदलती भाजपा में सांसद और प्रदेश अध्यक्ष रहते विष्णु दत्त को अपनी नई पारी का इंतजार.. तो कांग्रेस से अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल नई पीढ़ी का नया नेतृत्व नया चेहरा युवाओं की पहली पसंद ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी कद भी केंद्रीय मंत्री बनने के बाद बहुत बढ़ चुका है.. । चुनाव जीतने के एक फार्मूले गुजरात मॉडल और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जल्द खत्म होने से बनते बिगड़ते समीकरणों के बीच मध्यप्रदेश में भाजपा को एक नए फार्मूले की दरकार है.. वह भी तब जब आदिवासी वोट बैंक पर कब्जे की लड़ाई एक बड़ा मुद्दा बन चुका है..। विशेषज्ञों की माने तो भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व और पर्दे के पीछे सक्रिय संघ को अनुभवी और नई पीढ़ी के बीच न सिर्फ बेहतर तालमेल स्थापित करना होगा.. बल्कि, चुनाव जीतने के लिए जरूरी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए जातीय समीकरण दुरुस्त करना भी जरूरी हो गया है.. । ऐसे में सियासत में सक्रिय मंथरा और शल्य की पहचान और इस नई समस्या का समाधान समय रहते बहुत जरूरी माना जा रहा.. । वह भी तब जब मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के अलावा कई और दूसरे नेता नरेंद्र तोमर ,कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, फग्गन सिंह कुलस्ते नए सिरे से अपने लिए मिशन 2023 में नई भूमिका तलाश रहे हैं..