- हरीश फतेह चंदानी

साहब का ऑफिस प्रेम
वैसे तो सरकारी कर्मचारियों व अफसरों के बारे में कहा जाता है की वे ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते है, जिससे की उन्हें ऑफिस न जाना पड़े, लेकिन प्रदेश में एक बड़े साहब ऐसे हैं जो त्यौहार हो या अवकाश फिर भी ऑफिस जाना नहीं छोड़ते हैं। यह साहब अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर हैं। दरअसल उन्हें किसी भी फाइल का लंबित रहना पसंद नहीं हैं। यही वजह है की जब भी मुख्यमंत्री का कोई निर्देश मिला नहीं की, कुछ ही देर में आदेश निकल जाता है। उनकी इस कार्यप्रणाली के सरकार से लेकर अफसर तक सभी कायल हैं। साहब की वजह से उनके मातहत कर्मचारी जरूर परेशान है। इसकी वजह है पूरे एक साल में शायद ही दो चार दिन ऐसे रहे हों जब वे ऑफिस न गए हों। यह बात जरुर है की वे भले ही कुछ देर के लिए ऑफिस आएं , लेकिन आते जरूर हैं। भले ही फाइलें निपटाकर वे कुछ देर में वापस घर चले जाएं। यह वे अफसर हैं जिनके पास इन दिनों दो विभागों की कमान है। इसके बाद भी वे बेहद मीडिया फ्रेंडली भी हैं।
मैं किधर जाऊं…
पंकज उधास की गजल मैं किधर जाऊं… होता नहीं फैसला… की तरह 2010 बैच के एक आईएएस अधिकारी इन दिनों दो वरिष्ठ अधिकारियों के बीच फंसे हुए हैं। उन्हें रास्ता नहीं मिल रहा है कि वे करें तो क्या करें। दरअसल, साहब विवादों का गढ़ बने एक संस्थान में प्रबंध निदेशक के पद पर पदस्थ हैं। इस संस्थान में काला कारोबार करने वाले अफसरों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि जिसने भी इन्हें उखाड़ने की कोशिश की, वह खुद बाहर चला गया। महाप्रबंधक के पद पर बैठे ऐसे ही एक अधिकारी को लेकर संस्थान के बड़े साहब और प्रशासन के बड़े साहब के बीच ठनी हुई है। बड़े साहब का प्रबंध निदेशक को निर्देश हैं कि उक्त महाप्रबंधक को संस्थान से बाहर करो। वहीं उक्त महाप्रबंधक संस्थान के बड़े साहब का चहेता है। ऐसे में साहब की स्थिति ऐसी हो गई है कि एक तरफ कुआं एक तरफ खाई। अगर साहब प्रशासनिक मुखिया की बात मानते हैं तो संस्थान के बड़े साहब नाराज हो जाएंगे, जो भविष्य में प्रशासनिक मुखिया बन सकते हैं। वहीं बड़े साहब की बात मानते हैं तो प्रशासनिक मुखिया नाराज हो जाएंगे। ऐसे में साहब की समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें।
कुछ भी बोलने को तैयार नहीं
प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों 2010 बैच की एक महिला आईएएस अधिकारी काफी चर्चा में हैं। गौरतलब है कि यह मैडम वही हैं जिनको विभाग से हटाने के लिए उनके पीएस ने पूरा जोर लगा दिया था। मैडम की सहेलियां तो विभाग से जैसे-तैसे बाहर हो गईं, लेकिन मैडम जमी हुई हैं। दरअसल, हाल ही में हुए एक आॅडिट में 400 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया है। घोटाला सामने आने के बाद प्रशासनिक वीथिका में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन जिस अधिकारी पर इसकी जवाबदारी है, वे जवाब देने से कतरा रही हैं। दरअसल, जिस