वैचारिकी

  • श्रुति कुशवाह
वैचारिकी

दूसरी स्त्री खलनायिका में तब्दील हो जाती है

हंगामा सा हो रखा है। वही हरि कथा अनंता। एक बेचारा मासूम पुरुष होता है। शिकार की तलाश में ‘दूसरी स्त्री’। एक पत्नी होती है जिसे हमेशा सारी सहानुभूति मिलती है। और इन सबके बीच वही कहानी..जिसमें हर हाल दूसरी स्त्री ही खलनायिका साबित की जाती है।  ये किसी भी देश, काल, परिस्थिति पर लागू होती है।
कहानी का मूल प्लॉट कुछ इस तरह है –
पुरुष बेचारा भोला है। इतना भोला कि कभी भी कोई दूसरी स्त्री उसे ‘फंसा’ लेती है।
अपनी सालों की शादी से ऊबा पुरुष ‘फंसने’ के लिये इतना आतुर होता है कि शुरुआत में प्रेम,सहमति, विश्वास, कंपेनियन शीप..इस तरह के तमाम वादे कर बैठता है।
पढ़ी लिखी, विदुषी, साहित्यिक अभिरुचि, कलात्मक रुझान वाली, खुद को कायदे से कैरी करने वाली स्त्री तक स्वयं चलकर आया पुरुष..अपनी ‘सुविधा’ होने तक प्रेम में बना रहता है।
इस बात के उजागर होते ही अचानक वो दूसरी स्त्री खलनायिका में तब्दील हो जाती है। पुरुष की पत्नी-निष्ठा जाग उठती है और यकायक वो विक्टिम बन जाता है।
दूसरी स्त्री की तो ये स्थिति दर्शाई जाती है जैसे वो चुके हुए, आधे बाल, बढ़े पेट, निस्तेज चेहरे, ढले मुरझाए, डरपोक, कमजोर, कायर, पुरुष को फंसाने/हथियाने के लिये ही जीवन के सारे उपक्रम करती है।
अपने पति की प्रकृति से बखूबी वाकिफ पत्नी भी अधिकांशत: दूसरी स्त्री को कोसकर पति को मासूम निर्दोष करार दे देती है। ये सबसे सुविधाजनक विकल्प जो है। इस प्रकरण के बाद सोशल मीडिया पर उनकी सटकर मुस्कुराती हुई तस्वीरों में तेजी आ जाती है।
इस तरह बेचारा भोला भाला मासूम पुरुष पत्नी की माफी पाकर happily ever after रहता है…अगली किसी दूसरी स्त्री द्वारा ‘फंसाए’ जाने तक।

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