बिहाइंड द कर्टन/मोदी के सामने छाया रहा मप्र का छतरपुर जिला

  • प्रणव बजाज
 नरेन्द्र मोदी

मोदी के सामने छाया रहा मप्र का छतरपुर जिला
मध्यप्रदेश की उपलब्धि में बीते रोज एक और नया अध्याय जुड़ गया। इसकी वजह बना है छतरपुर जिला। इस जिले ने गर्भवती महिलाओं के रजिस्टेशन के आंकड़े 37 फीसदी को पीछे छोड़ते हुए इसे 97 फीसदी तक पहुंचा दिया। जब इसकी जानकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिली तो वे इसकी सराहना करने से नहीं रह पाए। उन्होंने जिला कलेक्टरों और संभाग आयुक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि छतरपुर में गर्भवती महिलाओं का पंजीयन 375 से 975 हो गया। यह बड़ी उपलब्धि है। यह उपलब्धि कैसे प्राप्त की गई, यह दूसरे जिलों के लिए सीखने का विषय है। प्रशासनिक अव्यवस्था के लिए यह एक नए सबक के समान है। पीएम के इस संवाद कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हैदराबाद से शामिल हुए। यह सराहना प्रधानमंत्री द्वारा 112 आकांक्षी जिलों के जिला अधिकारियों के साथ संवाद के समय की गई।

इमरती को नहीं पसंद आया आप कार्यकर्ताओं का मास्क
मप्र लघु उद्योग निगम की अध्यक्ष इमरती देवी सुमन कभी अपने बयानों की वजह से तो कभी उनके द्वारा उठाए गए कदमों की वजह से चर्चा में बनी रहती हैं। अब वे चर्चा में हैं मास्क फेंकने के मामले में। दरअसल उनका बीते रोज से एक मास्क फेंकने का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। यह मामला उस समय का बताया जा रहा है, जब वे भांडेर विधानसभा के किसी गांव में गई थीं। वहां से लौटते समय दतिया में बम बम महादेव चौराहे से जब वे निकल रहीं थीं , तब उनके द्वारा मास्क नहीं लगाया गया था, इसकी वजह से वहां पर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें भी मास्क दे दिया , जो उन्हें नागवार गुजरा। उनकी गाड़ी जैसे ही आगे बढ़ी उन्होंने उस मास्क को फेंक दिया। अब इमरती को कौन समझाए की मास्क जरुरी है का नियम सरकार का है और आप तो जनप्रतिनिधि हैं, सो आपको तो इसका स्वागत करना चाहिए था। अगर मास्क नहीं लगाना था तो फेंकने की जगह उसे किसी जरुरतमंद को भी दिया जा सकता था।

और डूब गए दो करोड़ रुपए
प्रदेश में लंबे समय तक एक मलाईदार विभाग में पदस्थ रहे एक इंजीनियर साहब ने अपने पूरे कार्यकाल में जमकर मलाई चाटी। इस मलाई की दम पर वे अब विभाग में चीफ बनने के सपने देखने में लगे हुए थे। इसकी वजह से उनके द्वारा विभागीय मंत्री से संबंध भी बना डाले। उन्हें मंत्री महोदय ने लक्ष्मी दर्शन होते ही विभाग में मुखिया बनाने का आश्वासन भी पूरी तरह से दे दिया।  साहब ने भी प्रमुख बनने के चक्कर में नौकरी में धीरे -धीरे जमा की गई मलाई का एक बड़ा हिस्सा साहब को थमा दिया। इस हिस्से का मूल्य करीब दो करोड़ रुपए बताया जाता है। इस बीच एक अन्य दावेदार ने भी सक्रियता बढ़ा दी। इसकी वजह से वे और दूसरे दावेदार आपस में ही उलझते रहे। मौका पाकर एक तीसरे दावेदार ने तेजी से एक ऐसा दांव चला की यह दोनों हाथ मलते रह गए और वे बाजी मार ले गए। दरअसल इस विभाग के प्रमुख इंजीनियर के पद पर पदस्थ हाल ही में सेवानिवृत्त हुए तो, यह पद रिक्त हो गया था। यह बात अलग है कि सेवानिवृत्त हुए इंजीनियर महोदय ने इस बार भी कार्यकाल बढ़वाने के लिए पूरी ताकत लगा रखी थी, लेकिन विभाग के अधीनस्थ अफसरों ने मोर्चा खेल दिया था, जिसकी वजह से उन्हें निराशा ही हाथ लगी। यह बात अलग है कि वे अपने करीबी इंजीनियर को विभाग में चीफ बनवाने में सफल रहे हैं। अब लक्ष्मी दर्शन कराने वाले साहब मंत्री जी के चक्कर काट -काट कर परेशान हो रहे हैं।

और मैनिट प्रबंधन भूल गया प्रोटोकॉल
भोपाल का मैनिट संस्थान लगातार सुर्खियों में बना रहता है। इसकी वजह प्रबंधन की कार्यशैली है। खास बात यह है कि इस संस्थान का प्रबंधन तो अब जनप्रतिनिधियों का प्रोटोकॉल तक भूल गया है। इसकी वजह से सवाल उठता है कि संस्थान छात्रों को किस तरह की शिक्षा देता होगा। ताजा मामला बीते रोज का है। संस्थान में पीएचडी स्कॉलर्स और मैनिट प्रशासन के बीच बीते एक पखवाड़े से कुछ मांगो लेकर गतिरोध बना हुआ है। इसे समाप्त कराने के लिए स्थानीय सांसद प्रज्ञा सिंह पहुंची थीं , लेकिन प्रोटोकॉल के मुताबिक मैनिट प्रबंधन ने सांसद को बैठने तक के लिए नहीं कहा। इस दौरान वे वहां करीब एक घंटे तक मौजूद रहीं। यह बात अलग है कि सांसद के प्रयासों से फिलहाल छात्रों और मैनिट  प्रबंध के बीच जारी गतिरोध समाप्त हो गया है।

एक लूप लाइन में तो दूसरे चालक की सीट पर  
कहते हैं कि पांचों उंगली एक सी नहीं होती हैं। ऐसा ही कुछ है दो रिश्तेदार आईपीएस अफसरों में। दोनों अफसर वैसे तो अलग -अलग राज्य के कैडर के हैं। इनमें से एक अफसर मप्र तो दूसरा अफसर उत्तर प्रदेश में अपनी सेवाएं दे रहे थे। इनमें से मप्र में पदस्थ अफसर की कार्यशैली ऐसी है कि वे प्रदेश सरकार की नापसंद वाली सूची में बने रहते हैं तो उनके रिश्तेदार प्रदेश सरकार की पसंद वाली सूची में शीर्ष स्थान पर रहे हैं। इसका फल तो उन्हें मिलना ही था, सो उन्हें भाजपा ने उप्र में नौकरी से इस्तीफा दिलाकर पार्टी का टिकट थमा दिया है, जबकि मप्र में पदस्थ अफसर को अब भी लूप लाइन में बनाए रखा गया है। भाजपा का टिकट मिलने के बाद से उनकी पकड़ का अंदाज सभी को हो गया है। अब साहब को लग रहा था इसका फायदा उन्हें जरूर मिलेगा, लेकिन अब रिश्तेदार चुनावी शतरंज में ऐसे उलझे हुए हैं कि वे अपने मप्र में पदस्थ रिश्तेदार की मदद चाहकर भी नहीं कर पा रहे हैं। अब साहब को इंतजार है तो बस उनकी जीत और चुनाव निपटने का।

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