बिहाइंड द कर्टन/कांग्रेस का अजब दुर्भाग्य

  • प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
 कमलनाथ

कांग्रेस का अजब दुर्भाग्य
आम आदमी तो ठीक सरकारें भी अपनी नेताओं की विलासिता का पूरा ध्यान रखती हैं। इसकी वजह है पैसा सरकारी खजाने से जाना। ऐसे में अगर कोई संयोग किसी दल की सरकार के साथ बन जाए तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। ऐसा ही कुछ अजब संयोग कांग्रेस के साथ एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार बन चुका है। यह संयोग जुड़ा है, उड़न खटोला खरीदने से। दरअसल जब भी कांग्रेस की सरकार ने इसकी खरीदी की तैयारी पूरी की है, उसकी सरकार ही चली गई। मामला चाहे दिग्विजय सरकार के कार्यकाल का हो या फिर कमलनाथ सरकार के कार्यकाल का। सिंह के कार्यकाल में हवाई जहाज की खरीदी की गई और उनकी सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा। इसके बाद मप्र में डेढ़ दशक बाद कमलनाथ ने कांग्रेस की सरकार बनाई और जैसे ही उनके द्वारा हेलिकॉप्टर खरीदा गया तो उनकी सरकार को भी सत्ता से बाहर होना पड़ा। खास बात यह है कि यह अजब संयोग सिर्फ कांग्रेस के साथ ही होता है।

4 कर्मचारी पड़ गए मंत्री पर भारी
स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री इंदर सिंह परमार द्वारा अनुमोदित जिस ट्रांसफर सूची को आदेश जारी होने के पहले वायरल करने वाले लोक शिक्षण के चार कर्मचारियों को निलंबित किया गया था, वे इतने भारी पड़ गए कि उन्हें बिना किसी कार्रवाई के बहाल करना पड़ा है। इस सूची में 170 शिक्षकों के नाम शामिल थे। वैसे भी परमार ऐसे मंत्री माने जा रहे हैं जिनकी अपने विभाग में बेहद कमजोर पकड़ है। यही वजह है कि आदेश जारी होने के पहले ही सोशल मीडिया पर वायरल की गई सूची के मामले में मंत्री की नाराजगी पर अनुमोदित सूची वायरल के मामले में निलंबित किए गए आशीष सक्सेना, गीतेश नाडा, पंकज सिंह पटेल व गौरव दीवान को न केवल वगैर दंड के बहाल कर दिया गया बल्कि, इस मामले में अन्य कर्मचारियों की भूमिका की जांच तक नहीं कराई गई। यही नहीं तबादले के बाद भी बीते चार माह बाद भी कई ऐसे अधिकारी है जो अब तक रिलीव ही नहीं हुए हैं। इसमें अधिकांश अधिकारी अभी उसी जगह पर जमें हुए है।

पुलिस आयुक्त प्रणाली टालने का मिला बहाना
प्रदेश के दोनों बड़े शहर इंदौर और भोपाल में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की प्रक्रिया भले ही अंतिम दौर में है, लेकिन इसको लागू करने को लेकर अब भी असमंजस बना हुआ है। इसकी वजह है इस मामले में आईएएस अफसरों का सरकार को साथ न मिल पाना। यही वजह है कि मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री के बाद भी इसकी फाइल अब तक अटकी हुई है। अब प्रदेश में पंचायत चुनाव की घोषणा के साथ ही चुनावी आचार संहिता लागू हो चुकी है, जिसकी वजह से मामले को अटकाने का एक और बहाना आईएएस लॉबी को मिल गया है। इस वजह से माना जा रहा है कि पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का मामला त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने तक टल सकता है। इसकी वजह है अब इसे लागू करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग से अनुमति लेनी होगी। इसकी वजह है इन दोनों शहरों में कुछ गांवों को पुलिस आयुक्त के क्षेत्र में शामिल किया जाना। यह बात अलग है कि सरकार चाहे तो ग्रामीण क्षेत्रों को अलग कर शहरी क्षेत्र में पुलिस आयुक्त प्रणाली के क्षेत्र का नया प्रस्ताव तैयार कर उसे लागू कर सकती है।

सरकार से अधिक घर की चिंता
जब प्रदेश सरकार, उसके मुखिया और संगठन का पूरा फोकस सरकारी कामकाज में तेजी लाने पर है, ऐसे में एक बड़े विभाग के मंत्री सरकारी कामकाज की चिंता छोड़कर अपने पारिवारिक आयोजन की सफलता के लिए चिंता में बने हुए हैं। यह चिंता उनकी बीते एक माह से बनी हुई है। यही वजह है कि वे विभागीय सरकारी कामकाज छोड़कर पूरी तरह से निजी आयोजन पर पूरा फोकस किए हुए हैं। इसकी वजह से विभाग में कोई भी महत्वपूर्ण कामकाज नहीं हो पा रहा है। हालात अब तो यह बन गए हैं कि मंत्री जी के दफ्तर में सरकारी फाईलों के ढेर नजर आने शुरू हो गए हैं। अब तक उनके बंगले पर जरुरी फाइलों की संख्या दोहरे शतक के आंकड़े को छू  चुकी हैं। माना जा रहा है कि अभी एक पखवाड़े और मंत्री जी का सरकारी फाइलों को इंतजार करना होगा। इसकी वजह से तय है कि इन फाइलों की संख्या अगर तिहरे शतक के आंकड़ें तक पहुंच सकती हैं।

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