- प्रणव बजाज

कलेक्टर ने बचाया आदिवासी बच्चों का साल बर्बाद होने से
रायसेन कलेक्टर अरविंद दुबे कहने को तो पहली बार कलेक्टर बने हैं, लेकिन कामकाज का तरीका उनका पूरी तरह से पेशेवर है। यही वजह है कि उन्हें जब भी गरीबों या फिर निचले तबके के लोगों की परेशानी का पता चलता है तो उसे दूर करने में पूरी ताकत से जुट जाते हैं। इसकी बानगी दो दिन पहले तब देखने को मिली जब दसवीं की परीक्षा शुरू हुई तो 26 आदिवासी बच्चों को परीक्षा से वंचित किया जा रहा था। इसकी वजह थी शिक्षा विभाग की लापरवही। दरअसल बच्चों की परीक्षा फीस जमा नहीं हो पाने की वजह से उनके रोल नंबर तक जारी नहीं किए गए थे। यह बात जब कलेक्टर दुबे को पता चली तो उन्होंने इस मामले में प्रमुख सचिव शिक्षा से बात की तथा माध्यमिक शिक्षा मंडल से बच्चों के रोल नंबर और प्रवेश पत्र तत्काल जनरेट कराए और शासकीय हाई स्कूल उमरई बेहरा के बच्चों को परीक्षा में बैठाया। इसकी वजह से इन आदिवासी बच्चों का एक साल बर्बाद होने से बच गया।
31 मुस्लिम बाहुल्य विस सीटों पर ओवैसी का फोकस
बिहार विधानसभा चुनावों में पांच सीटें जीतने के बाद एआईएमआईएम मुखिया असदउद्दीन ओवैसी की नजर अन्य प्रांतो पर लगी हुई हैं। इनमें पं बंगाल व उप्र में तो उनकी पार्टी चुनावी मैदान में उतर ही चुकी है। अब इसके बाद उनकी पार्टी की नजर मप्र पर भी है। ओवैसी ने इसके लिए मप्र की 31 मुस्लिम बाहुल्य सीटों का चयन किया है। इन सीटों पर पार्टी ने अभी से चुनावी तैयारियों को लेकर संगठन को खड़ा करने का काम तेजी से शुरू किया है। इन जिलों में अब सदस्यता अभियान भी तेजी से चलाया जा रहा है। इसके लिए पार्टी सदस्यता प्रभारी भी नियुक्त कर चुकी है। यह बात अलग है कि अब तक ओवैसी ने प्रदेश में पार्टी की कमान किसी को नहीं सौंपी है। प्रदेश की जिन सीटों पर फोकस किया जा रहा है उन पर मुस्लिम वोटर्स निर्णायक स्थिति में होने से या तो मुस्लिम प्रत्याशी जीत दर्ज करता है या हार-जीत तय करता है। इनमें भोपाल की उत्तर, मध्य और नरेला विधानसभा क्षेत्र हैं। इसी तरह इंदौर, उज्जैन, जबलपुर, बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, रतलाम, जावरा, कटनी में विधानसभा के साथ ही नगरीय निकायों के चुनाव तक के लिए भी जमीन टटोली जा रही है।
मलिक को मिली तबादले में कैट से राहत
अखिल भारतीय वन सेवा के मप्र कैडर के अफसर शशि मलिक को हाल ही में हुए तबादले पर फौरी तौर पर केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) से राहत मिल गई है। उनका 14 फरवरी को तबादला कर दिया गया था, जिस पर 48 घंटे में कैट ने रोक लगा दी। प्रदेश में यह पहला मामला है जब किसी आईएफएस अफसर ने तबादला पर रोक लगाने के लिए कैट से स्टे लिया है। मलिक ऐसे अफसर हैं जिनका 28 साल की नौकरी में अब तक 26 तबादले हो चुके हैं। ग्वालियर सर्किल के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पद पर पदस्थ 1993 बैच के आईएफएस अफसर मलिक का इस बार भी एक साल से पहले ही तबादला कर दिया गया। दरअसल विभाग का काम ही समझने में किसी भी अफसर को 6 ये आठ माह का 8 माह का समय लगता है। मालिक के साथ यह बर्ताव ऐसे समय में हो रहा है जब कई अफसर एक ही जिले में अलग-अलग पदों पर आधी नौकरी तक कर चुके हैं और अब भी वहीं पदस्थ बने हुए हैं। फिलहाल इसे प्रशासनिक अराजकता के तौर पर देखा जा रहा है।
सरकार मिल मालिकों से मिलकर कर रही चावल घोटाला
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सरकार व मिल मालिकों के बीच सांठगांठ का आरोप लगाते हुए कहा है कि इस वर्ष भी मध्यप्रदेश के गरीबों को दिए जाने वाले चावल का गोरखधंधा जोर शोर से जारी है। उनका कहना है कि चावल मिलों को दिए जाने वाले समर्थन मूल्य पर खरीदी गई धान को मिलर द्वारा ऊंची कीमत में दूसरे राज्यों में भेज कर उसके एवज में मिलर पड़ोसी प्रदेशों से घटिया चावल सस्ते दामों में खरीद कर वापस जमा कर रहे हैं। यह सुनियोजित घोटाला भाजपा सरकार और चावल मिल मालिकों की सांठगांठ से चल रहा है, जिस पर तत्काल रोक लगाई जाए। सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इसकी उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि बीते साल भी उनके द्वारा इसी तरह का मामला उजागर किया गया था। सिंह ने कहा कि अनूपपुर, कटनी और डिंडोरी जिलों में कई राइस मिलर्स अपनी क्षमता से अधिक घटिया चावल गरीबों को बांटने के लिए सरकार को दे रहे हैं। इनमें कई मिलें बंद है या उनका बिजली कनेक्शन कटा है। फिर उनके पास चावल कहां से आ रहा है।