बिहाइंड द कर्टन/आखिर कुशवाहा की करनी ही पड़ गई विदाई

  • प्रणव बजाज
 भगत सिंह कुशवाहा

आखिर कुशवाहा की करनी ही पड़ गई विदाई
भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भगत सिंह कुशवाहा से संगठन पहले से ही नाराज चल रहा था, लेकिन जब उनके खिलाफ एक महिला ने उत्पीड़न की शिकायत की तो मजबूरी में उनसे इस्तीफा ले लिया गया । उन्हें पार्टी के एक बड़े  नेता का वरदहस्त प्राप्त है ,जिसकी वजह से ही उन्हें दोबारा से मोर्चा की कमान दी गई थी। इसके बाद पदभार ग्रहण की शैली की वजह से उन्हें नसीहत दी गई थी। इसके बाद उनके द्वारा कुछ ऐसे लोगों को प्रदेश कार्यसमिति में शामिल करने के आरोप भी लगते रहे जिनसे उन्हें आर्थिक लाभ मिलता है। इस तरह की शिकायतों की वजह से संगठन पहले से उनसे नाराज चल रहा था, लेकिन इसमें आग में घी डालने का काम किया है एक महिला द्वारा सार्वजनिक रुप से उन पर लगाए गए उत्पीड़न  के आरोपों ने। मामला यहां तक तो ठीक था , लेकिन इसके बाद कुछ फोटो व वीडियो भी इस मामले के सार्वजनिक होना शुरू हो गए तो आखिर प्रदेश भाजपा संगठन को उन्हें इस्तीफा देने का अल्टीमेटम देना पड़ गया। जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया। उक्त महिला की मुलाकात कुशवाहा से निजी हॉस्टल चलाने के दौरान हुई थी।

कहीं कर्मचारियों की नाराजगी न पड़ जाए भारी
शिव सरकार के लिए पुरानी पेंशन बहाली और पेंशनरों द्वारा की जाने वाली मंहगाई भत्ते की मांग मुसीबत बनती जा रही है। माना जा रहा है कि इन दोनों मांगो के पूरा नहीं होने की वजह से यह कर्मचारी सरकार से नाराज चल रहे हैं। इस मामले में संघ से जुड़ा कर्मचारी संगठन भी सरकार से नाराज चल रहा है। यही वजह है कि पहले अनुमति देने और बाद में उसे निरस्त कर उनका सम्मेलन होने से रोक दिया गया था। इसी तरह से उसके बाद पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर आंदोलन करने वाले संयुक्त मोर्चा की तीन दिन पहले अनुमति निरस्त कर दी गई । इसके बाद अब रात में पुलिस ने कोर्ट परिसर के पास प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों के टेंट उखड़वा दिए। जिससे कर्मचरियों में बेहद नाराजगी है। इसके चलते आखिरकार सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया को उनकी नाराजगी दूर करने के लिए कर्मचारी नेताओं को बुलाकर उनसे मुलाकात करनी पड़ गई। इस दौरान भदौरिया द्वारा न केवल उन्हें मांगों के निराकरण का आश्वासन दिया गया, बल्कि जल्द ही मुख्यमंत्री से मुलाकात का भी भरोसा दिलाया है।  

वरिष्ठ मंत्री को मिला श्रीमंत का सहारा  
भाजपा सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री इन दिनों बेहद परेशान चल रहे हैं। इसकी वजह है उनके एक रिश्तेदार के खिलाफ पहले से ही सरकार व शासन कड़ा रुख दिखा रही है, ऊपर से बेटे के खिलाफ भी एक जांच में अचानक तेजी आ गई है। यह नेता जी न केवल अपने अंचल के बल्कि प्रदेश के भी कद्दावर अजेय नेता माने जाते हैं। उनके पास सरकार के एक मलाईदार बड़े विभाग की कमान भी है, लेकिन इसके बाद भी उन्हें और उनके समर्थकों को सरकार में वैसी तबज्जो नहीं मिलती है, जिसके वे हकदार माने जाते हैं। वैसे इन नेता जी की दूसरी पहचान बेबाकी भी है। इसकी वजह से वे जो बोलना है, सीधे बोल देते हैं। अपने बुरे चल रहे इस दौर में उन्हें अब श्रीमंत का साथ मिल गया है। इसकी वजह से माना जा रहा है कि उन्हें अब उम्मीद की नई किरण दिखनी लगी है। अगर यह साथ जारी रहा तो अंचल में शिव के एक करीबी गण का न केवल जलवा कम होगा , बल्कि श्रीमंत और उनके पुराने शागिर्द का भी प्रभाव बड़ जाएगा। इसका फायदा श्रीमंत के खास मंत्री को जरूर मिलने की संभावना है।

और रुतबे की ठसक धरी रह गई
राजनैतिक रसूख की दम पर एक मलाईदार विभाग में ईएनसी का पद हासिल करने वाले एक साहब की हाल ही में ठसक धरी रह गई। विधानसभा पहुंचे उक्त साहब अधिकारी दीर्घा में पहुंचे तो मुख्य सचिव की खाली कुर्सी देखकर उस पर विराजमान हो गए। यह देखकर वहां बैठे कई आईएएस अफसरों ने उनसे उस सीट से उठने को कह दिया। इसके बाद भी वे उठे तो नहीं बल्कि खुद के ईएनसी होने का परिचय देने लगे, जिससे नाराज आईएएस अफसरों ने उन्हें फटकार लगा दी , लेकिन साहब इसके बाद भी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हुए। इस दौरान उन्हें उनके सहयोगियों ने भी इशारा कर समझाने का प्रयास किया, लेकिन साहब को उनके इशारे भी समझ में नहीं आए। इसके बाद वहां मौजूद एक अधिकारी ने उन्हें समझाया की जिस कुर्सी पर आप बैठे हैं , वह सीएस यानि की प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया की है और उनके लिए ही आरक्षित रहती है। इसके बाद रसूखदार ईएनसी साहब को समझ में आया की उनकेद्वारा बड़ी गलती कर दी गई है। इसके बाद तो साहब की ठसक ही नहीं चेहरे की रंगत भी गायब हो गई। इसके बाद तो डरे-सहमे साहब ने चुपचाप पीछे की कुर्सी पकड़ना ही मुनासिब समझा। 

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