बिहाइंड द कर्टन/नए डीजीपी के नाम पर असमंजस

  • प्रणव बजाज
 डीजीपी

नए डीजीपी के नाम पर असमंजस
मप्र का अगला पुलिस महानिदेशक कौन होगा, अभी तक इस पर असमंजस बरकरार है। जबकि वर्तमान डीजीपी विवेक जौहरी का कार्यकाल चार मार्च को पूरा हो रहा है। नियमानुसार अब तक नए डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो जाना चाहिए, पर गृह विभाग से जनवरी के दूसरे हफ्ते में भेजा गया डीजीपी की नियुक्ति का प्रस्ताव मुख्यमंत्री सचिवालय में अटका है। जानकार बताते हैं कि छह माह से भी कम कार्यकाल (मई 2022) वाले पुलिस महानिदेशक राजीव टंडन को मौका देने के लिए प्रस्ताव भेजने में देरी की जा रही है। उन्हें डीजीपी का प्रभार दिया जा सकता है। पुलिस सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के अनुसार जिस दिन डीजीपी का पद रिक्त हो रहा है, उससे कम से कम तीन माह पहले नई पदस्थापना के लिए यूपीएससी को प्रस्ताव भेजना अनिवार्य है। राज्य सरकार ने इसमें काफी देरी कर दी है। नए डीजीपी के लिए कैबिनेट सचिवालय के सचिव (सुरक्षा) 1987 बैच के आइपीएस सुधीर सक्सेना को प्रबल दावेदार माना जा रहा है। पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों का कहना है कि वरिष्ठता क्रम में विशेष महानिदेशक पुरुषोत्तम शर्मा का नाम सबसे ऊपर है, लेकिन उन्हें पारिवारिक विवाद के चलने दौड़ से बाहर माना जा रहा है। उनके बाद 1987 बैच के सुधीर सक्सेना आते हैं जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसी बैच के पवन जैन और 1988 बैच के अरविंद कुमार का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है।

कुछ तो बात है दक्षिण के नेताजी में
मप्र भाजपा के प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव में कुछ तो ऐसी बात है कि न चाहकर भी वे ऐसा कुछ कर जाते हैं, जिसके कारण वह चर्चा में बने रहते हैं। अपनी हर यात्रा पर मीडिया के लिए चटखारेदार खबरों से नवाजने वाले दक्षिण के नेताजी इस बार पूरे होम वर्क और खबर न देने के संकल्प के साथ प्रभार के राज्य पहुंचे। लेकिन उनका मजाकिया-रोचकता पूर्ण अंदाज और बेबाक संवादशैली है ही ऐसी कि खबरें खुद-ब-खुद मुख मंडल से झरने लगती हैं। तीन दिन पहले बड़े ही दार्शनिक अंदाज में उन्होंने पहले तो मीडिया को लेकर अपनी जिज्ञासा जताई फिर पास नहीं आना, दूर नहीं जाना वाली अदा से मीडिया और शादी को इस अंदाज में परिभाषित किया कि ठहाकों के साथ वेदना की झलक भी मिल गई। फिर क्या था वे एक बार फिर चर्चा का विषय बन गए हैं। गौरतलब है कि दक्षिण के ये नेताजी तीन-चार बार अपने रोचक बोल-वचन के चलते सुर्खियों में रह चुके हैं। इसलिए अब फूंक-फूंक कर पांव रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनमें कुछ ऐसी बात है कि वह मीडिया के लिए कुछ न कुछ ऐसा मसाला छोड़ देते हैं जो चर्चा का विषय बन जाते हैं।

अब उज्जैन में बनेगी खुली जेल
मप्र में भोपाल, इंदौर, होशंगाबाद, जबलपुर और सागर के बाद अब उज्जैन में खुली जेलें बनाई जाएगी। इस जेल में उज्जैन के केंद्रीय जेल भैरवगढ़ में हत्या व अन्य गंभीर अपराधों में आजीवन कैद की सजा काट रहे कैदी परिवार के साथ रह सकेंगे। जेल विभाग ने खुली जेल के निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। जेल के निर्माण पर 3.25 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसका निर्माण पीडब्ल्यूडी की परियोजना क्रियान्वयन इकाई करेगी। यह प्रदेश की सातवीं खुली जेल होगी। दरअसल, हत्या व अन्य गंभीर अपराधों के कैदियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सरकार ने प्रदेश में कुछ साल पहले प्रदेश में खुली जेलें बनाने की पहल की थी। खुली जेल एक ऐसी जेल व्यवस्था होती है, जहां पर कैदियों को दिन के समय उनके काम पर जाने के लिए जेल से बाहर जाने दिया जाता है और शाम होते ही कैदी लौट आते हैं। खुली जेल की अवधारणा सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत पर आधारित है। जेल में रहकर कैदी समाज की मुख्यधारा से कट जाता है, इसलिए जिन कैदियों की सजा में 2 वर्ष शेष रह जाते हैं, उन्हें खुली जेल में रखा जाता है, जिससे उन्हें बाहर आने के बाद समाज की मुख्यधारा में शामिल होने में परेशानी ना हो।

अब यूपी के चुनावी संग्राम में कमलनाथ
पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में मप्र के नेता अपनी-अपनी पार्टी के लिए प्रचार में जुट गए हैं। यूपी की चुनाव की जंग में भाजपा से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद अब कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को स्टार प्रचारक बनाया है। कमलनाथ अनुभवी होने के साथ चुनावी प्रबंधन में माहिर माने जाते हैं। उनका पैतृक जुड़ाव कानपुर से रहा है। गांधी परिवार का संसदीय क्षेत्र यूपी में होने से कमलनाथ वर्षों से जमीनी तौर पर अमेठी, रायबरेली सहित विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े रहे हैं। कमलनाथ भी उन  दिग्गजों में शामिल हैं, जो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की चुनावी कमान प्रियंका वाड्रा को मिलने के बाद से लगातार नजर बनाए हुए हैं और सक्रिय हैं। माना जा रहा है कि उप्र में आने वाले दिनों में कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान के बीच सियासी जंग तेज होगी।  गौरतलब है की मप्र में कमलनाथ ने अपनी रणनीति से कांग्रेस का सत्ता से 15 साल का वनवास 2018 में खत्म किया था। उन्होंने कई धड़ों में बंटी पार्टी को एकजुट कर लिया था। कमल नाथ ने सत्ता के साथ संगठन में भी अपना प्रभाव बढ़ाते हुए संतुलन के साथ इसे मजबूत करने की शुरूआत की। हालांकि मार्च 2020 में सरकार गिर जाने से इस कवायद को गहरा धक्का लगा। उसी साल नवंबर में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, लेकिन कमलनाथ लगातार सरकार को घेरने में सफल रहे।

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