बा खबर असरदार/ईमानदारी की खुल गई पोल

  • हरीश फतेह चंदानी
राजेश प्रजापति

ईमानदारी की खुल गई पोल
चाल, चेहरा, चरित्र वाली पार्टी के एक माननीय ने पिछले दिनों अपनी तथाकथित ईमानदारी का हवाला देकर अपने जिले के कलेक्टर को हटाने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन तक किया था। लेकिन अब माननीय की ईमानदारी की पोल उनके रिश्तेदारों ने ही खोल दी है। ये माननीय हैं छतरपुर जिले की चंदला के भाजपा विधायक राजेश प्रजापति। रेत कारोबार और कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह के साथ विवादों के कारण चर्चा में रहे चंदला के भाजपा विधायक राजेश प्रजापति अब अपने ही रिश्तेदारों के निशाने पर हैं। राजेश प्रजापति के साले ने आरोप लगाया  है कि पारिवारिक बंटवारे में मुझे 24 बीघा जमीन मिली है जिस पर मैं कच्चा मकान बनाकर रहता हूं एवं खेती करता हूं। 6 दिसम्बर को विधायक कुछ लोगों के साथ पहुंचे और मारपीट की। विरोध करने पर विधायक ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए लवकुशनगर में पदस्थ उपनिरीक्षक नरेन्द्र शर्मा को मौके पर बुलवाया और खेत पर बनी झोपड़ी तोड़ दी व अन्य सामान फेंक दिया। पीड़ितों ने अब विधायक सहित अन्य आरोपियों पर कार्यवाही की मांग करते हुए एसपी से न्याय की गुहार लगाई है।

बेकार मंत्री के दमदार कारनामें
मप्र में कुछ मंत्रियों की मनमानी बढ़ती जा रही है। आलम यह है कि सरकार, संगठन और संघ की हिदायत के बाद भी मंत्री अपनी मनमानी कर रहे हैं। ऐसे ही मंत्रियों में एक महिला मंत्री का भी नाम शामिल है। इन महिला मंत्री के बारे में कहा जाता है कि  काम की न काज की… मंत्री बेकार की। भले ही इन्हें लोग बेकार मंत्री मानें, लेकिन इनके कारनामे किसी दमदार मंत्री से कम नहीं हैं। कुछ दिन पहले तक इनके भाई के कारनामे सुर्खियों में थे। अब मंत्री की कारगुजारी चर्चा में है। दरअसल, मंत्री ने अपने पास एक निज सहायक रख रखा था। उनकी कारगुजारियों की शिकायत ऊपर तक पहुंची तो उन्हें निकाल दिया गया। लेकिन मामला शांत होते ही मंत्री ने उसे फिर से अपने पास रख लिया है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि मंत्री ने उक्त व्यक्ति को फिर से अपने पास रख लिया है। सूत्रों का कहना है कि वह व्यक्ति मंत्री का राजदार तो है ही साथ ही उनकी अर्थव्यवस्था का भी पूरा इंतजाम वही करता है। इसलिए मंत्री की उस पर मेहरबानी है और यही वजह है कि उसे दोबारा रखा गया है।

अफसर सुनते नहीं तो कैसे सुधारें परफॉर्मेंस
प्रदेश में इनदिनों कुछ मंत्रियों को अपनी परफॉर्मेंस रिपोर्ट की चिंता सता रही है। इसकी वजह यह है कि सत्ता और संगठन मंत्रियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट तैयार कर रहा है।  दावा किया जा रहा है कि इस रिपोर्ट के आधार पर मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा। उधर, मंत्रियों का कहना है कि अधिकारी हमारी तनिक भी नहीं सुनते हैं। ऐसे में हमारी रिपोर्ट अच्छी कैसे रहेगी। इस संदर्भ में कुछ  मंत्रियों का अपना दर्द बयां करते हुए कहना है कि न तो हमारे विभाग के अधिकारी हमारी सुनते हैं और न ही उच्च अधिकारी। एक मंत्री कहते हैं कि अधिकारियों द्वारा की जा रही नाफरमानी की शिकायत हमने कई बार प्रशासनिक मुखिया से की है, लेकिन वे खुद हमारी नहीं सुनते हैं। जब हम सरकार के मुखिया से प्रशासनिक मुखिया की शिकायत करते हैं तो वे भी हमारी नहीं सुनते हैं। ऐसे में न तो हम अपने विभाग का काम करवा पाते हैं और न ही अपने क्षेत्र का। वे कहते हैं कि मंत्रिमंडल में कुछ ही मंत्री ऐसे हैं जो अपने दमखम पर अपनी फाइलों पर मंजूरी पा लेते हैं। बाकी सब तो अफसरशाही के कायदे-कानून में फंसे रहते हैं। ऐसे में हमारी परफॉर्मेंस रिपोर्ट बेहतर कैसे होगी। लेकिन हम करें भी तो क्या, हमारी कोई सुन नहीं रहा है।

पहली कलेक्टरी आखिरी कलेक्टरी न बन जाए
हर आईएएस अफसर का सपना होता है कि वह कलेक्टर बने और अगर वह जिला बड़ा तथा कमाऊ हो तो सोने पर सुहागा हो जाता है। इसलिए हर आईएएस अफसर इसके लिए कोशिश करता है। लेकिन प्रदेश में कुछ बिरले अफसर ही होते हैं जिनकी मुराद पहली बार में ही पूरी हो जाती है। ऐसे ही एक आईएएस अधिकारी की कलेक्टरी प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में चर्चा का विषय बनी हुई है। दरअसल, साहब एक आदिवासी जिले के कलेक्टर हैं। पहली बार में ही उन्हें इस जिले की कमान मिल गई है। जिले में विकास के लिए सरकार ने योजनाओं की भरमार लगा दी है। ऐसे में साहब की लॉटरी लग गई है। साहब बिना सोचे-समझे पहली कलेक्टरी में ही कलाकारी दिखाकर माल कमाने में जुट गए हैं। साहब जबसे जिले में पदस्थ हैं, तबसे रोजाना लाखों रुपयों के वारे-न्यारे कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अपने पीए को माध्यम बना रखा है। लेकिन उस दिन साहब की कलेक्टरी की कलाकारी की पोल खुल गई, जिस दिन उन्होंने एक व्यक्ति से लाखों रुपए कमीशन के रूप में ले लिए। बताया जाता है कि पीए के माध्यम से साहब ने उक्त व्यक्ति से रुपए तो ले लिए हैं, लेकिन वह बात जिले से निकलकर राजधानी की प्रशासनिक वीथिका तक पहुंच गई है। संभावना जताई जा रही है कि यह बात कानोंकान बड़ों तक पहुंच जाएगी। ऐसे में अगर साहब को कोई सपोर्ट नहीं मिला तो उनकी पहली कलेक्टरी आखिरी कलेक्टरी भी हो सकती है।

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