- प्रणव बजाज

आईपीएस को माफ करने के मूड में नहीं सरकार
इसी को भाग्य कहते हैं। जब भाग्य खराब को तो हाथी पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। ऐसा ही कुछ हुआ है 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी पुरुषोत्तम शर्मा के साथ। शर्मा पुलिस महानिदेशक बनने की कतार में थे, लेकिन पत्नी के साथ मारपीट के आरोप में लंबे समय से निलंबित चल रहे थे। अब उन्हें केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) से राहत मिल गई है। कैट ने शर्मा को निलंबन समाप्त करने के आदेश दिए हैं। कैट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने कहा कि इस मामले की हाईकोर्ट में अपील की जाएगी। इससे साफ हो गया कि सरकार शर्मा को बहाल करने के मूड में नहीं है। गौरतलब है कि 27 सितंबर 2020 को सोशल मीडिया पर सीनियर आईपीएस अफसर व स्पेशल डीजी पुरुषोत्तम शर्मा का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे पत्नी के साथ मारपीट करते हुए दिखाई दे रहे। उसी आधार पर पुलिस ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। प्रकरण दर्ज होने के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था। उसके बाद से शर्मा के निलंबन अवधि को लगातार पांच बार बढ़ाया गया है। शर्मा ने सरकार के निलंबन संबंधी आदेश को लगातार बढ़ाए जाने को कैट में चुनौती दी थी। कैट ने प्रकरण की सुनवाई करने के बाद शर्मा के निलंबन को समाप्त कर दिया है।
कलेक्टर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी
सतना कलेक्टर अनुराग वर्मा के खिलाफ मप्र मानव अधिकार आयोग ने दो अलग-अलग मामलों में 14 जून को निजी तौर पर आयोग के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी किया है। आयोग ने इसके लिए पांच हजार रुपए के निजी मुचलके वाला गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया है। आयोग ने नोटिस और वारंट की तामीली सतना एसपी के माध्यम से कराने का आदेश दिया है। आयोग ने यह कार्रवाई दो अलग-अलग मामलों में कलेक्टर की ओर से जवाब नहीं देने के मामले में की है। सतना जिले के ग्राम घुनवारा निवासी बाबू प्रसाद गौतम ने आयोग में शिकायत की थी कि गांव का भू-माफिया उनकी जमीन पर अतिक्रमण करता है और मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है। इसकी सूचना उन्होंने एसडीएम मैहर और कलेक्टर सतना को भी दी है, लेकिन माफिया के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है। मैं 69 साल का बुजुर्ग हूं, मुझे न्याय दिलाया जाए। चित्रकूट निवासी अनीता शुक्ला ने आयोग में शिकायत कर कहा कि सतगुरू सेवा संघ ट्रस्ट जानकी कुंड चित्रकूट के प्रबंध निदेशक बीके जैन ने मेरे पति को सेवा से बर्खास्त कर दिया है। कई माह से पति का वेतन नहीं दिया है। लिहाजा परिवार भूखों मरने की स्थिति में है। आयोग ने दोनों मामलों में सतना कलेक्टर से जवाब मांगा था। कलेक्टर ने बार-बार नोटिस जारी होने के बावजूद जवाब नहीं दिया है। लिहाजा अब आयोग ने नोटिस के साथ कलेक्टर की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया है।
कैलाश के तंज की गूंज मुंबई में
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जब कुछ बोलते हैं उससे विपक्षी खेमें में खलबली मच जाती है। इस समय उनके एक तंज की गूंज मुंबई में भी सुनाई जा रही है। दरअसल, कैलाश विजयवर्गीय ने महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार पर तंज कसा और कहा कि वो अब वो उद्धव ठाकरे नही बल्कि उद्धव पंवार हो चुके है। बताया जा रहा है कि विजयवर्गीय ने ये कटाक्ष इसलिए किया क्योंकि महाराष्ट्र को उद्धव सरकार केवल एनसीपी के सहारे चल रही है। वहीं उन्होंने लाउडस्पीकर जैसे विवादित मुद्दे पर साफ कहा कि न्यायालय के आदेश का पालन होना चाहिए। जहां लाउडस्पीकर से लोगों को आपत्ति है, वहां बंद होने चाहिए। कोर्ट के निर्देश के अनुसार सरकार को लॉ एंड आर्डर का पालन करना चाहिये। इधर, मध्य प्रदेश का लॉ एंड ऑर्डर बहुत अच्छा है,लेकिन ऐसी घटना से शासन और प्रशासन की बदनामी होती है। वही उन्होंने ये भी कहा कि गौवंश की बहुत अच्छी व्यवस्था वाला कोई राज्य है तो वह मध्यप्रदेश है। इधर, राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर वार करते हुए कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि राजस्थान हिंसक प्रदेश हो गया है वहां लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बहुत खराब है। यह मैं नहीं कर रहा हूं उनके मंत्री और पार्टी के लोग ही कह रहे हैं।
सरकार ने जुटाए ओबीसी मतदाताओं के आंकड़े
ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी कराने के लिए प्रदेश सरकार ने ओबीसी मतदाताओं के आंकड़े जुटा लिए हैं। मप्र पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग के सदस्य प्रदीप पटेल ने बताया कि प्रदेश में सर्वाधिक 79 प्रतिशत ओबीसी मतदाता बालाघाट में हैं। अलीराजपुर, झाबुआ, बड़वानी सहित अन्य आदिवासी बहुल जिले में इनका प्रतिशत कम है। वहीं आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन ने बताया कि जिलों में कलेक्टरों के माध्यम से मतदाता सूची का परीक्षण कराया गया। इसके आधार पर पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को चिह्नित किया गया। 82 सामाजिक संगठनों से सुझाव और ज्ञापन लिए। 156 सुझाव ईमेल और 853 वेबसाइट पर प्राप्त हुए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर, 2021 को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी थी। सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण के अनुसार सीटें आरक्षित की थीं। कोर्ट ने मनमोहन नागर की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए थे कि पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित स्थानों को अनारक्षित श्रेणी में अधिसूचित किया जाए। सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी और पुनर्विचार याचिका दायर भी है, पर कोर्ट ने ओबीसी के आंकड़े जुटाने के आदेश दिए। इसके बाद सरकार ने जिस परिसीमन पर चुनाव कराए जा रहे थे, उसे निरस्त कर दिया, जिससे चुनाव कराने का आधार ही समाप्त हो गया। आयोग ने चुनाव निरस्त कर दिए और पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन करके ओबीसी से संबंधित आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया प्रारंभ की थी, जो अब पूरी हुई है।