महिला अधिकारी की यहां बात हो रही है, वे पहले भी एक मामले में काफी सुर्खियों में रही हैं। हालांकि मैडम का कहना है कि 400 करोड़ का यह घोटाला मेरे कार्यकाल का नहीं है। इसलिए मेरी जवाबदारी नहीं बनती है। उधर, जानकारों का कहना है कि मैडम के कार्यकाल में भले ही यह घोटाला नहीं हुआ है, लेकिन उनकी जवाबदारी बनती है कि वे इस मामले में स्थिति स्पष्ट करें। लेकिन मैडम कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं।
हीरालाल की राह पर वरदमूर्ति
नौकरशाहों की राजनीति में आने की इच्छा तो सभी की पता है, हालांकि उनमें से कुछ सफल होते हैं तो कुछ असफल हो जाते हैं, जिसकी वजह से वे गुमनामी में चले जाते हैं। इनमें से अधिकांश अफसर तो ऐसे होते हैं, जो भले ही नौकरी में रहते चर्चा में न रह पाए हों, लेकिन राजनीति में आते ही चर्चा में आ जाते हैं। सकवानिवृत्त हुए तो हीरालाल त्रिवेदी ने एक नया राजनीतिक संगठन बना लिया। यह बात अलग है की वे कितने सफल हुए यह सभी जानते हैं। अब उनकी ही राह पर नौकरशाह वरदमूर्ति मिश्रा भी चल रहे हैं। त्रिवेदी ने सपाक्स को गति दी थी, पर वे कुछ करिश्मा नहीं कर सके। उनकी राह पर चलते हुए मिश्रा ने नए राजनीतिक दल के गठन और प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। ऐसा नहीं है कि ये दो अफसर ही राजनीति में आए हैं। इससे पहले डीएस राय, वीके बाथम और अजिता पांडे वाजपेयी सेवानिवृत्ति के बाद कांग्रेस से जुड़ चुके हैं। पर अब तक कोई खास मुकाम हासिल नहीं कर सके। अपवाद स्वरुप सुशील चंद्र वर्मा और रुस्तम सिंह ही ऐसे नौकरशाहों के नाम जरुर लिए जा सकते हैें, जो भाजपा में आने के बाद कई बार सांसद, विधायक एवं मंत्री बन सके।
पुलिस कमिश्नरी पर भारी
अभी पिछले साल ही फेम इंडिया मैग्जीन एशिया पोस्ट के वार्षिक सर्वे में 50 लोकप्रिय पुलिस कप्तानों में शुमार 2009 बैच के आईपीएस अधिकारी अब पुलिस कमिश्नरी पर भारी पड़े हैं। साहब वर्तमान में विंध्य क्षेत्र के एक जिले के पुलिस कप्तान हैं। उनकी कार्यशैली अन्य जिलों के पुलिस कप्तानों से अलग हटकर है। फरियादियों की बातों को सहजता के साथ सुनकर त्वरित निराकरण कराना उनकी कार्यशैली में शामिल है। इसका असर यह हो रहा है कि जिले में आम आदमी की शिकायतों का समाधान समय सीमा में हो रहा है। इस कारण सीएम हेल्पलाइन और पुलिस से जुड़े मामलों में प्रॉपर सुनवाई और निदान करने में उनका जिला अव्वल आया है। हाल ही में गृह विभाग द्वारा जून और जुलाई की शिकायतों और उनके निराकरण के बाद प्रदेश के 52 जिलों की रैंकिंग जारी की है। इस रैंकिंग में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने वाले दोनों जिले यानी भोपाल और इंदौर साहब के जिले का मुकाबला नहीं कर पाए। यह रैंकिंग पुलिस को कितनी शिकायतें मिलीं, कितनी का निराकरण संतुष्टि के आधार पर हुआ, कितनी 50 दिन बाद भी हल नहीं हो पाईं। साथ ही कितनी बिना सॉल्यूशन के बंद की गईं और कितने प्रतिशत शिकायतें अटैंड ही नहीं की गईं के आधार पर तय की जाती है।