मध्यप्रदेश में मुश्किल है डगर गुजरात मॉडल की…

मध्यप्रदेश
  • राघवेंद्र सिंह

बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का …
जो चीरा तो इक कतरा-ए-खूं न निकला…
मशहूर शायर हैदर अली आतिश का यह शेर इन दिनों मध्यप्रदेश की सियासत में खूब फिट बैठ रहा है। सूबे के सियासी गलियारों में मोदी के गुजरात मॉडल से लेकर विधानसभा ही विधानसभा छाई हुई है। सवाल पूछे जा रहे हैं क्या प्रदेश में भाजपा में गुजरात मॉडल को लागू करने की कुव्वत रखती है। अभी तक तो उत्तर नही अनुमान ‘ना’ में आ रहे है। वजह है बगावत और बागियों को कौन काबू में करेगा..?
डैमेज कंट्रोल के लिए यहां मोदी- शाह जैसे नेता नहीं हैं। शायद इसीलिए संगठन में राष्ट्रीय स्तर के दिग्गजों में अजय जामवाल से लेकर शिव प्रकाश और मुरलीधर राव जैसे नेताओं को भी भारी मशक्कत के बाद भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। प्रदेश से लेकर संभाग और जिलों के साथ मंडल स्तर के नेताओं का जो फीडबैक आ रहा है उसके हिसाब से पार्टी में कोई भी ऐसा कद्दावर नेता नहीं है जो बगावत को रोक पाए।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा सत्र के समापन पश्चात विधायकों की बैठक कर सीधे उन्हें उन रिपोर्टों से रूबरू कराते हैं जो उनके टिकट कटवाने के संकेत देती हैं याने मंत्री विधायकों किस क्षेत्र में उनकी कमजोर कड़ियां, उनके व्यवहार, चाल चलन, कार्यकर्ताओं और जनता से विधायकों की संवाददाता का भी जिक्र रिपोर्ट कार्ड के बहाने किया जा रहा है। ऐसे ही बातें संगठन की बैठकों में अध्यक्ष और महामंत्री के फोरम से मंत्री विधायकों को बताई जा रही है एक तरह से यह समझाइश के साथ चेतावनी भी है। लेकिन अगले 3 माह में रिपोर्ट कार्ड में सुधार नहीं हुआ तो भाजपा को सत्ता में वापसी के लिए लगभग पचास  विधायकों के टिकट काटने पड़ सकते हैं। इसमें वे नेतागण भी शामिल हैं जो सिंधिया की नाव में सवार होकर भाजपा के जहाज में चढ़े थे। सिंधिया ने उन्हें मंत्री तो बनवा दिया लेकिन बदले हालात में जो रिपोर्ट आ रही है उसके चलते वह अपने समर्थक विधायकों को टिकट दिला पाएंगे इस पर संशय है। यही बात भाजपा में सबके लिए परेशान करने वाली है। कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आने वाले हैं यह श्रीमान अगर फिर बागी हो गए तो क्या होगा इसके अलावा भाजपा के वरिष्ठ और बुजुर्ग नेता यदि टिकट से वंचित की जाते हैं तो उनकी बगावत कौन थामेगा पिछले दिनों तो दमोह में वरिष्ठ भाजपा नेता जयंत मलैया से राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने सार्वजनिक माफी मांग कर यह बता दिया है यदि मौका आया तो बागियों को साधने में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन पार्टी ने उनकी माफी को किस ढंग से लिया है यह आने वाले दिनों में भाजपा की नई टीम में उनकी मौजूदगी या हैसियत सब कुछ साबित कर देगी। प्रदेश में मलैया के बाद विक्रम वर्मा, डॉ. गौरीशंकर शेजवार, अनूप मिश्रा, अजय विश्नोई, कृष्ण मुरारी मोघे, भंवर सिंह शेखावत, विवेक शेजवलकर, विजेंद्र सिंह सिसोदिया जैसे नेताओं की आवश्यकता अनुरूप पूछपरख कर सेवाएं लेनी पड़ेंगी। इसके अलावा सत्ता संगठन में रिक्त पड़े पदों पर हाशिए पर पड़े छोटे बड़े नेताओं की नियुक्ति कर सक्रिय करना पड़ेगा। ऐसे की बगावत तो छोड़िए निष्क्रियता भी पार्टी को गड्ढे में डाल सकती है।
नाथ की गैरहाजिरी के मायने…
मसला चाहे विधानसभा सत्र का हो विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव का हो या अगले साल 2023 दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव का हो…क्या भाजपा और क्या कांग्रेस विधानसभा ही खूब सुर्खियां बटौर रही हैं। सदन में ध्वनि मत से औंधे मुंह गिरा अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस में प्रदेश कांग्रेस के माई बाप याने कमलनाथ की मंशा पर ही सवाल खड़े कर गया। अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह के माताजी की तबीयत खराब होने के कारण सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास जताने वाले डॉक्टर सिंह दूसरे दिन सीएम शिवराज सिंह का जवाब सुनने सदन में मौजूद नहीं थे वजह थी मैं अपनी माताजी की सेहत खराब होने पर घर चले गए थे लेकिन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पूर्व विधायक कमलनाथ का सदन में नहीं आना विधानसभा भाजपा को मजबूत कांग्रेस को कमजोर सा कर गया। इसके पीछे क्या गलत है और उसका उत्तर क्या होगा यह तो कांग्रेस में संभावित फेरबदल के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन कांग्रेस के शुभचिंतकों ने इसे अच्छा शगुन नहीं माना है। खबरें यह भी है नए साल में कांग्रेस के भीतर को उलटफेर हो सकते हैं लेकिन कमलनाथ बड़े कद के नेता हैं और कांग्रेस में उनके मुताबिल कोई दिखता नहीं है। इसलिए बहुत संभव है सदन में उनकी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान गैर हाजिरी पर उनका बाल भी बांका ना हो। जहां तक इस मुद्दे पर भारत जोड़ो यात्रा के शिल्पी और सूत्रधार दिग्विजय सिंह खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। असल में भाजपा और शिवराज सरकार के खिलाफ दिग्विजय सिंह, उनके समर्थक नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह कड़े तेवर दिखाते रहें तो दूसरी तरफ कमलनाथ की शिवराज सरकार से जुगलबंदी की खबरें भी राजनीतिक गलियारों में अक्सर पंख लगाए उड़ती रहती हैं। नाथ की अनुपस्थिति को इसी से जोड़कर देखा जाए तो किसी को हैरत नहीं होगी। कुल मिलाकर अविश्वास प्रस्ताव को लेकर सदन में प्रतिपक्ष की बहुत किरकिरी हुई। ऐसी दुर्गति पहले कभी नहीं देखी गई। वैसे भी नाथ सदन की कार्यवाही को बहुत गंभीरता से नहीं लेते हैं।  ऐसा गाहे-बगाहे चर्चा में उनकी टीका टिप्पणियों से लगता भी है। मसलन सदन की कार्यवाही समय की बर्बादी… भी कह चुके हैं। पूरे मामले में अविश्वास प्रस्ताव को भी जोड़ा जाए तो कहा जा सकता है बहुत शोर सुनते थे अविश्वास प्रस्ताव का लेकिन चर्चा में देखा तो बहुत कुछ ना निकला…
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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